Wednesday 9 June 2021

पितृ दोष क्या होता है? जाने सरल तरीके से

 


पितृदोष_के_लक्षण_और_उपाय


बहुत #जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या?


पितृ गण #हमारे_पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है, पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।


#आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।


वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर #स्वर्ग_लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो #परमात्मा में समाहित होती है  जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता  मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।


पितृ दोष क्या होता है?

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 हमारे ये ही पूर्वज #सूक्ष्म_व्यापक_शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को #श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।


पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से #अंत्येष्टि_कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।


इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना , विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।


पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है


1.अधोगति वाले पितरों के कारण

2.उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण


#अधो_गति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।


#उर्ध्व_गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।


इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?


जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और #राहू_केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।


विभिन्न ऋण और पितृ दोष

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हमारे ऊपर मुख्य रूप से 5 ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।


#मातृ_ऋण👉  माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।


#पितृ_ऋण👉  पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है।


पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विभिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि।


#देव_ऋण👉 माता-पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं।


#ऋषि_ऋण👉 जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है  इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।


#मनुष्य_ऋण👉  माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की गाय आदि पशुओं का दूध पिया जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया।


लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन #संपत्ति_हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता  संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं।


ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।

पितरों का अतृप्त रहने का क्या कारण  है?

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कर्मों के अनुसार किसी भी आत्मा को गति मिलती है। देह छोड़ गए लोगों में से बहुत से अतृप्त होते हैं। कहते हैं कि अतृप्त आत्मा को सद्गति नहीं मिलती है और वह भटकता रहता है। जानिए अतृप्त रहने के 5 कारण।

 

1.इच्छाओं का रह जाना : व्यक्ति किसी भी उम्र या अवस्था में मरा हो उसकी इच्छाएं यदि बलवती है तो वह अपनी इच्छाओं को लेकर मृत्यु के बाद भी दुखी ही रहेगा और मुक्त नहीं हो पाएगा। यही अतृप्तता है। यह कोई नहीं समझता है कि इच्‍छाओं का कोई अंत नहीं। जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह अतृप्त होकर भटकता रहेगा। सभी को ययाति की कथा पढ़नी चाहिए या गीता का छठा व सातवां अध्याय पढ़ना चाहिए।


2.अकाल मृत्यु : अकाल का अर्थ होता है असमय मर जाना। पूर्ण उम्र जिए बगैर मर जाना। अर्थात जिन्होंने आत्महत्या की है या जो किसी बीमारी या दुर्घटना में मारा गया है। वेदों के अनुसार आत्मघाती मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को गमन कहते हैं और तब तक अतृत होकर भटकते हैं जब तक की उनके जीवन का चक्र पूर्ण नहीं हो जाता।


3.बुरे लोग : हर कोई अपनी जिंदगी में अनजाने में अपराध या बुरे कर्म करता रहता है। लेकिन वे लोग सचमुच ही बुरे हैं जो जानबुझकर किसी की हत्या करते, बलात्कार करते, हर समय किसी न किसी का अहित करते रहते हैं या किसी भी निर्दोष मनुष्‍य या प्राणियों को सताते रहते हैं। चोर, डकैत, अपराधी, धूर्त, क्रोधी, नशेड़ी और कामी आदि लोग मरने के बाद बहुत ज्यादा दुख और संकट में रहते हैं।


4.ज्ञान शून्य लोग : धर्म को नहीं जानना ही सबसे बड़ा अधर्म व अतृप्तता का कारण है। जिन्होंने उपनिषद और गीता का अध्ययन अच्छे से नहीं किया वे ज्ञान शून्य और बेहोशी में जीने वाले लोग अतृप्त होकर ही मरते हैं क्योंकि वे अपने मन से आत्मा, ईश्‍वर या ब्रह्मांड के संबंध में धारणाएं बना लेते हैं। ऐसे लोगों की भी कर्म गति तय करती है कि वे किस तरह का जन्म लेंगे। लेकिन इनमें जो अज्ञानी भक्त हैं वे बचे रहते हैं।


5.गलत धारणा या मान्यता : शास्त्र कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप क्या सोचते, क्या समझते, क्या बोलते और क्या सुनते हैं। फर्क इससे पड़ता है कि आप क्या करते, क्या मानते और क्या धारणा पालते हैं। क्योंकि यह चित्त का हिस्सा बन जाती है जो कि आपकी गति तय करती है। यदि आपने यह पक्का मान रखा है कि मरने के बाद व्यक्ति को चीरनिंद्रा में सोना है तो आपके साथ ऐसा ही होगा। हमारी चित्त की गति प्रारब्ध और वर्तमान के कर्मों पर आधारित होती है।


अंत में ज्ञान की बात : तीन अवस्थाएं हैं- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। उक्त 3 तरह की अवस्थाओं के अलावा आपने और किसी प्रकार की अवस्था को नहीं जाना है (ध्यान से चौथी अवस्था तुरिया प्राप्त की जाती है)। मरने के बाद आप सुषुप्ति से भी गहरी अवस्था में पहुंच जाएंगे फिर कुछ समय बाद स्वप्न शुरु होंगे और जब तक नया जन्म नहीं मिलता है तब तक स्वप्न चलता रहेगा। लेकिन यदि आप जाग्रत हो गए तो समझ पाएंगे कि आप मर गए। तब समस्याएं प्रारंभ होगी।


जगत 3 स्तरों वाला है- एक स्थूल जगत जिसकी अनुभूति जाग्रत अवस्था में होती है। दूसरा, सूक्ष्म जगत जिसका स्वप्न में अनुभव करते हैं तथा तीसरा, कारण जगत जिसकी अनुभूति सुषुप्ति में होती है।

 

आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब मरने के बाद सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, तब उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। मरने के पहले भी इस शरीर में प्रवेश किया जा सकता है।

 

 मरने के उपरांत नया जन्म मिलने से पूर्व जीवधारी को कुछ समय सूक्ष्म शरीरों में रहना पड़ता है। उनमें से जो अशांत होते हैं, उन्हें प्रेत और जो निर्मल होते हैं उन्हें पितर प्रकृति का निस्पृह उदारचेता, सहज सेवा, सहायता में रुचि लेते हुए देखा गया है।

 

  मरणोपरांत की थकान दूर करने के उपरांत संचित संस्कारों के अनुरूप उन्हें धारण करने के लिए उपयुक्त वातावरण तलाशना पड़ता है, इसके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। वह समय भी सूक्ष्म शरीर में रहते हुए ही व्यतीत करना पड़ता है। ऐसी आत्माएं अपने मित्रों, शत्रुओं, परिवारीजनों एवं परिचितों के मध्य ही अपने अस्तित्व का परिचय देती रहती हैं। प्रेतों की अशांति संबद्ध लोगों को भी हैरान करती हैं।

 

ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।


दुनिया से जाने के बाद आपके पितरों की कैसी रही होगी गति?


गति बहुत महत्वपूर्ण है। गति होती है ध्वनि कंपन और कर्म से। यह दोनों ही स्थिति चित्त का हिस्सा बन जाती है। कर्म, विचार और भावनाएं भी एक गति ही है, जिससे चित्त की वृत्तियां निर्मित होती है। योग के अनुसार चित्त की वृत्तियों से मुक्ति होकर स्थिर हो जाना ही मोक्ष है। लेकिन यह चित्त को स्थिर करना आम लोगों के बस की बात नहीं। ऐसे में वे जब देह छोड़ते हैं तो किस गति में जाते हैं आओ यह जानते हैं।

 

मरने के बाद आत्मा की तीन तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधोगति। इसे ही अगति और गति में विभाजित किया गया है।


1. अगति : अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है। अगति के चार प्रकार है- 1.क्षिणोदर्क, 2.भूमोदर्क, 3. अगति और 4.दुर्गति।

 

 

*क्षिणोदर्क : क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है।

*भूमोदर्क : भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।

*अगति : अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।


पितृों के रूष्‍ट होने के लक्षण

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पितरों के रुष्ट होने के कुछ असामान्‍य लक्षण जो मैंने अपने निजी अनुभव के आधार एकत्रित किए है वे क्रमशः इस प्रकार हो सकते है।


खाने में से बाल निकलना

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अक्सर खाना खाते समय यदि आपके भोजन में से बाल निकलता है तो इसे नजरअंदाज न करें


बहुत बार परिवार के किसी एक ही सदस्य के साथ होता है कि उसके खाने में से #बाल निकलता है, यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि वह व्यक्ति यदि रेस्टोरेंट आदि में भी जाए तो वहां पर भी उसके ही खाने में से बाल निकलता है और परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका मजाक तक उडाते है।


#बदबू_या_दुर्गंध

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कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है, यह भी नहीं पता चलता कि दुर्गंध कहां से आ रही है। कई बार इस दुर्गंध के इतने अभ्‍यस्‍त हो जाते है कि उन्हें यह दुर्गंध महसूस भी नहीं होती लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है अब जबकि परेशानी का स्रोत पता ना चले तो उसका इलाज कैसे संभव है


पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना

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मेरे एक मित्र ने बताया कि उनका अपने पिता के साथ झगड़ा हो गया है और वह झगड़ा काफी सालों तक चला पिता ने मरते समय अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की परंतु पुत्र मिलने नहीं आया, पिता का स्वर्गवास हो गया हुआ। कुछ समय पश्चात मेरे मित्र मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता को बिना कपड़ों के देखा है ऐसा स्‍वप्‍न पहले भी कई बार आ चुका है।


शुभ कार्य में अड़चन

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कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कोई #त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग डल जाता है। ऐसी घटना घटित होती है कि खुशी का माहौल बदल जाता है। मेरे कहने का तात्‍पर्य है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।


घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना

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बहुत बार आपने अपने आसपास या फिर रिश्‍तेदारी में देखा होगा या अनुभव किया होगा कि बहुत अच्‍छा युवक है, कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी शादी नहीं हो रही है। एक लंबी उम्र निकल जाने के पश्चात भी शादी नहीं हो पाना कोई अच्‍छा संकेत नहीं है। यदि घर में पहले ही किसी #कुंवारे_व्यक्ति_की_मृत्यु हो चुकी है तो उपरोक्त स्थिति बनने के आसार बढ़ जाते हैं। इस समस्‍या के कारण का भी पता नहीं चलता।


मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना

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आपने देखा होगा कि कि एक बहुत अच्छी प्रॉपर्टी, मकान, दुकान या जमीन का एक हिस्सा किन्ही कारणों से बिक नहीं पा रहा यदि कोई खरीदार मिलता भी है तो बात नहीं बनती। यदि कोई खरीदार मिल भी जाता है और सब कुछ हो जाता है तो अंतिम समय पर सौदा कैंसिल हो जाता है। इस तरह की स्थिति यदि लंबे समय से चली आ रही है तो यह मान लेना चाहिए कि इसके पीछे अवश्य ही कोई ऐसी कोई अतृप्‍त आत्‍मा है जिसका उस भूमि या जमीन के टुकड़े से कोई संबंध रहा हो।


#संतान_ना_होना

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मेडिकल रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य होने के बावजूद संतान सुख से वंचित है हालांकि आपके पूर्वजों का इस से संबंध होना लाजमी नहीं है परंतु ऐसा होना बहुत हद तक संभव है जो भूमि किसी निसंतान व्यक्ति से खरीदी गई हो वह भूमि अपने नए मालिक को संतानहीन बना देती है


उपरोक्त सभी प्रकार की घटनाएं या समस्याएं आप में से बहुत से लोगों ने अनुभव की होंगी इसके निवारण के लिए लोग समय और पैसा नष्ट कर देते हैं परंतु समस्या का समाधान नहीं हो पाता। क्या पता हमारे इस लेख से ऐसे ही किसी पीड़ित व्यक्ति को कुछ प्रेरणा मिले इसलिए निवारण भी स्पष्ट कर रहा हूं।


पितृ-दोष कि शांति के उपाय 

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1👉 सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान, कुआं बावड़ी तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए #श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।


2👉 भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही #भगवान_भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :


मंत्र : "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात


3👉 अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी #गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।


4👉 पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए #हरिवंश_पुराण का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।


5👉  प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।


6👉 सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।


7👉 अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।


8👉 पितृ पक्ष में #पीपल की परिक्रमा अवश्य करें अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा।


विशिष्ट उपाय :

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1👉 किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं।


2👉 यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी #मजबूर_व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें।


4👉 घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है  इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को #जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है।

ज्योतिष ज्ञान

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पितृ दोष है या नहीं स्वयं जानें

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हिन्दू धर्म में ज्योतिष को वेदों का छठा अंग माना गया है और किसी व्यक्ति की जन्म-कुण्डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्याक्ति पितृ दोष से पीडित है या नहीं क्यों कि यदि व्यक्ति के पितृ असंतुष्ट होते हैं,  वे अपने वंशजों की जन्म -कुण्डंली में पितृ दोष से सम्बंधित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।

भारतीय ज्योतिष-शास्त्रं के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-केतु या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्बंध हो, जन्म-कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से हो, तो इस प्रकार की जन्म-कुण्डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। कुंडली के जिस भाव में ये योग होता है, उससे सम्बंधित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं। 


उदारहण के लिए यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-केतु का अशुभ योग- प्रथम भाव में हो, तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं क्योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते है और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।


दूसरे भाव में हो, तो धन व परिवार से संबंधित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं। 


तृतीय भाव मे होने पर साहस पराक्रम में कमी भाई बहन से वैमनस्य।


चतुर्थ भाव में हो तो भूमि, मकान, सम्पत्ति, वाहन, माता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं।


पंचम भाव में हो तो उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं। 


छठे भाव मे होने पर गुप्त शत्रु बाधा पहुँचाते है कोर्ट कचहरी में पड़ने की संभावना बढ़ती है।


सप्तम भाव में हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्योवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है। 


अष्टम भाव मे यह योग बनने से पिता से मतभेद पैतृक संपत्ति की हानि।


नवम भाव में हो, तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्य की हानि करता है। 


दशम भाव में हो तो सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं।


एकादश एवं द्वादश भाव मे होने पर बने बनाए कार्य का नाश आय से खर्च अधिक होने पर आर्थिक उलझने बनती है।


उपरोक्तानुसार किसी भी प्रकार की ग्रह-स्थिति होने पर अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि व मानसिक रोगों से सम्बं धित अनिष्ट फल प्राप्तक होते हैं।


पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है

अधोगति वाले पितरों के कारण और उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण। अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, परिजनों की अतृप्त इच्छाएं, जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर, विवाहादि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय, परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं , परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।


उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते , परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति- रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है , फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाए,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता।


उपाय👉 ज्ञानी आचार्य द्वारा नारायनबली एवं पितृ गायत्री के सवालाख जप और इनका दशांश हवन कराने से लाभ मिलता है।


अन्य सामान्य उपाय 👉 

1. सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है। एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। 


2. शनिवार के दिन सूर्योदय से पूर्व कच्चा दूध तथा काले तिल नियमित रूप से पीतल के वृक्ष पर चढ़ाएं। 


3. सोमवार के दिन आक के 21 फूलों से भगवान शिव जी की पूजा करने से भी पितृ दोष की शान्ति होती  है।


4. अपने वंशजों से चांदी लेकर नदी में प्रवाहित करने तथा माता को सम्मान देने से परिजन दोष का समापन होता है।


5. परिवार के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र करके दान में देने तथा घर के निकट स्थित पीपल के पेड़ की श्रद्धापूर्वक देखभाल करने से दोष से छुटकारा मिलता है।


6. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में विधिवत इमली का बांदा लाकर घर में रखने से पितृ दोष दूर होते हैं।


7. अपने इष्टदेव की नियमित रूप से पूजा-पाठ करने तथा कुत्ते को भोजन कराने से दोष का समापन होता है।


8. हनुमान जी की पूजा करने तथा बंदरों को चने और केले खाने को दें। भ्राता दोष से मुक्ति मिल जाएगी।


9. ब्रह्मा गायत्री का जप अनुष्ठान कराने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है।


10. घर की बड़ी-बूढ़ी स्त्री का नित्य चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें। मातृ दोष दूर हो जाएगा।


11. उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ताड़ के वृक्ष की जड़ को घर ले आएं। उसे किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करने से पितृ दोष दूर होता है।


12. प्रत्येक मास की अमावस्या को अंधेरा होने पर बबूल के वृक्ष के नीचे भोजन खाने से पितृ दोष नष्ट हो जाता है।


13. गाय को पालकर उसकी सेवा करें। मातृ दोष से मुक्ति मिलेगी।


14. प्रतिदिन देशी फिटकरी से दांत साफ करने से भगिनी दोष समाप्त हो जाता है।


15. किसी धर्मस्थान की सफाई आदि करके वहां पूजन करें प्रभु ऋण से छुटकारा मिल जाएगा।


16. वर्ष में एक बार किसी व्यक्ति को अमावस्या के दिन भोजन कराने, दक्षिणा एवं वस्त्र देने से ब्राह्मïण दोष का निवारण होता है।


17. अमावस्या के दिन घर में बने भोजन का भोग पितरों को लगाने तथा पितरों के नाम से ब्राह्मïण को भोजन कराने से पितृ दोष दूर हो जाते हैं।यदि छोटा बच्चा पितृ हो तो एकादशी या अमावस्या के दिन किसी बच्चे को दूध पिलाएं तथा मावे की बर्फी खिलाएं।श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन पितरों को जल और काले तिल अर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं तथा पितृ दोष दूर होता है।


18. सात मंगलवार तथा शनिवार को जावित्री और केसर की धूप घर में देने से रुष्ट पितृ के प्रसन्न होने से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।


19. अपने घर से यज्ञ का अनुष्ठान कराने से स्वऋण दूर होता है।


20. प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर सूर्यदेव को नमस्कार करके यज्ञ करने से पितृ दोष से छुटकारा मिल जाता है।


21. नाक-कान छिदवाने से भागिनी दोष का निवारण होता है।


22. देशी गाय के गोबर का कंडा जलाकर उसमें नित्य काले तिल, जौ, राल, देशी कपूर और घी की धूनी देने से पितृ दोष का समापन हो जाता है।


23. बेटी को स्नेह करने तथा चांदी की नथ पहनाने से भगिनी दोष से मुक्ति मिल जाती है।


24. भिखारी को भोजन और धन आदि से संतुष्ट करें। भ्राता दोष दूर हो जाएगा।


25. पशु-पक्षियों को रोटी आदि खिलाने से सभी प्रकार के दोषों का शमन हो जाता है।

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🙏 पं


ण्डित उमादत

Tuesday 8 June 2021

कंकण सूर्य ग्रहण 10 जून 2021 कंहा कंहा दिखाई देगा

  


भारत मे अधिकांश भागो में दिखाई न देने के कारण इसका सूतक भारत में नही लगेगा।

यह है कंकण सूर्य ग्रहण 10 जून 2021 बृहस्पतिवार को दोपहर भारतीय स्टैंडर्ड टाइम अनुसार दोपहर 1:42 तथा शाम को 6:41 तक भूगोल पर दिखेगा यह कंकण ग्रहण यूरोप के अधिकतर देशों इटली दक्षिणी  रोमानिया सरबिया ग्रीस को छोड़कर उत्तरी एशिया अधिकतर चीन दक्षिण चीन नेपाल को छोड़कर अजवेकिस्ततान काजिस्थान आदि देशों मंगोलिया  रूस उतरी अमेरिका अधिकतर केनेडा पूर्वी अमेरिका वाशिंगटन आदि क्षेत्रों में तथा अटलांटिक महासागर में दिखाई देगा।  इस ग्रहण की कंकणाकृती केवल कनाडा के Nipiogon,ontaria,Quebec,Nunavut तथा रूस के  yukutia एवं  ग्रीनलेंड आदि क्षेत्रों में दिखाई देगा। 

भारत मे अधिकांश भागो में दिखाई न देने के कारण इसका सूतक भारत में नही लगेगा।

सिर्फ अरूणाचल प्रदेश उतरी राज्य जम्मू कशमीर के जिन  भागों में यह ग्रहण सूर्यास्त के समय थोड़ी देर 18 मिनट के लिए अत्यल्प ग्रास के साथ दिखाई देगा।ओर जगह नही।


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