आयुर्वेद



खीरेके औषधीय गुण


खीराकी (त्रपुश, कंटकी फल) मूल उत्पत्ति भारतमें मानी जाती है, पश्चिम एशियामें ३००० वर्षोंसे इसकी खेतीकी जाती है । भारतसे यह ग्रीस और इटलीमें फैल गया और तत्पश्चात चीनमें फैल गया । आयुर्वेदके अनुसार खीरा स्वादिष्ट, शीतल, प्यास, दाहपित्त तथा रक्तपित्त दूर करनेवाला रक्त विकारनाशक है । खीरा व ककडी एक ही प्रजातिके फल हैं। कम वसा(फैट) व कैलोरीसे भरपूर खीरेका सेवन आपको कई गंभीर रोगोंसे बचानेमें सहायक है । खीरेमें इरेप्सिन नामक एंजाइम होता है, जो प्रोटीनको पचानेमें सहायता करता है । खीरा जलका बहुत अच्छा स्रोत होता है, इसमें ९६ % जल होता है। खीरेमें विटामिन ए, बी1, बी6, सी, डी, पौटेशियम, फास्फोरस, आयरन आदि प्रचुर मात्रामें पाये जाते हैं । आज हम आपको खीरेके कुछ औषधीय गुणोंके विषयमें बताने जा रहे हैं:
• बालों व त्वचाके लिए – खीरेमें सिलिकन व सल्फर बालोंको बढनेमें सहायता करते हैं । अच्छे परिणामके लिए आप चाहें तो खीरेके रसको गाजर व पालकके रसके साथ भी मिलाकर ले सकते हैं । खीरा त्वचाकी धूपसे झुलसनेसे (सनबर्नसे) रक्षा करता है । खीरेमें विद्यमान एस्कोरबिक एसिड व कैफीक एसिड जलकी न्यूनताको (जिसके कारण आंखोंके नीचे सूजन आने लगती है ) न्यून करता है ।
• मूत्ररोग – 10 ग्राम खीरेके बीजको पीसकर पानीमें मिलाकर दिनमें 2 से 3 बार पीनेसे नाभिका दर्द और मूत्राशयकी वेदना ठीक होती है ।
• यकृत(लिवर)का बढना – खीरेको काटकर नींबू व पुदीनेका रस एवं काला नमक मिलाकर खानेसे लिवरका बढनेका रोग ठीक होता है ।
• मूर्च्छा – खीरेको काटकर रोगीकी आंखों और माथेपर रखने और खीरेकी फांक रोगीको सुंघानेसे मूर्च्छा दूर होती है ।
• सिरकी वेदना – गर्मीके कारण यदि सिरमें वेदना हो रही हो तो खीरेको गोलाईमें काटकर दो टुकडे कर दोनों नेत्रोंपर रखे, इससे गर्मीमें आराम मिलेगा और मानसिक तनाव दूर होगा, अधिक गर्मी होनेपर खीरेको पीसकर लेप बनाकर माथेपर लगाकर १५ मिनटके लिए लेट जाएं, गर्मीमें आराम मिलेगा |
• कर्करोगसे (कैंसरसे) रक्षा – खीरेके नियमित सेवनसे कैंसरका संकट न्यून होता है। खीरेमें साइकोइसोलएरीक्रिस्नोल, लैरीक्रिस्नोल और पाइनोरिस्नोल तत्व होते हैं । ये तत्व सभी प्रकारके कर्करोग जिनमें स्तनके कर्करोग भी आते हैं उनको रोकनेमें सक्षम है ।
• मासिक धर्ममें लाभप्रद – खीरेका नियमित सेवनसे मासिक धर्ममें होनेवाले कष्ट दूर होते हैं। लड़कियोंको मासिक धर्मके समय बहुत कष्टमें होती हैं, वो दहीमें खीरेको कसकर उसमें पुदीना, काला नमक, काली मिर्च, जीरा और हींग डालकर रायता बनाकर खाएं इससे मासिक धर्मका कष्ट दूर होगा ।
• मधुमेह व रक्तचापमें लाभप्रद – मधुमेह व रक्तचापसे बचनेके लिए नियमित रुपसे खीरेका सेवन लाभकारी हो सकता है । खीरेके रसमें वो तत्व हैं जो अग्न्याशय(पैनक्रियाज)को सक्रिय करते हैं । अग्न्याशय सक्रिय होनेपर शरीरमें इंसुलिन बनती है। इंसुलिन शरीरमें बननेपर मधुमेहसे लडनेमें सहायता मिलती है। खीरा खानेसे कोलस्ट्रोलका स्तर कम होता है । इससे हृदय संबंधी रोग होनेकी आशंका अल्प रहती है। खीरामें फाइबर, पोटैशियम और मैगनीशियम होता है जो रक्तचाप(ब्लड प्रेशर) अच्छा रखनेमें अहम भूमिका निभाते हैं । खीरा उच्च और निम्न रक्तचाप दोनोंमें ही एक प्रकारसे औषधिका कार्य करता है ।
• भार(वजन) न्यून करनेमें सहायक – जो लोग अपना भार घटाना करना चाहते हैं, उन लोगोंके लिए खीरेका सेवन अत्यधिक लाभकारी रहता है । खीरेमें जल अधिक और कैलोरी अल्प होती है, इसलिए भार घटानाके लिए यह अच्छा विकल्प हो सकता है । जब भी भूख लगे तो खीरेका सेवन अच्छा हो सकता है । सूप और सलादमें खीरा खाएं । खीरेमें रेशा (फाइबर) होते हैं जो भोजन पचानेमें सहायक होते हैं।
• मुंहके गंधको दूर करता है – अगर मुंहसे गंध आ रही है तो कुछ मिनटोंके लिए मुंहमें खीरेका टुकडा रख लें; क्योंकि यह जीवाणुओंको मारकर धीरे-धीरे दुर्गन्धके प्रमाणको घटा देता है । आयुर्वेदके अनुसार पेटमें गर्मी होनेके कारण मुंहसे दुर्गन्ध निकलता है, खीरा पेटको शीतलता प्रदान करनेमें सहायता करता है ।
• आंखोंके लिए लाभकारी – मुखपर लेप या उबटन लगानेके पश्चात आंखोंकी जलनसे बचनेके लिए खीरेको गोलाइमें काटकर आंखोंकी पलकके ऊपर रखते हैं। इससे आंखोंको ठंडक मिलती है । खीरेकी तासीर जलन कम करनेकी होती है। ऐसा हम कभी भी कर सकते हैं। जब भी आंखोंमें जलन अनुभव हो तो आप खीरेकी सहायता ले सकते हैं।
• विटामिनके (K) का अच्छा माध्यम – खीरेके छिलकेमें विटामिन-के पर्याप्त मात्रामें मिलता है | ये विटामिन प्रोटीनको सक्रिय करनेका कार्य करता है फलस्वरूप कोशिकाओंके विकासमें सहायता मिलती है, साथ ही इससे रक्तका थक्का (ब्लड-क्लॉटिंग) जमनेकी समस्या भी पनपने नहीं पाती है ।
• मसूडे स्वस्थ रखता है – खीरा खानेसे मसूडोंके रोग अल्प होते हैं। खीरेके एक टुकडेको जीभसे मुंहके ऊपरी भागपर आधा मिनिट तक रोकें । ऐसेमें खीरेसे निकलनेवाला फाइटोकैमिकल मुंहकी दुर्गंधको समाप्त करता है ।
• त्वचाके लिए – प्रशिक्षण(टैनिंग) और धूपसे झुलसने(सनबर्न)में भी खीरेके छिलकेका प्रयोग लाभकारी होता है | इससे त्वचाका रूखापन भी कम होता है और नमी बनी रहती है | खीरा काटनेके पश्चात आप उसके छिलकेको हल्के हाथोंसे लगा सकती हैं | कई लोग इसके छिलकेको सुखाकर पीस लेते हैं और उसमें गुलाबजलकी बूंदें मिलाकर मुखके लेप हेतु प्रयोग करते हैं ।
• जोडोकी दवा – खीरेमें सीलिशिया प्रचुर मात्रामें होता है । इससे जोड सशक्त होते हैं और ऊतक (टिशू) परस्पर पुष्ट होते हैं । गाजर और खीरेका रस मिलाकर पीनेपर गठिया या वात रोगमें सहायता मिलती है । इससे यूरिक एसिडका स्तर भी न्यून होता है । खीरेका सेवन घुटनोंकी वेदनाको भी दूर भगाता है । घुटनोंके वेदनावाले व्यक्तिको खीरे अधिक खाने चाहिए तथा साथमें एक लहसुनकी कली भी खा लेनी चाहिये।
• पथरी – पथरीके रोगीको खीरेका रस दिनमें दो-तीन बार अवश्य पीना चाहिये। इससे पेशाबमें होनेवाली जलन व अवरोध दूर होता है ।
• बुखार – ताजे खीरेको काटकर तलवेपर रगडें और सिरपर ठंडी पट्टी रखें, ज्वररकी तपन शान्त हो जाएगी ।
• प्रतिरोधक शक्ति बढाने में – हमारे शरीरमें हानिकारक मुक्तकणोंके संचयसे कई प्रकारकके असाध्य रोग हो सकते हैं, वास्तवमें मुक्त कणोंकी कारण तनाव, कैंसर, हृदय रोग, फेफडेके रोग होनेका संकट बढ जाता है । इन सबसे बचनेके लिए एंटीऑक्सीडेंटकी आवश्यकता होती है, फल और सब्जियां, खीरे सहित, विशेष रूपसे लाभप्रद एंटीऑक्सीडेंटमें प्रचुर मात्रामें होती हैं जो इन स्थितियोंको कम कर सकती हैं ।
खीरेमें एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जिसमें फ्लेवोनोइड और टैनिन होता है, जो हानिकारक मुक्त कणोंके संचयको रोकते हैं और असाध्य रोगके प्रभावको घटा सकते हैं । इसलिए आप स्वयंको इन रोगोंसे बचानेके लिए खीरेका सेवन जरूर करें।
• पाचनके लिए लाभप्रद – खीरेके छिलकेमें ऐसे फाइबर होते हैं जो घुलते नहीं है | ये फाइबर पेटके लिए संजीवनी बूटीके समान कार्य करता है| कब्जकी समस्याको दूर करते हैं |
खीरेका उपयोग करते समय कुछ सावधानियां भी ध्यानमें रखें :
• खीरा कभी भी काटकर बासी न खाएं ।
• खीरेका प्रयोग शरीरमें कफको बढाता है; इसलिए कफके रोगी इसे नियंत्रित मात्रामें प्रातःकाल और ग्रीष्म ऋतुमें ही लें ।
• खीरेका सेवन रात्रिमें न करें। जहां तक हो सके, दिनमें ही इसे खाएं ।
• खीरेके सेवनके पश्चात जल तुरन्त ग्रहण न करें।

पुदीनेके औषधीय गुण


पुदीनेका उपयोग वैसे तो सम्पूर्ण वर्ष भारत भर लोग किसी न किसी रूपमें करते हैं किन्तु ग्रीष्मकालमें पुदीनेका उपयोग अधिक किया जाता है अतः आज हम पुदीनेके औषधीय पक्षके विषयमें जानेंगे । पुदीनेका (पूतिहा) मूल उत्पत्ति स्थान भूमध्य सागरीय प्रदेश है; परन्तु आज विश्वके अधिकांश देशोंमें इसका उत्पादन हो रहा है । भारतके लगभग सभी प्रदेशोंमें पुदीना उगाया जाता है । साधारण सा दिखनेवाला यह पौधा अपने आपमें बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी प्रभाव रखता है । यह चिकित्सा जगतमें प्रचलित रूपसे गन्धचिकित्सामें (अरोमाथेरपी) उपयोग किया जाता है । पुदीनेका प्रयोग पत्ते, तेल, चाय आदिके रूपमें किया जाता है । पुदीना शरीर और मनपर ठन्डा और शान्त प्रभाव छोडता है, जिसका मुख्य कारण इसमें विद्यमान पुदीना सत्त (मेन्थॉल) है ।
यह जडी बूटी मैंगनीज, ताम्बा और विटामिन सीका एक प्रमुख स्रोत है । इसके अतिरिक्त यह ऑक्सीकरण रोधी (एंटीऑक्सीडेंट), जीवाणुरोधी, विषाणुरोधी (एंटीवायरल) आदि गुणोंके लिए भी जाना जाता है ।
पुदीनेके कुछ औषधीय गुण इसप्रकार हैं :
  • शीतप्रकोप (सर्दी जुकाममें) लाभप्रद :- शीतप्रकोप, पुराना नजला आदि रोगोंमें पुदीनेके  रसमें  काली मिर्च और थोडा सा काला नमक मिलाकर, इसको चायके समान उबालकर पीनेसे शीतप्रकोप और खांसी व ज्वरमें अति शीघ्र लाभ मिलता है ।
  • मुखेके दुर्गन्ध दूर करनेमें लाभप्रद – मुखसे दुर्गन्धकी समस्या दूर करनेमें पुदीना अत्यधिक उपयोगी है । इसके लिए आप पुदीनेकी सूखी पत्तियोंका चूर्ण बना लें और इसका मन्जनके समान प्रयोग करें ।  ऐसा करनेसे आपके मसूडे स्वस्थ होंगे और आपके मुखसे दुर्गन्ध आना पूर्णत: समाप्त हो जाएगा । इस प्रयोगको आप कमसे कम २ सप्ताह या अधिकसे अधिक १ माह तक कर सकते हैं ।
  • तेज गर्मीमें लाभप्रद :- गर्मीके कारण घबराहट होनेपर एक चम्मच सूखे पुदीनेकी पत्तियां और आधा छोटा चम्मच इलायचीका चूर्ण एक गिलास जलमें उबालकर,  ठंडा होनेके पश्चात पीनेसे लाभ मिलता है और साथ ही विसूचिकामें (हैजामें)  प्याजका रस और नींबूका रस पुदीनाके साथ बराबर मात्रामें मिलाकर पीनेसे लाभ मिलता है । गर्मीके दिनोंमें पुदीनेका प्रयोग भिन्न प्रकारसे करते हैं, जैसे — गन्नेके रसमें, आमका पन्ना बनानेमें, भोजनमें आदि । इनका सेवन करनेसे शरीरमें नमी बनी रहती है साथ ही उल्टी,विसूचिका (हैजा) जैसी समस्या भी नहीं होती ।
  • उदर वेदना (पेट दर्द) दूर करने हेतु  मलावरोध होनेपर या पेटमें वेदना होनेपर पुदीनेको पीसकर जलमें मिला ले और छाननेके पश्चात बने रसको पिएं । इससे उदर सम्बन्धी विकार दूर होते है और पाचन शक्ति बढती है ।
  • हड्डियोंको सख्त(मजबूत) बनानेमें लाभप्रद पुदीनाका सेवन करनेसे हड्डियां सशक्त होती है । पुदीनेमें पाए जानेवाला मैग्निशियम तत्व हड्डियोंको सशक्त बनाता है ।
  • पैतव (कोलेस्ट्रोल) न्यून करनेमें सहायक  पुदीनाका नित्य सेवन शरीरके बढे हुए पैतव(कोलेस्ट्रोल)के स्तरको कम करता है । यह पुदीनेमें पाए जानेवाले रेशे (फाइबर)के कारण सम्भव होता है ।
  • त्वचाकी देखभाल करनेमें सहायक  पुदीनेको पीस कर चेहरेपर लगानेसे या पिसे हुए पुदीनेमें मुल्तानी मिट्टी मिला कर चेहरेपर लगानेसे चेहरेकी त्वचा चमकदार बनती है।
  • चोट (घाव) ठीक करनेमें लाभप्रद  पुदीनाकी पत्तियोंको मसल कर चोट (घाव) या फोडेपर लगानेसे चोट (घाव) या फोडा शीघ्र ठीक हो जाता हैं; क्योंकि पुदीनेमें जीवाणुरोधी (एंटी – बैक्टिरियल) एवं एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण होता है।
  • उल्टी या हिचकी रोकनेमें सहायक – पुदीनाका रस दिनमें दो बार एक एक चम्मच लेनेसे उल्टीमें लाभ मिलता है । हिचकीमें पुदीनाका उपयोग लाभकरी होता हैं ।
  • अतिसार (दस्त)में उपयोगी – पुदीनेको पीसकर प्राप्त रस को १ चम्मचकी मात्रामें लेकर १ कप पानीमें डालकर लिया जा सकता है ।
  • गर्भवती स्त्रीका जी मिचलाना : पुदीनेका रस लगभग ३० मिलीलीटर प्रत्येक ६ घण्टेपर गर्भवती स्त्रीके द्वारा सेवन करनेसे जी मिचलाना बन्द हो जाता है ।
  • मासिक धर्मकी अनियमितता : पुदीनेकी चटनी कुछ दिन तक लगातार खानेसे मासिक धर्मकी अनियमितता दूर हो जाती है ।
  • कफमें लाभप्रद – चौथाई कप पुदीनेका रस चौथाई कप गर्म जलमें मिलाकर दिनमें ३ बार लेनेसे कफमें लाभ होता है ।
  • जहरीले कीडो के काटनेपर –  पुदीनाके पत्तोंको पीसकर किसी जहरीले कीडेके द्वारा काटे हुए अंग (भाग)पर लगाएं और पत्तोंका रस २ -२ चम्मचकी मात्रामें दिनमें ३ बार रोगीको पिलानेसे लाभ मिलता है ।
  • प्रसव वेदना –  जंगली पुदीना और हंसराज दोनोंको थोडी-थोडी मात्रामें लेकर काढा बनाकर इसमें थोडीसी मिश्री मिलाकर सेवन करनेसे प्रजननमें वेदना नहीं होती ।
  • मूत्ररोगमें लाभप्रद – २ चम्मच पुदीनेकी चटनी शक्करमें मिलाकर भोजनके साथ खानेसे मूत्ररोगमें लाभ होता है ।
  • घुटनोंकी वेदना – गठियाके रोगीको पुदीनेका काढा बनाकर देनेसे मूत्र खुल कर आता है और घुटनोंकी वेदना न्यून होती है ।
  • वायु विकार(गैस) – ४ चम्मच पुदीनेके रसमें १ नींबूका रस और २ चम्मच शहद मिलाकर पीनेसे वायु विकारमें लाभ मिलता है। सवेरे १ गिलास जलमें २५ मिलीलीटर पुदीनेका रस और ३० ग्राम शहद मिलाकर पीनेसे वायु-विकार समाप्त हो जाती है । २० मिलीलीटर पुदीनाका रस, १० ग्राम शहद और ५ मिलीलीटर नींबूके रसको मिलाकर खानेसे पेटके वायु विकार (गैस) समाप्त हो जाते हैं । पुदीनेकी पत्तियोंका २ चम्मच रस, आधा नींबूका रस मिलाकर पीनेसे वायु विकारमें लाभ होता है ।
  • बालोंके लिए उपयोगी – पुदीना बालोंके विकासके लिए लाभप्रद है । यह सिरकी त्वचाके पी.एच. स्तरको भी सन्तुलनमें रखता है ।
    बालोंके विकासमें वृद्धि लानेके लिए पुदीनेके तेलकी कुछ बूंदे जैतूनके तेल, नारियल तेल या किसी भी अन्य तेलमें मिलाएं। इस मिश्रणसे बालों और सिरकी मर्दन(मालिश) करें और कमसे कम ४५ मिनिटके पश्चात अपने बालोंको धोएं। इस प्रक्रियाको हर सप्ताह एक या दो बार करें ।
सावधानियां – पुदीना धातुके लिए हानिकारक होता है। पित्तकारक प्रकृति होनेके कारण पित्त प्रवृतिके लोगोंको पुदीनेका सेवन कम मात्रामें यदा-कदा ही करना चाहिए ।

दहीके (दधि, क्षीरजं ) औषधीय गुण


दही( दधि, क्षीरजं ) एक दुग्ध-उत्पाद है जिसे दूधके जीवाण्विक किण्वनके द्वारा बनाया जाता है। लैक्टोजके किण्वनसे लैक्टिक अम्ल बनता है, जो दूधके प्रोटीनपर कार्य करके इसे दहीकी बनावट और दहीकी लाक्षणिक खटास देता है । दही अनेक प्राचीन सभ्यताओंका अंग रही है । आज यह सम्पूर्ण विश्वमें भोजनका एक अविभाज्य घटक है । यह एक पोषक खाद्य है जो स्वास्थ्यके लिए अद्वितीय रूपसे लाभकारी है । यह पोषणकी दृष्टिसे प्रोटीन, कैल्सियम, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी-६ और विटामिन बी-१२ में समृद्ध है । दहीसे रबडी, छाछ (बटर मिल्क), लस्सी आदि पेय पदार्थ भी बनाए किए जाते हैं | भारतमें तो लोग दहीके बिना अपना खाना भी नहीं खाते | दही जमानेकी प्रक्रियामें बी विटामिनोंमें विशेषकर थायमिन, रिबोफ्लेवीन और निकोटेमाइडकी मात्रा दुगुनी हो जाती है । इसके साथ ही इसमें कुछ अच्छे विटमिन्स जैसे विटामिन बी-२, डी और  पाए जाते हैं| इसके अतिरिक्त पोटाशियम, कैल्शियम, जिन्क, मॅग्नीजियम जैसे जरूरी पोषक तत्व भी होते हैं| ये पेटके रोग दूर करता है, पित्त-सांद्रव (कोलेस्टरॉल) न्यून करता है, अस्थियोंको सशक्त करता है, गुर्दे, दांतके रोग दूर करता है । इसके अतिरिक्त ये रक्तदाब (ब्लड प्रेशर) न्यून करनेमें भी लाभकारी माना जाता है । दहीके पांच प्रकार :
मन्द, स्वादु, स्वाद्वम्ल, अम्ल, अत्यम्ल
  1. मन्द दही : जो दही दूधकी तरह अस्पष्ट रस वाला अर्थात् आधा जमा हो और आधा न जमा हो, वह मन्द (कच्चा दही) कहलाता है । मन्दका(कच्चे दही) सेवन नहीं करना चाहिए । इसके सेवनसे विष्ठा तथा मूत्रकी प्रवृत्ति, वात, पित्त, कफ तथा जलन आदि रोग होते हैं ।
  2. जो दही अच्छी प्रकारसे जमा हुआ हो, मधुर खट्टापन लिए हुए हो उसे स्वादु दही कहा जाता है । स्वादु दही नाडियोंको अत्यन्त रोकने वाला और रक्तपित्तको स्वच्छ करनेवाला होता है ।
  3. जो दही अच्छेसे जमा हुआ मीठा और कषैला होता है । वह `स्वाद्वम्ल` कहलाता है । `स्वाद्वम्ल` दहीके गुण साधारण दहीके गुणोंके समान ही होते हैं
  4. जिसमें मिठास न होके खट्टापन अधिक होता है वह दही अम्ल दही कहलाती है । यह दही रक्तपित्त व कफको बढाती है ।
  5. जिसे खानेसे दांत खट्टे हो, कण्ठमें जलन हो वह अत्यमल दही कहलाता है । यह दही पाचन बढाने वाला व वायु व पित्त बनानेवाला है ।
दहीके कुछ औषधीय गुणोंके विषयमें बताने जा रहे हैं :
पाचनके लिए : दही, दूधसे भी अधिक गुणकारी होता है | साथ ही इसमें पाए जानेवाले अच्छे जीवाणु (गुड बॅक्टीरिया) आपके पाचनको सुदृढ करते हैं | इतना ही नही इसमें पाए जानेवाले गुण आपकी आंतोंको भी अच्छा रखते हैं |  इसका दैनिक प्रयोग करनेपर आपको पेटके रोग जैसे वायु विकार(गैस), भोजनका न पचना आदिमें अत्यन्त लाभ मिलता है ।
प्रतिजैविकका  (एंटी बायोटिकका प्रतिविष(एंटीडोटहै दही : यदि आपका लम्बा प्रतिजैविक उपचार हुआ है और उससे आपके शरीरपर नकारात्मक प्रभाव पडे हैं  तो आपको अपने शरीरको शुद्ध करने हेतु दही खा सकते हैं | दही प्रतिजैविकके लिए प्रतिविका काम करता है अर्थात् ये उनके दुष्प्रभाव न्यून करके आपको प्रतिजैविकके दुष्प्रभावोंसे बचाता है |
पोषक तत्व (वाइटमिन)बीका निर्माण : शरीर प्रायः विटामिन ‘डी’के अतिरिक्त विटामिन बी और केका निर्माण करता है | विटामिन बी और के आपकी आंतमें एक प्रतिक्रियाके द्वारा बनते हैं | जो लोग छाछका दैनिक सेवन करते हैं उनमें विटामिन ‘बी’की मात्रा अच्छी होती है और ये विटामिन आपके शरीरमें शक्तिको नियंत्रित करनेके साथ आपको स्व-प्रतिरक्षित रोग (auto-immune disease) से भी रक्षा करते हैं |
प्रतिरक्षा (इम्यूनिटीकरे अच्छी : दहीपर हुए अनेक अनुसंधानसे ये सिद्ध हो चुका है कि दैनिक दही खानेसे प्रतिरक्षा प्रणाली  (इम्यूनिटी सिस्टम) स्वस्थ और बलशाली बनता है और जब आपका रोग प्रतिरोधक तन्त्र स्वस्थ होगा तब आपको रोग और संक्रमण छू भी नहीं सकेंगे | यदि आपको बार-बार शीतप्रकोप (नजला जुखाम) होता है या बार-बार कोई संक्रमण (इन्फेक्शन) होता है तो आप हर दिन २ कटोरी दही खाकर उन्हें रोक सकते हैं ।
मुखकी देखभाल : दही आपकी पूरे मुखको अच्छा रखता है | ये मुखमें दुर्गन्धके लिए जानेवाले हाइड्रोजन सल्फाइडके प्रभावको न्यून कर आपके मुखसे दुर्गन्ध आना रोकता है | साथ ही जो लोग दैनिक दहीका सेवन करते हैं उनके दांतोंपर पीली परत, मसूडोके रोग, दांतोंमें सडन (teeth cavities) और अन्य रोग होनेके अवसर ८०% तक न्यून हो जाते हैं |  कुछ लोग इसी गुणके कारण दहीसे नियमित मंजन(ब्रश) भी करते हैं | ऐसा करनेसे आपके दांत सफेद, बलशाली और सुन्दर बनते हैं |
अस्थियोंको सशक्तीकरण : दही आपकी हड्डियोंको स्वस्थ और बलशाली बनाता है; क्योंकि ये कैल्शियम तत्वका एक अच्छा स्त्रोत होता है | दहीमें लैक्टोफैरिन नामक एक प्रोटीन पाया जाता है जो अस्थियां (हड्डियां) बनानेवाली ओस्टिओब्लास्ट उत्तकोंकी गतिविधिको बढाता है और आपके हड्डियोंके विकासको अच्छा बनाता है | इतना ही नहीं ये हड्डियोंको हानि पंहुचानेवाले ओस्टिओक्लास्ट उत्तकोंको भी न्यून करता है और आपको अस्थि-सुषिरता ( ओस्टिओपोरोसिस ) के रोगसे रक्षा करता है |
प्रोटीनका अच्छा स्त्रोत : यदि आपको एक अच्छा शाकाहारी प्रोटीन स्त्रोत चाहिए तो आप दहीको अपने खाद्य सामग्रियोंमें मिला सकते हैं | इसमे प्रोटीन अधिक मात्रामें होता है इसलिए ये उन लोगोके लिए एक अच्छा विकल्प है जो भार कम करनेवाले खाद्य पदार्थ ढूंढ रहे हैं| आपके शरीरमें वसा कम होने लगती है और आपको अपना भार नियन्त्रण(वेट कण्ट्रोल) करनेमें सहायता मिलती है |
अन्शुघात(लू )का रामबाण उपचार : ग्रीष्म ऋतुमें अन्शुघात होना और शरीरमें जलकी न्यूनता बहुत साधारण बात है | इसलिए बाहर जानेसे पहले और बाहरसे आनेके पश्चात एक गिलास छाछमें भुने हुए जीरेका चूर्ण और थोडा सा काला नमक डाल कर अवश्य पीएं । इससे अन्शुघात नहीं होगा ।
मेधाशक्तिको रखे स्वस्थ : मेधाशक्ति बढानेके लिए भी दही अत्यधिक लाभदायक हैं; क्योंकि इसमें विटामिन बी१२ अधिक मात्रामें पाया जाता है और ये विटामिन दिमागकी कार्यशैली सही बनाए रखनेमें अधिक उपयोगी माना जाता है | इसलिए यदि आपको  तीक्षण बुद्धि चाहिए तो इसका दैनिक सेवन करें |
बालोंके लिए : दहीमें मुलतानी मिट्टी मिलाकर बालोंपर लगानेसे बालोंकी चिकनाहट बढती है । यह बालोंको झडनेसे भी रोकता है ।
त्वचाके लिए : दहीमें विद्यमान विटामिन-ए, फॉस्फोरस और जिंक त्वचाको धब्बे इत्यादि हटानेके सहायक है। दहीमें बेसन मिलानेके पश्चात् १० मिनट मुखपर लगा ले, इससे त्वचामें चमक आएगी । तैलीय त्वचाके लिए दहीमें शहद मिलाकर लगाएं ।
सावधानियां : दमा, श्वांस, खांसी, कफ, सूजन, रक्तपित्त तथा ज्वर आदि रोगोंमें दहीं नहीं खाना चाहिए । रात्रिमें दही नहीं खाना चाहिए । दहीमें शहद, या जीरा और काला नमक डालकर खानेसे इसके गुण बढ जाते हैं। श्रावण मासमें इसका सेवन नहीं करना चाहिए । अधिक आम्लिक(खट्टा) दही नहीं खाना चाहिए ।

नाभिमें तेल लगानेके लाभ


नाभि शरीरका केन्द्र बिन्दु होता है । मुखकी सुन्दरता और शरीरकी वेदनाके लिए हम बहुत प्रयोग करते हैं और बहुत औषधियोंका सेवन भी करते हैं । यदि हमें ज्ञात हो कि इतना सब करनेके स्थानपर एक अति सुक्ष्म प्रयोग हमारी वेदना और शरीरके स्वास्थ्यके लिए गुणकारी हो सकता है तो हम अवश्य ही वह करना चाहेंगे । ऐसा ही एक सस्ता प्रयोग है नाभिमें तेल लगाना । सरसोंके तेलमें ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो शारीरिक वेदनाको नष्ट करनेका कार्य करते हैं । जोडोंकी वेदना (दर्द) हो या कानकी, सरसोंका तेल एक औषधिके समान कार्य करता है । नाभिमें तेल लगाने हेतु बादाम, नीम, नारियल, जैतून और सरसोंके तेल आदि लाभकारी होते हैं । तेलके स्थानपर बहुतसे रोगोंमें देसी घी, मक्खन आदिका भी प्रयोग होता है ।
. प्रजनन क्षमता : नाभि प्रजनन तन्त्रसे जुडी हुई होती है | इसलिए नाभिमें तेल लगानेसे प्रजनन क्षमता विकसित होती है | नारियल या जैतूनके तेलको नाभिमें लगानेसे महिलाओंके अन्त:स्राव सन्तुलित होते है और गर्भधारणकी सम्भावना बढती है | नाभिमें तेल लगानेसे पुरुषोंके शरीरमें शुक्राणुओंकी वृद्धि और सुरक्षा होती है |
. नाभिकी स्वच्छता : नाभिकी नियमित रूपसे स्वच्छता बहुत आवश्यक है | इसके लिए कुसुम, जोजोबा, अंगूरके बीज (grapes seed), या इसी तरहके अन्य हल्के तेलोंको रूईमें लगाकर नाभिमें लगायें और धीरे-धीरे मैल निकालें | नाभिमें उपस्थित  मैलके कारण जीवाणु (बैक्टीरिया) और फफूंद (फंगस)के पनपनेकी संभावना होती है | इसलिए कोई भी संक्रमण बढ सकता है | ऐसेमें यह आवश्यक है कि आप संक्रमणको दूर करने वाले प्रभावी तेलोंका प्रयोग करके नाभिको नम बनाकर रखें | इन तेलोंमें  सरसोंका तेल (मस्टर्ड आयल) सबसे प्रभावशाली हैं |
. फटे होठोंके लिए सरसोंका तेल : भारतीय रसोईका महत्वपूर्ण हिस्सा,सरसोंका तेल, ओमेगा-३ और ओमेगा-३ फैटी एसिड, विटामिन ई और ऑक्सीकरण रोधी तत्वसे (एंटीऑक्सिडेंट्स) भरपूर होता है । इसलिए इसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण तेलोंमेंसे एक माना जाता है । सरसोंका तेल सूखे होंठोंकी समस्यामें लाभकारी है । रातमें सोनेसे पहले अपनी नाभिमें सरसोंके तेलकी कुछ बूंदे नियमित रूपसे डालने या प्रतिदिन नहानेके पश्चात नाभिपर सरसोंका तेल लगानेसे आपके होंठ ठंडके मौसममें भी कोमल और गुलाबी रहेंगे ।
. त्वचाको कोमल और गुलाबी बनाये मक्खन : यदि आप अपनी त्वचाको कोमल और नैसर्गिक रूपसे सुन्दर बनाना चाहते हैं तो देसी गायके दूधसे बने मक्खनको अपनी नाभिमें लगाएं । प्रतिदिन मक्खनको नाभिमें लगानेसे आप सरलतासे कोमल त्वचा पा सकते हैं ।
. त्वचाको चमकदार बनाये बादामका तेल : पोषक तत्वोंसे भरपूर बादाम, स्वास्थ्यके लिए और बादामका तेल त्वचाके लिए लाभप्रद होता है । पोषक तत्वोंसे भरपूर यह तेल न केवल त्वचामें एक नूतन प्राण डाल देता है, अपितु त्वचाकी खोई चमकको भी तुरन्त वापस ले आता हैं | यदि ऋतुमें परिवर्तनके कारण आपकी त्वचा खराब हो गई है तो नाभिपर बादामका तेल लाभकारी होगा ।
.मुहांसे दूर करनेमें सहायक नीमका तेल : नाभिपर नियमित नीमका तेल लगाएं । इसके नियमित प्रयोगसे मुखके मुंहासे स्वच्छ हो जाएंगे और नूतन तेज देखनेको मिलेगी । इसके अतिरिक्त यदि आपको खुजली हो रही है और शरीरमें चकत्ते पड रहे हैं तो नीमका तेल नाभिमें लगाएं । खुजली तुरन्त दूर हो जाएगी ।
. दाग-धब्बे हटानेमें सहायक नींबूका तेल : नींबूका तेल स्वादमें वृद्धि करनेके अतिरिक्त, यह उन विटामिन और खनिजोंसे युक्त है, जो शरीरके विकारोंको दूर करते हैं । नींबूका तेल नाभिमें लगानेसे मुखके दाग-धब्बे भी दूर हो जाते हैं ।
उदर वेदना (पेटके दर्द) में  लाभकारी : नाभिमें तेल लगानेसे उदर वेदना न्यून होती है | इससे अपच, अतिसार, मतली जैसे रोगोंमें लाभ मिलता है | इस प्रकारके रोगोंके लिए पुदीनेका तेल और अदरकके तेलको किसी वाहक तेलके(कैरियर आयल) साथ पतला करके नाभिमें लगाना चाहिए |
. जोडोकी वेदनामें लाभप्रद : जोडोंकी वेदनामें नाभिपर सरसोंके तेलकी कुछ बूंदें लगानेसे लाभ मिलता है ।
१०. कब्जमें लाभप्रद : नाभिमें देसी गौके दुग्धका घी लगानेसे कब्जमें लाभ मिलता है ।

बादामके औषधीय गुण भाग – १


बादामके(ईषद्विर्यवातामके ) वृक्ष, पर्वतीय क्षेत्रोंमें अधिक पाए जाते हैं । इसके तने मोटे होते हैं । इसके पत्ते लम्बे, चौडे और मुलायम होते हैं। इसके फलके भीतरके  मींगीको बादाम कहते हैं । बादामके वृक्ष एशियामें ईरान, ईराक, सउदी अरब आदि देशोंमें अधिक मात्रामें पाए जाते हैं । हमारे देशमें जम्मू कश्मीरमें इसके पेड पाए जाते हैं । बादामकी दो जातियां होती हैं एक कडवी तथा दूसरी मीठी । इसका तेल भी निकाला जाता है । कडवी बादाम हमें उपयोगमें नहीं लानी चाहिए क्योंकि यह शरीरके लिए हानिकारक होती है ।
आस्ट्रेलिया, कैलिफोर्निया, अफ्रीका और भारतमें सबसे अधिक पाए जानेवाला बादाम प्रोटीन, वसा, विटामिन और खनिज लवणोंका सबसे बडा स्रोत हैं । यह न केवल आपके व्यंजनके स्वादको बढाता है अपितु इसके औषधीय लाभ भी हैं ।
इनमें प्रोटीन और वसाके अतिरिक्त विटामिन जैसे बी१, बी२, बी५, बी६ और ई पाए जाते हैं। इसमें अच्छी मात्रामें खनिज जैसे आयरन, पोटाशियम, मैग्नीशियम, कापर, जिंक, मैंगनीज, कैल्शियम आदि पाए जाते हैं । बादाममें सोडियमकी मात्रा न के बराबर होती है और फाइबर ३.५ % प्रोटीन ६ %, वसा – १४ %, विटामिन ई ३७%, मैगनीज ३२%, मैग्नीशियम २०% मात्रामें पाए जाते हैं ।
बादाम अपने औषधीय गुणोंके कारण हमारी भोज्य पदार्थका अभिन्न अंग है | इसके कुछ औषधीय गुण निम्नलिखित हैं –
नेत्रोंके रोग – आंखोंसे पानी गिरना, आंखे आना, आंखोंकी दुर्बलता, आंखोंकी थकना आदि रोगोंमें बादामको भिगोकर प्रातः पीसकर जल मिलाकर पी जाएं तथा इसके पश्चात् दूध पीनेसे लाभ होता है ।
चेचक – ५ बादामको जलमें प्रातःकाल पीनेसे चेचकके दाने शीघ्र भर जाते हैं एवं ठीक भी हो जाते हैं ।
पीलिया – ६ बादाम, ३ छोटी इलायची और २ छुहारे लेकर रात्रिके समय मिट्टीके कुल्हडमें भिगो दें तथा प्रातःकाल इन सबको बारीक पीसकर इसमें ७० ग्राम मिश्री, ५० ग्राम मक्खन मिलाकर चाटनेसे पीलियाके रोगमें लाभ मिलता है । इस प्रयोगके करनेसे तीसरे दिन ही मूत्रके पीलेपनमें लाभ मिलेगा ।
झांइयांदागधब्बे – ५ बादामकी गिरीको रात्रिको जलमें भिगों दें, प्रातः इनका छिलका उतारकर बहुत बारीक पीसकर शीशीमें भरकर रख दें। फिर इसमें ६० ग्राम गुलाबजल, १५ बून्द चन्दनका इत्र (परफ्यूम) मिलाकर हिलाएं। चेहरे या शरीरपर जहां कहीं भी काले धब्बे, झांइयां हों वहां इसे प्रतिदिन दिनमें ३ बार लगाना चाहिए। जहां गहरा धब्बा हो वहां इसे अधिक मात्रामें लगा देते हैं। इस प्रयोगसे झाइयों और दाग-धब्बोंमें लाभ मिलता है ।
दांत खट्टे होना अथवा होंठोंका फटना –  दांत खट्टे होने अथवा होंठोंके फटनेपर ५ बादामको खानेसे लाभ मिलता है ।
दांतोंकी वेदना – ४० ग्राम बादामके छिलके, २० ग्राम कालीमिर्च, २० ग्राम फिटकरी, २० ग्राम रुमीमस्तांगी तथा काजूको एकसाथ मिलाकर बारीक पीसकर मन्जन बना लें । यह मन्जन प्रतिदिन करनेसे दांतोंसे खूनका बहना बन्द हो जाता है और दांतोंका हिलना भी बन्द हो जाता है ।
दांत स्वच्छ और चमकदार करना – बादामका छिलका जलाकर किसी बर्तनसे ढक दें । दूसरे दिन इसकी राखको पांच गुणा फिटकरीके साथ मिलाकर बारीक पीसकर मन्जन बना लें । इससे प्रतिदिन मन्जन करनेसे दांत स्वच्छ, चमकदार तथा शसक्त बनते हैं ।
बादामके छिलकेको जला लें तथा इसकी राखको सैंधानमकके साथ मिलाकर बारीक पीसकर मंजन बना लें। यह मंजन प्रतिदिन करनेसे दांत स्वच्छ और सशक्त होते हैं ।
नाखूनका घाव – नाखूनका घाव नाखूनके उखडनेके कारण हो तो पहले नाखूनोंको कुछ उष्ण जलसे अच्छी तरहसे धो लें। उसके बाद १०-१० ग्राम घी, हल्दी और बादामको अच्छी तरहसे पीसकर नाखूनोंपर लगानेसे नाखूनोंकी वेदना और घाव मिट जाता है।
होठोंके लिए –  २० ग्राम बादाम रोगनको आगपर रखकर बहुत अधिक गर्म करके इसके भीतर ५ ग्राम देशी मोम डालकर पिघला लें । उसके पश्चात इसे नीचे उतारकर इसमें २ ग्राम सफेद कत्था और सुरमा डालकर मिला लें । इसे होठोंपर लगानेसे होंठोंका फटना, पपडी उतरना (होठोंकी खाल उतरना) और कुरंड रोग ठीक हो जाता है और होंठ बिल्कुल कोमल और चिकने हो जाते हैं।
●   ५ बादाम नियमित सवेरे और संध्या समय खानेसे होठ नहीं फटते हैं।
●   रातको सोते समय होठोंपर बादाम रोगन लगाकर सो जाएं। इससे होठोंकी पपडी हट जायेगी और होठ कोमल हो जायेंगे और आगेसे होठोंपर पपडी भी नहीं जमेगी । सदैव ध्यान रखें कि होठोंपर जमी हुई पपडीको नाखून या दांतसे कभी नहीं नोचे और मुंहसे श्वास न लें ।
श्वासके रोग –  बादामको उष्ण जलमें डालकर संध्याके समय रात भरके लिए भिगोकर रख देते हैं । दूसरे दिन प्रातः बादामको थोडी देर पकाकर उसका पेय बना लेते हैं । इस पेयको २० से ४० मिलीलीटर तककी मात्रामें नियमित सेवन करनेसे श्वासके सारे रोग ठीक हो जाते हैं ।
पागल कुत्तेके काटनेपर – ४ ग्राम बादामकी मींगीकी मात्राको मधुके साथ मिलाकर खानेसे पागल कुत्तेका विष दूर हो जाता है ।
कनखजूरेके कांटे चुभ जानेपर –  कनखजूरेके कांटे चुभ जानेपर बादामका तेल लगानेसे लाभ मिलता है ।
बन्द आवाज खोलना – ७ बादामकी गिरी और ७ कालीमिर्चको थोडेसे जलमें डालकर और उसमें थोडी सी पिसी हुई मिश्री मिलाकर चाटनेसे खांसी और खराशके कारण  बन्द हुए स्वर खुल जाते हैं ।
बवासीर (अर्श) – १० ग्राम बादाम, आंवला, ६-६ ग्राम हल्दी, भांग और १० ग्राम मैदाको एक साथ पीसकर गुनगुना करके बवासीरपर बांधनेसे अर्शरोग (बवासीर) ठीक होता है । (क्रमश:)

बादामके औषधीय गुण (भाग – २)


सिरकी वेदना –
  • बादाम और केसरको गायके घीमें मिलाकर सिरमें लगाना चाहिए या तीन दिन तक बादामकी खीर खानी चाहिए अथवा बादाम और घीको दुग्धमें मिलाकर सिरमें लगाना चाहिए । इससे सिर कुछ ही समयमें ठीक हो जाता है ।
  • बादाम और कपूरको दुग्धमें पीसकर मस्तकपर उसका लेप करनेसे मस्तक और सिरकी वेदना मिट जाता है । मस्तिष्कपर बादामके तेलकी मालिश करनेसे लाभ होता है ।
  • १० ग्राम बादामकी गिरी, १ ग्राम कपूर, १ ग्राम केसर, मिश्री और गौ घृतको मिलाकर हल्की आगपर पकाएं और केवल घृत शेष रहनेपर इसे छानकर शीशीमें भर कर रख लें इसको रोगीको देनेसे सिरकी वेदना ठीक हो जाता है ।
  • बादाम रोगनकी सिरपर मालिश करनेसे सिरकी वेदना दूर हो जाती है ।
  • बादामकी एक गिरीको सरसोंके तेलमें पीसकर मलनेसे सिरकी वेदनामें लाभ होता है।
  • १० गिरी बादामकी, ६ ग्राम ब्राह्मी बूटी और ७ साबुत कालीमिर्चको रात्रिको सोते समय भिगो दें और सुबह इनका छिलका उतार कर पीसकर ठंडाई बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर ४० दिन तक लगातार पीनेसे किसी भी प्रकारकी सिर की वेदना दूर हो जाती है ।
    ● सिरमें तेज वेदना होनेपर बादामके तेलका मर्दन(मालिश) करनेसे लाभ मिलता है ।
  • बादामके बीजोंको सिरकेके साथ पीसकर इसको गाढे पदार्थके रूपमें बना लें और जहां सिरमें वेदना हो वहांपर इसे लगानेसे सिरकी वेदना, साइटिका और नशेका चढना दूर हो जाता है ।
धातु वृद्धिके लिए –
  • १५ ग्राम गौ घृतमें १० ग्राम मक्खन या ताजा खोवा, बादाम, चीनी, कंकोल, शहद और इलायची मिलाकर ७ दिन तक लेना चाहिए ।
  • बादामकी गिरीको उष्ण जलमें भिगो देते हैं। इसके बाद बादामके छिलके निकालकर बारीक पीस लेते हैं। इसे दुग्धमें मिलाकर उबालें और खीर बनाएं। इसमें चीनी और घी मिलाकर खानेसे बल और वीर्यकी वृद्धि होती है और दिमागभी तेज होता है ।
बादामका हलवा – ४०० ग्राम देशी खांड या शक्करकी चाशनीमें रातको भिगोकर सवेरे छीले हुए १० बादामको पीसकर चाशनीमें मिलाकर हिलाते रहें । जब यह अच्छी तरह मिल जाएं, तब घी डालकर पकाएं।  सके उपरान्त छोटी इलायचीके दाने पीसकर भी डालें। यह हलवा शक्तिके अनुसार सेवन करनेसे बलवीर्यकी खूब वृद्धि होती है तथा शरीरमें स्फुर्ति निर्माण होती है । (क्रमश:)



शीत ऋतुमें हरा धनिया गुणकारी


शिशिर ऋतुमें (जाडेमें) सर्दी-खांसी होना सामान्य बात है; इसलिए प्रकृतिने इस समय बहुतसे ऐसे तरकारी एवं फल दिए हैं, जिनसे हमारी रोग प्रतिरोधी क्षमता बढती है और ऐसे रोगोंसे हमारा बचाव होता है, इसीके अन्तर्गत हरा धनियाका उपयोग आता है । इसमें ‘विटामिन-ए और सी’की अच्छी मात्रा पाई जाती है, जो हमारे शरीरमें रोग प्रतिरोधी क्षमताको सशक्त करती है । धनियाको पकाकर खानेसे उसके पोषक तत्त्व ८० % नष्ट हो जाते हैं, इसलिए धनियाको सलाद, चटनी या व्यंजन पकनेके पश्चात ऊपरसे उपयोग किया जाता है । हरा धनियाके नियमित सेवनसे वायरल रोग, सर्दी-खांसी दूर रहता है । इसके नियमित सेवन हेतु आप इसे अपने घरके छोटेसे गमलेमें लगा सकते हैं और ताजा हरा धनियाका उपयोग नित्य कर सकते हैं ।


दांतोंके रोगमें अमरूद व उसके पत्तोके गुण


मसूडोंमें वेदना (दर्द), दांतोंमें वेदना और सूजनकी समस्याओंका उपचार करनेके लिए १ गिलास जलमें ३ से ४ पत्ते अमरूदके उबाल लें और हल्का गुनगुना होनेपर छान लेंं । अब इस जलमें थोडा नमक मिला कर कुल्ला करेंं, दांतों और मसूडोंकी वेदनासे छुटकारा मिलेगा ।
(अमरुदके पत्ते और फल अनेक गुणोंसे भरपूर होते हैं, साथ ही इसकी टहनियोंकी दातूनसे दांत स्वच्छ करनेसे दांतकी वेदना ठीक हो जाती है; इसलिए यदि आपके पास स्थान हो तो देसी बीजवाले अमरुदके वृक्ष अवश्य लगाएं ! अमरुदके अन्य लाभ हम आपको इसी लेख अन्तर्गत भविष्यमें बताएंगे !

अदरकके आयुर्वेदिक गुण


आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – ३)
अदरक एक शक्तिशाली ऑक्सीकरण रोधी (एंटीऑक्सीडेंट) पदार्थ है, जो प्रतिरक्षा प्रणालीको सशक्त करता है; जिससे यह सर्दी-खांसी तथा इस ऋतुमें होनेवाले ज्वरका जाना-माना उपचार है । ऊपरी श्वास मार्गके संक्रमणमें आराम पहुंचानेके कारण यह खांसी, खराब गले और श्वसनीशोथ या ब्रोंकाइटिसमें भी बहुत प्रभावी रहता है ।
अदरक जाडेके समय उत्तेजित होनेवाले दुखदायी वायुविवर (साइनस) सहित शरीरके सूक्ष्म संचरण माध्यमोंको भी स्वच्छ करती है । सर्दी-खांसी और फ्लूमें नींबू तथा मधुके (शहदके) साथ अदरककी चाय पीना बहुत लोकप्रिय आयुर्वेदिक उपाय है ।

अदरकमें ऊष्मा अर्थात गर्मी लानेवाले गुण भी होते हैं, इसलिए यह सर्दियोंमें शरीरको गर्म कर सकती है और सबसे अहम बात यह है कि यह स्वास्थ्यके लिए हितकारी स्वेदको (पसीनेको) बढा सकती है । शरीरको विषमुक्त करने और सर्दीके लक्षणोंमें लाभदायक इस प्रकारका स्वेद जीवाणुओंसे और फंगल संक्रमणोंसे भी लडनेमें सहायता करता है ।
सबसे अच्छी बात यह है कि अदरकमें सक्रिय पदार्थ होते हैं, जो सरलतासे शरीरद्वारा सोख लिए जाते हैं; इसलिए आपको उसका लाभ उठानेके लिए उसे अधिक मात्रामें उपयोग करनेकी आवश्यकता नहीं होती ।


हृदय रोगोंके लिए वरदान है अर्जुनकी छाल


आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – ४)
हृदय रोगोंके लिए वरदान है अर्जुनकी छाल
हृदय रोगीके लिए अर्जुनके वृक्षकी छालका सेवन बहुत लाभप्रद सिद्ध होता है । यह हृदयकी सभी समस्‍याओंके लिए वरदान है । इसकी छालका महीन चूर्ण सूती कपडेसे छानकर ३ -३ ग्राम (आधा छोटा चम्मच) जलके साथ प्रातः और सन्ध्यामेेंं सेवन करना चाहिए या अर्जुनकी छालको ४००से ५०० मिलीलीटर जलमें पकाएं, जब जलका आधा भाग रह जाए तो उसे उतार लें और प्रत्येेक दिवस नियमित रूपसे प्रातःकाल व संध्यामें १०-१० मिलीलीटर लें । इससे रक्तमें बढा हुआ पित्त-सांद्रव (कोलेस्ट्रोल) अल्प हो जाएगा, रक्तके थक्के निकल जाएंगे और रक्तवाहिकासंधान (एंजियोप्लास्टी) नहीं करना पडेगा ।
सावधानियां – गर्भवती महिलाएं इसका उपयोग सावधानीपूर्वक व चिकित्सिय परामर्शसे ही करें । अर्जुनकी छाल रक्तचाप और रक्त शर्कराका स्तर न्यून (कम) करती है, इसलिए जो व्यक्ति रक्तचाप व मधुमेहकी औषधियोंका सेवन कर रहे हैं, उन्हें इसका अधिक मात्रामें सेवन नहीं करना चाहिए ।


आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – ६)


मेथीका साग सर्दियोंमें अत्याधिक रुचिसे खाया जाता है । मेथीके कई प्रकारके प्रयोग हैं; किन्तु इसकी पत्तियोंको तरकारीके (सब्जीके) समान उपयोग करना सबसे अधिक लोकप्रिय है !
आइए, जानते हैं कि सर्दियोंमें मेथी कैसे आपको स्वस्थ रख सकती है ?
मेथीमें प्रोटीन, आयरन, फाइबर और पोटेशियम भरपूर मात्रामें पाए जातेे हैैंं । आयरनकी कमीको पूरा करके ये रक्ताल्पतासे (एनीमियासे) बचाता है । इसके अतिरिक्त इसमें उपस्थित पोटेशियम, सोडियमकी मात्राको शरीरसे कम करता है । ये हृदयसे जुडे रोगोंसे भी बचाता है ।
मेथी पाचनके लिए सबसे अच्छे विकल्पोंमेंसे एक है । शीत ऋतुमें कई बार मसालेदार खानेसे पाचन सम्बन्धी समस्याओंसे जूझना पडता है । ऐसेमें मेथीकी तरकारी खाकर जहां आप मसालेदार खानेकी इच्छाको पूर्ण करेंगे, वहीं ये पेटकी समस्याओंका भी निराकरण करता है । ये वायु विकार और अपचसे भी बचाता है । मेथीके बीज और पत्तियां ठण्डमें होनेवाली जोडोंकी वेदनामें भी आराम देती है । साथ ही, शीत ऋतुमें फीकी पड जानेवाली मुखकी चमकको बढानेका कार्य करती है । मधुमेहके (डायबटीजके) रोगियों के लिए यह एक स्वास्थ्यवर्धक विकल्प है ।


आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – ७)


आम्बा हल्दी (हरिद्रा, Turmeric) एक महत्त्वपूर्ण आयुर्वेदिक औषधि है और रसोईमें काम आनेवाला एक महत्वपूर्ण पदार्थ भी । भारतीय भोजनकी हल्दीके बिना कल्पना करना भी कठिन है । इसमें ‘करक्यूमिनोइड्स’ और ‘वोलाटाइल’ तत्व मुख्य रूपसे पाए जाते हैं । शीत ऋतुमें हल्दीकी गांठका उपयोग सबसे अधिक लाभदायक है और यह समय हल्दीसे होने वाले लाभको कई गुणा बढा देता है; क्योंकि कच्ची हल्दीमें हल्दी पाउडरकी तुलनामें अधिक गुण होते हैं । यह अदरककी भांति दिखाई देती है, इसे ‘कच्ची हल्दी’ भी कहते हैं ।
आइए, कच्ची हल्दीके गुणोंके बारेमें जानते हैं –
शीत प्रकोप – रात्रिको सोनेसे पूर्व हल्दी वाला दूध पीनेसे निद्रा अच्छी आती है और शीत प्रकोप (जुकाम, खांसी) भी दूर होता है । इसे दूधमें गुड या शक्कर मिलाकर लिया जा सकता है । इसे जलमें उबालकर भी लिया जा सकता है ।
शारीरिक वेदना – शरीरकी वेदनाके लिए कच्ची हल्दी ‘पेरासिटामोल’से अधिक लाभकारी है और न ही इससे कोई हानि होती है । गठिया रोगमें होने वाली जोडोंकी वेदनामें यह लाभकारी है ।
कर्करोग – कच्ची हल्दीमें कर्करोगसे (कैंसरसे) लडनेके गुण होते हैं । यह पुरुषोंमें होने वाले पौरुष ग्रन्थिके (प्रोस्टेट) कर्करोगके उत्तकोंको (सेल्सको) बढनेसे रोकनेके साथ-साथ उन्हें समाप्त भी कर देती है । यह हानिकारक विकिरणके (रेडिएशनके) सम्पर्कमें आनेसे होने वाले ‘ट्यूमर’से भी बचाव करती है ।
मधुमेह – कच्ची हल्दीमें इंसुलिनके स्तरको सन्तुलित करनेका गुण होता है । इस प्रकार यह मधुमेह रोगियोंके लिए बहुत लाभदायक होती है । इंसुलिनके अतिरिक्त यह शर्कराको (ग्लूकोजको) भी नियन्त्रित करती है, जिससे मधुमेहके समय किए जाने वाले उपचारका प्रभाव बढ जाता है ।
सेवन – इसे फलोंके रसमें डालकर, दूधमें उबालकर, चावलके व्यंजनोंमें डालकर, अचारके रूपमें, चटनी बनाकर और सूपमें मिलाकर उपयोग किया जा सकता है ।
सेवनमें सावधानियां –
१. हल्दीका सेवन करनेसे रक्त पतला होता है, ऐसेमें जिन लोगोंकी अभी-अभी शल्यचिकित्सा हुई हो या होने वाली हो, उन्हें हल्दीका सेवन नहीं करना चाहिए ।
२. हल्दीकी प्रकृति उष्ण होती है तो इसे सीमित मात्रामें ही प्रयोग करना चाहिए, अन्यथा इसके अधिक सेवनसे गैस और उदर विकार हो सकते हैं ।
३. उष्ण दूध अथवा जलमें इसके सेवनके पश्चात सामान्य जलका सेवन कदापि न करें !
४. यदि आप मधुमेहकी औषधियां ले रहे हैं तो हल्दीके उपयोगसे पूर्व चिकित्सकीय परामर्श अत्यन्त आवश्यक है ।



आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – ९)


लहसुन (लसुनम्, Garlic) एक ऐसी खाद्य सामग्री है, जो कई तरकारियोंका स्वाद बढा देती है । लगभग प्रत्येक रसोईमें पाई जाने वाली ये खाद्य सामग्री केवल तरकारियोंका स्वाद ही नहीं बढाती, वरन यह स्वास्थ्यके लिए भी अत्यधिक लाभदायक है । एक समय था जब आजकी भांति प्रत्येक स्थानपर औषधिकी दुकानें नहीं होती थीं । तब लहसुनका प्रयोग आयुर्वेदिक उपचारके लिए भी होता था । लहसुन प्रतिविषाणुज (एंटी-वायरल), एंटी-फंगल और जीवाणुरोधी (एंटी-बैक्टिरीयल) गुणोंसे भरपूर होता है ।
घटक –  ‘एलीसीन’ और दूसरे ‘सल्फर’ यौगिक होते हैं । साथ ही, लहसुनमें ‘एजोइन’ और ‘एलीन’ यौगिक भी विद्यमान होते हैं, जो लहसुनको और अधिक प्रभावशाली औषधि बना देते हैं । इसके अतिरिक्त ‘प्रोटीन’, ‘एन्जाइम’ तथा ‘विटामिन-बी’, ‘सैपोनिन’, ‘फ्लैवोनॉइड’ आदि पदार्थ पाए जाते हैं ।
आइए, अब लहसुनके लाभकारी गुणोंके विषयमें जानते हैं –
* उच्च रक्तदाबको नियन्त्रण करना : उच्च रक्तदाबको नियन्त्रण करनेमें लहसुनका सेवन काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है । इसमें ‘बायोएक्टिव सल्फर’ यौगिक, ‘एस-एललिस्सीस्टीन’ होता है, जो रक्तदाबको १० mmhg (सिस्टोलिक दाब) और ८ mmhg (डायलोस्टिक दाब) तक अल्प करता है । चूंकि सल्फरकी न्यूनतासे भी उच्च रक्तदाबकी समस्या होती है, इसलिए शरीरको ‘ऑर्गनोसल्फर’ यौगिकों वाला पूरक आहार देनेसे रक्तदाब ठीक हो जाता है ।
* मधुमेहमें लाभकारी – असन्तुलित जीवनशैलीके कारण कई लोग मधुमेहके रोगी हो रहे हैं; परन्तु कम ही लोग जानते हैं कि लहसुनका सेवन करनेसे मधुमेहपर नियन्त्रण रखा जा सकता है । आईआईसीटीके (भारत) वैज्ञानिकोंने प्रयोगशालामें चूहोंको लहसुन खिलाया । इसके पश्चात चूहोंके रक्तमें शर्करा और ‘ट्राइग्लिसराइड’के स्तरमें न्यूनता पाई गई; इसलिए यह शरीरमें शर्कराके स्तरको नियन्त्रित कर इंसुलिनकी मात्रा बढाता है ।
* दांतोंके लिए लाभप्रद :  भुने लहसुनके सेवनसे दांतोंकी वेदनामें लाभ मिलता है । लहसुनको पीसकर दांतोंपर रखनेसे तुरन्त लाभ मिलेगा । लहसुनके जीवाणुरोधी तत्‍व दांतोंकी वेदनाको दूर करते हैं ।
* शीत-प्रकोपमें लाभप्रद : इसके लिए अंग्रेजी औषधियोंका सेवन आवश्यक नहीं है । लहसुनमें ‘एलियानेस’ (या एलियान) नामक एंजाइम होता है, जो एलिसिन नामक सल्फर युक्त यौगिकमें परिवर्तित होता है । यह यौगिक श्वेत रक्त कोशिकाओंको बढाता है, जो शीतप्रकोपके विषाणुओंसे युद्ध करता है ।
* गठियामें लाभप्रद : लहसुन अस्थियोंके (हड्डियोंके) लिए भी काफी लाभदायक है । इसके सेवनसे ‘ऑस्टियोपोरोसिस’ और गठिया जैसी अस्थियोंके रोगोंसे जूझ रहे रोगियोंको लाभ मिलता है । लहसुन ‘डायलिल डाइसल्फाइड मैट्रिक्स’को अल्प करने वाले किण्वकको (एंजाइमोंको) दबानेमें सहायता करता है । इसप्रकार अस्थियोंको होने वाली हानिको भी रोकता है ।
सेवन विधि : प्रत्येक दिवस दो कच्ची लहसुनकी कलियोंका जलके साथ सेवन करें । इसके सेवन करनेका सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल है । इसके अतिरिक्त इसे सब्जियोंमें, चटनीके रूपमें भी खाया जा सकता है ।
सावधानियां :
१. किसी भी वस्तुका आवश्यकतासे अधिक प्रयोग हानि पहुंचा सकता है; इसलिए एक दिनमें दोसे अधिक लहसुनकी कलियां न खाएं !
२. यदि शरीरमें अम्लताकी (एसिडिटी) समस्या है तो कच्चे लहसुनका सेवन न करें !
३.यदि आपको लहसुनसे एलर्जी है, तो इसके सेवनसे आपको त्वचा सम्बन्धी रोग हो सकते हैं ।
४. यकृतकी (लीवरकी) समस्या है, तो अधिक लहसुनका सेवन हानि कर सकता है ।
५. निम्न रक्तदाबके (लो ब्लड प्रेशर) रोगी लहसुन न खाएं; क्योंकि इससे रक्तदाब और कम हो सकता है।


आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – ९)


लहसुन (लसुनम्, Garlic) एक ऐसी खाद्य सामग्री है, जो कई तरकारियोंका स्वाद बढा देती है । लगभग प्रत्येक रसोईमें पाई जाने वाली ये खाद्य सामग्री केवल तरकारियोंका स्वाद ही नहीं बढाती, वरन यह स्वास्थ्यके लिए भी अत्यधिक लाभदायक है । एक समय था जब आजकी भांति प्रत्येक स्थानपर औषधिकी दुकानें नहीं होती थीं । तब लहसुनका प्रयोग आयुर्वेदिक उपचारके लिए भी होता था । लहसुन प्रतिविषाणुज (एंटी-वायरल), एंटी-फंगल और जीवाणुरोधी (एंटी-बैक्टिरीयल) गुणोंसे भरपूर होता है ।
घटक –  ‘एलीसीन’ और दूसरे ‘सल्फर’ यौगिक होते हैं । साथ ही, लहसुनमें ‘एजोइन’ और ‘एलीन’ यौगिक भी विद्यमान होते हैं, जो लहसुनको और अधिक प्रभावशाली औषधि बना देते हैं । इसके अतिरिक्त ‘प्रोटीन’, ‘एन्जाइम’ तथा ‘विटामिन-बी’, ‘सैपोनिन’, ‘फ्लैवोनॉइड’ आदि पदार्थ पाए जाते हैं ।
आइए, अब लहसुनके लाभकारी गुणोंके विषयमें जानते हैं –
* उच्च रक्तदाबको नियन्त्रण करना : उच्च रक्तदाबको नियन्त्रण करनेमें लहसुनका सेवन काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है । इसमें ‘बायोएक्टिव सल्फर’ यौगिक, ‘एस-एललिस्सीस्टीन’ होता है, जो रक्तदाबको १० mmhg (सिस्टोलिक दाब) और ८ mmhg (डायलोस्टिक दाब) तक अल्प करता है । चूंकि सल्फरकी न्यूनतासे भी उच्च रक्तदाबकी समस्या होती है, इसलिए शरीरको ‘ऑर्गनोसल्फर’ यौगिकों वाला पूरक आहार देनेसे रक्तदाब ठीक हो जाता है ।
* मधुमेहमें लाभकारी – असन्तुलित जीवनशैलीके कारण कई लोग मधुमेहके रोगी हो रहे हैं; परन्तु कम ही लोग जानते हैं कि लहसुनका सेवन करनेसे मधुमेहपर नियन्त्रण रखा जा सकता है । आईआईसीटीके (भारत) वैज्ञानिकोंने प्रयोगशालामें चूहोंको लहसुन खिलाया । इसके पश्चात चूहोंके रक्तमें शर्करा और ‘ट्राइग्लिसराइड’के स्तरमें न्यूनता पाई गई; इसलिए यह शरीरमें शर्कराके स्तरको नियन्त्रित कर इंसुलिनकी मात्रा बढाता है ।
* दांतोंके लिए लाभप्रद :  भुने लहसुनके सेवनसे दांतोंकी वेदनामें लाभ मिलता है । लहसुनको पीसकर दांतोंपर रखनेसे तुरन्त लाभ मिलेगा । लहसुनके जीवाणुरोधी तत्‍व दांतोंकी वेदनाको दूर करते हैं ।
* शीत-प्रकोपमें लाभप्रद : इसके लिए अंग्रेजी औषधियोंका सेवन आवश्यक नहीं है । लहसुनमें ‘एलियानेस’ (या एलियान) नामक एंजाइम होता है, जो एलिसिन नामक सल्फर युक्त यौगिकमें परिवर्तित होता है । यह यौगिक श्वेत रक्त कोशिकाओंको बढाता है, जो शीतप्रकोपके विषाणुओंसे युद्ध करता है ।
* गठियामें लाभप्रद : लहसुन अस्थियोंके (हड्डियोंके) लिए भी काफी लाभदायक है । इसके सेवनसे ‘ऑस्टियोपोरोसिस’ और गठिया जैसी अस्थियोंके रोगोंसे जूझ रहे रोगियोंको लाभ मिलता है । लहसुन ‘डायलिल डाइसल्फाइड मैट्रिक्स’को अल्प करने वाले किण्वकको (एंजाइमोंको) दबानेमें सहायता करता है । इसप्रकार अस्थियोंको होने वाली हानिको भी रोकता है ।
सेवन विधि : प्रत्येक दिवस दो कच्ची लहसुनकी कलियोंका जलके साथ सेवन करें । इसके सेवन करनेका सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल है । इसके अतिरिक्त इसे सब्जियोंमें, चटनीके रूपमें भी खाया जा सकता है ।
सावधानियां :
१. किसी भी वस्तुका आवश्यकतासे अधिक प्रयोग हानि पहुंचा सकता है; इसलिए एक दिनमें दोसे अधिक लहसुनकी कलियां न खाएं !
२. यदि शरीरमें अम्लताकी (एसिडिटी) समस्या है तो कच्चे लहसुनका सेवन न करें !
३.यदि आपको लहसुनसे एलर्जी है, तो इसके सेवनसे आपको त्वचा सम्बन्धी रोग हो सकते हैं ।
४. यकृतकी (लीवरकी) समस्या है, तो अधिक लहसुनका सेवन हानि कर सकता है ।
५. निम्न रक्तदाबके (लो ब्लड प्रेशर) रोगी लहसुन न खाएं; क्योंकि इससे रक्तदाब और कम हो सकता है।

आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – १०)


मूली (दीर्घकन्द, Raddish), भूमिके भीतर उत्पन्न होने वाली सब्जी है । वस्तुतः यह एक रूपांतरित प्रधान जड है, जो पूरे विश्वमें उगाई एवं खाई जाती है । मूलीका उपयोग भोजन और औषधि दोनों रूपमें किया जाता है । मूलीके साथ-साथ उसकी पत्तियां और बीजके भी कई लाभ ज्ञात हैं ।
घटक – यह प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, विटामिन-ए और पोटैशियमसे भरपूर होती है । मूली ‘विटामिन-सी’का समृद्ध स्रोत है, जो शरीरकी प्रतिरक्षा प्रणालीको सशक्त करनेमें अपना योगदान देता है ।
आइए, अब मूलीके लाभके विषयमें जानेंगें –
* हृदय रोगमें लाभप्रद – मूलीका सेवन व्यक्तिमें हृदय रोगोंको अल्प (कम) करने या रोकनेके लिए रक्तवसाके (कोलेस्ट्रॉलके) अवशोषणको कम करनेमें सहायता करता है । मूलीमें कुछ ‘फ्लेवोनोइड्स’ होते हैं, जो हृदयके लिए बहुत लाभदायक होते हैं । हृदय कार्योंका सीधा सम्बन्ध रक्तचापसे होता है । उच्च रक्तचाप प्रायः हृदयाघात जैसी गम्भीर समस्याओंका कारण बनता है । मूली रक्तचापको नियन्त्रित करती है, इसलिए यह हृदयाघातकी सम्भावनाओंको अल्प कर देती है ।
* भार कम करनेमें लाभप्रद – मूलीमें ‘फाइबर’की अधिक मात्रा पाई जाती है तथा कम वसा प्रदान करती है; इसलिए मूली जैसी सब्जियां फाइबर और जलसे भरपूर होनेके कारण भार अल्प करनेके लिए लाभप्रद हैं । यह वसाके सेवनको  कम करने और चयापचयमें सुधार करनेमें भी सहायता करती है ।
* त्वचाके लिए लाभप्रद – मूलीमें जलकी अच्छी मात्रा होनेके कारण यह त्वचामें नमीको बनाए रखनेमें सहायक है । फास्फोरस, विटामिन-सी और जिंकसे समृद्ध होनेके कारण यह स्वस्थ त्वचाको बनाए रखनेमें लाभकारी है ।
* पीलियामें लाभकारी – मूली मुख्य रूपसे पीलियाके लिए उपयोगी होती है; क्योंकि यह रक्तिम-पित्तवर्णकताके (बिलीरुबिनके) स्तरको समाप्त कर, इसके उत्पादनको स्थिर करनेमें सहायता करती है । मूलीको मुख्य रूपसे प्राकृतिक उपचारके रूपमें जाना जाता है और मूलीके पत्ते प्राकृतिक उपचारके लिए सबसे उपयोगी होते हैं । मूलीके पत्तोंमें शक्तिशाली विषमुक्त प्रभाव होता है, जो विषाक्त पदार्थोंको शरीरसे बाहर करने और रक्तको शुद्ध करनेमें सहायता करता है ।
* बालोंके लिए लाभप्रद – मूलीका रस बालोंमें लगानेसे बाल सशक्त हो जाते हैं; अतः मूली बालोंके झडनेको कम करनेके लिए एक प्रभावी माध्यम है । मूलीका रस सिरमें लगाकर १०-१५ मिनट तक मर्दन(मालिश) करना चाहिए ।
* रक्तचाप और मधुमेहमें लाभप्रद – मूलीमें पोटैशियम पाया जाता है, जो रक्त वाहिकाओंको आराम देने (रिलैक्स करने) और रक्त प्रवाहमें वृद्धि करनेमें सहायता करता है । मूलीमें उपस्थित पोटैशियम, नियमित रक्त प्रवाहको बनाए रखता है, जिससे रक्तचाप कम हो जाता है । यह रक्त शर्कराके स्तरको प्रभावित नहीं करती है ।
इसके अतिरिक्त मूली कब्ज, बवासीर, पाचन-तन्त्र, यकृतके (लिवर) रोगोंमें अत्यधिक लाभप्रद है ।
सेवन विधि – मूलीको प्रायः नींबू, काला नमक आदि मिलाकर सलादके रूपमें खाया जाता है । इसके अतिरिक्त इसकी तरकारी (सब्जी) भी बना सकते हैं ।
सावधानियां –
१. मूली खानेका सही समय दिनमें होता है । कोई भी कच्ची तरकारी, रस, कच्चे फल सदैव दिनमें, दोपहरके समय ही खाने चाहिए, इससे इन्हें पचनेमें बहुत समय मिल जाता है और इनसे कफ नहीं बनता ।
२. मूलीका अत्यधिक सेवन किडनीको हानि पहुंचा सकता है । बहुत अधिक मूली खानेसे, मूत्र उत्सर्जनकेद्वारा शरीरमें जलकी न्यूनता हो सकती है, जिससे निर्जलीकरणकी समस्या उत्पन्न हो सकती है ।
३. अत्यधिक मात्रामें मूलीका सेवन रक्तचापपर बुरा प्रभाव डाल सकता है ।
४. पथरीके रोगियों और गर्भवती महिलाओंको मूलीके सेवनसे बचना चाहिए, क्योंकि इन स्थितियोंमें इसका सेवन गम्भीर समस्याओंको जन्म दे सकता है ।



आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – ११)


बथुआको (Bathua, चाकवत) विशेष रूपसे खरपतवारके रूपमें जानते हैं, और हममेंसे बहुतसे लोग बथुआके लाभ जाने बिना ही इसे नष्‍ट भी कर देते हैं ! सम्भवतः उन लोगोंको यह नहीं ज्ञात है कि बथुआ बहुतसे स्‍वास्‍थ्‍य लाभोंसे भरा हुआ है और भारतमें एक स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक सब्‍जीके रूपमें प्रसिद्ध है ।
*घटक – वनस्पति विशेषज्ञोंके अनुसार, बथुएमें लौह, सोना, क्षार, पारा, ‘कैरोटिन’, ‘कैल्शियम’, ‘फॉस्फोरस’, ‘पोटैशियम’, ‘प्रोटीन’, वसा तथा ‘विटामिन-सी व बी-२’ पर्याप्त मात्रामें पाए जाते हैं । इनके अतिरिक्त इसमें  ‘कार्बोहाइड्रेट’, ‘राइबोफ्लेबिन’, ‘नियासिन’, ‘थायमिन’ भी पाए जाते हैं ।
*बथुएका शाक (साग) – बथुएका शाक बनाते समय कम-से-कम मसालों व घी, तेलका प्रयोग करना चाहिए । गायके घी व जीरेका तडका (छौंक) लगाकर सेंधा नमक डालके बनाए गए बथुएका शाक खानेसे नेत्रज्योति बढती है । यह आमाशयको शक्ति देता है, इससे कब्ज दूर होती है और वायुगोला व सिरदर्द भी मिट जाता है । शरीरमें शक्ति आती है व स्फूर्ति बनी रहती है  ।
आइए, बथुएके लाभके विषयमें जानते हैं –
*उदर रोगमें – जब तक बथुएका शाक (साग) मिलता रहे, प्रतिदिन खाएं । बथुएका उबाला हुआ पानी पिएं, इससे उदरके रोग, यकृत (लीवर), तिल्ली, अजीर्ण (पुरानी कब्ज), गैस, कृमि (कीडे), अर्श (बवासीर) और पथरी आदि रोग ठीक हो जाते हैं ।
*पथरी – १ गिलास कच्चे बथुएके रसमें शक्कर मिलाकर प्रतिदिन पीनेसे पथरी गलकर बाहर निकल जाती है ।
*कब्ज – बथुआ आमाशयको शक्ति देता है और कब्जको दूर करता है । यह उदरको स्वच्छ करता है; इसलिए कब्ज वालोंको बथुएका शाक (साग) प्रतिदिन खाना चाहिए । कुछ सप्ताह बथुएका शाक खाते रहनेसे सदैव होने वाली कब्ज दूर हो जाती है ।
इनके अतिरिक्त यह रुचिकर, पाचक, रक्तशोधक, दर्दनाशक, त्रिदोषशामक, शीतवीर्य तथा बल एवं शुक्राणुवर्धक शाक है ।
सेवन-विधि – बथुआको भारतमें पत्तेदार शाकके रूपमें उबालकर उपयोग किया जाता है । भारतमें तैयार किये जानेवाले अन्‍य व्‍यंजनोंमें जैसे रायता, पराठामें भी इसका उपयोग किया जाता है । मधुमेहके लिए आप बथुआके पत्तोंका रस निकालकर, इसका सेवन कर सकते हैं । इसे और अधिक प्रभावी बनानेके लिए आप इसमें नींबूके रसकी थोडीसी मात्रा मिलाकर नियमित रूपसे प्रातःकाल और संध्याकाल सेवन करें ।
सावधानियां – सीमित मात्रामें सेवन करनेसे बथुआसे कोई भी हानि नहीं होती है, परन्तु यदि अधिक मात्रामें इसका सेवन किया जाता है तो इसके निम्न गम्भीर परिणाम भी हो सकते हैं –
१. बथुआके पौधेमें ‘ऑक्‍सीलिक अम्ल’ अधिक मात्रामें होता है, जो कैल्शियमकी उपलब्‍धताको अल्प कर सकता है; परिणामस्‍वरूप, आपके शरीरमें कैल्शियमकी न्यूनताके (कमीके) कारण बहुतसी हानियां हो सकती हैं; इसलिए बथुआका सेवन अल्प मात्रामें करना चाहिए ।
२. बथुआके बीजोंमें गर्भपातकी सामग्री होती है, इसलिए गर्भवती महिलाओंको इसके सेवनसे बचना चाहिए ।
३. यदि आप अधिक मात्रामें बथुआका सेवन करते हैं तो यह आपके उदरकी समस्‍याओंको बढा सकता है ।



आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – १२)


चुकन्दर (पालङ्गशाकः, Beetroot) एक मूसला जडवाली वनस्पति है । यह ‘बीटा वल्गैरिस’ नामक जातिके पौधे होते हैं, जिन्हें मनुष्योंने शताब्दियोंसे कृषिमें उत्पन्न किया है । यह एक ऐसा शाक है, जो भारतके लगभग प्रत्येक राज्यमें मिलता है ।
घटक – चुकन्दर लौह तत्वका अच्छा स्रोत माना जाता है; क्योंकि इसमें ‘फोलिक अम्ल’ पाया जाता है, जो कि रक्त बढानेके लिए आवश्यक होता है, इसके साथ ही इसमें ‘बीटानिन’ नामक पदार्थ पाया जाता है, जो इसे गुलाबी रंग प्रदान करता है, इसके साथ ही चुकन्दरमें ‘नाइट्रेट’, ‘मैग्नीशियम’, ‘सोडियम’, ‘पोटैशियम’, ‘फॉस्फोरस’, ‘कैल्शियम’, ‘कार्बोहाइड्रेट’, ‘आयोडीन’, ‘बीटेन’, ‘नियासिन’, ‘विटामिन बी-१, बी-२ और सी’ पाया जाता है ।
आज हम आपको चुकन्दरके लाभके विषयमें बताएंगे –
* उच्च रक्तचाप : रक्तचापको (ब्लडप्रैशरको) न्यून करनेके लिए चुकन्दर खाना लाभदायक माना जाता है; क्योंकि चुकन्दरमें सोडियम और वसा अल्प मात्रामें होते हैं, जो उच्च रक्तचापको न्यून करनेमें सहायता करते हैं । लंदनके ‘सीन मेरी’ विश्वविद्यालयमें किए गए एक अध्ययनके अनुसार, चुकन्दरका २०० मिलीलीटर रस ४ सप्ताह तक पीनेसे रक्तचापके स्तरमें न्यूनता पाई गई ।
* हृदय रोगमें : चुकन्दरका नियमित सेवन हृदयको स्वस्थ रखनेमें आपकी सहायता कर सकता है, जिससे यह हृदय रोगके (हृदयाघात) संकटको न्यून (कम) करता है । एक अध्ययनके अनुसार, नियमित चुकन्दरके रसका सेवन १ सप्ताह तक करनेपर हृदय रोगमें लाभ मिला और उनके रक्तचापमें सुधार देखा गया है !
* मांसपेशियोंका पोषण : चुकन्दर मांसपेशियोंतक प्राणवायुको (ऑक्सीजन) पहुंचानेकी क्षमतामें सुधार करता है, आपको ज्ञात होगा कि यदि मांसपेशियोंको पर्याप्त मात्रामें ऑक्सीजन नहीं मिलती है तो वे दुर्बल हो जाती हैं, जिससे हमें थकान अनुभव होती है और हमारी शारीरिक गतिविधियोंमें कमी आती है, ऑक्सीजनकी न्यूनतासे (कमीसे) अन्तमें हृदयसे सम्बन्धित रोग होनेकी सम्भावनाएं बढ जाती हैं ।
* एनीमियामें (रक्त अल्पतामें) लाभप्रद : जिन महिलाओंको रक्ताल्पता होता है, चुकन्दर उनके लिए  वरदान है । यह रक्तको पूर्ण करता है । चुकन्दरके पत्ते भी रक्तकी अल्पताको (कमीको) दूर करनेमें अत्यन्त उपयोगी होते हैं । इसमें लौह तत्वकी बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है और यह लाल रक्त कणोंकी वृद्धि करनेमें सहायक होता है ।
* मधुमेह : मधुमेहके (शुगरके) रोगियोंके लिए यह बहुत लाभदायक होता है । इसके सेवनसे न केवल मीठा खानेकी इच्छाको शान्त किया जा सकता है, वरन इसे खानेसे मधुमेहके रोगी स्वस्थ भी रहते हैं ।
सेवन विधि : विश्वके कई स्थानोंमें चुकन्दरकी जामुनी जडको कच्चा, उबालकर या भूनकर खाया जाता है । इसे अकेले या अन्य शाकके (तरकारियोंके) साथ खाया जा सकता है और इसका अचार भी डाला जाता है । भारतीय भोजनमें इसे महीन काटकर और हलका-सा पकाकर मुख्य भोजनके साथ खाया जाता है । चुकन्दरके पत्तोंको भी खाया जाता है, इनका प्रयोग आहारमें कच्चा, उबालकर या भाप-देकर होता है ।
*सावधानियां – १. प्रतिदिन चुकन्दरका रस पीना हानिकारक हो सकता है, इसलिए इसका प्रयोग सप्ताहमें तीन बारसे अधिक नहीं करना चाहिए । एक बारमें चुकन्दरके रसकी आठ औंससे (लगभग २२० ग्रामसे) अधिक मात्रा लेना हानिकारक हो सकता है ।
२. प्रतिदिन चुकन्दरके रसका सेवन वृक्ककी (किडनीकी) पथरीके लिए उत्तरदायी हो सकता है ।
३. इसका अत्यधिक सेवन शरीरमें ‘कैल्शियम’के स्तरको अल्प करता है, जिसके कारण अस्थियोंकी अशक्ततासे सम्बन्धित समस्याएं हो सकती हैं ।



आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – १३)


गाजर (गुञ्जनम्, Carrot), प्रकृतिकी बहुत ही बहुमूल्य देन है, जो शक्तिका भण्डार है । गाजर फल भी है और शाक (सब्जी) भी तथा इसकी उपज पूरे भारतवर्षमें की जाती है । मूलीकी भांति गाजर भी भूमिके भीतर ही उत्पन्न होती है ।
घटक – गाजरमें ‘कार्बोहाइड्रेट’, शर्करा, ‘प्रोटीन’, ‘विटामिन-ए, बी-१, बी-२, बी-३, बी-६, सी’, ‘कैल्शियम’, लौहतत्त्व, ‘सोडियम’, ‘मैग्नीशियम’, ‘पोटैशियम’ आदि तत्व प्रचुर मात्रामें पाए जाते हैं ।
*नेत्रोंके लिए लाभदायक – नेत्रोंके लिए सबसे प्रथम गाजरका नाम आता है । गाजरमें विद्यमान ‘विटामिन-ए’ आपके नेत्रोंके लिए कई प्रकारसे लाभदायक होता है । गाजरके सेवनसे उन लोगोंको अत्यधिक लाभ होता है, जो दूरकी वस्तुएं नहीं देख पाते हैं । इसके अतिरिक्त, गाजरमें उपस्थित ‘बीटा कैरोटीन’ मोतियाबिन्दके विरुद्ध नेत्रोंकी रक्षा करता है ।
*रक्त शुद्ध करनेमें – निरन्तर गाजरका रस पीनेसे आपके शरीरका रक्त प्राकृतिक रूपसे स्वच्छ होता है । इस रसके स्वादको और भी अधिक बढानेके लिए इसमें मधु (शहद) डाल सकते हैं ।
*शुक्राणुओंकी संख्या – कई शोधोंके अनुसार यह सिद्ध हुआ है कि जो पुरूष कच्चे गाजर खाते हैं, उनके शुक्राणुओंकी संख्यामें अत्यधिक वृद्धि देखी जाती है; अतः शुक्राणुओंकी संख्या वृद्धिके लिए गाजर खाना अत्यधिक लाभप्रद है ।
*पाचनमें लाभप्रद – जिन लोगोंको पाचनकी समस्या होती है, वे गाजरका प्रयोग करके इसे समाप्त कर सकते हैं । इसमें पाए जानेवाले रेशे अर्थात ‘फाइबर’के कारण पाचन सशक्त होता है । इसके लिए दिनमें दो बार लाल रंगके गाजर खानेका प्रयास करें ।
*मधुमेह – मधुमेहसे ग्रस्त लोगोंको गाजरका शर्करा सरलतासे पच जाता है, जिससे गाजर खानेका एक और लाभ यह होता है कि इससे मधुमेहकी समस्यासे बचा जा सकता है । इससे शरीरमें ‘इन्सुलिन’की मात्राको बनाए रखनेमें सहायता मिलती है ।
*हृदयरोग – हृदयकी धडकन बढनेपर तथा रक्त गाढा होनेपर गाजरका सेवन करना लाभदायक होता है । गाजरका रस २०० मिलीलीटर मात्रामें प्रतिदिन पीनेसे हृदयकी निर्बलता नष्ट होती है, जिससे धडकनकी समस्याका निवारण होता है ।
*रक्तकी न्यूनता (एनीमिया) – एनीमिया पीडित रोगियोंको २०० मिलीलीटर गाजरके रसमें १०० मिलीलीटर पालकका रस मिलाकर पिलानेसे अधिक लाभ मिलता है अथवा इसमें पालकके स्थानपर चुकन्दरका ३० मिलीलीटर रस मिलाया जा सकता है ।
*सेवन विधि – गाजरको कच्चे सलादके रूपमें खाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त गाजरका रस निकालकर पिया जा सकता है, गाजरकी तरकारी (सब्जी) बनाई जा सकती है और अचार बनाया जा सकता है ।
*सावधानियां :
१. जिन व्यक्तियोंको वायुविकार (गैस बननेकी समस्या) हो, उन्हें गाजरका रस या गाजरको उबालकर, उसका जल पीनेके लिए दें, इससे उन्हें लाभ मिलेगा ।
२. गाजर खानेके तुरन्त पश्चात कभी भी जल नहीं पीना चाहिए ।
३. शीतप्रकोप (जुकाम आदि), जीर्ण ज्वर, ‘न्यूमोनिया’में गाजरके रसका सेवन नहीं करना चाहिए । इसका कारण यह है कि रोग होनेके समय शरीरके भीतरके विषैले द्रव्य बाहर निकलते हैं । ऐसी अवस्थामें गाजरका रस इस प्रक्रियामें बाधा उत्पन्न करेगा ।




आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – १४)


पालक (पालक्या, Spinach) शीतऋतुमें उत्पन्न होता है तथा पालेको सहन कर सकता है;  किन्तु अधिक उष्णता नहीं सह सकता है । इसमें जो गुण पाए जाते हैं, वे सामान्यतः अन्य शाकमें (सब्जीमें) नहीं होते हैं । यही कारण है कि पालक स्वास्थ्यकी दृष्टिसे अत्यन्त उपयोगी, सर्वसुलभ एवं सस्ता है । यह भारतके प्रायः सभी प्रान्तोंमें बहुलतासे सहज ही मिल जाता है ।
*घटक – इसमें पाए जाने वाले तत्वोंमें मुख्य रूपसे ‘सोडियम’, ‘क्लोरीन’, ‘फास्फोरस’, लोहा, खनिज लवण, ‘प्रोटीन’, श्वेतसार, ‘विटामिन -ए एवं सी’ आदि उल्लेखनीय हैं । इन तत्वोंमें भी लोहा विशेष रूपसे पाया जाता है । इसके अतिरिक्त इसमें ‘विटामिन बी-१, बी-३’, ‘मैंगनीज’, ‘फोलेट’, तांबा, ‘पोटैशियम’ प्रचुर मात्रामें होते हैं ।
आइए, पालकके कुछ स्वास्थ्य लाभके विषयमें जानते हैं –
* रक्तकी अल्पता – पालकमें लौहतत्वकी मात्रा बहुत अधिक होती है और शरीर यह सरलतासे सोख भी लेता है; इसलिए पालक खानेसे ‘हीमोग्लोबिन’ बढता है ।
* गर्भवतीके लिए – गर्भवती महिलाओंमें प्रायः ‘फोलिक अम्ल’की न्यूनता (कमी) हो जाती है, इसे दूर करनेके लिए पालकका सेवन लाभदायक होता है । साथ ही, पालकमें पाया जानेवाला ‘कैल्शियम’ बढते बच्चों, बूढे व्यक्तियों और गर्भवती व स्तनपान करानेवाली महिलाओंके लिए बहुत लाभप्रद होता है ।
* नेत्रोंके लिए – पालक नेत्रोंके लिए अत्यधिक अच्छा होता है । इसके सेवनसे नेत्रोंकी ज्योति बढती है । ऐसे लोग,  जिन्हें रतौंधीका कष्ट हो और उन्‍हें हल्के प्रकाशमें स्पष्ट दिखाई नहीं देता, उनके लिए पालक एक प्रकारसे चमत्‍कारका कार्य करता है । ऐसे लोगोंको गाजर व टमाटरके रसमें समान मात्रामें पालकका रस मिलाकर लेना चाहिए ।
* पाचन तन्त्र – आधा गिलास कच्‍चे पालकका रस, प्रातः उठकर नियमित रूपसे पीनेसे कुछ ही दिवसमें कब्‍जकी समस्‍या दूर हो जाती है ।
इसके अतिरिक्त पालक गठियामें, शरीरको बलशाली बनानेमें, दांतोंको सशक्त रखने एवं बालोंके लिए भी लाभप्रद है ।
सेवन विधि – पालकको शाक (सब्जी) बनाकर, चटनी बनाकर, उबालकर या सूप बनाकर सेवन किया जाता है । पकानेके पश्चात भी इसके गुण नष्ट नहीं होते हैं । पालकके रससे आटा लगाकर चपाती या पूडी बना सकते हैं । इसे दालके साथ या किसी दूसरी शाकके साथ मिलाकर खानेसे पौष्टिकता मिलती है । पालकका रायता, पकौडे आदि भी बनाए जा सकते हैं ।
*सावधानियां :
१. पालकमें ‘ऑक्जेलिक एसिड’ प्रचूर मात्रामें होता है । इस तत्वमें खनिजके साथ चिपकनेकी प्रवृति होती है । यह ‘कैल्शियम’, ‘मेग्नेशियम’ आदि खनिजोंके साथ चिपक जाता है, जिसके कारण शरीर इन खनिजोंको अवशोषित नहीं कर पाता है । इस कारण शरीरकी सामान्य प्रक्रिया बाधित होकर खनिज लवणकी न्यूनता (कमी) हो सकती है; अतः बहुत अधिक मात्रामें पालकका उपयोग सही नहीं होता है ।
२. पालकमें ‘फाइबर’ अधिक मात्रामें होता है । इसमें कोई शंका नहीं कि ‘फाइबर’ शरीरके लिए आवश्यक होता है, परन्तु इनकी अधिक मात्रा पाचन तन्त्रपर भार भी बढाती है ।
३. पालकका सेवन इसके पत्तोंको अच्छेसे धोकर ही करना अच्छा है, क्योंकि आजकल रासायनिक उर्वरकोंका प्रयोग अत्यधिक होता है ।



आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – १५)


सरसोंके (mustard, सर्षप) पत्ते भारतमें पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और गुजरातमें होने वाली अति पौष्टिक शाक (सब्जी) है । नवम्बरसे मार्च तक ये सरलतासे मिल जाते हैं ।
सरसोंका शाक – सरसोंके पत्तोंसे बना पौष्टिक शाक (साग) पंजाब, हरियाणामें रुचिपूर्वक खाया जाता है । सरसोंके कच्चे पत्तोंको अल्प (कम) उष्ण जलमें अच्छेसे उबालकर पिसा जाता है और स्वादानुसार तडका (छौंक) लगाकर यह शाक बनाया जाता है ।
सरसोंके पत्तेमें पोषक तत्व –  सरसोंके पत्ते ‘विटामिन’ और खनिजका भण्डार होते हैं । इनमें प्रचुर मात्रामें ‘विटामिन – ए, सी और के’ होते हैं । यह ‘प्रोटीन’, ‘कार्बोहाइड्रेट’, लौहतत्व, ‘मैग्नेशियम’, ‘कैल्शियम’, तांंबा, ‘पोटैशियम’, ‘सेलेनियम’, ‘फोलेट’का भी अच्छा स्रोत है ।
कई प्रकारके ऑक्सीकरणरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) जैसे ‘फ्लेवोनोइड्स’, ‘सल्फोराफेन’, ‘केरोटीन’, ‘ल्यूटिन’ आदि इसमें पाए जाते हैं । इसके अतिरिक्त विटामिन-बी समूहके कई ‘विटामिन’ जैसे फोलिक अम्ल, ‘पाइरोडोक्सिन’, ‘नियासिन’, ‘राइबोफ्लेविन’ आदि होते हैं । इसमें ‘कैलोरी’ और वसा नगण्य मात्रामें होती हैं ।
सेवन विधि – सरसोंके पत्तोंका सबसे अधिक उपयोग इसका शाक बनानेमें होता है । मसालोंका प्रयोग अधिक नहीं करना चाहिए, इससे यह औषधिका ही कार्य करता है ।
आइए, सरसोंके पत्तोंके लाभके विषयमें जानते हैं –
* गर्भावस्थामें – सरसोंके पत्ते गर्भवती महिलाओंके लिए अत्यन्त लाभप्रद हैं, क्योंकि इसमें ‘विटामिन-के’ अधिक मात्रामें पाया जाता है । गर्भवती महिलाओंमें वमन (उल्टी) और मितलीकी समस्या ‘विटामिन-के’की न्यूनताके कारण होती है ।
* विषाक्त पदार्थ – सरसोंमें विद्यमान ऑक्सीकरणरोधी तत्व और ‘सल्फर’ शरीरसे विषाक्त पदार्थोंको हटाते हैं, जिसके कारण हृदय स्वस्थ रहता है और कई अन्य प्रकारके दीर्घकालिक रोगोंको रोकनेमें सहायक होता है ।
* सूजनके लिए – सरसोंमें विद्यमान ‘विटामिन-के’ और ‘ओमेगा -३’में सूजनको न्यून करनेके गुण पाए जाते हैं ।
* कर्करोग (कैंसर) – सरसोंके ऑक्सीकरणरोधी और प्रदाहनाशी (एंटी-इंफ्लेमेटरी) गुणोंके कारण यह मूत्राशय, मलाशय, स्तन, फेफडे, ‘प्रोस्ट्रेट’ और अण्डाशयके कर्करोगको रोकनेमें सहायक है ।
* हृदयके लिए – सरसों विभिन्न प्रकारसे हृदयको स्वस्थ रखनेमें सहायक है । यह शरीरसे रक्तवसाके (कोलेस्ट्रॉलके) स्तरको न्यून करनेमें सहायक है और अच्छी मात्रामें ‘फोलेट’ प्रदान करता है, जो ‘होमोसिस्टीन’के निर्माणको रोकता है और हृदय रोगकी समस्यामें योगदान कर सकता है ।
* पाचन प्रक्रियामें – सरसोंमें ‘फाइबर’ पाया जाया जाता है, जो बृहदान्त्रके (मलाशयके) अच्छे स्वास्थ्यके लिए अत्यधिक लाभप्रद होता है । यह चयापचयको नियमित करता है और पाचन प्रक्रियामें सहायक है ।
* अस्थियोंके (हड्डियोंके) लिए – ‘कैल्शियम’ और ‘पोटैशियम’का स्रोत होनेके कारण यह अस्थियोंके लिए अत्यधिक लाभप्रद है ।
* शीतप्रकोप – यह ‘विटामिन-सी’का अच्छा स्रोत होनेके कारण प्रतिरोधक क्षमता बढाकर शीतप्रकोपसे (सर्दी,जुकाम तथा फ्लू) रक्षण करता है ।
सावधानियां – १. सरसोंका शाक प्रातःकालमें बना हुआ संध्यामें और संध्याका बना प्रातःकालमें पुनः गर्म करके नहीं खाना चाहिए । इसमें उपस्थित ‘नाइट्रेट’ जीवाणुके कारण विषैले तत्व ‘नाइट्रोसेमाइन’में परिवर्तित हो सकते हैं, जो स्वास्थ्यके लिए हानिकारक होते हैं ।
२. यदि रक्तको पतला करनेकी औषधि ले रहे हों तो सरसोंके पत्तोंका उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि ‘विटामिन-के’की मात्रा औषधिके प्रभावको न्यून कर सकती है ।
३. यदि पथरीकी समस्या हो तो सरसोंके पत्तोंका उपयोग सावधानीसे या चिकित्सकसे परामर्श लेनेके पश्चात ही करना चाहिए ।
४. यदि ‘थायराइड’की समस्या हो तो सरसोंके पत्तोंका उपयोग नहीं करना चाहिए । इसमें पाए जानेवाले तत्व ‘थायराइड’ अंतःस्रावके (हार्मोनके) निर्माणमें बाधा बन सकते हैं ।





आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें ! (भाग – १७)


शलजम (गृञ्जनः, Turnip) शीत ऋतुका एक शाक (सब्जी) है, जिसमें स्‍वास्‍थ्‍य लाभ प्रचुर मात्रामें है । शलजम एक श्वेत (सफेद) कन्दमूल शाक है, जो मानव उपभोग और पशुओंके भोजनके लिए विश्व स्तरपर लोकप्रिय है । पौष्टिक मूल्य और इसके स्वादके लिए शलजम सामान्यत: समूचे विश्वमें समशीतोष्ण क्षेत्रोंमें उत्पन्न की जाती है । यह दो सहस्र वर्षोंसे मानव आहारके एक महत्वपूर्ण भागके रूपमें जानी जाती है ।
सेवन विधि – शलजम बैंगनी और लाल रंगके होते हैं, जिनका आन्तरिक भाग श्वेत होता है । इसका मूल भाग कच्चा ही खाया जाता है । इसके पत्ते हरे रंगके होते हैं, जो पालक जैसी पौष्टिक पत्तेदार शाककी भांति ही खाए जाते हैं । शलजमको कच्‍चे या उबालकर खाया जा सकता है ।
घटक – इसमें ‘कैलोरी’, ‘प्रोटीन’, वसा, ‘कार्बोहाइड्रेट’, ‘फाइबर’, ‘कैल्शियम’, लौहतत्व, ‘मैग्‍नीशियम’, ‘फॉस्‍फोरस’, ‘विटामिन-के, सी, बी-६’, ‘सोडियम’, ‘जिंक’, ‘पोटैशियम’, ‘फोलेट’ और तांबा भी प्रचुर मात्रामें होते हैं ।
आइए, शलजमके लाभके विषयमें जानते हैं –
नेत्रोंके लिए – शलजममें ‘ल्‍यूटिन’की उपस्थिति पर्याप्‍त मात्रामें होती है । इसमें उपस्थित एक ‘कैरोटीनोइड’, जो नेत्रोंके लिए लाभप्रद है और मोतियाबिंद जैसी नेत्रोंके रोगको रोकनेमें भी सहायक है ।
भार (वजन) न्यून करनेमें – ‘फाइबर’की उच्‍च सामग्री चयापचयको नियन्त्रित करती है, शलजममें ‘फाइबर’ प्रचुर मात्रामें होता है, जो शरीरके भारको नियन्त्रित करनेमें सहायता करता है और उदरको स्‍वस्‍थ व सक्रिय रखनेमें सहायता करता है ।
हृदयके लिए – शलजममें ‘विटामिन-के’की अत्यधिक मात्रा होती है, जिसमें शक्तिशाली प्रज्वलनरोधी (एंटी-इंफ्लामैट्री) गुण होते हैं । शलजम शरीरमें उपस्थित रक्तवसाका उपयोग करने वाले पित्तको अवशोषित करके पाचनमें सहायता करता है । इसमें उपस्थित ‘फोलेट’ हृदयाघात, धमनीमें जमने वाले ‘प्लेक’के विरुद्ध हृदयकी रक्षा करता है तथा रक्त वाहिकाओं सम्बन्धी प्रणालीको सुचारु रूपसे चलानेमें सहायक है ।
अस्थियोंके (ह‍ड्डीयोंके) लिए – अस्थियोंको सशक्त करनेके लिए शलजमका नियमित सेवन कर सकते हैं । इसमें ‘पोटैशियम’ और ‘कैल्शियम’की प्रचुर मात्रा होती है, जो अस्थि-सुषिरताको (आस्टियोपोरोसिस) न्यून करनेमें सहायक है । ‘कैल्शियम’ शरीरके संयोजी ऊतकोंके ( कनैक्टिव टिशूजके) उत्‍पादनको बढाता है, जिससे अस्थियोंके रोगोंको रोकनेमें सहायता मिलती है ।
* कर्करोगमें – इन क्रूसिफेरस (गोभीकी प्रजाति) शाकमें आक्सीकरण-रोधी (एंटीऑक्सीडेंट) और ‘फाइटोकेमिकल्‍स’ अधिक मात्रामें होते हैं, जो कर्करोगको नहीं होने देते हैं । शलजमका सेवन ‘ग्‍लूकोसिनोलेट्स’की उपस्थितिको अल्प करता है और साथमें कर्करोगके प्रभावको भी अल्प करता है । शलजम यकृतसे विषाक्‍त पदार्थोंको हटानेमें सहायक है और ‘ट्यूमर’ कोशिकाओंके विकासको बाधित कर सकता है ।
* पाचनके लिए – ‘फाइबर’की अधिक मात्रा पाचन तन्त्रको सशक्त करनेमें सहायक है । शलजममें ‘फाइबर’ बहुत अधिक मात्रामें पाया जाता है । अध्‍ययनोंसे ज्ञात हुआ है कि ‘ग्‍लूकोसिनोलेट्स’ उदरके जीवाणु, जैसे ‘पिलोरी’की सहायता करते हैं, जो आपके पाचनको सरल बनानेमें सहायक हैं ।
सावधानियां –  शलजम सीमित मात्रामें ही ग्रहण करना चाहिए । इसका अत्यधिक सेवन हानि करता है ।
१. शलजममें ‘ऑक्‍सीलेट्स’की अत्यल्प मात्रा होती है, जो गुर्दे या पित्ताशय वाले रोगियोंके लिए स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याएं उत्पन्न कर सकती है ।
२. ‘थायरॉइड’ समस्‍याओं वाले व्‍यक्तियोंको शलजमका सेवन नहीं करना चाहिए, क्‍योंकि इसमें ‘गोइट्रोजन’ नामक पदार्थ होते हैं, जो ‘थायराइड ग्रन्थि’के कार्यमें व्‍यवधान उत्‍पन्‍न कर सकते हैं ।
३. शलजममें ‘सल्‍फर’ यौगिक होते हैं, जो कुछ लोगोंमें उदरका (पेटका) फूलना और पाचन समस्‍याओंका कारण बन सकते हैं ।




आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – १७)


आलू लोगोंमें बहुत लोकप्रिय है, ऐसे ही आप सबने एक नाम और सुना होगा, जो सबको खानेमें अत्यधिक रुचिकर लगता है और उसका नाम है, शकरकन्द (अंग्रेजी नाम : Sweet Potato; संस्कृत नाम : मिष्टालुकम्) । शकरकन्द अपने स्वादके कारण अत्यधिक लोकप्रिय है । फलाहारियोंका यह बहुमूल्य आहार है । भारतमें बिहार और उत्तर प्रदेशमें विशेष रूपसे इसकी कृषि होती है । यह ऊर्जा उत्पादक आहार है ।
घटक – इसमें अत्यधिक मात्रामें ‘विटामिन’ रहते हैं, जैसे विटामिन-ए और सी’ । इसमें स्टार्चकी मात्रा भी अधिक होती है । इसके अतिरिक्त इसमें ‘फाइबर’, ‘प्रोटीन’, ‘कार्बोहाइड्रेट’, ‘कैल्शियम’की मात्रा भी मिलती हैं ।
सेवन विधि – इसे आप कच्चा और पकाकर दोनों रूपमें खा सकते हैं । कुछ लोग इसे अग्निमें पकाते हैं और उसके पश्चात सेन्धा नमक, नींबू आदि लगाकर खाते हैं । जो शकरकन्द लाल होते हैं, उसके गूदे सूखे और ठोस होते हैं और जो शकरकन्द श्वेत और पीले रंगके होते हैं, उनके गूदेके भीतर अत्यधिक रस होता है । लाल शकरकन्दको यदि उबालकर खाते हैं तो आपको और भी अधिक पोषक तत्व मिल जाते हैं । सूखेमें यह खाद्यान्नका स्थान ले सकता है ।
आइए, शकरकन्दके लाभके विषयमें जानते हैं –
* मधुमेहमें – जैसा हम सब जानते हैं कि जिन्हें मधुमेह रोग होता है, उन्हें मीठी वस्तुएं नहीं खानी चाहिए; परन्तु मीठा आलू मधुमेह वालोंके लिए बहुत ही लाभप्रद होता है । यह शरीरमें उचित स्रावके कार्यमें सहायक होता है, जिसके कारण रक्त शर्कराका स्तर सदैव सन्तुलित रहता है । शकरकन्दका प्रयोग यदि ‘कार्बोहाइड्रेट’ युक्त भोजन या चावलके स्थानपर किया जाए तो शरीरको इससे कोई हानि नहीं होती है ।
* उदरके (पेटके) व्रणमें (अल्सरमें) – शकरकन्द उदर और आंतोंके लिए अत्यधिक लाभप्रद होता है । इसके भीतर अत्यधिक पोषक तत्व होते हैं, जिनके कारण आपके उदरमें यदि व्रण (अल्सर) है तो वह भी ठीक हो जाएगा । इससे कब्ज और वायु विकारकी समस्याका भी अन्त होता है ।
* जल तत्वको बनाए रखनेमें (हाइड्रेटेड रखनेमें) – शकरकन्दमें ‘फाइबर’ होता है, जिसके कारण शरीरमें जलकी न्यूनता (डिहाइड्रेशन) कभी भी नहीं होती है । शकरकन्द जलकी मात्राको बनाए रखनेमें सहायक होता है ।
* भार वृद्धिमें – शरीरके भार(वजन) वृद्धिके लिए शकरकन्द अत्यधिक उत्तम आहार है; क्योंकि इसके भीतर अत्यधिक मात्रामें ‘स्टार्च’ होता है और इसके अतिरिक्त इसमें ‘विटामिन’ और खनिज पाए जाते हैं । शकरकन्द सरलतासे पच भी जाता है और आपको अधिक ऊर्जा भी देता है; इसलिए यह भार वृद्धिमें सहायक होता है ।
* प्रतिरक्षा प्रणालीमें – इसमें ‘विटामिन बी कॉम्पलेक्स’, लौहतत्व, ‘विटामिन-सी’ आदि मिलते हैं, जिसके कारण आपके भीतर रोगोंसे लडनेकी शक्तिमें वृद्धि होती है ।
* श्वसन-शोथमें (ब्रोंकाइटिसमें) – श्वसन-शोथमें शकरकन्दका अवश्य ही सेवन करना चाहिए, क्योंकि इसके भीतर ‘विटामिन सी’, लौहतत्व और कई प्रकारके पोषक तत्व विद्यमान होते हैं, जिनके कारण यह रोग समाप्त हो जाता है । इसके सेवनसे शरीर उष्ण रहता है, शरीरका तापमान समान रहता है, जिससे यदि फेफडोंमें ‘कफ’ एकत्र हुआ है तो यह उसे निकालनेमें भी सहायक है ।
* पाचनमें उपयोगी – शकरकन्दमें ‘फाइबर’ अधिक मात्रामें होता है । इसके अतिरिक्त इसमें ‘मैग्नीशियम’ भी होता है, जिसके कारण पाचन शक्तिमें वृद्धि होती है ।
* कर्करोगमें (कैंसरमें) – शकरकन्दमें ‘बीटा-कैरोटीन’, आक्सीकरणरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) और ‘एंटी कार्सिनोजेनिक’ पदार्थ होते हैं, जिससे कर्करोगसे सुरक्षा सम्भव है ।
सावधानियां – १. अधिक शकरकन्द खानेसे वृक्कमें (गुर्देमें) पथरी भी हो सकती है; क्योंकि इसके भीतर आपको ‘ऑक्सलेट’, ‘कैल्शियम-ऑक्सलेट’ मिलता है; अतः सीमित मात्रामें ही इसका सेवन करना चाहिए ।
२. शकरकन्द उन लोगोंको नहीं खाना चाहिए, जिनके वृक्क (गुर्दे) कार्यरत नहीं हैं अथवा रोगग्रस्त हैं । ऐसे लोगोंको शकरकन्दका सेवन चिकित्सकके परामर्श लेनेके पश्चात ही करना चाहिए ।
३. कुछ लोगोंको उदर वेदना (पेट दर्द) रहती है या उनका अमाशय शीघ्र ही रोगग्रस्त हो जाता है, ऐसे लोगोंको भी शकरकन्दका सेवन नहीं करना चाहिए ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – १८)


आलू (संस्कृत नाम – आलुः, सुकन्दः, अंग्रेजी नाम – Potato) एक प्रकारका शाक है, जो भूमिके नीचे उत्पन्न होता है । यह प्रत्येक घरमें प्रयोग होनेवाला शाक है । अपने स्वास्थ्य लाभके कारण यह समूचे विश्वमें एक प्रमुख आहारके रूपमें उपयोग किया जाता है । आलू सबसे अधिक एंडिस, पेरू और बोलिवियामें पाए जाते हैं, परन्तु इसके उपयोगके कारण भारत भी इसके उत्पादनका बडा केन्द्र बन चुका है ।
* घटक – आलूमें मुख्य रूपसे ‘कार्बोहाइड्रेट’ और वसा पाए जाते हैं । इनमें ‘लूटिन और जैक्‍सैंथिन’ जैसे ‘कैरोटेनोड्स’ (Carotenoids) सम्मिलित होते हैं । आलूमें ‘पोटैशियम’, ‘कैल्शियम’, लोहा और ‘फास्‍फोरस’ जैसे खनिज तत्‍व होते हैं । आलूमें ‘विटामिन-ए, बी और सी’ भी होते हैं । हमारे अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍यको बढावा देनेके लिए आलूके ‘फाइटोन्‍यूट्रिएंट’में ‘कैरोटीनोइड’, ‘फ्लैवोनोइड्स’ और ‘कैफीक’ अम्ल सम्मिलित होते हैं ।
सेवन विधि – आलूको भूनकर खाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त आलूका शाक, पराठे, चाट आदि बनते हैं । आलूके अन्य कई प्रकारके व्यंजन बनते हैं ।
आइए, हम आलूके स्वास्थ्य लाभके विषयमें जानेंगें –
* शारीरिक भार वृद्धिके लिए – आलूमें मुख्‍य रूपसे ‘कार्बोहाइड्रेट’ पाया जाता है और इसमें ‘प्रोटीन’की मात्रा अल्प (कम) होती है । आलूमें ‘विटामिन-सी और बी-कॉम्‍लेकस’ भी सम्मिलित होते हैं, जो कार्बोहाइड्रेटके उचित अवशोषणमें सहायक हैं । यही कारण है कि आलू शरीरके भार वृद्धिमें सहायक है ।
* हृदय स्वस्थ रखनेमें – उच्च रक्तचाप, हृदय रोगोंका मुख्य कारण होता है । आलूमें बहुतसे खनिज पदार्थ होते हैं, जो रक्तचापको न्यून करनेमें सहायक हैं । कुछ अध्ययन बताते हैं कि ‘पोटैशियम’की उच्च मात्रा हृदय रोगोंकी सम्भावनाको न्यून करती है ।
* मुखपर आलूका रस लगानेके लाभ – आलूमें ‘विटामिन-सी और बी-कॉम्‍प्‍लेक्‍स’की प्रचुर मात्रा होती है । साथ ही, इसमें ‘पोटैशियम’, ‘मैग्‍नीशियम’, ‘फॉस्‍फोरस’ और जस्‍ता जैसे खनिज पदार्थ भी होते हैं, जो त्‍वचाके लिए अत्यधिक लाभप्रद होते हैं । आलूको पीसकर उसमें मधुका (शहदका) मिश्रणकर मुखपर लगानेसे त्‍वचापर मुंहासे और धब्‍बेकी चिकित्सा होती है ।
* त्वचाके लिए – यदि त्वचामें जलन हो रही हो या जल गया हो तो जलनवाले स्‍थानपर आलू और मधुके (शहदके) मिश्रणका उपयोग कर सकते हैं । यह त्‍वचाकी जलनमें त्वरित लाभ देता है । आलू त्‍वचाको नरम और स्वच्छ करनेके लिए अत्यधिक लाभप्रद है ।
* कर्करोगमें – लाल और रसवाले आलूओंमें ‘फ्लैवोनॉयड एंटीआक्सिडेंट’ जैसे ‘जेक्‍सैंथिन’ और ‘कैरोटीन’, ‘विटामिन-ए’ आदिकी प्रचुर मात्रा उपलब्‍ध होती है, जो आपकी कई प्रकारके कर्करोगसे (कैंसरसे) रक्षण कर सकती है । इसके अतिरिक्त कृषि अनुसंधानके एक अध्‍ययनसे ज्ञात हुआ है कि आलूमें कर्करोग विरोधी गुणवाला ‘कार्सोटिन’ नामक एक यौगि‍क होता है । आक्सीकरण रोधी (एंटीआक्‍सीडेंट) गुणों वाले ‘विटामिन-ए और सी’, शरीरका कर्करोगके प्रभावसे रक्षण करनेमें सहायक हैं ।
* पथरीको दूर करनेमें – वृक्कके (गुर्देके) पत्‍थर मुख्‍य रूपसे रक्‍तमें यूरिक अम्लकी वृद्धिके कारण होते हैं । लोहे और ‘कैल्शियम’ भी वृक्कके पत्‍थरोंके गठनमें सहायक हैं और आलूमें दोनों ही अच्‍छी मात्रामें होते हैं, जो वृक्कके पत्‍थरोंके निवारक उपायके रूपमें उपयुक्‍त नहीं होते; परन्तु आलूमें ‘मैग्‍नीशियम’ भी होता है, जो वृक्क और अन्‍य ऊतकोंमें ‘कैल्शियम’के संचयको रोकता है, जो पथरीकी चिकित्सामें लाभप्रद है । पथरीके रोगीको केवल आलू खिलाकर और बार-बार अधिक जल पिलाते रहनेसे पथरियां और रेतके कण सरलता पूर्वक निकल जाते हैं ।
* अतिसारमें (दस्तमें) – अतिसारके लिए आलूका उपयोग बहुत ही प्रभावी माना जाता है । आलू, अतिसार पीडित रोगियोंके लिए पौष्टिक आहारका उत्तम विकल्‍प होता है; क्‍योंकि यह सरलता पूर्वक पच जाता है, परन्तु ‘स्‍टार्च’की अधिकताके कारण आलूका अधिक मात्रामें सेवन करनेसे अतिसारकी प्रक्रियाको बढा सकता है; इसलिए अतिसारकी स्थितिमें आलूका सेवन अल्प मात्रामें ही करना चाहिए ।
* गठियामें – ‘कैल्शियम और मैग्‍नीशियम’ जैसे पोषक तत्वोंकी उपलब्‍धताके कारण आलू गठिया रोगमें लाभप्रद है । इसके अतिरिक्त उबलते आलूसे प्राप्‍त जल, वेदना और गठियाकी सूजनमें लाभ देता है । आलूमें ‘पोटैशियम सॉल्ट’ होता है, जो अम्लपित्तको रोकता है । चार आलूको सेंक लें और फिर उनका छिलका उतार कर नमक, मिर्च डालकर नित्य खाएं, इससे गठियामें लाभ मिलता है ।
सावधानियां –
१. यद्यपि आलू खाना सामान्यतया सुरक्षित माना जाता है, तथापि कुछ रोगोंमें लोगोंको आलूके अधिक मात्रामें सेवन करनेसे बचना चाहिए ।
२. खाद्य ‘एलर्जी’ एक सामान्य स्थिति है, जो कुछ लोगोंको आलूमें मुख्य ‘प्रोटीन’मेंसे एक ‘पेटैटिन’के कारण हो सकती है ।
३. यदि आप भार न्यून करनेके लिए सोच रहे हैं तो आलूके सेवनसे बचना चाहिए ।
४. मधुमेहसे ग्रस्त व्यक्तियोंको आलूके सेवनसे बचना चाहिए, क्योंकि इससे आपकी रक्त शर्करामें असन्तुलन बढ सकता है ।
५. गर्भवती महिलाओंको कच्चे आलूके सेवनसे बचना चाहिए ।




आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – १९)


सेंधा नमक (अंग्रेजी नाम – Rock salt, संस्कृत नाम – सैंधवा, शीतशिवा, अन्य नाम – सैन्धव नमक, लाहौरी नमक) एक प्रकारका खनिज नमक (रॉक साल्ट) है, जो पाकिस्तानके पंजाब प्रान्तके झेलम जनपदके खेवरा खानोंसे (माइंससे) निकलता है । यह हल्की लालीके साथ श्वेत (सफेद) नमक होता है । कभी-कभी अन्य पदार्थोंकी उपस्थितिसे इसका वर्ण (रंग) हल्का नीला, गाढा नीला, जामुनी, गुलाबी, नारंगी, पीला या भूरा भी हो सकता है । इसे ‘लाहौरी नमक’ भी कहा जाता है; क्योंकि यह पाकिस्तानमें अधिक मात्रामें मिलता है । आयुर्वेदकी औषधियोंमें इसका उपयोग होता है । सेंधा नमककी सबसे बडी समस्या है कि भारतमें यह अल्प मात्रामें होता है । यह समुद्री नमकसे तुलनात्मक अल्प नमकीन होता है; अतः इसका अधिक उपयोग करना पडता है ।
घटक – सेंधा नमकमें ‘सोडियम क्लोराइड’ सबसे प्रमुख घटक है । सोडियमके अतिरिक्त इसमें ‘फास्फोरस’, ‘कैल्शियम’, ‘पोटैशियम’, लोहा, ‘मैग्नीशियम’, जस्ता, ‘सेलेनियम’, तांबा, ‘ब्रोमिन’, ‘जिरकोनियम’ और ‘आयोडीन’ पाए जाते हैं ।
सेवन विधि – आयोडीनयुक्त नमककी भांति सेंधा नमकका भी उपयोग भोजन पकानेके लिए किया जा सकता है ।
स्वादके अनुसार सेंधा नमकको खानेमें मिलाएं । सेंधा नमकको शुद्ध माना जाता है; इसलिए इसका उपयोग अनेक धार्मिक क्रियाओंके समय भोजन पकानेके लिए किया जाता है । आयुर्वेदके अनुसार, इसे दैनिक उपयोगमें लेनेका परामर्श दिया जाता है ।
निर्माण विधि – यह उच्चतम गुणवत्तावाले, कच्चे प्राकृतिक खनिजोंसे बनता है । इस नमकको खानोंसे काटकर बनाया जाता है; इसलिए इसे ‘रॉक सॉल्ट’ भी कहते हैं, इसे कूटने या पीसनेके पश्चात यह श्वेत और हल्का गुलाबी हो जाता है ।
सेंधा नमकका त्रिदोषपर (वात, पित्त और कफ) प्रभाव – नमकका स्वाद सामान्यतः पित्त दोषको बढाता है, परन्तु सेंधा नमक, शीत प्रकृति होनेके कारण पित्त दोषको सन्तुलित करनेमें सहायक है । अपने नमक स्वादके कारण यह वातको सन्तुलित करता है । छातीमें बलगम जमा होनेके कारण यह रक्त संचयमें लाभ देता है; क्योंकि यह कफ दोषसे भी लाभप्रद है, इसलिए यह दुर्लभ आयुर्वेदिक पदार्थोंमेंसे एक है, जो तीनों दोषोंको सन्तुलित करता है ।
आइए, इसके लाभके विषयमें जानते हैं –
* पाचन क्रिया – इसमें औषधीय गुण हैं, जिसके कारण ये पाचन क्रियाको बढानेमें सहायक है । यह औषधिकी भांति कार्य करता है, जिससे पाचनमें सुधार आता है ।
सेंधा नमक क्षारीय गुणके कारण उदरमें अम्लके उत्पादनको अल्प करता है और इसप्रकार जलनको रोकता है । आयुर्वेदके अनुसार, सेंधा नमकको काली मिर्च, अदरक और दालचीनीके साथ प्रयोग करनेसे भूखमें सुधार आता है । सेंधा नमक और ताजा पुदीनेके पत्तोंको छाछमें (लस्सीमें) मिलाकर पीनेसे पाचनमें सुधार आता है ।
* वायुविकारके (गैसके) लिए – सेंधा नमकको व्यापक रूपसे ‘हिंगवस्तक चूर्ण’ जैसी कई प्रकारकी औषधियोंमें घटकके रूपमें प्रयोग किया जाता है ।
* निम्न रक्तचापके लिए – नमक रक्तचापको बढानेमें सहायक है, यह सर्वविदित है; इसके लिए सेंधा नमकका उपयोग किया जा सकता है । निम्न रक्तचापमें, एक गिलास जलमें आधा चम्मच सेंधा नमक मिलाकर दिनमें दो बार पी सकते हैं ।
* ‘साइनस’में – इसके सेवनसे ‘साइनस’की पीडामें लाभ मिलता है । इसके साथ ही सेंधा नमकके गरारे (गार्गल) करनेसे गलेमें सूजन, वेदना, सूखी खांसी और गलतुण्डिकामें (टॉन्सिलमें) लाभ मिलता है । जो लोग श्वसनीशोथ (ब्रोंकाइटिस) या श्वाशकी अन्य समस्याओंसे पीडित होते हैं, उन्हें सेंधा नमक और हल्दीकी भाप लेना लाभप्रद सिद्ध हो सकता है ।
* स्नानके समय प्रयोग – इसमें कई ऐसे गुण होते हैं, जो शरीरके लिए लाभकारी होते हैं । स्नानके जलमें एक चम्मच सेंधा नमक मिला लें और उसे प्रयोग करें, इससे स्नान करनेसे लाभ मिलेगा । यह गलेकी मांसपेशियोंको शान्त करता है और साथ ही शरीरको विषमुक्त करता है ।
* शरीर शुद्धि हेतु प्रयोग – पैरोंसे गंदगी और दुर्गन्धको दूर करनेके लिए आधी बाल्टी गुनगुने जलमें २ चम्मच सेंधा नमक मिलाए और उसमें अपने पांव डाल दें और इसे १५ मिनट तक रखें, इससे मांसपेशियोंको लाभ मिलेगा व शरीरसे विषाक्त पदार्थ बाहर आ जाएंगें ।
* ‘इलेक्ट्रोलाइट्स’की न्यूनतामें – ‘इलेक्ट्रोलाइट्स’  शरीरके लिए अत्यधिक आवश्यक हैं । इनके बिना शरीरको अपना कार्य पूर्ण करनेमें अडचन आती है । प्रतिदिन सेंधा नमकका सेवन ‘इलेक्ट्रोलाइट्स’की न्यूनता नहीं होने देता है और शरीरके ‘पीएच’के (अम्ल मापक) स्तरको बनाए रखता है ।
सावधानियां –
१. गर्भवती महिलाओंको सेंधा नमकका सेवन थोडा अल्प प्रमाणमें करना चाहिए ।
२. उच्च रक्तचापमें इसका प्रयोग अल्प प्रमाणमें करना चाहिए ।







आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें  ! (भाग – २०.१)


तुलसी (संस्कृत नाम – त्रिदशमञ्जरी, अंग्रेजी नाम – Holi Basil) शब्दका अर्थ है, ‘अतुलनीय पौधा’ । तुलसी भारतमें सबसे पवित्र आयुर्वेदिक औषधि मानी जाती है और ‘औषधियोंकी रानी’ भी कहलाती है ।
भारतीय संस्कृतिमें तुलसीके पौधेका अत्यधिक महत्त्व है, यही कारण है कि सनातन परम्पराको मानने वाले प्रत्येकके घरमें तुलसीका पौधा अवश्य होता है । तुलसी मात्र हमारी आस्थाका प्रतीक नहीं है, इस पौधेके औषधीय गुणोंके कारण आयुर्वेदमें भी तुलसीको महत्त्वपूर्ण माना गया है । भारतमें शताब्दियोंसे तुलसीका प्रयोग होता चला आ रहा है ।
घटक : यह अल्प ‘कैलोरी’ वाली औषधि आक्सीकरण-रोधी (एंटीऑक्सीडेंट), जलन, सूजन न्यून करने और जीवाणुरोधी गुणोंसे समृद्ध है । इसके अतिरिक्त, यह ‘विटामिन-ए, सी और के’, ‘मैंगनीज’, तांबा, ‘कैल्शियम’, लोहा, ‘मैग्नीशियम’ और ‘ओमेगा -३’ जैसे आवश्यक पोषक तत्वोंसे परिपूर्ण है । यह सभी पोषक तत्व आपके समग्र स्वास्थ्यके लिए अत्यधिक लाभप्रद हैं ।
तुलसीके ५ प्रकार – श्याम तुलसी, राम तुलसी, श्वेत/विष्णु तुलसी, वन तुलसी, नींबू तुलसी ।
सेवन विधि – तुलसी अनेक प्रकारसे सेवन की जा सकती है । इसके पत्तोंको जलके साथ निगला जा सकता है अथवा मुखमें रखा जा सकता है । तुलसीको धूपमें सुखाकर इसका चूर्ण बनाकर लिया जा सकता है । इसके अतिरिक्त तुलसीको औषधियोंके रूपमें (द्रव्य, ठोस)  सेवन किया जा सकता है ।
आइए, तुलसीके लाभके विषयमें जानते हैं –
* लिवर (यकृत) – तुलसीकी १०-१२ पत्तियोंको उष्ण जलसे धोकर प्रतिदिन प्रातःकाल मुखमें रखकर इसका रस चूसें अथवा जलसे निगल लें, यकृतके रोगोंमें यह अत्यधिक लाभप्रद है ।
* उदर वेदना – एक चम्मच तुलसीकी पिसी हुई पत्तियोंको जलके साथ मिलाकर गाढा पेस्ट बना लें । उदरमें वेदना होनेपर इस लेपको नाभि और उदरके आस-पास लगानेसे लाभ मिलता है ।
* पाचन – पाचन सम्बन्धी समस्याओं जैसे अतिसार (दस्त लगना), वायुविकार (गैस बनना) आदि होनेपर एक गिलास जलमें १०-१५ तुलसीकी पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें । इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं ।
* ज्वर – दो कप जलमें एक चम्मच तुलसीकी पत्तियोंका चूर्ण और एक चम्मच इलायचीका चूर्ण मिलाकर उबालें और काढा बना लें । दिनमें दोसे तीन बार यह काढा पी सकते हैं और स्वादके लिए इसमें मधु (शहद) भी मिला सकते हैं ।
* शीतप्रकोप : खांसीकी लगभग सभी पीनेवाली औषधियोंमें तुलसीका प्रयोग किया जाता है । तुलसीकी पत्तियां बलगम (कफ) समाप्त करनेमें सहायक हैं । तुलसीकी कोमल पत्तियोंको थोडे-थोडे समयमें अदरकके साथ चूसनेसे शीतप्रकोपमें (खांसी-जुकाममें) लाभ मिलता है ।
* शीत ऋतुमें रक्षण हेतु – वर्षा या शीत ऋतुमें रक्षाके लिए तुलसीकी लगभग १०-१२ पत्तियोंको एक कप दुग्धमें (दूधमें) उबालकर पीएं । इससे यह शीत ऋतुमें रक्षण करता है ।
तुलसीके कुछ अन्य लाभ व सावधानियोंके विषयमें हम अगले लेखमें बताएंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २०.२)


कल हमने तुलसीके विषयमें व इससे होनेवाले कुछ लाभके विषयोंमें बताया था । आज आपको तुलसीके कुछ अन्य लाभ व सावधानियोंके विषयमें बताएंगें –
* श्वास रोगमें – श्वास सम्बन्धी रोगोंका उपचार करनेमें तुलसीका सेवन उपयोगी सिद्ध होता है । मधु (शहद), अदरक और तुलसीको मिलाकर बनाया गया काढा पीनेसे श्वसन-शोथ (ब्रोंकाइटिस), ‘दमा’ और कफमें लाभ मिलता है । नमक, लौंग और तुलसीके पत्तोंसे बनाया गया काढा ‘इंफ्लुएंजा’में (एक प्रकारका ज्वर) तुरन्त लाभ देता है ।
* पथरी – तुलसी वृक्कको (गुर्देके) सशक्त बनाती है । मधुमें (शहदमें) मिलाकर तुलसीके अर्कका नियमित सेवन करना चाहिए, इससे छह माहमें लाभ दिखेगा ।
* हृदय रोग : तुलसी रक्तमें रक्तवसाके (कोलेस्ट्रालके) स्तरको न्यून करती है । ऐसेमें हृदय रोगियोंके लिए यह लाभप्रद सिद्ध होती है ।
* तनाव : तुलसीकी पत्तियोंमें तनावरोधी गुण भी पाए जाते हैं । तनावको दूर रखनेके लिए कोई भी व्यक्ति तुलसीके १२ पत्तोंका प्रतिदिन दो बार सेवन कर सकता है ।
* मुखका संक्रमण – अल्सर और मुखके अन्य संक्रमणमें तुलसीकी पत्तियां लाभप्रद सिद्ध होती हैं । प्रतिदिन तुलसीकी कुछ पत्तियोंको मुखमें रखकर चूसनेसे मुखका संक्रमण दूर हो जाता है ।
* त्वचा रोग – मण्डलकुष्ठ (दाद), खुजली और त्वचाके अन्य रोगोंमें तुलसीके अर्कको प्रभावित स्थानपर लगानेसे कुछ ही दिनोंमें रोग दूर हो जाता है । प्राकृतिक चिकित्साद्वारा श्वेत कुष्ठकी (ल्यूकोडर्माकी) चिकित्सा करनेमें तुलसीके पत्तोंको सफलता पूर्वक प्रयोग किया गया है । तुलसीकी ताजा पत्तियोंको संक्रमित त्वचापर रगडें, इससे संक्रमण अधिक नहीं फैल पाता ।
* श्वासकी दुर्गन्ध – तुलसीकी सूखी पत्तियोंको सरसोंके तेलमें मिलाकर दांत स्वच्छ करनेसे श्वासकी दुर्गन्ध चली जाती है । ‘पायरिया’ जैसे रोगमें भी यह प्रयोग लाभप्रद सिद्ध होता है ।
* सिरमें वेदना – सिरकी वेदनामें तुलसी एक उत्तम औषधिके रूपमें कार्य करती है । तुलसीका काढा पीनेसे सिरकी वेदनामें लाभ मिलता है ।
* नेत्र रोग – नेत्रोंकी जलनमें तुलसीका अर्क अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होता है । रात्रिमें प्रतिदिन ‘श्यामा तुलसी’के अर्ककी दो बूंदें नेत्रोंमें डालनी चाहिए ।
* कानमें वेदना – तुलसीके पत्तोंको सरसोंके तेलमें भून लें और लहसुनका रस मिलाकर कानमें डाल लें, इससे वेदनामें लाभ मिलेगा ।
* रक्तचाप – रक्तचापको (ब्लड-प्रेशरको) सामान्य रखनेके लिए तुलसीके पत्तोंका सेवन करना चाहिए ।
* वमन – वमनकी स्थितिमें तुलसी पत्र मधुके साथ प्रातःकाल व जब आवश्यकता हो तब पिलाते हैं । पाचन शक्ति वृद्धिके लिए, अपच रोगोंके लिए तथा बालकोंके यकृत व प्लीहा सम्बन्धी रोगोंके लिए तुलसीके पत्तोंका क्वाथ (काढा) पिलाते हैं । छोटी इलायची, अदरकका रस व तुलसीके पत्तेका स्वरस मिलाकर देनेपर वमनकी स्थितिको शान्तकर सकते हैं ।
* बवासीरमें – तुलसीके बीजोंका चूर्ण दहीके साथ लेनेसे बवासीरमें रक्त आना बंद हो जाता है ।
* प्रातःकाल २-३ चम्मच तुलसीके रसका सेवन करें तो शारीरिक बल एवं स्मरण शक्तिमें वृद्धिके साथ-साथ आपका व्यक्तित्व भी प्रभावशाली होगा ।
* भार नियन्त्रणमें – शरीरके भारको (वजनको) नियन्त्रित रखने हेतु तुलसी अत्यन्त गुणकारी है । इसके नियमित सेवनसे भारी व्यक्तिका भार न्यून होता है एवं पतले व्यक्तिका भार बढता है अर्थात तुलसी शरीरका भार आनुपातिक रूपसे नियन्त्रित करता है ।
* विषैले जीवके काटनेपर – विषैले जीव सांप, ततैया, बिच्छूके काटनेपर तुलसी पत्तोंका रस उस स्थानपर लगानेसे लाभ मिलता है । तुलसीका रस शरीरपर मलकर सोयें, इससे मच्छरोंसे छुटकारा मिलेगा । तुलसीका रस मलेरियाके मच्छरका शत्रु है । तुलसीके बीज खानेसे विषका प्रभाव नहीं होता है ।
* तुलसीका पौधा मलेरियाके कीटाणु नष्ट करता है । शोधसे ज्ञात हुआ है कि इसमें ‘कीनोल’, ‘एस्कार्बिक अम्ल, ‘केरोटिन’ और ‘एल्केलाइड’ होते हैं । तुलसी पत्र मिला हुआ जल पीनेसे कई रोग दूर हो जाते हैं, इसीलिए चरणामृतमें तुलसीके पत्ते डाले जाते हैं । तुलसीके स्पर्शसे भी रोग दूर होते हैं ।
सावधानियां –
१. विश्व स्वास्थ्य संगठनके अनुसार, जो लोग ‘एसिटामिनोफेन’की औषधि खा रहें हैं, जो शरीरमें ‘ग्लूटाथियोन’के स्तरको न्यून करती है, उनके लिए प्रतिदिन तुलसी खाना हानिकारक हो सकता है, क्योंकि यह शारीरिक वेदनाकी औषधि है और यही कार्य तुलसी भी करती है, यदि दोनों साथमें खाई जाएं तो इससे यकृतको (लिवरको) हानि हो सकती है; अतः यदि आप ‘एसिटामिनोफेन’ औषधि ले रहे हैं तो चिकित्सकके परामर्शसे ही तुलसी लें ।
२. तुलसी खानेसे रक्त पतला होता है, यदि पहलेसे रक्तको पतला करनेकी कोई औषधि खा रहें हैं तो यह हानि कर सकती है ।
३. अधिक मात्रामें तुलसीके सेवनसे पुरुषोंमें शुक्राणुकी संख्या न्यून हो जाती है; इसीलिए पुरुषोंको सीमित मात्रामें प्रयोग करना चाहिए ।
४. यदि पहलेसे मधुमेहके स्तरको न्यून करनेकी औषधि ले रहे हैं तो तुलसीका सेवन चिकित्सीय परामर्शसे ही करना चाहिए ।
५. तुलसीके पत्तोंको दांतोंसे चबाना टालना चाहिए ।

तुलसीके औषधीय गुण (भाग – १)


भारतीय संस्कृतिमें तुलसीके पौधेका बहुत महत्व है और इस पौधेको बहुत पवित्र माना जाता है। तुलसी केवल हमारी आस्थाका प्रतीक भर नहीं है। इस पौधेमें पाए जाने वाले औषधीय गुणोंके कारण आयुर्वेदमें भी तुलसीको महत्वपूर्ण माना गया है। भारतमें सदियोंसे तुलसीका इस्तेमाल होता चला आ रहा है।

  • लिवर (यकृत) संबंधी समस्या : तुलसी की १०-१२  पत्तियोंको धोकर प्रतिदिन प्रातः खाएं। यकृतकी समस्याओंमें लाभप्रद होता है।
  • पेटकी वेदनाको दूर करने हेतु : एक चम्मच तुलसीकी पिसी हुई पत्तियोंको जलके साथ मिलाकर गाढा लेप बना लें। पेटकी वेदना होनेपर इस लेपको नाभि और पेटके आस-पास लगानेसे लाभ  मिलता है।
  • पाचन संबंधी समस्या : पाचन संबंधी समस्याओं जैसे दस्त लगना, पेटमें वायु बनना आदि होनेपर एक ग्लास जलमें १० -१५ तुलसीकी पत्तियां डालकर उबालें और काढा बना लें। इसमें चुटकी भर सेंधा नमक डालकर पीएं।
  • ज्वरमें लाभप्रद : दो प्याली जलमें एक चम्मच तुलसीकी पत्तियोंका पाउडर और एक चम्मच इलायची पाउडर मिलाकर उबालें और काढा बना लें। दिनमें दो से तीन बार यह काढा पीएं। स्वादके लिए चाहें तो इसमें दूध और चीनी भी मिला सकते हैं।
  • शीत्प्रकोप एवं कफमें लाभप्रद (खांसी-जुकाममें लाभप्रद) : प्राय: सभी कफ सीरपको बनानेमें तुलसीका उपयोग किया जाता है। तुलसीकी पत्तियां कफ स्वच्छ करनेमें मदद करती हैं। तुलसीकी कोमल पत्तियोंको थोडी- थोडी देरपर अदरकके साथ चबानेसे शीतप्रकोपमें लाभप्रद  है। चायकी पत्तियोंको उबालकर पीनेसे गलेकी खराश दूर हो जाती है। इस जलको आप गरारा करने के लिए भी उपयोग कर सकते हैं।
  • सर्दीसे बचाव : बारिश या ठंडके मौसममें सर्दीसे बचावके लिए तुलसीकी लगभग १०-१२ पत्तियोंको एक कप दूधमें उबालकर पीएं। सर्दीकी औषधिके साथ-साथ यह एक पोषक पेयके रूपमें भी कार्य करता है। शीतप्रकोप  होनेपर तुलसीकी पत्तियोंको चाय समान उबालकर पीने से लाभ मिलता  है। तुलसीका अर्क तेज ज्वरको कम करनेमें भी उपयोगी सिद्ध होता है।
  • श्वासकी समस्या : श्वास संबंधी समस्याओंका उपचार करनेमें तुलसी अत्यधिक उपयोगी सिद्ध  होती है। शहद, अदरक और तुलसीको मिलाकर बनाया गया काढा पीनेसे ब्रोंकाइटिस, दमा, कफ और शीतप्रकोपमें सहायता मिलती है। नमक, लौंग और तुलसीके पत्तोंसे बनाया गया काढा इंफ्लुएंजा (एक प्रकारका ज्वर) में लाभ मिलता है। (क्रमश:)




आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २१)


सूखी अदरक, जिसे सोंठके (संस्कृत नाम – अरद्रका, आर्द्रशाक; अन्य नाम – चुक्‍कू, शुंती, सोनथ; अंग्रेजी नाम – Dry Ginger) नामसे जाना जाता है, इसका उपयोग प्राचीन समयसे ही आयुर्वेदमें व्‍यापक रूपसे किया जा रहा है । प्रत्येक ऋतुमें और स्थानोंपर अदरककी उपलब्‍धता होना सम्भव नहीं है; इसलिए अदरकको विशेष परिस्थितियोंमें सुखाकर उपयोगके लिए सिद्ध किया जाता है । इस सूखी हुई अदरकको ही सोंठ कहते हैं । इसे आप सूखे चूर्णके रूपमें उपयोग कर सकते हैं । सोंठ चूर्णका वर्ण (रंग) धूमिल श्वेत (off-white) होता है ।
सोंठके पोषक तत्‍व – अदरककी भांति ही सोंठ हमारे स्‍वास्‍थ्‍यके लिए लाभप्रद होती है, क्‍योंकि इसमें अदरकके सभी गुण होते हैं । इसमें विद्यमान पोषक तत्‍वोंमें अन्तर मात्र इसके सूखे होनेके कारण हो सकता है । सोंठमें ‘फाइबर’, ‘कार्बोहाइड्रेट’, ‘प्रोटीन’, ‘सोडियम’, ‘आयरन’, ‘विटामिन सी’, ‘पोटैशियम’ आदि मुख्य रूपसे पाए जाते हैं ।
सेवन विधि – सोंठके चूर्णको सीधा उष्ण जलसे लिया जा सकता है । इसके अतिरिक्त इसका उपयोग मधुके (शहदके) साथ होता है । इसकी चटनी भी बनाई जा सकती है, इसके अतिरिक्त सोंठके लड्डू अत्यधिक लोकप्रिय हैं ।
आइए, सोंठके स्वास्थ्य लाभके विषयमें जानते हैं –
* भार न्यून करनेमें – इसके लिए १ कप उष्ण जलमें आधा छोटा चम्‍मच सोंठ चूर्णको मिलाएं एवं इस जलको नियमित रूपसे सेवन करनेपर भार न्यून करनेमें सहायता मिल सकती है । आप इस जलका स्‍वाद बढानेके लिए इसमें मधुका (शहदका) उपयोग कर सकते हैं । सोंठमें ‘थर्मोजेनिक वाहक’ होते हैं, जो शरीरके मोटापेको न्यून करनेमें सहायक होते हैं ।
* मुंहासोंके लिए – सोंठ चूर्णमें प्रज्वलनरोधी (एंटी-इंफ्लामेटरी) और विषाणुरोधी गुण होते हैं । ये गुण त्‍वचा छिद्रोंमें विद्यमान गंदगी और मुंहासे उत्पन्न करनेवाले विषाणुओंको नष्‍ट कर सकते हैं । मुंहासोंका उपचार करनेके लिए दूधके साथ थोडासा सोंठ चूर्ण मिलाएं । इस मिश्रणको लगानेसे पूर्व मुखको स्वच्छ करें, तदोपरान्त  इस मिश्रणको अपने मुखपर और गर्दनपर अच्‍छेसे लगाएं । लगभग २५-३० मिनिटके पश्चात धो लें । इस घरेलू विधिको सप्‍ताहमें कमसे कम १ बार प्रयोग करें ।
* मधुमेह – उच्च रक्त शर्कराको नियन्त्रणमें रखनेके लिए सेन्धा नमकके साथ २-४ ग्राम अदरक चूर्णका सेवन कर सकते हैं, यह बिना जल या जलके साथ भी कर सकते हैं ।
* उदरके लिए – सोंठमें प्रज्वलनरोधी गुण होते हैं, जो पाचन सम्बन्धी समस्‍याओंको दूर करते हैं । इसप्रकारसे सोंठ पाचनको ठीक करने और पोषक तत्‍वोंके अवशोषणको उत्‍तेजित करनेमें सहायक होती है । यह वायुविकारको भी सरलतासे दूर कर सकती है । इन सभी लाभोंको देखते हुए सोंठका नियमित सेवन आपके लिए लाभप्रद हो सकता है ।
* शीतप्रकोपका उपचार –  ऋतु परिवर्तनके कारण हमपर शीतप्रकोपका होना सामान्य बात है, इसमें सोंठका प्रयोग लाभकारी सिद्ध होता है । सोंठमें ‘जिंजरोल’ और ‘शोगल’ जैसे पोषक तत्‍व विद्यमान रहते हैं । ये सभी सामान्‍य सर्दीके लक्षणोंको प्रभावी रूपसे दूर करनेमें सहायक हैं । सोंठ चूर्णको उष्ण जलके साथ उपभोग करनेपर शीत और ‘फ्लू’में तत्‍काल लाभ मिलता है । सोंठ चूर्णके साथ नमक और लौंग मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं । सामान्‍य शीतप्रकोपमें लाभके लिए इन्‍हें दिनमें दो बार सेवन करें ।
* गठिया व सूजन – सोंठमें विद्यमान प्रज्वलनरोधी गुणके कारण यह सूजनकी प्रभावी रूपसे चिकित्सा कर सकता है । गठियाकी सूजनके अतिरिक्त शरीरमें लगी चोटकी सूजनको भी सोंठसे दूर किया जा सकता है । इसके लिए १ जग जलमें ४-५ चम्‍मच सोंठके चूर्णको मिलाएं और इसे उबालें । इस उबले हुए सोंठ मिश्रित जलका नियमित रूपसे सेवन करनेपर सूजनमें लाभ मिलता है । इसके अतिरिक्त जोडोंकी वेदना होनेपर भी सोंठ चूर्णको ‘पेस्‍ट’ बनाकर प्रभावित स्थानपर लगा सकते हैं । इससे जोडोंकी वेदनामें लाभ मिलता है ।
* चयापचयमें (मेटाबॉलिज्ममें) लाभप्रद – सोंठमें उष्मोत्पादक  वाहक होते हैं । ये गुण शरीरमें विद्यमान वसाको न्यून करने और मोटापा अल्प करनेके लिए भी उपयोगी होते हैं । सोंठका सेवन करनेसे यह चयापचय दरको बढा सकता है, जिससे शरीरमें उपस्थित अतिरिक्‍त वसाको अल्प किया जा सकता है । सोंठ शरीरमें रक्तवसा (कोलेस्ट्रॉल) और ‘ट्राइग्लिसराइड’के स्‍तरको अल्प करनेके लिए भी उपयोगी है । इसप्रकारसे आप अपने शरीरमें चयापचय दरमें वृद्धि करनेके लिए सोंठका प्रयोग कर सकते हैं ।
* त्वचाके लिए – सोंठ त्‍वचाको स्‍वस्‍थ रखने और कान्तिमान बनानेका कार्य करती है । ३ गिलास जलमें २-३ चम्‍मच सोंठ चूर्ण मिलाएं । इस मिश्रणको तबतक उबालें कि मिश्रणकी मात्रा आधी न हो जाए, तत्पश्चात इस मिश्रणको ठंडा करें और किसी मलमलके वस्त्रसे छान लें । इस छने हुए मिश्रणको किसी बोतलमें भरकर ठंडे स्‍थानपर रखें । प्रतिदिन इस मिश्रणमें रूई भिगोकर मुखपर लगानेसे यह त्‍वचाकी अशुद्धियोंको दूरकर त्‍वचामें नमी बनाए रखता है । सोंठमें विषाणुरोधी गुण होते हैं, जो त्‍वचा छिद्रोंमें एकत्र हुई गन्दगीको हटानेमें सहायक होते हैं । यह गन्दगी ही मुंहासोंका प्रमुख कारण होती है । सोंठ चूर्णके साथ गुलाब जल और दूध मिले मिश्रणको बनाकर मुखपर लगाएं, यह त्‍वचाकी सभी समस्‍याओंको दूर करनेमें सहायक है ।
* गर्भवती महिलाओंके लिए – आयुर्वेदके अनुसार सोंठ गर्भवती महिलाओंके लिए अत्यधिक लाभप्रद होता है । सोंठके औषधीय गुण न केवल महिलाओंके लिए लाभप्रद होते हैं, वरन यह बच्‍चेके लिए भी उपयोगी होते हैं । भारतमें प्रसवके पश्चात महिलाओंको सोंठके लड्डू दिए जाते हैं । सोंठमें पाए जानेवाले पोषक तत्‍व महिलाओंको गर्भावस्‍था और प्रसवके पश्चात होनेवाले संक्रमणोंसे बचाता है । इसके साथ ही यह रक्‍तचाप, वमन जैसी समस्‍याओंका भी उपचार कर सकता है ।
* सिरमें वेदना (दर्द) – अदरक चूर्णके सबसे अच्‍छे लाभोंमेंसे एक सिरमें वेदनासे लाभ दिलाना है । इसके लिए थोडेसे सोंठ चूर्णमें कुछ बूंद जल मिलाकर मिश्रण तैयारकर माथेपर लगानेसे यह सिरमें वेदनाकी चिकित्सा कर सकता है । इसके अतिरिक्त आप अपने गलेकी वेदनाको दूर करनेके लिए भी इसका उपयोग कर सकते हैं । सोंठमें वेदना निवारक गुण होते हैं, जो वेदनासे लाभ दिला सकते हैं ।
सावधानियां –
१. अधिक मात्रामें सोंठ या ताजे अदरकका सेवन करनेपर यह उदरकी समस्‍याओंको और अधिक बढा सकता है । अधिक सोंठका सेवन करनेसे उदरकी जलन, ऐंठन और अतिसारकी परेशानी हो सकती है ।
२. कुछ महिलाएं सोंठके प्रति अतिसंवेदनशील होती हैं । अधिक मात्रामें सोंठका सेवन करनेसे उनके मासिक धर्मके समय अतिरिक्‍त प्रवाह हो सकता है ।
३. यदि आप किसी विशेष प्रकारकी औषधियोंका सेवन कर रहे हैं तो औषधीय रूपमें सोंठका सेवन करनेसे पूर्व अपने चिकित्सकसे सम्पर्क करें ।
४. गर्भवती महिलाओंके लिए सोंठ लाभप्रद होती है, परन्तु उचित मात्राके लिए चिकित्सकसे सम्पर्क किया जा सकता है ।
५. इसकी प्रकृति उष्ण होती है; इसलिए शीत ऋतुमें इसका प्रयोग सामान्य रूपसे लोग अधिक करते हैं । शीत ऋतुमें सोंठ मिला हुआ दुग्ध अथवा क्वाथ पीनेसे शरीरमें उष्णता आती है, परन्तु ग्रीष्म ऋतुमें सोंठका प्रयोग अधिक मात्रामें करना हानिकारक हो सकता है ।




आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २२.३)


कल हमने गिलोयसे होनेवाले लाभोंके विषयमें बताया था । आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभों व इसके प्रयोगमें लेनेवाली सावधानियोंके विषयमें बताएंगें –
* मानसिक उन्माद (पागलपन) – गिलोयके काढेको ब्राह्मीके साथ पीनेसे उन्माद या पागलपन दूर हो जाता है । गिलोयको ‘अडाप्टोजेनिक’ (औषधीय घटक) औषधिके रूपमें प्रयोग किया जा सकता है, यह मानसिक तनाव और चिन्ताको अल्प करती है । यह स्मृतिका विकास करने और कार्यपर ध्यान लगानेमें सहायता करती है । यह मस्तिष्कसे सभी विषाक्त पदार्थोंको भी बाहर कर सकती है । गिलोयकी जड और पुष्पसे तैयार ५ मिलीलीटर गिलोयके रसका नियमित सेवन एक उत्कृष्ट मस्तिष्क औषधिके रूपमें समझा जाता है । गिलोयको प्रायः एक वृद्धावस्था विरोधी औषधि सम्बोधित किया जाता है ।
* मधुमेह – गिलोयमें ‘हाइपोग्लिसीमिक’ अर्थात शर्करा अल्प करनेवाले गुण पाए जाते हैं । यह रक्तचाप और ‘लिपिड’के स्तरको अल्प कर सकता है । गिलोयका नियमित सेवन द्वितीय स्तरके मधुमेह रोगियोंके लिए विशेष रूपसे लाभप्रद होता है । नित्य गिलोयका रस पीनेसे रक्त शर्कराका स्तर गिरता है ।
* गठियामें – गिलोयके प्रज्वलनरोधी और गठियारोधी गुण न केवल गठियाको अल्प करनेमें सहायक हैं, वरन यह उसके लक्षण जैसे वेदना, सूजन, जोडोंमें वेदना आदिसे भी बचाए रखते हैं । यदि कोई वातरोगी गठियासे पीडित है तो गिलोयका सेवन अवश्य ही करना चाहिए । गठियाकी चिकित्साके लिए, यह शुद्ध घीके साथ भी प्रयोग किया जाता है, ‘रुमेटी गठिया’की चिकित्सा करनेके लिए अदरकके साथ इसका प्रयोग किया जा सकता है ।
गिलोयके तनेसे बनाए गए चूर्णको दूधमें मिलाकर पीनेसे गठियाके रोगियोंको अत्यधिक लाभ मिलता है ।
* पौरुष शक्ति – गिलोय, बडा गोखरू और आंवला सभी समान मात्रामें लेकर पीसकर चूर्ण बना लें । इसमेंसे ५ ग्राम चूर्ण प्रतिदिन मिश्री और शुद्ध घीके साथ सेवन करनेसे पौरूष शक्तिमें वृद्धि होती है ।
* रक्त कर्करोग (ब्लड कैंसर) – इस रोगसे पीडित रोगीको गिलोयके रसमें जवाखार मिलाकर सेवन करानेसे उसका रोग ठीक हो जाता है । लगभग २ फुट लम्बी गिलोयमें, १० ग्राम गेहूंकी हरी पत्तियां लेकर, थोडासा जल मिलाकर पीस लें, तदोपरान्त इसे वस्त्रमें रखकर निचोडकर रस निकाल लें । इस रसकी एक कपकी मात्रा प्रातःकाल भोजन किए बिना ही सेवन करें तो इससे लाभ मिलेगा ।
* जीर्णज्वर (पुराने बुखार) – जीर्ण ज्वर या ६ दिवससे भी अधिक समयसे आ रहे ज्वर व न ठीक होनेवाले ज्वरकी अवस्थामें उपचार करनेके लिए ४० ग्राम गिलोयको अच्छी प्रकारसे पीसकर, मिट्टीके पात्रमें २५० मिलीलीटर जलमें मिलाकर रातभर ढककर रख दें और प्रातःकाल इसे मसलकर छानकर पी लें । इस रसको प्रतिदिन दिनमें ३ बार लगभग २० ग्रामकी मात्रामें पीनेसे लाभ मिलता है । २० मिलीलीटर गिलोयके रसमें १ ग्राम पिप्पली तथा १ चम्मच मधु (शहद) मिलाकर प्रातःकाल व संध्यामें सेवन करनेसे जीर्णज्वर, कफ, प्लीहारोग (तिल्ली), खांसी और अरुचि (भोजनका अच्छा न लगना) आदि रोग ठीक हो जाते हैं ।
बच्चोंके लिए सेवन – गिलोय पांच वर्षकी आयु या इससे ऊपरके बच्चोंके लिए सुरक्षित है, यद्यपि गिलोय दो सप्ताहसे अधिक या बिना आयुर्वेदिक चिकित्सकके परामर्शके नहीं दी जानी चाहिए ।
सावधानियां –
१. यदि आप मधुमेहकी औषधि ले रहे हैं तो बिना चिकित्सकके परामर्शके गिलोयका सेवन नहीं करना है, क्योंकि यह भी वही कार्य करती है ।
२. गर्भवती और स्तनपान करवानेवाली महिलाओंके लिए भी गिलोयका प्रयोग वर्जित है ।
३. गिलोयको शल्यचिकित्साके (सर्जरीके) पश्चात प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
४. यदि उदरकी समस्‍या है तो गिलोयका प्रयोग न करें; क्‍योंकि इसके कारण अपच हो सकता है । अपचकी समस्‍या होनेपर इसका किसी भी प्रकारसे प्रयोग न करें । इसके कारण उदरमें वेदना व मरोड हो सकती है ।
५. रोग प्रतिरोधकता (इम्‍यूनिटी) बहुत अधिक सक्रिय हो जाए तो भी ठीक नहीं होता है, क्‍योंकि इस स्थितिमें स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्‍यून) रोगोंके होनेका संकट बढ जाता है अर्थात इसके अधिक प्रयोगसे ‘ल्‍यूपस’, ‘मल्‍टीपल स्‍क्‍लेरोसिस’ और ‘रूमेटाइड अर्थराइटिस’ जैसे रोग हो सकते हैं ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २२.१)


गिलोय (संस्कृत नाम – गुडूची, ज्वरअरिः, छिन्ना, जीवन्ती; अंग्रेजी नाम – टीनोस्पोरा कार्डीफोलिया; अन्य नाम – अमृता, छिन्नरुहा, चक्रांगी), एक बहुवर्षिय लता होती है । इसके पत्ते पानके पत्तोंकी भांति होते हैं । गिलोयकी लता वन, खेतोंकी मेड, पर्वतों आदि स्थानोंपर सामान्यतः कुण्डलाकार चढती पाई जाती है, यह नीम और आम्रके वृक्षोंके आस-पास भी मिलती है । जिस वृक्षको यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं । इस दृष्टिसे नीमपर चढी गिलोय (नीम-गिलोय) श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है । यह वात, कफ और पित्त नाशक होती है । यह निर्धनके घरकी चिकित्सक है, क्योंकि यह गांवोंमें सहजतासे मिल जाती है । यह इतनी अधिक गुणकारी होती है कि इसका नाम ‘अमृता’ रखा गया है । आयुर्वेदमें गिलोयको किसी भी प्रकारके ज्वरकी एक महान औषधिके रूपमें माना गया है ।
घटक – पत्तियोंमें ‘कैल्शियम’, ‘प्रोटीन’, ‘फास्फोरस’, ‘सोडियम सेलिसिलेट’ और तनेमें ‘स्टार्च’ भी मिलता है ।
सेवन विधि – गिलोयके तनेको जो अधिक कडा नहीं होता है, उसे तोडकर दातुनकी भांति उसका रस चूसा जा सकता है, गिलोयके तने व पत्ते जलमें उबालकर क्वाथ (काढा) बनाकर पिया जा सकता है । इसके अतिरिक्त गिलोयकी अनेक गोलियां (टेबलेट) व रस औषधिके रूपमें मिल जाते हैं, जिनका सेवन चिकित्सककी परामर्शसे किया जा सकता है ।
आइए, आज आपको गिलोयसे होनेवाले लाभोंके विषयमें बताएंगें –
* रोग-प्रतिरोधक क्षमतामें वृद्धि – गिलोयमें शरीरकी रोगप्रतिरोधक क्षमतामें वृद्धिके महत्वपूर्ण गुण पाए जाते हैं । इसमें आक्सीकरण-रोधीके (एंटीऑक्सीडंटके) विभिन्न गुण पाए जाते हैं, जिससे शारीरिक स्वास्थ्य बना रहता है तथा भिन्न प्रकारके रोग दूर होते हैं । गिलोय यकृत (लीवर) तथा वृक्कमें (किडनीमें) पाए जानेवाले रासायनिक विषैले पदार्थोंको बाहर निकालनेका कार्य भी करती है । यह रोगोंके कीटाणुओंसे लडकर शरीरको सुरक्षा प्रदान करती है ।
* ज्वरमें लाभप्रद – गिलोयसे लम्बे समयतक चलने वाले ज्वरको ठीक होनेमें अत्यधिक लाभ मिलता है । इसमें ज्वरसे लडनेवाले गुण पाए जाते हैं । यह शरीरमें रक्तके ‘प्लेटलेट्स’की मात्राको बढाती है, जो कि किसी भी प्रकारके ज्वरसे लडनेमें उपयोगी है । डेंगू जैसे ज्वरमें भी गिलोयका रस अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होता है । यदि मलेरियाके लिए गिलोयके रस तथा मधुको (शहदको) समान मात्रामें रोगीको दिया जाए तो बडी सफलतापूर्वक मलेरियाकी चिकित्सा होती है । गिलोयके तने और श्याम तुलसीकी छह-सात पत्तियोंको एकसाथ जलमें उबालकर, जलको आधा होनेपर उसमें मधु (शहद) मिलाकर सेवन करनेसे यह किसीभी प्रकारके ज्वरको तोडनेमें सहायक है ।
* पाचन क्रिया – गिलोयसे शारीरिक पाचन क्रिया भी संयमित रहती है । विभिन्न प्रकारकी उदर सम्बन्धी समस्याओंको दूर करनेमें गिलोय प्रचलित है । इसके लिए यदि एक ग्राम गिलोयके चूर्णको थोडेसे आंवला चूर्णके साथ नियमित रूपसे लिया जाए तो अत्यधिक लाभप्रद होता है ।
* बवासीर – बवासीरसे पीडित रोगीको गिलोयका रस छांछके साथ मिलाकर देनेसे रोगीका कष्ट अल्प होने लगता है ।
* मधुमेह – गिलोयके रसको नियमित रूपसे पीनेसे रक्त शर्कराकी मात्रा अल्प होने लगती है ।
* श्वासरोग (अस्थमा) – यह एक प्रकारका अत्यन्त भयावह रोग है, जिसके कारण रोगीको भिन्न प्रकारके कष्ट, जैसे छातीमें कडापन आना, श्वास लेनेमें बाधा होना, अत्यधिक खांसी होना तथा श्वासका तीव्र गतिसे चलना आदि होते हैं, परन्तु गिलोयके नियमित प्रयोगसे श्वासरोगीको अत्यधिक लाभ मिलता है ।
* नेत्र-ज्योति – गिलोयके कुछ पत्तोंको अच्छेसे धोकर जलमें उबाल लें, यह जल ठंडा होनेपर नेत्रोंकी पलकोंपर नियमित रूपसे लगानेसे अत्यधिक लाभप्रद होता है ।
* सौंदर्यताके लिए – गिलोयका उपयोग करनेसे मुखपर काले धब्बे, कील-मुहांसे अल्प होने लगते हैं । मुखपर झुर्रियां भी न्यून होनेमें सहायता मिलती है । यह त्वचाको युवा बनाए रखनेमें सहायक है ।
* रक्त सम्बन्धित रोग – कई लोगोंमें रक्तकी अल्प मात्रा पाई जाती है, जिसके कारण उन्हें शारीरिक दुर्बलता अनुभव होने लगती है । गिलोयका नियमित प्रयोग करनेसे शरीरमें रक्तकी मात्रा बढने लगती है तथा गिलोय रक्तको स्वच्छ करनेमें अत्यधिक लाभदायक है ।
गिलोयके अन्य लाभोंके विषयमें हम इसी श्रृंखला अन्तर्गत अगले लेखमें जानेंगें ।










आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें (भाग – २४.१)


टमाटर (संस्कृत नाम – हिण्डीरः, रक्त वृन्तकम्; अंग्रेजी नाम – टोमैटो, वैज्ञानिक नाम – सोलनम लाइकोपेर्सिकम) विश्वमें अधिक प्रयोग होनेवाला शाक है । टमाटरके बिना भारतीय रसोई अधूरी है ! यह प्रायः एक शाक माना जाता है; परन्तु वास्तवमें यह एक फल है । ये लाल व हल्के लाल वर्णके (रंगके) होते हैं । इनमें कई बीज होते हैं, पूर्ण रूपसे पक जानेपर जिनका स्वाद थोडा खट्टा एवं मीठा होता है । चाहे आप इसे फल कहें या शाक; किन्तु सब जानते हैं कि टमाटर पोषणका एक भण्डार है । आप इसे अपने दैनिक आहारमें सम्मिलित करके इसके अत्यधिक स्वास्थ्य लाभोंका आनन्द उठा सकते हैं ।
घटक – टमाटरमें प्रचुर मात्रामें ‘कैल्शियम’, ‘फास्फोरस’ व ‘विटामिन-सी’ पाए जाते हैं । यद्यपि टमाटरका स्वाद अम्लीय (खट्टा) होता है; तथापि यह शरीरमें क्षारीय प्रतिक्रियाओंको जन्म देता है । इसके खट्टे स्वादका कारण यह है कि इसमें ‘साइट्रिक अम्ल’ और ‘मैलिक अम्ल’ पाए जाते हैं, जिसके कारण यह प्रत्यम्लके (एंटासिड) रूपमें कार्य करता है । टमाटरमें ‘विटामिन-ए’ अत्यधिक मात्रामें पाया जाता है । इसे लाल वर्ण (रंग) देनेवाला तत्त्व ‘लाइकोपीन’ है, जो स्वास्थ्यके लिए लाभप्रद है, कच्चे टमाटरसे पका टमाटर अधिक प्रभावी होता है ।
सेवन विधि –
१. वर्तमान कालमें टमाटर प्रत्येक घरमें शाक बनानेके लिए उपयोग किया जाता है । यह शाकको अधिक स्वादिष्ट बनाता है ।
२. टमाटरका रस निकालकर भी पिया जा सकता है, जो त्वचाके लिए लाभप्रद है ।
३. टमाटरका सूप भी बनाकर पिया जा सकता है ।  
४. टमाटरकी चटनी भी बनाई जा सकती है । बोतलबन्द चटनी स्वास्थ्यके लिए हानिकारक हो सकती है; क्योंकि उसमें संरक्षक तत्त्व (प्रिजर्वेटिव्स) होते हैं, जो स्वास्थ्यके लिए अत्यधिक हानिकारक हैं ।
५. टमाटरका प्रयोग सलादके रूपमें भी किया जाता है ।
टमाटरकी प्रकृति – इसकी प्रकृति ठंडी होती है; अतः यह शरीरको ठंडक पहुंचाता है ।
आज हम टमाटरके लाभोंके विषयमें जानेंगें –
* नेत्र दृष्टिमें लाभप्रद – टमाटरमें ‘विटामिन-सी और ए’की अधिक मात्रा आपकी दृष्टिमें सुधार करनेमें सहायक है और रात्रिके अंधेपनको रोक सकती है । टमाटरपर हुए एक शोधसे ज्ञात हुआ है कि इसमें विद्यमान ‘विटामिन-ए’, ‘मैक्युलर डीजेनेरेशन’के (चकत्तेदार अध: पतन) संकटको न्यून करनेमें सहायक है । चकत्तेदार अध: पतन एक गम्भीर और अपरिवर्तनीय नेत्र विकार है । टमाटर मोतियाबिंदके विकासको भी बाधित करता है । इसके अतिरिक्त, इसमें ‘फाइटोकैमिकल एंटीऑक्सिडेंट्स’ जैसे ‘जेक्सैथिन’, ‘ल्यूटिन’ और ‘लाइकोपीन’ विद्यमान होते हैं, जो नेत्रोंकी ज्योतिको किसी भी प्रकारकी क्षति पहुंचनेसे बचाते हैं ।
* त्वचाके लिए – टमाटरका नियमित सेवन त्वचाको कान्तिमान बनाता है । इसमें ‘लाइकोपीन’ नामक एक आक्सीकरण-रोधी तत्त्व उपस्थित होता है, जो त्वचाको सूरजकी हानिकारक विकिरणोंसे बचाता है । यह त्वचाकी पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) प्रकाशकी क्षतिसे रक्षा करता है, जो मुखपर रेखाएं और झुर्रियोंके मुख्य कारणोंमेंसे एक है । इसके अतिरिक्त मुखपर बडे रोम छिद्रोंको अल्प करनेके लिए टमाटरका प्रयोग किया जा सकता है । यह मुंहासे और त्वचापर चकत्ते या साधारण जलनेके निशानकी चिकित्सामें भी सहायता कर सकता है । त्वचापर टमाटरके गूदेको रगडनेसे यह त्वचाको कान्तिमान बनाता है ।
* अस्थियोंके (हड्डियोंके) लिए – टमाटरमें ‘विटामिन-के’ और ‘कैल्शियम’की उपस्थितिके कारण यह अस्थियोंके लिए एक अच्छा आहार है । दोनों ही तत्त्व अस्थियोंको सशक्त बनाने और उनकी क्षतिपूर्ति करनेके लिए लाभदायक हैं । इसमें निहित ‘लाइकोपीन’ नामक आक्सीकरणरोधी (एंटी-ऑक्सिडेंट) तत्त्व भी अस्थियोंको सशक्त बनानेके लिए जाना जाता है, जो ‘ऑस्टियोपोरोसिस’से लडनेका एक प्रभावी ढंग है । ऑस्टियोपोरोसिस एक रोग है, जो अस्थियोंके टूटने, विकलांगता और विकृतिका कारण बन सकती है ।
* बालोंकी समस्याओंके लिए – टमाटर बालोंको स्वस्थ, घना बनानेमें सहायक है । टमाटरमें ‘विटामिन’ (विशेष रूपसे ‘ए’) और लौहतत्त्व विद्यमान होते हैं, जो क्षतिग्रस्त और निर्जीव बालोंको एक नूतन जीवन प्रदान करके, उनमें एक नवीन कान्ति ले आते हैं, साथ ही, बालोंको सशक्त भी करते हैं । इसके अतिरिक्त, इसमें उपस्थित अम्ल बालोंके ‘पी.एच. स्तर’को सन्तुलित करनेमें सहायता करता है, जो बालोंके रूखे रंजकको दूर करके बालोंके प्राकृतिक रंगको बनाए रखनेमें सहायक है । खुजली और रूसीमें बालोंको धोनेके पश्चात टमाटरका रस लगाएं, इसे चारसे पांच मिनट तक छोड दें, तदोपरान्त ठंडे जलसे धो लें । नियमित रूपसे बालोंपर टमाटरका प्रयोग न करें; क्योंकि टमाटरकी अम्लता बालोंको सूखा व निष्प्राण बना सकती है ।

आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें (भाग – २४.२)


कल हमने टमाटरके बारेमें व इसके कुछ स्वास्थ्य लाभके विषयमें जाना था । आज हम टमाटरसे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें बताएंगें –
* रक्त-शर्कराके लिए – रक्त शर्कराके स्तरको न्यून करनेके लिए टमाटर मधुमेह रोगियोंके लिए एक उत्तम आहार है । इसमें अत्यल्प मात्रामें ‘कार्बोहाइड्रेट’ होता है, जो मूत्र शर्कराके स्तरको नियन्त्रित करनेमें सहायक है । यह ‘क्रोमियम’का भी एक बहुत अच्छा स्रोत है, जो रक्तमें शर्कराके स्तरके साथ-साथ ‘फाइबर’को नियन्त्रित करनेमें सहायक है । शोधोंके अनुसार, ‘फाइबर’ रक्त शर्कराके स्तरकी वृद्धि रोकनेमें सहायता करता है । कई अध्ययनोंसे ज्ञात हुआ है कि टमाटरमें उपस्थित आक्सीकरण-रोधी तत्त्व मधुमेहसे प्रभावित होनेवाले वृक्क (किडनी) और रक्तप्रवाहको भी सुरक्षा प्रदान करते हैं । इसके अतिरिक्त, टमाटर जैसा अल्प ‘कैलोरी’वाला भोजन, भार न्यून करनेका प्रयास कर रहे मधुमेह रोगियोंके लिए उपयोगी हो सकता है ।
* कर्करोगमें – राष्ट्रीय कर्करोग संस्थानके प्रकाशित अध्ययनसे ज्ञात हुआ है कि अधिक टमाटर खानेसे ‘प्रोस्टेट’ कर्करोगका संकट अल्प हो सकता है । टमाटरमें विद्यमान ‘लाइकोपीन’ नामक एक आक्सीकरण-रोधी तत्त्व फेफडे, उदर, ग्रीवा, मुख, ग्रसनी, गले, अन्नप्रणाली, कोलन (बृहदान्त्र), गुदा और डिम्बग्रन्थिके (गर्भाशयके) कर्करोगके संकटको भी न्यून कर सकता है । यदि टमाटरको जैतूनके तेलके साथ पकाया जाए तो इसके कर्करोग-विरोधी गुणोंके लाभ अधिकतम हो सकते हैं ।
* भार न्यून करनेमें – टमाटर शरीरका भार अल्प करनेमें भी सहायक है । इसमें अत्यल्प वसा पाई जाती है और साथ ही इसमें शून्य रक्तवसा होती है । इसमें प्रचुर मात्रामें जल और ‘फाइबर’ होता है; इसलिए यह अधिक भार बढाए बिना तीव्रतासे पेट भरनेमें सहायता करता है । यदि आप भार न्यून करना चाहते हैं, तो अपने आहारमें अधिकाधिक टमाटर सम्मिलित करें । आप इसे एक फलकी भांति कच्चा खा सकते हैं अथवा इसे सलाद और अन्य भोजनमें भी सम्मिलित कर सकते हैं ।
* निद्राके लिए – ‘पेन्सिलवेनिया पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन विश्वविद्यालय’में हुए एक अध्ययनके अनुसार, जो लोग ‘लाइकोपीन’का सेवन करते हैं, वे, उन लोगोंकी तुलनामें अच्छी नींदका आनन्द लेते हैं, जो इसका सेवन नहीं करते हैं और टमाटर ‘लाइकोपीन’का एक अच्छा स्रोत है । इसके अतिरिक्त, टमाटरमें ‘विटामिन-सी’ भी प्रचुर मात्रामें पाया जाता है और अपने दैनिक आहारमें ‘विटामिन-सी’के अधिक स्तरको सम्मिलित करना, शान्तिप्रदायक नींद दे सकता है । यदि आप ठीकसे नहीं सो पा रहे हैं, तो रातके भोजनके समय टमाटर ‘सूप’ या टमाटरयुक्त सलाद खानेका प्रयास करें ।
* उच्च रक्तचापमें – ‘पोटैशियम’से समृद्ध टमाटर, उच्च रक्तचापको अल्प करनेमें सहायक है । अधिक ‘सोडियम’का सेवन करना रक्तचाप बढा सकता है, जिससे ‘पोटैशियम’की न्यूनता हो सकती है । ‘पोटैशियम’ शरीरसे ‘सोडियम’को निकालनेमें सहायता करता है । ताजे टमाटरका केवल एक कप, ‘पोटैशियम’की दैनिक आवश्यकताका ११.४ प्रतिशत होता है; अतः अधिक टमाटरका सेवन उच्च रक्तचापसे लडने और विभिन्न हृदय स्थितियोंके संकटको अल्प करनेमें सहायक है । इसके अतिरिक्त टमाटरमें ‘लाइकोपीन’, ‘विटामिन-ए और सी’, ‘फाइबर’ और ‘कैरोटीनॉयड’ जैसे शक्तिशाली पोषक तत्त्व होते हैं, जो हृदय रोगके संकटको न्यून करनेके लिए मिलकर कार्य करते हैं ।
* सूजनमें –  ‘बायो-फ्लेवोनोइड्स’ और ‘कैरोटीनॉयड’ जैसे प्रज्वलनरोधी वाहककी उपस्थितिके कारण टमाटर वेदनाको न्यून कर सकता है । नियमित रूपसे मध्यम वेदनावाले लोगोंको प्रायः सूजन हो जाती है और टमाटरमें निहित सूजनको न्यून करने वाले गुण सूजन व जलनको अल्प करके बार-बार होनेवाली वेदनामें लाभ प्रदान करते हैं । एक अध्ययनमें पाया गया कि प्रतिदिन टमाटरका रस पीनेसे ‘टी.एन.एफ.-अल्फा’के (tumor necrosis factor alpha, TNFα) रक्तके स्तरको न्यून किया जा सकता है, जोकि ३४% तक सूजनका कारण बनता है । टमाटरके कुछ अन्य लाभों व प्रयोगमें सावधानियोंके विषयमें हम अगले लेखमें जानेंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं, स्वस्थ रहें (भाग – २४.३)


कल हमने टमाटरके विषयमें व इसके कुछ स्वास्थ्य लाभके विषयमें जाना था । आज हम टमाटरसे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें बताएंगें –
* मुक्त कणोंसे (free radicals) रक्षा – टमाटरमें विद्यमान ‘लाइकोपीन’ और ‘जीएक्सैंथिन’ जैसे कुछ ‘फ्लैवोनॉयड’ आक्सीकरणरोधी तत्त्व शरीरकी मुक्त कणोंसे रक्षा करते हैं ।
* रक्तवसामें – टमाटरमें वसा नहीं होती है अपितु इसके बीजोंमें ‘फाइबर’ अधिक मात्रामें होता है; अतः यह रक्तवसाको (कोलेस्ट्रॉलको) न्यून करनेके लिए जाना जाता है ।
* प्रतिरक्षा आहार – टमाटरको प्रतिरक्षा बढानेवाले आहारके रूपमें भी माना गया है । यह विशेषतया पुरुषोंकी सामान्य शीतप्रकोप और ‘इन्फ्लूएंजा’से रक्षा करता है । इसमें ‘लाइकोपीन’ और ‘बीटा कैरोटीन’ जैसे आक्सीकरणरोधी तत्त्व होते हैं, जो प्रतिरक्षा प्रणालीको सुदृढ करनेमें लाभप्रद हैं ।
* धूम्रपानके धुएंसे रक्षा – टमाटरमें उपस्थित ‘क्यूमरिक अम्ल’ और ‘क्लोरोजेनिक अम्ल’, सिगरेटके धुएंके प्रभावसे शरीरकी रक्षा करते हैं ।
* बच्चोंके विकासके लिए – बच्चोंके मानसिक और शारीरिक विकासके लिए टमाटर अत्यधिक लाभप्रद होता है । यदि पेटमें कृमि (कीडे) हो जाए तो प्रातःकाल खाली पेट टमाटरमें काली मिर्च मिलाकर खानेसे लाभ होता है ।
* गर्भवती महिलाओंके लिए – टमाटरमें प्रचुर मात्रामें ‘विटामिन-सी’ होता है, जो गर्भवती महिलाओंके लिए आवश्यक है । गर्भावस्थामें स्त्रियोंको टमाटरका दो सौ ग्राम रस प्रतिदिन पीना चाहिए, इससे गर्भावस्थामें रक्त अल्पता दूर की जा सकती है ।
सावधानियां – भारतीय व्यंजनोंका एक अभिन्न अंग टमाटर, स्वादके साथ-साथ कई स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करता है; परन्तु निर्दोष दिखनेवाले इस टमाटरकी कुछ सामान्य और कुछ गम्भीर हानियां भी हैं –
१. टमाटरमें ‘लायकोपिन’ नामक एक ‘फाइटोकेमिकल’ पाया जाता है, जिसका अत्यधिक सेवन प्रतिरक्षा प्रणालीके नियमित गतिविधियोंमें हस्तक्षेप कर सकता है और इसे धीमा कर सकता है; परिणामस्वरूप शरीर कई सामान्य सूक्ष्मजीवी (जीवाण्विक) (बैक्टीरियल), कवकीय (फंगल) और वायरल रोगोंसे स्वयंकी रक्षा करनेकी क्षमता खो देता है । इसके अतिरिक्त, यह शारीरिक क्षतिपूर्तिके लिए असमर्थ हो जाता है ।
२. टमाटर अनेक अम्लोंका एक समावेश है, जिसका अत्यधिक सेवन जठरान्त्र विकारोंको उत्पन्न कर सकता है ।
३. टमाटरके ‘लाइकोपीन’ घटकके परिणामस्वरूप ‘इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम’ (आई.बीए.स.) जैसे कुछ गम्भीर आंतोंकी समस्याएं हो सकती हैं ।
४. टमाटरके सेवनसे वृक्कमें (किडनीमें) पथरीके निर्माणको प्रोत्साहन मिल सकता है । टमाटरके बीज ‘कैल्शियम’ और ‘ऑक्सालेट’ यौगिकोंमें समृद्ध होते हैं । यदि आप पहलेसे ही गुर्देकी समस्याओंसे ग्रस्त हैं, तो इसका सेवन न करें ।
५. अध्ययनोंसे ज्ञात हुआ है कि टमाटरके बीजमें विद्यमान ‘लाइकोपीन’ पुरुष पौरुष ग्रन्थिमें असामान्यताएं उत्पन्न कर सकता है । यह वेदना, मूत्रमें कठिनाई और स्तम्भन दोष आदिका कारक है ।
६. टमाटरका अत्यधिक सेवन करनेसे शरीरसे दुर्गन्ध तक आ सकती है ! टमाटरमें ‘टरपीन्स’ नामक एक तत्त्व पाया जाता है । पाचन क्रियाके समय जब यह तत्त्व टूटता है, तब तनकी दुर्गन्धका कारण बनता है ।
७. टमाटरका लम्बी अवधिके लिए निरन्तर सेवनसे त्वचाका वर्ण (रंग) परिवर्तन हो सकता है ।
दुष्प्रभावोंकी कोई भी मात्रा आपको टमाटरसे दूर नहीं रखेगी; परन्तु इन दुष्प्रभावोंको ध्यानमें रखनेका प्रयास करें और टमाटरकी मात्राको सीमित करें !










आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २५.१)


प्याज (संस्कृत नाम – पलाण्डुः, यवनेश्ट, मुखदूशक; अंग्रेजी नाम – Onion; अन्य नाम – कांदा, डूंगरी) एक वनस्पति है, जिसका कन्द शाकके रूपमें प्रयोग किया जाता है । इसके पत्ते पतले, लम्बे और सुगंधराजके पत्तोंके आकारके होते हैं । भारतमें महाराष्ट्रमें प्याजकी कृषि सबसे अधिक होती है । प्याज भारतसे कई देशोंमें निर्यात होता है, जैसे कि नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, इत्यादि । प्याजकी कृषि कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश जैसे स्थानोंपर भिन्न-भिन्न समयोंपर होती है । प्याज मूलतः प्रत्येक भारतीय शाकमें स्वाद बढानेके लिए तडकेके रूपमें प्रयोग किया जाता है । इसकी गंध अधिक उग्र और अप्रिय होती है, जिसके कारण इसका अधिक व्यवहार करनेवालोंके मुख और कभी-कभी शरीर या स्वेदसे भी दुर्गन्ध निकलती है; इसलिए हिन्दुओंमें इसके भक्षणकी अति निषेध है । वैद्योंके अनुसार, इसके गुण प्रायः लहसुनके समान ही हैं । प्राचीन कालसे प्याजको उपचारात्मक मूल्यके लिए जाना जाता है । हैजा और प्लेगकी महामारीके समय प्याजको ऐतिहासिक रूपसे एक निवारक औषधिके रूपमें प्रयोग किया गया था ।
घटक – इसमें प्राकृतिक चीनी, ‘विटामिन-ए, बी-६, सी और ई’, ‘सोडियम’, ‘पोटैशियम’, लोहा, ‘कैल्शियम’, ‘मैग्नीशियम’, ‘मैंगनीज’, ‘फॉस्फोरस’, ‘जिंक’ और आहार फाइबर जैसे खनिज सम्मिलित हैं । यह ‘फोलिक अम्ल’का भी एक अच्छा स्रोत है ।
प्याजकी प्रकृति – इसकी प्रकृति ठंडी होती है; अतः ग्रीष्म ऋतुमें अधिक व्यंजनोंमें प्रयोग किया जाता है । इसका सेवन शरीरको ठंडा रखनेमें सहायक है ।
प्याजके प्रकार – मूलत: प्याजमें श्वेत प्याज, लाल प्याज, भूरे प्याज, हरे प्याज एवं लीक प्याज (पत्तोंवाला प्याज) होते हैं। लाल प्याज मुख्यतः शाकमें तडका लगानेके लिए प्रयोग होता है और श्वेत प्याज, हरा प्याज, लीक प्याज मुख्यतः कच्चा खानेके लिए प्रयोग होते हैं ।
भिन्न प्रकारके प्याजके मुख्य गुण – हरे प्याजमें मुख्य रूपसे ‘विटामिन-ए और सी’ मिलते हैं, जिसके कारण इसमें ऑक्सीकरणरोधी तत्त्व होते हैं । भूरे प्याजमें प्रज्वलनरोधी और जीवाणुरोधी गुण होते हैं । लाल प्याज मुख्यतः कर्करोग विरोधी एवं हृदयके लिए लाभप्रद होते हैं । श्वेत प्याजमें ‘सल्फर’ और ‘फाइबर’ प्रचुर मात्रामें होते हैं । लीक प्याजमें मुख्यतः ‘विटामिन बी-६’, ऑक्सीकरणरोधी एवं कर्करोग विरोधी तत्त्व होते हैं ।
प्याजके विषयमें कुछ और तथ्य व इसके लाभ अगले लेखमें जानेंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें ! (भाग – २५.२)


कल हमने प्याजके विषयमें जाना था, आज हम इसकी सेवन विधि व कुछ लाभके विषयमें जानेंगें –
सेवन विधि –
१. प्याजको बिना पकाए, कच्चा ही सलादके रूपमें खाया जा सकता है, इसमें नींबू व काला नमक मिलाकर खाया जा सकता है । श्वेत प्याज और हरा प्याज कच्चे खानेके लिए उत्तम माने गए हैं ।
२. प्याजका प्रयोग सूपमें भी किया जाता है ।
३. शाकको अधिक स्वादिष्ट बनानेके लिए प्याजका उपयोग तडकेके रूपमें किया जाता है ।
४. प्याजका प्रयोग अचार बनानेके लिए भी किया जाता है ।
५. पुलाव बनानेमें भी प्याजका प्रयोग होता है ।
६. प्याजके पकौडे भी बनाकर खाए जाते हैं ।
७. किसी भी प्रकारकी चटनीको स्वादिष्ट बनानेके लिए प्याजका उपयोग होता है ।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि शाक, सूप, पुलाव, चटनी व अचार आदिमें लाल प्याजका ही प्रयोग किया जाता है ।
आइए, अब प्याजसे होनेवाले लाभके विषयमें जानते हैं –
* मौखिक स्वास्थ्यके लिए : प्याजमें ‘थियोसल्फिनेट्स’ और ‘थियोसल्फोनेट्स’ होते हैं, जो दांतोंको खराब करनेवाले विषाणुओंको न्यून करनेमें सहायता करते हैं । प्याजको कच्चा खाना उत्तम माना जाता है; क्योंकि पकानेके पश्चात इनमें विद्यमान कुछ लाभप्रद यौगिक नष्ट हो जाते हैं । प्याजमें ‘विटामिन-सी’ होता है, जो दांतोंको स्वस्थ रखनेमें सहायता करता है । ऐसा भी माना जाता है कि प्याज दांतोंकी वेदनाको न्यून करता है । प्याजका उपयोग प्रायः दन्त-क्षय और मुखके संक्रमणको रोकनेके लिए किया जाता है । कच्चे प्याजको २ से ३ मिनट चबानेसे मुखके क्षेत्रके साथ-साथ गले और होंठके आसपासके स्थानोंमें विद्यमान रोगाणुओंको सम्भावित रूपसे नष्ट किया जा सकता है ।
* प्रतिरक्षा प्रणालीको सशक्त बनानेमें : प्याजमें अधिक मात्रामें ‘फाइटोकेमिकल्स’ उपस्थित होते हैं, जो शरीरके भीतर ‘विटामिन-सी’की वृद्धिका कार्य करते हैं । शरीरका रक्षा तन्त्र इसकी प्रतिरक्षा प्रणाली है और एक स्वस्थ प्रतिरक्षा प्रणाली शरीरको विषाणुओं, कवक और ‘वायरल’ संक्रमणके कारण होनेवाले रोगोंसे बचाती है । जब आप प्याजका सेवन करते हैं तो आपके शरीरमें ‘विटामिन-सी’की मात्रा बढ जाती है, जिसके कारण प्रतिरक्षा प्रणाली सशक्त हो जाती है; क्योंकि ‘विटामिन-सी’ प्रतिरक्षा प्रणालीको विषाक्त पदार्थों और विभिन्न प्रकारके बाहरी हानिकारक तत्त्वोंसे बचाता है । ये विषाक्त पदार्थ और बाहरी हानिकारक तत्त्व, रोगोंका कारण बन सकते हैं; अतः प्याज एक सशक्त प्रतिरक्षा प्रणाली बनानेमें सहायता करता है ।
* हृदयके लिए : प्याजमें ‘क्वार्सेटिन’ होता है, जिसमें हृदय रोगोंसे लडनेकी क्षमता होती है । यह आक्सीकरणरोधी और प्रज्वलनरोधी, दोनों गुण प्रदान करता है, जो हृदय स्वस्थ रखनेमें सहायक हैं । प्याज शरीरमें रक्तको जमनेसे रोकनेका कार्य करता है; इसलिए प्याजको ‘ब्लड थिनर’ भी कहा जाता है । यह लाल रक्त कोशिकाओंको एक स्थानपर एकत्र होकर जमनेसे रोकता है, इनके एकत्र होनेके कारण धमनियां बन्द हो सकती हैं । धमनियोंके बाधित होने और रक्तके थक्कोंके कारण हृदय विकार या हृदय रोग हो सकते हैं । इसके साथ-साथ यदि प्रतिदिन प्याज उपयोग करते हैं तो प्याज रक्तवसाको (कोलेस्ट्रॉलको) अल्प या पूर्णतया समाप्त भी कर सकता है ।
कल हम प्याजसे होनेवाले कुछ अन्य लाभके विषयमें जानेंगे ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २५.३)


कल हमने प्याजकी सेवन विधि व कुछ लाभके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें –
* मधुमेहके लिए – मधुमेह ऐसा रोग है, जो किसी भी समय, किसीको भी हो सकता है । यदि आप बाहरका भोजन, रिफाइंड तेल, चीनी आदि खाते हैं और गतिहीन जीवन शैली व्यतीत कर रहें हैं तो आपको मधुमेह होनेकी सम्भावना अधिक हो सकती है । प्याजमें ‘क्रोमियम’ होता है (क्रोमियम अधिकतर शाकमें नहीं पाया जाता है, जिनका हम दैनिक रूपसे प्रयोग करते हैं) । यह शरीरमें रक्त शर्कराके स्तरको नियन्त्रित करनेमें सहायक है और हमारी मांसपेशियों और शरीरकी कोशिकाओंको धीरे-धीरे ग्लूकोज देता है । मधुमेहमें सबसे बडी समस्या एक सुरक्षित रक्त शर्कराका स्तर बनाए रखना होती है; इसलिए प्याज खानेसे रक्त शर्कराके स्तरको नियन्त्रित करनेमें सहायता मिल सकती है, जो मधुमेह रोगियोंके लिए महत्वपूर्ण है । रक्त शर्कराको बनाए रखनेके लिए कच्चा प्याज खानेका परामर्श दिया जाता है । (आजके अधिकांश लोग शारीरिक श्रम नहीं करते हैं या नहीं करना चाहते हैं; इसलिए अब प्याजका सेवन करने हेतु सभीको कहा जाता है ।)
* मच्छरोंके काटनेसे (इन्सेक्ट बाईटसे) बचाए – मधुमक्खीके डंकसे होनेवाली वेदनाको अल्प करनेके लिए प्याजके रसका उपयोग कर सकते हैं । इसके साथ-साथ ताजा प्याजका रस या पेस्ट बिच्छूके डंक और अन्य कीटके काटनेपर बाहरी रूपसे भी प्रयोग किया जा सकता है । प्याजकी गंध कीडेको भगानेमें भी सहायक है ।
* कर्करोगमें (कैंसरमें) – प्याज कई प्रकारके यौगिकोंसे समृद्ध होता है, जो कर्करोग कोशिकाओंके विकास और प्रसारको सफलतापूर्वक रोकता है । ‘कुएरसेटीन’ (Quercetin) एक अत्यधिक शक्तिशाली आक्सीकरणरोधी यौगिक है, जो कर्करोगके प्रसारकी रोकथामके लिए जाना जाता है । प्याजमें यह यौगिक पर्याप्त मात्रामें होता है । ‘विटामिन-सी’ भी एक सशक्त आक्सीकरणरोधी यौगिक है, जिससे शरीरमें मुक्त कणोंकी (फ्री रेडिकल्सकी) उपस्थिति और प्रभाव अल्प हो सकते हैं ।
* कर्णवेदनामें (कान दर्दमें) लाभकारी – प्याजके रसकी कुछ बूंदें वास्तवमें कर्ण वेदनासे ग्रस्त व्यक्तियोंके लिए अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध हो सकती हैं । इसके लिए रूईके एक टुकडेके माध्यमसे कानमें हो रही सनसनाहटको दूर करनेके लिए प्याजके रसका उपयोग किया जा सकता है । इस उपायसे कर्णवेदनामें लाभ मिलता है । एक विवरणके अनुसार, अधिकतर लोग कानके रोगोंके लिए प्याजका प्रयोग करते हैं । उनका मानना है कि प्याजका रस कानमें डालनेसे वेदनामें लाभ मिलता है । इसके लिए प्याजको गर्म करें, उसका रस निकालें और उस रसकी कुछ बूंदोंको कानमें डालें ।
* त्वचाके लिए – प्याजमें ‘विटामिन-ए, सी और ई’ पाया जाता है । ये सभी ‘विटामिन’ त्वचाके स्वास्थ्यके लिए अत्यधिक लाभदायक होते हैं । ये सभी विटामिन मुक्तकणोंके कारण त्वचाकी आयु बढनेकी प्रक्रियाको रोकते हैं । प्याज एक शक्तिशाली रोगाणुनाशक (एंटीसेप्टिक) भी है; इसलिए यह त्वचाको विषाणुओंसे भी बचाता है । प्याजमें ‘विटामिन-सी’ पाया जाता है । सम्भवतः आपको ज्ञात न हो, परन्तु ‘विटामिन-सी’का सेवन त्वचाको कान्तियुक्त बनानेमें सहायक है । मधु (शहद) या जैतूनके तेलके साथ प्याजके रसका मिश्रण मुंहासेके उपचारके लिए सबसे उत्तम चिकित्सा है । प्याज सूजनको अल्प करनेवाली शाकोंमेंसे एक है; इसलिए प्याजमें उपस्थित सक्रिय यौगिक मुंहासेके कारण हुई लालिमा और सूजनको अल्प करनेमें भी सहायता कर सकते हैं ।
कल हम प्याजके सेवनसे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें बताएंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २५.४)


कल हमने प्याजके कुछ लाभोंके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें –
* केशके लिए : जूं और केशके झडनेसे छुटकारा पानेके लिए खोपडीकी खाल या ‘स्कैल्प’पर प्याजके रसका प्रयोग करें । यह केशके लिए अति उत्तम है । प्याजके रसको केशमें लगाएं और उंगलियोंसे मालिश करें, तदोपरान्त थोडे समयमें अपने केशको अच्छी प्रकारसे धो लें, इससे केशका झडना अल्प हो जाएगा । साथ ही, इससे रूसी भी दूर होगी और केशका प्राकृतिक रंग बना रहेगा । यह प्राकृतिक ‘कंडीशनर’के रूपमें भी कार्य करता है । केशमें प्याजका रस लगानेसे बाल घने बनते हैं । यह केशको शीघ्र लम्बा करनेमें भी सहायता करता है । एक अध्ययनमें, प्रतिभागियोंने प्याजके रससे कई दिनोंतक अपने केशको धोया और इस अध्ययनमें यह देखा गया कि दूसरे लोगोंकी तुलनामें उनके बाल अधिक घने और शीघ्र लम्बे हुए ।
* खांसीमें : प्याजके रस और मधुको (शहदको) समान मात्रामें मिला लें, यह मिश्रण खराब गले और खांसीके लक्षणोंको दूर कर सकता है ।
* एनीमियाके (रक्तअल्पताके) लिए : लौहतत्त्वकी न्यूनताके कारण ‘एनीमिया’ जैसे रोग होते हैं, जो कभी-कभी भयावह रूप भी ले सकते हैं । प्याज इसकी चिकित्सामें अत्यधिक सहायक हो सकता है; क्योंकि १०० ग्राम प्याजमें लगभग ०.२ ग्राम लोहा और ‘फोलेट’ पाया जाता है । ‘फोलेट’ एक ऐसा पादपरासायनिक (फाइटोकेमिकल) है, जो लोहेको शरीरमें अपनी पूरी क्षमताके साथ अवशोषित करनेमें सहायता करता है । ‘एनीमिया’की चिकित्साके लिए गुड और जलके साथ प्याज खानेसे अत्यधिक लाभ मिलता है; क्योंकि यह शरीरमें लोहे जैसे खनिजको बढाकर लाल रक्त कोशिकाओंके उत्पादनमें सहायता करता है; अतः आहारमें उचित मात्रामें प्याजके सेवनसे रक्तल्पताके लक्षणको रोका जा सकता है ।
* उदर रोगमें : प्याज रेशामें (फाइबरमें) समृद्ध है, जो प्राकृतिक रेचकके (नैचुरल लैक्सेटिव) रूपमें कार्य करता है और मल त्यागको सरल बनाता है । प्याजमें मिलनेवाले रेशे, आंतोंको स्वच्छ करने और शरीरसे अपशिष्टको हटानेमें सहायता करता है । प्याजमें ‘सैपोनिन’ भी पाया जाता है, जो उदर वेदना और ऐंठनमें लाभप्रद है । प्याजमें सूजनको अल्प करनेवाले और जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो उदर रोग और उससे सम्बन्धित ‘गैस्ट्रिक सिंड्रोम’में लाभप्रद है । इसके अतिरिक्त कोष्ठबद्धता (कब्‍जकी समस्‍या) होनेपर कच्चे प्‍याजका सेवन करना अत्यधिक लाभप्रद होता है । प्‍याजमें उपस्थित ‘फाइबर’ उदरके भीतर चिपके हुए भोजनको बाहर निकाल देता है, जिससे उदर स्वच्छ हो जाता है ।
* मूत्र पथके संक्रमणके लिए : पेशाबके समय जलनसे पीडित लोगोंके लिए प्याज अत्यधिक लाभ प्रदान कर सकता है । इस स्थितिसे पीडित लोगोंको ६ से ७ ग्राम प्याजके साथ उबला हुआ जल पीना चाहिए ।
* पथरीके लिए : प्याजके रसको शक्करमें मिलाकर शरबत बनाकर पीनेसे पथरीसे छुटकारा मिलता है । प्याजका रस प्रातः खाली पेट पीनेसे पथरी अपने-आप कटकर पेशाबके रास्तेसे बाहर निकल जाती है ।
* गठिया के लिए : गठियामें प्याज अत्यधिक लाभप्रद होता है । गठियामें सरसोंका तेल व प्याजका रस मिलाकर मालिश करें, लाभ होगा ।
* लू लगनेपर : ग्रीष्म ऋतुमें प्याज खानेसे लू नहीं लगती है । लू लगनेपर प्याजके दो चम्मच रसको पीना चाहिए और सीनेपर रसकी कुछ बूंदोंसे मालिश करनेपर लाभ होता है । एक छोटा प्याज साथमें रखनेपर भी लू नहीं लगती है ।
कल हम प्याजके कुछ अन्य लाभों व सावधानियोंके विषयमें जानेंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २५.५)




कल हमने प्याजके कुछ लाभोंके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभ व प्रयोगमें सावधानियोंके विषयमें जानेंगें –
प्याजके अन्य लाभ –
१. ‘टाइफाइड’ज्वरमें (आंत्र ज्वरमें) नित्य एकसे तीन चम्मच प्याजका रस अत्यधिक लाभ देता है । इससे रोगके विषाणु भी शीघ्र नष्ट होते हैं ।
२. सोते समय लाल प्याजके गोल बडे टुकडेको काटकर पैरोंके तलवोंपर रखकर ऊपरसे जुराबें पहन लें, यह प्रयोग शरीरसे सभी विषाक्त पदार्थोंको बाहर कर देता है ।
३. प्याज नेत्रोंके लिए अति उत्तम औषधि है । नेत्रोंमें डालनेवाली अनेक आयुर्वेदिक औषधियोंमें प्याजके रसका उपयोग होता है ।
४. एक प्याज अनिद्राके रोगकी चिकित्सा कर सकता है । यह निश्चित रूपसे अच्छी नींद देता है ।
५. प्याज पाचन-तन्त्रमें सुधार कर सकता है । यदि आपको कोई पाचन समस्या है, तो प्याज पाचन रसमें वृद्धिकर इसे ठीक कर सकता है ।
६. नाकसे रक्त प्रवाहित हो रहा हो तो कच्चा प्याज काटकर सूंघ लीजिए । इसके अतिरिक्त यदि बवासीरकी समस्या हो तो श्वेत प्याज खाना आरम्भ कर दें ।
७. प्याजके रस और नमकका मिश्रण मसूडोंकी सूजन और दन्त वेदनाको (दर्दको) न्यून करता है ।
८. पातालकोटके आदिवासी मधुमक्खी या ततैयाके काटे जानेपर घावपर प्याजका रस लगाते हैं । किसी अन्य कीटके काटनेपर भी प्याजका रस लगानेसे लाभ मिलता है ।
९. प्याजके बीजोंको सिरकामें पीसकर दाद-खाज और खुजलीमें लगानेपर शीघ्र लाभ मिलता है ।
१०. ‘हिस्टीरिया’का रोगी यदि मूर्च्छित हो जाए तो उसे प्याज कूटकर सुंघाएं, इससे रोगीको शीघ्र चेतना आ जाती है ।
११. इसके अतिरिक्त प्याज कई अन्य सामान्य शारीरिक समस्याओं जैसे – मोतियाबिंद, सिरमें वेदना और सांपके काटनेपर भी प्रयोग किया जाता है । प्याजका पेस्ट लगानेसे फटी एडियोंमें लाभ मिलता है ।
अब हम प्याजके प्रयोगमें सावधानियोंके विषयमें जानेंगें, जिसे ध्यानमें रखकर प्याजका पूर्ण लाभ लिया जा सकता है –
१. प्याज शर्कराके स्तरको अल्प करता है; इसलिए मधुमेहके रोगियोंको इसके सेवनसे पूर्व शर्कराकी जांच करनी चाहिए । यदि कोई अन्य औषधी/औषधि चल रही हो तो प्याजका सेवन चिकित्सीय परामर्शसे ही करें !
२. यद्यपि कई जठरान्त्र सम्बन्धी विकारोंकी चिकित्सामें प्याजका उपयोग किया जाता है, तथापि इसका अधिक मात्रामें उपयोग ‘गैस्ट्रिक जलन’, वमन या मितलीका कारण हो सकता है । यदि प्याजके उपयोगसे नियमित रूपसे ऐसी किसी भी स्थितिका अनुभव करते हैं, तो आप चिकित्सकसे परामर्श करें ।
३. त्वचापर प्याजका रस लगानेपर मुख या त्वचापर जलन और चकत्तेका अनुभव हो सकता है; इसलिए इसे अपनी त्वचापर लगानेसे पूर्व अपनी त्वचाके एक छोटेसे क्षेत्रपर परीक्षण करनेके लिए परामर्श दिया जाता है ।
४. गर्भवती महिलाओंको प्याज सीमित मात्रामें खाना चाहिए; क्योंकि इस समय जलन व खट्टी डकारोंकी समस्या हो सकती है ।
५. प्याजके अनियन्त्रित सेवनके कारण जलन हो सकती है । इसप्रकार, यह हृदय रोगियोंपर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न कर सकता है, ऐसी स्थितिमें त्वरित चिकित्साकी आवश्यकता होती है ।
६. इसकी तीव्र गन्धके कारण प्याजका उपयोग ‘सल्फर’की उच्च सामग्रीके लिए उत्तरदायी हो सकता है ।
७. प्याज ‘सिस्टोलिक और डायस्टोलिक रक्तचाप’को न्यून कर सकता है । इस प्रकार, जो रक्तचापके लिए औषधियां लेते हैं, उन लोगोंको इसके सेवनके समय सावधानी रखनी चाहिए ।
८. प्याजसे तीवग्राहिता/तीव्रग्राहिता/तीव्र प्रतिक्रिया (एलर्जी) होनेवाले लोगोंको ‘एस्पिरिन’ और प्याज नहीं लेना चाहिए; क्योंकि इससे प्याजकी संवेदनशीलता बढ जाती है ।
९. प्याजका सेवन करते समय किसी भी ‘लिथियम’की औषधि लेनेसे पूर्व चिकित्सकसे परामर्श करना उचित है ।
१०. प्याज न केवल खानेका स्वाद बढाता है, वरन खानेको पोषक तत्त्व भी प्रदान करता है; परन्तु अधिकतर लोगोंको प्याजके अधिक सेवनसे मुखसे दुर्गन्ध आनेकी समस्या होती है ।








आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २६.१)


लौकी (हिन्दी – घीया, दूधी, संस्कृत – कुम्माण्डः, अंग्रेजी – Bottle Gourd, Pumpkin) मात्र एक शाक ही नहीं, वरन कई रोगोंको दूर भगानेवाली औषधि है । लौकीमें लगभग ९६% मात्रा जलकी होती है और इसमें रेशे (फाइबर) भी प्रचुर मात्रामें पाए जाते हैं । इसकी सबसे अच्छी बात यह है कि ये अत्यधिक सरलतापूर्वक मिल जाती है । यह बेलपर उत्पन्न होती है और कुछ ही समयमें बहुत बडी हो जाती है । इसका उपयोग सहस्रों रोगियोंपर सलादके रूपमें अथवा रस निकालकर या शाकके रुपमें लम्बे समयसे किया जाता रहा है । यह गोल, लम्बी, बोतलके और छोटी किसी भी आकारकी हो सकती है । लम्बी तथा गोल दोनों प्रकारकी लौकी वीर्यवर्धक, पित्त तथा कफनाशक और धातुको पुष्‍ट करनेवाली होती है । यह एक अल्प मूल्यका शाक है, जिसे घरपर भी सरलतासे उगाया जा सकता है । लौकी ग्रीष्म ऋतुका शाक है और तेज धूप निकलनेपर ही बढता है ।
घटक –  लौकीके पौष्टिक गुण प्रति १०० ग्राम – लौकीमें जल ९६.१ %, ‘कार्बोहाइड्रेट’ २.५%, ‘प्रोटीन’ ०.२%, वसा ०.१%, रेशा ०.६%, ‘सोडियम’ १.८, ‘मैग्नीशियम’ ५.०, ‘पोटैशियम’ ८७.०, ‘कैल्शियम’ २०.२, तांबा ०.३, लोहा ०.७, ‘फॉस्फोरस’ १०, गंधक १०, ‘विटामिन बी-१’ ०.०३, ‘विटामिन बी-५’ ०.२ ‘विटामिन-सी’ ६.० प्रति १०० ग्राममें मि.ग्रा.की मात्रामें पाए जाते हैं ।
सेवन विधि – लौकीका निम्न प्रकारसे सेवन किया जा सकता है –
१. लौकीका शाक (सब्जी) बनाकर खाया जा सकता है, इसमें अधिक मसालोंका प्रयोग न करें ।
२. लौकीका रस (जूस) आयुर्वेदमें अत्यधिक प्रसिद्ध है । औषधीय गुणोंके लिए अधिकांश लोग इसके रसका प्रयोग करते हैं; परन्तु इसका उपयोग सावधानीपूर्वक ही करना चाहिए, लौकी कडवी नहीं होनी चाहिए ।
३. लौकीका हलवा बनाकर खाया जा सकता है ।
४. लौकीको कच्‍चा भी खाया जाता है ।
लौकीका रस (जूस) कैसे बनाएं – इसे बनानेके लिए सर्वप्रथम लौकीको अच्छेसे धोकर छील लें । इसके पश्चात कद्दूकससे इसे कस लें । इसके साथ ही कुछ पत्ते तुलसी और पुदीनाके डालकर इसे सिलबट्टेपर पीस लें । पिसी हुई लौकीको सूती वस्त्रमें डालकर रस निकाल लें, इसमें कालीमिर्च और सेंधा नमक मिला सकते हैं । जितना रस निकले, उतना ही इसमें जल मिला लें ।
ध्यान देने योग्य यह है कि लौकीके रसका सेवन सदैव ताजा ही करना चाहिए । लौकीका रस निकालते समय थोडासा चख लेना चाहिए; क्योंकि यदि रस कडवा लगे तो उसे कदापि न पिएं और पुनः बना लें । लौकीका रस भोजन करनेसे पूर्व या भोजनके एक घंटे पश्चात पिएं । इसे दिनमें दोसे तीन बार ले सकते हैं । कल हम लौकी व इसके रससे होनेवाले लाभोंके विषयमें बताएंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २६.२)


लौकी रसकी प्रकृति – लौकीकी प्रकृति शीतल (ठंडी) होती है; इसीलिए इसका सेवन ग्रीष्म ऋतुमें शरीरको शीतल रखनेके लिए उत्तम होता है ।
लौकी रसके सेवनका समय – वैसे तो लौकीके शाककी (सब्जीकी) ही भांति लौकीके रसका सेवन कभी भी कर सकते हैं; परन्तु यदि इसका सेवन प्रातःकाल खाली पेटमें किया जाए तो यह अधिक लाभप्रद होता है ।
लौकीका तेल बनानेकी विधि – तिल अथवा नारियलका तेल २५० ग्राम लें । सवा किलोग्राम लौकी (दूधी) लेकर उसको छोटे-छोटे टुकडोंमें काटकर पीसें और पतले वस्त्रसे छानकर उसका रस निकाल लें । तेलको एक पात्रमें धीमी आंचपर उबालें, जब हल्का उष्ण हो जाए, तब उसमें लौकीका निकाला हुआ रस धीरे-धीरे डाल दें और दोनोंको उबलने दें । जब सारा रस जल जाए, तब तेलको उतारकर ठण्डा होनेके लिए रख दें । ठण्डा होनेपर उसे एक बोतलमें भरकर रख लें । यह तेल बादाम रोगनका (बादामका तेल) अनुज (छोटा भाई) कहलाता है । सप्ताहमें एक-दो बार शरीरपर इस तेलकी मालिश करनेसे अत्यधिक लाभ होते हैं, इसे बालोंपर भी लगाया जा सकता है । संक्षेपमें, इससे स्मरणशक्ति बढती है, मस्तिष्कमें शीतलता रहती है और बल मिलता है ।
आइए, अब लौकी व इसके रससे होनेवाले लाभोंके विषयमें जानते हैं –
* जलकी न्यूनता – लौकीमें जलकी मात्रा सबसे अधिक होती है, जिसके कारण ये शरीरमें जलकी न्यूनताको दूर करनेमें सहायक सिद्ध होती है । कई बार ऋतु परिवर्तनके कारण वमन, अतिसार और ज्वरके कारण शरीरमें जलकी न्यूनता हो जाती है । ऐसेमें नारियल पानी और लौकीका रस मिलाकर पीते रहनेपर जलकी न्यूनता दूर हो जाती है ।
* हृदयको स्वस्थ्य रखनेमें – आजकल लोग अपने भोजनपर ध्यान नहीं देते हैं, जिसके कारण लगभग ७० प्रतिशत लोगोंको हृदय रोगका संकट बना रहता है । कुछ लोगोंमें यह आनुवंशिक रहता है और कुछ लोगोंको उनकी जीवन शैली और अनुचित आहारके कारण होता है । हृदयको स्वस्थ रखनेके लिए अन्य फलों और शाककी भांति लौकीका रस पी सकते हैं । लौकीमें जल, ‘विटामिन-सी, के’ और ‘कैल्शियम’ प्रचुर मात्रामें होता है । यह रक्तवसाके (कोलेस्ट्रॉलके) स्तरको न्यून करके हृदयको स्वस्थ बनाए रखनेमें लाभकारी होता है । इसमें वसाकी मात्रा शून्य होती है तथा ‘विटामिन-सी’ और ऑक्सीकरणरोधी तत्त्वोंसे (एंटी-ऑक्सीडेंटसे) परिपूर्ण लौकी हृदयके लिए लाभप्रद शाक है । एक शोधके अनुसार, ९० दिनोंतक प्रातः खाली पेट २०० मिलीग्राम ताजी लौकीका रस पीनेसे रक्तवसा न्यून हो जाती है । कल हम लौकी व इसके रससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २६.३)


‘भाग – २६.२’में हमने लौकीके रस, तेल व कुछ लाभोंके विषयमें जाना था । आज हम लौकीसे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।
* गर्भावस्थामें – गर्भावस्थाके समय लौकीके रस या शाकका प्रयोग करना लाभप्रद सिद्ध हो सकता है । लौकीका रस गर्भाशय सम्बन्धी विकारोंको दूर करनेमें सहायक है; इसलिए जिन महिलाओंको बार-बार गर्भपात हो जाता है, उन्हें कुछ दिवस लौकीका रस या शाक प्रयोग करना चाहिए । इससे गर्भाशय सशक्त होगा और साथ ही गर्भस्थ शिशुका पोषण होता है, शिशु स्वस्थ और उचित भारके (वजनके) साथ जन्म लेता है ।
* भार न्यून करनेमें – यदि आप शरीरके भारसे उद्विग्न हैं तो व्यायामके साथ खानपानपर विशेष ध्यान दें । इसके लिए नियमित व्यायामके पश्चात प्रतिदिन १०० मिलीलीटर लौकीका रस पीना चाहिए । लौकी अन्य पदार्थोंकी तुलनामें शीघ्रतासे भार न्यून करती है । लौकीको उबालकर नमकके साथ (सेन्धा नमक) लेनेसे भार कुछ ही दिनोंमें न्यून हो जाता है । इसके साथ ही लौकीका रस ‘विटामिन’, ‘पोटैशियम’, लौह, जल और ‘फाइबर’से परिपूर्ण होता है । लौकीके रसमें विद्यमान पोषक तत्त्व शरीरकी चयापचय दरमें वृद्धि करते हैं और पाचन तन्त्रको सुचारु रूपसे कार्य करनेमें सहायता करते हैं । इसमें ‘फाइबर’की मात्रा अधिक होती है, जिससे भूख नहीं लगती और पेट भरा-भरासा लगता है; अतः यदि नियमित रूपसे प्रातःकाल खाली पेट लौकीके रसका सेवन किया जाए तो यह भार न्यून करनेमें अत्यधिक लाभकारी सिद्ध हो सकता है ।
* त्वचाके लिए – यदि आप अल्प समयमें मुखको भीतर और बाहरसे कान्तिमान करना चाहते हैं तो इसके लिए नियमित लौकीका सेवन करना चाहिए । यह मुखको स्वच्छ, सुंदर और आकर्षक बनाती है । लौकीका रस जठरकी स्वच्छता करता है । इससे मुखपर धूप और प्रदूषणसे होनेवाले मुंहासे और धब्बोंसे छुटकारा मिलता है और त्वचा सुन्दर दिखाई देने लगती है । यदि ‘सनटैन’से (धूपकी कालिमासे) बचना चाहतें हैं तो दिनमें ३-४ बार ‘टैनिंग’वाले स्थानपर लौकीका रस लगाएं । लौकीके प्राकृतिक ब्लीचिंग तत्त्व ‘टैन’ त्वचाको हल्का करते हैं । लौकीका नियमित रूपसे सेवन रक्तको शुद्ध करता है । लौकी आंतरिक रूपसे शरीरको स्वच्छकर त्वचाको स्वस्थ, कान्तियुक्त और कोमल बनानेमें सहायता करती है । समान अनुपातमें खीरे और लौकीका उपयोग करके एक ‘फेस पैक’ बनाएं, यदि चाहें तो इसमें बेसन और दही भी मिला सकते हैं । इसे मुखपर लगभग बीस मिनटतक लगाकर रखें, तदोपरान्त उष्ण जलसे धो लें । यह त्वचाको पोषण देगा और इससे त्वचा कोमल भी रहेगी । प्रतिदिन प्रातःकाल एक गिलास लौकीका रस त्वचाके लिए लाभप्रद होता है ।
* रक्त शुद्धिमें  – लौकी रक्त शोधकका कार्य करती है । लौकीको उबालकर उसमें बिना नमक मिलाए, प्रत्येक दिवस खानेसे रक्त शुद्धि हो जाता है, साथ ही फुंसियां आदि भी अल्प हो जाएंगीं । आधा कप लौकीके रसमें मिश्री मिलाकर प्रातः और संध्याकालमें पीनेसे भी रक्त शुद्ध हो जाता है ।
* शीतलता प्रदान करनेमें – ग्रीष्म ऋतुमें लौकी और अधिक लाभप्रद है । लौकी शरीरकी उष्णता दूर करती है । मस्तिष्कमें या पेटमें गर्मीकी समस्या हो तो लौकी अत्यधिक लाभप्रद है । पैरोंके तलवोंपर लौकीके टुकडेको रगडनेसे शरीरमें शीतलता आती है ।
अगले भागमें (२६.४) हम लौकी व इसके रससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २६.४)


‘भाग – २६.३’में हमने लौकीके कुछ लाभोंके विषयमें जाना था । आज हम लौकीसे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें –
* अतिसारमें (दस्तमें) – लौकीका रायता अतिसार होनेपर लाभप्रद होता है । लौकीको कद्दूकससे कसकर थोडा जल डालकर उबाल लें, तदोपरान्त दहीको अच्छेसे फेटकर उसमें उबली हुई लौकीको हल्कासा निचोडकर मिला दें । इसके पश्चात इसमें सेंधा नमक, भूना जीरा, कालीमिर्चका चूर्ण मिलाकर सेवन करें ।
* पाचन सम्बन्धी रोगोंमें – आजके समयमें कोष्ठबद्धता (कब्ज) और पाचन सम्बन्धी रोग एक सामान्य समस्या बन चुके हैं, जो किसी भी मानवको हो सकते हैं । प्रतिदिन प्रातःकाल लौकीका रस पीनेका अभ्यास करें । इसमें विद्यमान ‘फाइबर’ पाचन तन्त्रको ठीक करते हैं । इसमें विद्युत-अपघट्य (इलेक्ट्रोलाइट्स) भी होते हैं, जो शरीरमें इसके सन्तुलनको बनाकर रखते हैं, जिससे अतिसारकी समस्या नहीं होती है । लौकीके रसका नियमित रूपसे और उचित मात्रामें सेवन करना जठरके (पेटके) लिए अत्यधिक लाभप्रद माना जाता है । यह पाचन तन्त्रको स्वस्थ रखनेमें सहायता करता है । लौकीके रसका यह लाभ मुख्य रूपसे लौकीमें विद्यमान ‘फाइबर’के कारण होता है । ‘फाइबर’ एक प्राकृतिक रेचकके रूपमें कार्य करता है । यह ‘बॉवेल मूवमेंट’में (आंतोकी गति) सुधारकर शरीरसे मल निकलनेमें सहायक है । यह कोष्ठबद्धतासे लाभ प्रदानकर हमारे समग्र पाचन स्वास्थ्यमें भी सुधार करता है । इसके साथ ही लौकीका रस अन्य पाचन समस्याओं जैसे उदर वेदना, आंतोकी गतिमें अवरोध (बॉवेल मूवमेंट), वायुविकार, पेट फूलना, सूजन आदिमें लाभ प्रदान करनेके लिए भी प्रभावी है । इसके अतिरिक्त लौकीमें लगभग ९२ प्रतिशत जल होता है । जल हमारे पाचन स्वास्थ्यको बनाए रखनेमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है; क्योंकि यह चयापचयमें सुधारकर पाचनमें सहायता करता है और हमारे आन्त्र आन्दोलनको भी सरल बनाता है ।
* बालोंके लिए – यदि आप बालोंके झडने और शीघ्र श्वेत (सफेद) होनेकी समस्यासे उद्विग्न हैं तो आप लौकीके रसका सेवन करके देखें, आपको अवश्य लाभ मिलेगा । लौकीके रसमें तिलका तेल मिलाकर बालोंकी जडोंमें अच्छी प्रकारसे लगानेसे बालोंका झडना और गंजापन एकदम दूर हो जाता है । आयुर्वेद अनुसार बालोंको श्वेत वर्णके होनेसे बचानेके लिए यह अत्यधिक लाभकारी उपाय है । रूसीके कारण आपके सिरकी त्वचा मृत परतोंसे भर जाती है । आंवला और लौकीके रसको समान मात्रामें मिलाकर पीनेसे रूसी अल्प होती है, साथ ही इस मिश्रणसे सिरपर मालिश करनेसे भी रूसी ठीक होती है । इसमें ‘विटामिन-बी’ होता है, जिससे आपके सिरकी त्वचापर ठंडा प्रभाव पडता है और यह बालोंके प्राकृतिक रंगको बनाए रखता है । लौकीके रसका नियमित रूपसे सेवन करनेसे बालोंके झडने जैसी समस्याओंको अल्प किया जा सकता है ।
* मानसिक तनावको दूर करे – आजके समयमें बच्चोंसे लेकर बुजुर्गतक प्रत्येक व्यक्ति तनावसे ग्रस्त है । यदि आप स्वास्थ्यके लिए लाभप्रद आहार नहीं लेते तो स्थिति और भी विकट हो सकती है । लौकीमें जलकी मात्रा अधिक होनेके कारण शरीर शीतल रहता है, जिससे तनावमें लाभ मिलता है । इसके मूत्रल (मूत्रवर्धक, ड्यूरेटिक), वेदना हरनेके गुण (सेडेटिव) और पित्तदोषनिवारक (एंटी-बिलियस) गुण शरीरको स्वस्थ अनुभव करने और तनाव मुक्त रखनेमें सहायता करते हैं ।
लौकीके रसमें तन्त्रिका संचारक कोलीन (एक जलमें घुलनशील पोषकतत्त्व, जो यकृत कार्य, मस्तिष्क विकास, तन्त्रिका कार्यमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है) (न्यूरोट्रांस्मिटर कोलीन) अधिक मात्रामें पाए जाते हैं, जो मस्तिष्कको सुचारु रूपसे कार्य करनेमें सहयता कर, तनाव जैसी समस्याओंको न्यून करनेमें लाभकारी होता है । लौकीका रस मस्तिष्ककी कोशिकाओंको अच्छेसे कार्य करनेमें सहायता करता है, जिससे मस्तिष्कपर दबाव नहीं पडता और अवसाद जैसी स्थितिमें सहायता मिलती है ।
* मूत्र संक्रमण करें दूर – शरीरमें सोडियमकी अधिकता होनेसे मूत्र संक्रमणकी (यूरिन इन्फेक्शन) समस्या बढ जाती है, जिससे मूत्र त्याग करते समय जलन होने लगती है । लौकीका रस इसमें अत्यधिक लाभप्रद सिद्ध होता है ।
अगले भागमें (२६.५) हम लौकी व इसके रससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २६.५)


‘भाग – २६.४’में हमने लौकीके कुछ लाभोंके विषयमें जाना था । आज हम लौकीसे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें –
* उच्च रक्तचापमें – नियमित एक गिलास लौकीका रस पीनेसे उच्च रक्तचापकी समस्यामें लाभ होता है । उच्च रक्तचापका विभिन्न प्रकारके हृदय सम्बन्धी समस्याओंसे सीधा सम्बन्ध है । लौकीका रस १५०-२०० मिलीग्राम प्रतिदिन पीनेसे रक्तमें रक्तवसाकी (कोलेस्ट्रॉलकी) मात्रा न्यून होती है और इससे उच्च रक्तचापकी समस्यामें लाभ मिलता है । लौकीके रसका यह लाभ लौकीमें विद्यमान ‘पोटैशियम’की अधिक मात्राके कारण है । पोटैशियम एक महत्त्वपूर्ण खनिज है, जो प्राकृतिक वाहिकाविस्फारकके (वासोडिलेटरके) रूपमें कार्य करता है । ‘वासोडिलेटर’ लघु रक्‍तवाहिकाओंको बडा करनेका कार्य करता है । यह हमारी रक्त वाहिकाओंको शिथिलकर (रिलैक्सकर) रक्त परिसंचरणमें सुधार करता है और इसप्रकार उच्च रक्तचापको नियन्त्रित करनेमें सहायता करता है । आहारमें अधिक सोडियमका उपभोग रक्तचापका कारण होता है और लौकीमें सोडियमका स्तर निम्न होता है; अतः इससे रक्तचाप नियन्त्रित होता है ।
* हृदयके लिए – भोजनमें तला हुआ, भारी खानेसे आज अत्यधिक लोगोंको हृदय रोगका संकट रहता है और कुछ लोगोंमें यह आनुवांशिक रहता है । हृदयको स्वस्थ रखनेके लिए अन्य क्षार युक्त फलों और शाकोंकी भांति लौकीका रस भी पी सकते हैं । लौकीमें जल, ‘विटामिन-सी’, ‘विटामिन-के’ और ‘कैल्शियम’ प्रचुर मात्रामें होते हैं । यह रक्तवसाके स्तरको न्यूनकर हृदयको स्वस्थ बनाए रखता है । इसमें रक्तवसाकी मात्रा शून्य होती है तथा ‘विटामिन-सी’ और ऑक्सीकरणरोधी यौगिकोंसे (एंटी-ऑक्सीडेंटसे) परिपूर्ण लौकी हृदयके लिए अत्यधिक लाभप्रद शाक है ।
* मधुमेहमें –  मधुमेहके रोगियोंके लिए लौकीका सेवन एक प्रभावकारी उपाय है । मधुमेहमें खाली पेट लौकीका सेवन करना उत्तम होता है । यदि चाहें तो लौकीका रस पी सकते हैं । इस रोगका सीधा सम्बन्ध शरीरमें अम्लके (एसिडके) बढे स्तरसे है । लौकी क्षारीय होनेके कारण शरीरमें अम्लके स्तरको न्यून करती है, जिससे इस रोगमें लाभ मिलता है ।
* यकृत (लिवर) रोगोंमें – अपौष्टिक भोजन अथवा मद्यपान करनेवाले लोगोंके यकृतमें शीघ्र सूजन आ जाती है । ऐसेमें यदि लौकीके रसमें, गिलोयका रस, धनिया, नींबू, अदरकका रस, थोडी हल्दी अथवा आम्बा हल्दीका रस और काला नमक मिलाकर पीते हैं तो इससे अवश्य ही लाभ मिलता है । यह यकृतकी सारी गन्दगीको बाहर कर देता है । इससे ‘हेपेटाइटिस’, ‘फैटी लिवर’, ‘लिवर सिरोसिस’, ‘एल्कोहॉलिक लिवर’ रोग और ‘लिवर कर्करोग’ जैसे रोग भी ठीक होते हैं ।
* कर्करोगमें – कर्करोगसे ग्रसित व्यक्तिके शरीरमें ये जीवाणु अत्यधिक मात्रामें बनने लगते हैं और शरीरकी स्व-प्रतिरक्षित (ऑटोइम्यून) व्यवस्था बन्द हो जाती है । उपरोक्त लौकीका रस (गिलोय, अदरक, हल्दी, नींबू, काला नमक आदि मिलाकर) कर्करोगके बढे हुए जीवाणुओंको नष्ट करता है और स्व-प्रतिरक्षित प्रणालीको आरम्भ करता है । यह यकृत और कर्करोगको ठीक करनेमें आपके घरका अचूक वैद्य है । इस रसको एकसे दो बार लें, भोजन कमसे कम या एक समय ही करें, अधिकसे अधिक ऋतुके फल और कच्चे शाक जैसे गाजर, मूली, चुकन्दर आदिका सेवन करें । यह तीव्रतासे रोगको नष्ट कर देगा ।
* अनिद्रा दूर करे – यदि आपको रातको नींद नहीं आती है तो लौकी इसमें लाभप्रद सिद्ध हो सकती है । लौकीके रसके साथ थोडे तिलके तेलको मिलाकर उसका सेवन करनेसे अनिद्राकी समस्या भी दूर हो जाती है ।
अगले भागमें (भाग – २६.६में) हम लौकी व इसके रससे होनेवाले कुछ अन्य लाभों व प्रयोगमें सावधानियोंके विषयमें बताएंगें।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २६.६)


‘भाग – २६.५’में हमने लौकीके कुछ लाभोंके विषयमें जाना था । आज हम लौकीसे होनेवाले कुछ अन्य लाभ व प्रयोगमें सावधानियोंके विषयमें जानेंगें –
लौकीके अन्य लाभ –
१. लौकीका रस व शाक क्षारीय गुणोंसे युक्त होनेके कारण उदरकी अम्लता, अपच और अन्य आंतोंके रोगोंमें अत्यधिक लाभप्रद है ।
२. लौकीका रस, इसमें विद्यमान खनिजोंके कारण, अस्थियोंको (हड्डियोंको) बलशाली बनाता है ।
३. लौकीका रस शरीरसे यूरिया व अन्य विषाक्त पदार्थोंको बाहर करता है, जिससे गठिया आदिमें लाभ मिलता है ।  
४. लौकीका रस पीनेसे या लौकीके और तुलसीके पत्तोंको पीसकर मस्सोंपर लगानेसे बवासीर रोगमें लाभ मिलता है ।
५. लौकीको उबालकर खानेसे नकसीरमें लाभ मिलता है ।
६. मासिकधर्ममें (पीरियड्समें) एक गिलास लौकीके रसका सेवन करनेसे अत्यधिक रक्तस्राव (हेवी ब्लीडिंग) नहीं होता है ।
७. जो पथरीकी समस्यासे जूझ रहे हैं, उनके लिए लौकीका सेवन अत्यधिक लाभप्रद है ।
सावधानियां – जैसे लौकीके लाभ अधिक हैं, वैसे ही इसका सेवन करना शरीरके लिए हानिकारक भी हो सकता है । इसके सेवनमें निम्न सावधानियां आवश्यक हैं –
१. लौकीका रस पीते समय इस बातका ध्यान रखना आवश्यक है कि इसमें किसी अन्य फल आदिका मिश्रण नहीं होना चाहिए ।
२. लौकीका रस बनानेके पश्चात और पहले उसे एकबार चखकर अवश्य देखें । यदि रस तिक्त (कडवा) हुआ तो उसका सेवन न करें; क्योंकि यह कई रोग उत्पन्न कर सकता है । इसप्रकारका लौकीका रस गर्भवती महिलाओंके लिए भी विषकारी होता है और इससे गर्भपात भी हो सकता है ।
३. खाली पेट लौकीके रसका सेवन करनेसे वायु और जी मिचलाने जैसी समस्याएं हो सकती हैं; परन्तु आवश्यक नहीं कि यह सभीको हो ।
४. जिन लोगोंको शीतप्रकोपकी (जुकाम या नजला) समस्या हो, वे लौकीका रस शीत ऋतुमें न पिएं, पीना ही हो तो सोंठ और कालीमिर्च डालकर सेवन करें ।
५. आरम्भमें लौकीका रस पीनेसे कोष्ठबद्धता (कब्ज) और उदरकी कोई समस्या हो सकती है; क्योंकि लौकीका रस पेटसे विकारोंको बाहर करता है, यदि आपके साथ इसप्रकारके कोई लक्षण हों तो घबराएं नहीं, कुछ समयके पश्चात ये लक्षण स्वतः ही ठीक हो जाएंगें ।








आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.७)


‘भाग – २७.६’में हमने करेलेके लाभोंके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगे ।
* पीलियामें – पीलियामें करेलेको पीसकर निकाले गए रसको दिनमें दो बार पिलाना चाहिए । यकृतसे सम्बन्धित रोगोंके लिए तो करेला रामबाण औषधि है । जलोदर रोग होनेपर आधा कप जलमें २ चम्मच करेलेका रस मिलाकर लाभ होनेतक प्रतिदिन तीन-चार बार सेवन करनेसे लाभ होता है । किसी भी यकृत रोगमें प्रत्येक दिवस एक गिलास करेलेका रस पीएं । यदि आप एक सप्ताहतक ऐसा करेंगे तो परिणाम स्वयं दिखने लगेंगे ।
* हृदय रोगमें – करेला हृदयके लिए अत्यधिक लाभप्रद होता है । यह हानिकारक रक्तवसाको (बैड कोलेस्ट्रॉलको) अल्प करता है, जिससे हृदयाघातका संकट अत्यधिक अल्प हो जाता है । साथ ही यह रक्तशर्कराके स्तरको भी अल्प करता है, जिससे हृदय स्वस्थ बना रहता है । इसमें ‘पोटैशियम’ प्रचुर मात्रामें होता है, जो अतिरिक्त ‘सोडियम’को सोख लेता है, जिससे रक्तचाप नियन्त्रित रहता है । इसमें लोहा और ‘फॉलिक अम्ल’ प्रचुर मात्रामें होते हैं, जिससे हृदयाघातका संकट अल्प होता है ।
* कर्करोग – करेलेमें विद्यमान ऑक्सीकरणरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) गुण शरीरकी मुक्त-कणोंकी (फ्री-रेडिकल्सकी)  क्षतिसे सुरक्षा करता है । करेलेका सेवन करनेसे ग्रीवा, पौरुष ग्रन्थि और स्तनके कर्करोगसे बचा जा सकता है । एक शोधके अनुसार करेला ‘ट्यूमर’के विकासपर भी रोक लगाता है । करेला अग्नाशयके कर्करोगके लिए भी उपयोगी है । इसके लिए करेलेको अपने दैनिक आहारमें सम्मिलित करें अथवा इसके रसका सेवन नियमित रूपसे करें ।
* करेलेके अन्य लाभ –
* करेलेमें ‘विटामिन-ए’ और ‘बीटा कैरोटीन’ उपस्थित होनेके कारण यह आयुसे सम्बन्धित चकत्तेदार (मैक्यूलर) अपघटन और मोतियाबिंद जैसे अन्य नेत्रोंकी समस्याओंको रोकनेमें सहायता करता है ।
* ‘एचआईवी’ रोगियोंके लिए करेलेके रसका नियमित सेवन उनकी स्थितिमें अत्यधिक सुधार ला सकता है ।
* करेलेका रस पाचनको सुधारता है । यह किण्वकका (एंजाइमोंका) उत्पादन बढाता है, जो पाचन प्रक्रियामें सहायता करते हैं ।
* नियमित उचित मात्रामें करेला खानेसे शरीरको ऊर्जा मिलती है, जिससे आलस्य अनुभव नहीं होता है ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.६)


‘भाग – २७.५’में हमने करेलेके लाभोंके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।
* पथरी रोगियोंके लिए – करेलेमें ‘मैग्नीशियम’ और ‘फॉस्फोरस’ जैसे तत्त्व होते हैं, जो पथरी बननेसे रोकते हैं । पथरी रोगियोंको दो करेलेका रस पीने और करेलेका शाक खानेसे लाभ मिलता है । इससे पथरी गलकर बाहर निकल जाती है । २० ग्राम करेलेके रसमें मधु (शहद) मिलाकर पीनेसे पथरी गलकर मूत्रके रास्ते निकल जाती है । इसके पत्तोंके ५० मिलीलीटर रसमें थोडी हींग मिलाकर पीनेसे मूत्र खुलकर आता है । गुर्देकी या मूत्राशयकी पथरीमें करेला पथरीको तोडकर बाहर निकालनेकी क्षमता रखता है ।
* बवासीरमें – करेलेमें निहित प्रदाहरोधी (एंटी-इंफ्लेमेटरी) एवं ऑक्सीकरणरोधी (एंटी-ऑक्सीडेंट) गुण, इसे बवासीरके लिए एक उत्तम आहार बनाते हैं । इसमें प्रचुर मात्रामें ‘फाइबर’ भी पाया जाता है, जो मल त्यागनेकी क्रियाको नियमित एवं सरल बना देते हैं । करेला बवासीर एवं बार-बार होनेवाली अजीर्ण (कब्ज) दोनोंसे छुटकारा दिलानेमें सक्षम है । एक चम्मच करेलेके रसमें शक्कर मिलाकर एक माहतक सेवन करनेसे रक्तवाली बवासीरमें लाभ मिलता है । २-३ चम्मच करेलेके पत्तेके रसमें एक गिलास छाछ मिलाएं और इसे प्रतिदिन प्रातःकाल एक माहके लिए खाली पेट पिएं । वेदना, जलन व सूजनसे लाभ पानेके लिए और रक्तस्रावको अल्प करनेके लिए करेलेकी जडका ‘पेस्ट’ (लेप) बाहरी बवासीरपर लगाएं ।
* रतौंधीमें – करेलेके रसमें पिसी काली मिर्च मिलाकर इस लेपको नेत्रोंके बाहरी भागपर लगानेसे रतौंधी दूर होती है । इसमें ‘विटामिन-ए’ अधिक होनेके कारण यह नेत्रोंकी ज्योतिके लिए अच्छा होता है । रतौंधीमें सन्ध्या होते ही एकाएक दिखना बंद हो जाता है और जैसे ही सूर्योदय होता है, नेत्र सामान्य हो जाते हैं । करेलेमें ‘विटामिन-सी’ भी प्रचुर मात्रामें पाई जाती है, जिसकारण इसका प्रयोग शरीरमें नमी बनाए रखता है ।
* उदरके कृमिमें (कीडोंमें) – एक बडा चम्मच करेलेकी पत्तियोंका रस एक गिलास छाछमें मिलाकर पीनेसे पेटके कीडोंसे छुटकारा मिल सकता है । यह यकृतको (लीवरको) शक्ति देता है तथा आंतोंमें कीडोंसे होनेवाले विकारोंसे भी सुरक्षा देता है ।
* पैरोंमें जलन – करेलेके पत्तोंके रसका मर्दन (मालिश) करनेसे लाभ होता है । इसके लिए करेलेके रसका भी प्रयोग किया जा सकता है । करेलेका रस या करेला पीसकर जले हुएपर लेप करनेसे ज

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.५)


‘भाग – २७.४’ में हमने करेलेके लाभोंके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।
* कान्तियुक्त त्वचाके लिए – यदि आप करेलेका सेवन नहीं करना चाहते हैं तो इसका मुखलेप (फेस-पैक) लगाकर त्वचाको कान्तियुक्त बना सकते हैं । करेलेमें ‘विटामिन-सी’, लोहा, ‘बिटा-केराटिन’, ‘पोटैशियम’, ‘कैल्शियम’के साथ-साथ अन्य कई पोषक तत्त्व होते हैं, जो त्वचाको विषमुक्त करते हैं और साथ ही कीटाणुओंसे रक्षा करते हैं । इसके लिए खीरा और करेलेका मिश्रण बनाएं और उसे मुख और गलेपर लगाकर १५-२० मिनटतक छोड दें, तदोपरान्त साधारण जलसे उसे धो लें । खीरेके स्थानपर हल्दी और नीमका प्रयोग भी अति गुणकारी है । हल्दी और नीममें प्रदाहरोधी (एंटी-इंफ्लेमैट्री) गुण होते हैं । करेला, हल्दी और नीमके पत्तोंका मिश्रण बनाएं और मुखपर १०-१५ मिनटतक लगाकर हल्के गुनगुने जलसे इसे धो लें । इसमें दूध भी मिला सकते हैं । दूधमें ‘लैक्टिक अम्ल’ होता है, जो त्वचापर गन्दगीको स्वच्छ करनेमें सहायता करता है । करेलेके रसके साथ घृतकुमारी (एलोवेरा) और १ चम्मच मधु मिलाकर भी मुखपर प्रयोग कर सकते हैं ।
* विसूचिकामें (हैजा, उल्टी-दस्तमें) लाभप्रद – करेलेके तीन बीजों और तीन काली मिर्चको घिसकर, जल मिलाकर पीनेसे वमन आदि बन्द हो जाते हैं । अम्लपित्तके रोगी, जिन्हें भोजनसे पूर्व वमन (उल्टियां) होता है, उन्हें करेलेके पत्तोंको सेंककर सेंधा नमक मिलाकर खानेसे लाभ होता है । इसके अतिरिक्त करेलेके रसमें थोडा जल और काला नमक मिलाकर सेवन करनेसे तुरन्त लाभ मिलता है । जलोदरकी समस्या होनेपर भी दो चम्मच करेलेका रस जलमें मिलाकर पीनेसे लाभ होता है ।
* भार न्यून करनेमें – करेला रक्तमें शर्कराके स्तरको नियन्त्रित रखता है, जो भार न्यून करनेमें सहायक है । करेला ‘इन्सुलीन’को कार्यरत करता है और जब इन्सुलिन कार्यरत होता है तो शर्करा मोटापेमें परिवर्तित नहीं होता है; परिणामस्वरूप भार न्यून होता है । इसके अतिरिक्त करेलामें वसा, ‘कैलोरी’ और ‘कार्बोहाइड्रेट’ अल्प मात्रामें होते हैं । यह ‘कार्बोहाइड्रेट्स’के उपापचयको बढाकर शरीरमें एकत्रित वसाकी मात्राको अल्प करता है । इसके अतिरिक्त इसमें घुलनशील फाइबर उच्च मात्रामें पाए जाते हैं । ‘फाइबर’ पचनेमें थोडा समय लेता है, जिससे पेट भरा-भरासा अनुभव होता है; अतः अधिक खानेका मन नहीं करता है । इसमें जल तत्त्वकी भी अधिक मात्रा होती है, जिससे भार न्यून होता है । २०१२ में प्रकाशित एक अध्ययनके अनुसार करेलेके बीजका तेल शरीरमें वसा संचयको अल्प करनेमें प्रभावी है । करेलेका रस और एक नींबूका रस मिलाकर प्रातः सेवन करनेसे शरीरमें उत्पन्न विषैले तत्त्व और अनावश्यक वसा अल्प होते हैं और मोटापा दूर होता है ।
* खांसीमें (कफमें) लाभप्रद – खांसी होनेपर करेलेका सेवन करना चाहिए । करेलेमें ‘फॉस्फोरस’ होता है, जिसके कारण कफवाली (बलगमवाली) खांसीमें लाभ होता है । एक चम्मच करेलेके रसमें तुलसीके पत्तोंका रस मिलाकर रात्रिमें पिएं और इसका एक माहतक सेवन करें । इसमें मधु (शहद) भी मिलाया जा सकता है ।
अगले ‘भाग २७.६’में हम करेलेसे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.४)



‘भाग – २७.३’में हमने करेलेकी पत्तियोंके कुछ प्रयोग व करेलेके लाभके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले कुछ अन्य लाभोंके विषयमें जानेंगें ।
* चर्म रोगमें – करेलेकी न केवल पत्तियां, वरन करेला भी चर्म रोगमें अत्यधिक लाभप्रद है । यह त्वचाके रोगोंके लिए उत्तरदायी कारणोंको शरीरके भीतरसे नष्ट करता है । इसमें विद्यमान ‘बिटर्स’ और ‘एल्केलाइड’ तत्त्व रक्त-शोधकका कार्य करते हैं । करेलेका शाक खाने और करेलेको पीसकर लेप बनाकर रातमें सोते समय लगानेसे फोडे-फुंसी और अन्य त्वचा रोग नहीं होते हैं । दाद, खाज, खुजली, विचर्चिका (सोरिएसिस) जैसे त्वचाके रोगोंमें करेलेके रसमें नींबूका रस मिलाकर पीना लाभप्रद होता है । प्रतिदिन प्रातःकाल और सन्ध्यामें आधा चम्मच करेलेका रस समान मात्रामें मधुके (शहदके) साथ लेनेसे यह रक्तविकारोंको दूर करता है । करेलेका रस कुछ दिवसतक आधा-आधा कप पीना भी लाभदायक है । करेलेमें ‘विटामिन-सी’ होता है, जो एक शक्तिशाली ऑक्सीकरणरोधी (एंटीऑक्सीडेंट) तत्त्व है । यह शरीरके वृद्ध होनेकी प्रक्रियाको धीमा करता है और झुर्रियोंको रोकनेमें सहायता करता है । करेला सूर्यकी पराबैंगनी (अल्ट्रावायलेट) किरणोंसे भी त्वचाकी रक्षा करता है ।
* रोग प्रतिरोधक क्षमतामें वृद्धि – करेलेमें विद्यमान खनिज और ‘विटामिन’ शरीरकी रोग प्रतिरोधक क्षमतामें वृद्धि करते हैं, जिससे कर्करोग (कैंसर) जैसे रोगसे भी लडा जा सकता है । प्रतिदिन एकसे दो कप करेलेकी चाय भी पी सकते हैं । करेलेकी चाय बनानेके लिए एक कप उष्ण जलमें ४-५ करेलेके टुकडे भीगनेके लिए छोड दें । पांच मिनट पश्चात इसका सेवन करें ।
* पाचन शक्तिमें वृद्धि –  करेला पाचन शक्तिमें वृद्धि करता है, जिसके कारण भूख बढती है । यदि पाचन शक्ति दुर्बल हो तो किसी भी प्रकार करेलेका नित्य सेवन करनेसे पाचन शक्ति सशक्त होती है । करेला पचनेमें हल्का होता है । यह शरीरमें वायुको बढाकर पाचन क्रियाको तीव्र करता है । प्रति १०० ग्राम करेलेमें लगभग ९२ ग्राम नमी होती है । साथ ही इसमें लगभग ४ ग्राम ‘कार्बोहाइड्रेट’, १५ ग्राम ‘प्रोटीन’, २० मिलीग्राम ‘कैल्शियम’, ७० मिलीग्राम ‘फॉस्फोरस’, १८ मिलीग्राम ‘आयरन’ तथा अल्प मात्रामें वसा भी होती है । ये सभी तत्त्व पाचन शक्तिको अच्छा करते हैं ।
* गठियामें – गठिया रोगका आरम्भ उदरसे होता है । सुननेमें विचित्र प्रतीत हो रहा होगा; परन्तु यही सत्य है । विषैले तत्त्व, जो गठियाके लिए उत्तरदायी हैं, वे अनियमित पाचनसे ही उत्पन्न होते हैं । जब हम पौष्टिक भोजन व समयसे भोजन नहीं करते हैं तो वह पचता नहीं है, जिससे भोजन अति लघु अणुओंमें टूट नहीं पाता है और जो बडे अणु रहते हैं, वे शरीरमें कहीं न कहीं रक्तप्रवाहको रोक देते हैं, जो गठियाका कारण बनता है । करेला पाचन तन्त्रको स्वस्थ करता है । इसमें ‘विटामिन बी-१,२,३’ प्रचुर मात्रामें है और यह शरीरको विषमुक्त करता है; परिणामस्वरूप गठिया ठीक होता है । करेलेका शाक खाने और वेदना वाले स्थानपर करेलेकी पत्तियोंके रससे मर्दन (मालिश) करनेसे लाभ मिलता है । करेले तथा तिलके तेलको समान मात्रामें लेकर प्रयोग करनेसे वात रोगीको लाभ मिलता है । करेलेको बैंगनके भर्तेके रूपमें भी प्रयोग किया जा सकता है । घुटनेकी वेदना होनेपर कच्चे करेलेको अग्निमें भूनकर, भर्ता बनाकर रूईमें लपेटकर घुटनेपर बांधे या जहां भी सूजन या वेदना है, वहां बांधे, इससे अवश्य ही लाभ मिलेगा । करेलेकी पट्टी बांधनेसे सूजन भी अल्प होगी और वेदना भी दूर होगी ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.३)


‘भाग – २७.२’में हमने करेलेकी सेवन विधिके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले लाभोंके विषयमें जानेंगे ।
करेलेकी पत्तियोंके कुछ प्रयोग –
* सिरमें वेदना – करेलेकी पत्तियोंको पीसकर माथेपर लगा लें, इससे सिरकी वेदनामें लाभ मिलेगा । सिरमें वेदनाके लिए करेलेकी पत्तियोंका उपयोग एक रामबाण औषधि है ।
* मुखके छाले – मुखके छालोंके लिए यह एक अचूक औषधि है । इसके लिए करेलेकी पत्तियोंका रस निकालकर उसमें थोडीसी मुल्तानी मिट्टी मिलाकर इसका पेस्ट बना लें और छालेवाले स्थानपर लगा लें । यदि मुल्तानी मिट्टी न हो तो सीधे करेलेकी पत्तियोंका रस रूईसे छालोंपर लगाएं और लारको बाहर आने दें । यदि करेलेकी पत्तियां न हों तो करेलेके ऊपरी छिलकेका रस भी निकालकर प्रयोग कर सकते हैं । इससे छालोमें अवश्य लाभ मिलेगा ।
* बच्चोंकी कब्जमें – करेलेकी पत्तियां तोडकर बच्चेकी जिह्वापर रख दें अथवा इनका रस निकालकर एक बून्द बच्चेकी जिह्वापर डालें, इससे पेटके समस्त रोगोंमें त्वरित लाभ मिलेगा ।
* त्वचा रोगमें – खुजली आदि किसी प्रकारके चर्मरोगमें करेले और नीमकी पत्तियोंको पीसकर प्रभावित स्थानपर लगाएं या उसके रससे हल्का मर्दन (मालिश) करें । इससे चर्मरोगमें अवश्य ही लाभ होगा ।
* फोडेमें – यदि फोडा अत्यधिक उद्विग्न कर रहा है तो करेलेके पत्तेको हल्का उष्णकर पुलटिस (प्रलेप लगाना) बांध दें, इससे फोडा पककर फूट जाएगा ।
अब करेलेके कुछ लाभोंके विषयमें जानेंगे –
* मधुमेहमें उपयोगी – करेला मधुमेहमें रामबाण औषधिका कार्य करता है । मधुमेहमें करेलेका रस और करेला किसी भी रूपमें खाना चाहिए; क्योंकि यह शरीरमें ‘इंसुलिन’के स्रावको बढाता है । ‘मोमर्सिडीन’ और ‘चैराटिन’ जैसे ‘एंटी-हाइपर ग्लेसेमिक’ तत्त्वोंके कारण करेलेका रस शर्कराके स्तरको मांसपेशियोंमें संचारित करनेमें सहायता करता है । मधुमेहके रोगीको करेला तथा मेथीदानाका प्रयोग प्रतिदिन करना चाहिए । करेलेसे बने चूर्णको प्रतिदिन प्रातःकाल खाली पेट एक चम्मच जलके साथ सेवन करनेसे लाभ मिलता है । एक-चौथाई कप करेलेके रसमें समान मात्रामें गाजरका रस मिलाकर पीना लाभप्रद होता है । १० ग्राम करेलेके रसमें ६ ग्राम तुलसीके पत्तोंका रस मिलाकर प्रतिदिन प्रातःकाल खाली पेट पीना लाभकारी है । करेला अन्य औषधियोंके समान शरीरके केवल एक अंगको ही लक्ष्य नहीं करता, वरन समूचे शरीरके ग्लूकोज चयापचयपर (मैटाबॉलिज्मपर) प्रभाव करता है । करेलेमें ‘इंसुलिन’की भांति कई रसायन पाए जाते हैं, जो रक्तशर्करा स्तरको न्यून करते हैं । एक टमाटर, २५० ग्राम खीरा तथा एक करेला, तीनोंका ५०-१०० मिलीलीटर रस मधुमेहमें अत्यधिक लाभप्रद है । ध्यान दें कि करेला मधुमेहमें लाभकारी है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि इसे मनानुसार अधिकसे अधिक पिएंगे तो लाभ देगा । प्रायः यह देखा गया है कि मधुमेहके रोगी इसे आवश्यकतासे अधिक पीते हैं; परन्तु पर्याप्त मात्रासे अधिक पीना हानिकारक है ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.३)


‘भाग – २७.२’में हमने करेलेकी सेवन विधिके विषयमें जाना था, आज हम इससे होनेवाले लाभोंके विषयमें जानेंगे ।
करेलेकी पत्तियोंके कुछ प्रयोग –
* सिरमें वेदना – करेलेकी पत्तियोंको पीसकर माथेपर लगा लें, इससे सिरकी वेदनामें लाभ मिलेगा । सिरमें वेदनाके लिए करेलेकी पत्तियोंका उपयोग एक रामबाण औषधि है ।
* मुखके छाले – मुखके छालोंके लिए यह एक अचूक औषधि है । इसके लिए करेलेकी पत्तियोंका रस निकालकर उसमें थोडीसी मुल्तानी मिट्टी मिलाकर इसका पेस्ट बना लें और छालेवाले स्थानपर लगा लें । यदि मुल्तानी मिट्टी न हो तो सीधे करेलेकी पत्तियोंका रस रूईसे छालोंपर लगाएं और लारको बाहर आने दें । यदि करेलेकी पत्तियां न हों तो करेलेके ऊपरी छिलकेका रस भी निकालकर प्रयोग कर सकते हैं । इससे छालोमें अवश्य लाभ मिलेगा ।
* बच्चोंकी कब्जमें – करेलेकी पत्तियां तोडकर बच्चेकी जिह्वापर रख दें अथवा इनका रस निकालकर एक बून्द बच्चेकी जिह्वापर डालें, इससे पेटके समस्त रोगोंमें त्वरित लाभ मिलेगा ।
* त्वचा रोगमें – खुजली आदि किसी प्रकारके चर्मरोगमें करेले और नीमकी पत्तियोंको पीसकर प्रभावित स्थानपर लगाएं या उसके रससे हल्का मर्दन (मालिश) करें । इससे चर्मरोगमें अवश्य ही लाभ होगा ।
* फोडेमें – यदि फोडा अत्यधिक उद्विग्न कर रहा है तो करेलेके पत्तेको हल्का उष्णकर पुलटिस (प्रलेप लगाना) बांध दें, इससे फोडा पककर फूट जाएगा ।
अब करेलेके कुछ लाभोंके विषयमें जानेंगे –
* मधुमेहमें उपयोगी – करेला मधुमेहमें रामबाण औषधिका कार्य करता है । मधुमेहमें करेलेका रस और करेला किसी भी रूपमें खाना चाहिए; क्योंकि यह शरीरमें ‘इंसुलिन’के स्रावको बढाता है । ‘मोमर्सिडीन’ और ‘चैराटिन’ जैसे ‘एंटी-हाइपर ग्लेसेमिक’ तत्त्वोंके कारण करेलेका रस शर्कराके स्तरको मांसपेशियोंमें संचारित करनेमें सहायता करता है । मधुमेहके रोगीको करेला तथा मेथीदानाका प्रयोग प्रतिदिन करना चाहिए । करेलेसे बने चूर्णको प्रतिदिन प्रातःकाल खाली पेट एक चम्मच जलके साथ सेवन करनेसे लाभ मिलता है । एक-चौथाई कप करेलेके रसमें समान मात्रामें गाजरका रस मिलाकर पीना लाभप्रद होता है । १० ग्राम करेलेके रसमें ६ ग्राम तुलसीके पत्तोंका रस मिलाकर प्रतिदिन प्रातःकाल खाली पेट पीना लाभकारी है । करेला अन्य औषधियोंके समान शरीरके केवल एक अंगको ही लक्ष्य नहीं करता, वरन समूचे शरीरके ग्लूकोज चयापचयपर (मैटाबॉलिज्मपर) प्रभाव करता है । करेलेमें ‘इंसुलिन’की भांति कई रसायन पाए जाते हैं, जो रक्तशर्करा स्तरको न्यून करते हैं । एक टमाटर, २५० ग्राम खीरा तथा एक करेला, तीनोंका ५०-१०० मिलीलीटर रस मधुमेहमें अत्यधिक लाभप्रद है । ध्यान दें कि करेला मधुमेहमें लाभकारी है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि इसे मनानुसार अधिकसे अधिक पिएंगे तो लाभ देगा । प्रायः यह देखा गया है कि मधुमेहके रोगी इसे आवश्यकतासे अधिक पीते हैं; परन्तु पर्याप्त मात्रासे अधिक पीना हानिकारक है ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.२)


‘भाग – २७.१’में हमने करेला, इसकी प्रकृति व इसकी आयुर्वेदिक व होम्योपैथिक औषधीय प्रयोगके विषयमें जाना था, आज हम इसकी सेवन विधि, करेलेके रस आदिके विषयमें जानेंगें ।
सेवन विधि –
१. करेलेका शाक बनाया जा सकता है ।
२. करेलेका रस बनाकर पिया जा सकता है ।
३. करेलेका चूर्ण बनाकर लिया जा सकता है ।
करेलेका शाक बनानेकी योग्य विधि – कई लोग करेलेको अत्यधिक तलकर शाक बनाते हैं, ताकि इसका कडवापन नष्ट हो जाए; परन्तु स्मरण रखें कि कडवापन नष्ट होनेसे हम शाकके समस्त गुणोंको नष्ट कर देते हैं । प्रकृतिने जिस वस्तुकी जैसी प्रकृति बनाई है, उसे उसके मूल रूपमें ही सेवन करें । प्रायः लोग करेलेके बाहरके छिलके व बीजोंको भी पूर्ण रूपसे हटा देते हैं और जो शेष रहता है, उसका शाक बनाते हैं, ऐसा कदापि न करें ! यदि करेला पका हुआ है तो उसके बीज निकाले जा सकते हैं और यदि ज्ञात है कि करेला किसी अच्छे स्थानसे नहीं आया है तो एक पात्रमें थोडा जल डालकर उसमें करेलेको कुछ समय उबाल लें । कडवाहट कुछ अल्प करनेके लिए इसे कुछ देर नमकके जलमें भिगोया जा सकता है; परन्तु इसे अधिक देरतक नमकके जलमें भीगोकर न रखें, तदोपरान्त इसे ऐसे ही या अत्यधिक अल्प मात्रामें सरसोंके तेलमें थोडा भून सकते हैं । हल्का लाल होनेके पश्चात इसकी कडवाहट अल्प हो जाएगी । इसके पश्चात इसमें औषधीय मसाले भरकर बना सकते हैं और सेवन कर सकते हैं; परन्तु कडवाहट इसका गुण है, यह स्मरण रखें !
करेलेका रस बनानेकी विधि – सबसे पहले छोटे करेले लें; क्योंकि छोटे करेले अधिक गुणकारी होते हैं, तदोपरान्त इसके टुकडे कर लें और इन टुकडोंको २० मिनटके लिए एक गिलास जलमें फूलनेके लिए छोड दें । फूलनेके पश्चात इन करेलेके टुकडोंको जल सहित पीस लें, साथमें एक टमाटर और एक खीरा मिलाया जा सकता है, इससे यह अधिक गुणकारी हो जाता है । अब इसका रस निकाल लें व इसे छानकर इसका सेवन करें ।
ध्यान दें कि पथरीके रोगी टमाटर न मिलाएं और इस करेलेके रसका एकबारमें ५०-१०० मिलीलीटर ही सेवन करें, इससे अधिक न लें ! इस रसको दिनमें २ बार (प्रातःकाल और सन्ध्यामें) ही लें और रात्रिमें इसका सेवन न करें ! इसमें स्वादानुसार नींबू, सेंधा नमक और काली मिर्च डालकर पीया जा सकता है ।
करेलेका चूर्ण – करेलेको काटकर सुखा लें । इसपर धूल आदि न गिरने दें । इसे सुखाकर पिस लें व एक पात्रमें भरें । यह चूर्ण अनेक रोगोंके लिए लिया जा सकता है ।
करेलेके पत्ते, पुष्प आदि सभी गुणकारी हैं । अगले ‘भाग २७.३’में हम करेले एवं इसके पत्तों आदिसे होनेवाले कुछ लाभोंके विषयमें जानेंगें ।

आयुर्वेद अपनाएं स्वस्थ रहें (भाग – २७.१)


करेला (वानस्पतिक नाम – मिमोर्डिका करन्शिया; अंग्रेजी नाम – BITTER GOURD; संस्कृत नाम – कारवेल्लम्, कटफला, उग्रकाण्ड) एक ऐसा शाक (सब्जी) है, जिसे कुछ लोग ही खाना पसन्द करते हैं; परन्तु करेलेमें जितने गुण हैं, वो सम्भवतः ही किसी शाकमें हों । करेला हरित वर्णका (हरे रंगका) होता है और यह बेलके रूपमें लगता है । इसके भीतर श्वेत वर्णके बीज होते हैं । यह एक ऐसा शाक है, जिसे कई औषधियोंमें प्रयोग किया जाता है ।  इसकी सतहपर उभरे हुए दाने होते हैं । करेलेका जन्म-स्थान उष्ण क्षेत्र अफ्रीका तथा चीन माने जाते हैं । भारतमें इसकी जंगली प्रजाति आज भी उत्पन्न होती है । करेलेकी कृषि समूचे भारतमें की जाती है ।
घटक – इसमें ‘प्रोटीन’, ‘कार्बोहाइड्रेट’, ‘फायबर’, ‘पोटैशियम’, ‘जिंक’, ‘मैग्नेशियम’, ‘फॉस्फोरस’, ‘कैल्शियम’, लोहा, तांबा और ‘मैंगनीज’ पाए जाते हैं । इसके अतिरिक्त इसमें ‘विटामिन – सी, ए और बी’की प्रचुर मात्रा होती है । ‘विटामिन-बी’ समूहके ‘फोलेट’, ‘थायमिन’, ‘नियासिन’, ‘राइबोफ्लेविन’, ‘पैण्टोथेनिक अम्ल’ आदि भी इसमें पाए जाते हैं । इनके अतिरिक्त इसमें ‘कॉलिन’, ‘ल्यूटेन’, ‘बीटा कैरोटीन’, ‘फिटो- न्युट्रिएंट्स’ तथा आक्सीकरणरोधी तत्त्व होते हैं । इसमें ‘फेनोलिक अम्ल’, ‘सैपोनिन’, ‘एल्कलॉइड’, ‘पेप्टाइड’ आदि तत्त्व होते हैं।
औषधियोंमें उपयोग  : होमिओपैथीकी औषधि ‘मोमर्दिया कैरेन्टिया’ करेलेसे बनाई जाती है । करेलेका उपयोग पारम्परिक चीनी औषधियोंमें (‘टी.सी.एम.’में) किया जाता है, जो मोटापा और मधुमेह ‘टाइप-२’के उपचारके लिए प्रयोग की जाती है । आयुर्वेदमें करेलेको सुखाकर इसका चूर्ण बनाकर औषधिके रूपमें प्रयोग किया जाता है ।
   प्रकृति व भिन्न प्रकारके करेले :  स्वस्थ रहनेके लिए खट्टे, मीठे, कसैले, तीखे रसकी आवश्यकता होती है, उसीप्रकार तिक्त (कडवे) रसकी आवश्यकता भी शरीरको होती है । स्वस्थ शरीरके लिए रसकी उचित मात्राकी आवश्यकता होती है । इसमेंसे किसी भी रसके अभाव होनेपर शरीरमें विकार उत्पन्न हो जाते हैं । करेला वात विकार, पाण्डु, प्रमेह एवं कृमिनाशक होता है । बडे करेलेके सेवनसे प्रमेह, पीलिया और आफरा(पेट फूलनेकी क्रिया)में लाभ मिलता है । छोटा करेला बडे करेलेकी तुलनामें अधिक गुणकारी होता है । करेला कुछ उष्ण, भेदक, हल्का, तिक्त व वातकारक होता है और ज्वर, पित्त, कफ रूधिर विकार, पाण्डुरोग (पीलिया), प्रमेह (गोनोरिया) और कृमि रोगका नाश भी करता है ।
‘भाग २७.२’में हम करेलेकी सेवन विधि व कुछ लाभोंके विषयमें जानेंगें ।
यह पौधा पेट की लटकती चर्बी, सड़े हुए दाँत, गठिया, आस्थमा, बवासीर, मोटापा, गंजापन, किडनी आदि 20 रोगों के लिए किसी वरदान से कम नही

आज हम आपको ऐसे पौधे के बारे में बताएँगे जिसका तना, पत्ती, बीज, फूल, और जड़ पौधे का हर हिस्सा औषधि है, इस पौधे को अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree) कहते है। अपामार्ग या चिरचिटा (Chaff Tree) का पौधा भारत के सभी सूखे क्षेत्रों में उत्पन्न होता है यह गांवों में अधिक मिलता है खेतों के आसपास घास के साथ आमतौर पाया जाता है इसे बोलचाल की भाषा में आंधीझाड़ा या चिरचिटा (Chaff Tree) भी कहते हैं-अपामार्ग की ऊंचाई लगभग 60 से 120 सेमी होती है आमतौर पर लाल और सफेद दो प्रकार के अपामार्ग देखने को मिलते हैं-सफेद अपामार्ग के डंठल व पत्ते हरे रंग के, भूरे और सफेद रंग के दाग युक्त होते हैं इसके अलावा फल चपटे होते हैं जबकि लाल अपामार्ग (RedChaff Tree) का डंठल लाल रंग का और पत्तों पर लाल-लाल रंग के दाग होते हैं।

इस पर बीज नुकीले कांटे के समान लगते है इसके फल चपटे और कुछ गोल होते हैं दोनों प्रकार के अपामार्ग के गुणों में समानता होती है फिर भी सफेद अपामार्ग(White chaff tree) श्रेष्ठ माना जाता है इनके पत्ते गोलाई लिए हुए 1 से 5 इंच लंबे होते हैं चौड़ाई आधे इंच से ढाई इंच तक होती है- पुष्प मंजरी की लंबाई लगभग एक फुट होती है, जिस पर फूल लगते हैं, फल शीतकाल में लगते हैं और गर्मी में पककर सूख जाते हैं इनमें से चावल के दानों के समान बीज निकलते हैं इसका पौधा वर्षा ऋतु में पैदा होकर गर्मी में सूख जाता है।

अपामार्ग तीखा, कडुवा तथा प्रकृति में गर्म होता है। यह पाचनशक्तिवर्द्धक, दस्तावर (दस्त लाने वाला), रुचिकारक, दर्द-निवारक, विष, कृमि व पथरी नाशक, रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला), बुखारनाशक, श्वास रोग नाशक, भूख को नियंत्रित करने वाला होता है तथा सुखपूर्वक प्रसव हेतु एवं गर्भधारण में उपयोगी है।
चिरचिटा या अपामार्ग (Chaff Tree) के 20 अद्भुत फ़ायदे :
1. गठिया रोग :

अपामार्ग (चिचड़ा) के पत्ते को पीसकर, गर्म करके गठिया में बांधने से दर्द व सूजन दूर होती है।

2. पित्त की पथरी :

पित्त की पथरी में चिरचिटा की जड़ आधा से 10 ग्राम कालीमिर्च के साथ या जड़ का काढ़ा कालीमिर्च के साथ 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम खाने से पूरा लाभ होता है। काढ़ा अगर गर्म-गर्म ही खायें तो लाभ होगा।

3. यकृत का बढ़ना :

अपामार्ग का क्षार मठ्ठे के साथ एक चुटकी की मात्रा से बच्चे को देने से बच्चे की यकृत रोग के मिट जाते हैं।

4. लकवा :

एक ग्राम कालीमिर्च के साथ चिरचिटा की जड़ को दूध में पीसकर नाक में टपकाने से लकवा या पक्षाघात ठीक हो जाता है।

5. पेट का बढ़ा होना या लटकना :

चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ 5 ग्राम से लेकर 10 ग्राम या जड़ का काढ़ा 15 ग्राम से 50 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम कालीमिर्च के साथ खाना खाने से पहले पीने से आमाशय का ढीलापन में कमी आकर पेट का आकार कम हो जाता है।

6. बवासीर :

अपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है।
खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के पानी के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं।

7. मोटापा :

अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।

8. कमजोरी :

अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।

9. सिर में दर्द :

अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।

10. संतान प्राप्ति :

अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होता है। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

11. मलेरिया :

अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।

12. गंजापन :

सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।

13. दांतों का दर्द और गुहा या खाँच (cavity) :

इसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभ पहुंचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा या खाँच को भरने में मदद करता है।

14. खुजली :

अपामार्ग के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों cavity में खुजली दूर जाएगी।

15. आधाशीशी या आधे सिर में दर्द :

इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।

16. ब्रोंकाइटिस :

जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।

17. खांसी :

खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 मिलीलीटर गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है।

18. गुर्दे का दर्द :

अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।

19. गुर्दे के रोग :

5 ग्राम से 10 ग्राम चिरचिटा की जड़ का काढ़ा 1 से 50 ग्राम सुबह-शाम मुलेठी, गोखरू और पाठा के साथ खाने से गुर्दे की पथरी खत्म हो जाती है । या 2 ग्राम अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पानी के साथ पीस लें। इसे प्रतिदिन पानी के साथ सुबह-शाम पीने से पथरी रोग ठीक होता है।

20. दमा या अस्थमा :

चिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है।
अपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है।

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