Thursday 31 March 2022

जाने कैसा रहेगा यह नया बर्ष 2079






इस बार नल नामक संवत्सर रहेगा।जब भी कोई बर्ष में शुभ कार्य होगा नल नामक संवत्सर का प्रयोग किया जाएगा इस सम्बतसर का प्रयोग होगा। इस वक्त सृष्टि के संम्वत् अनुसार 19558 85123 (१९५५९९५१२३) यह सृष्टि का बर्ष चला हुआ है सृष्टि को इतना समय हो गया है तथा विक्रम संवत 2079 चला हुआ है शक संवत 1944 (१९४४)होगा और कलियुग का समय अभी 5122(५१२२) वर्ष बीत चुका है तथा कलियुग वर्तमान 5123 (५१२३) बर्ष चल रहा है। जबकि कलियुग की कुल अवधि 432000 (४३२०००) बर्ष है।कृष्ण संवत 5258(५२५८) चला है ।श्री बुद्ध संवत 2645 (२६४५)महावीर जैन संवत 2547(२५४७) और हिजरी सन 1443 (१४४३)अंग्रेजी का 2022(२०२२) खालसा का 323(३२३) सृष्टि के अनुसार सतयुग का प्रमाण 1728000(१७२८०००) बर्ष तथा त्रेता युग 1296 000 (१२९६०००)बर्ष द्वापर युग प्रमाण 864000(८६४०००) बर्ष कलयुग का प्रमाण 432000 (४३२०००)वर्ष का होता है।

नल नामक नव संवत्सर का फल 

2 अप्रैल 2022 तथा 20 गते चैत्र को पहले ही नल नामक संवत्सर प्रारंभ हो चुका होगा नया संवत का प्रवेश 1 अप्रैल 2022 ईस्वी शुक्रवार को दोपहर 11:54 पर रेवती नक्षत्र में होगा मिथुन लग्न में प्रवेश करेगा परंतु शास्त्र अनुसार नव संवत्सर तथा राजा अधिकार निर्णय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के बार आदि अनुसार ही किया जाता है इसलिए नल नामक संवत्सर संवत 2079 नवरात्रों का प्रारंभ 2 अप्रैल शुक्रवार 11.54 पर रेवती नक्षत्र में होगा नवरात्रि अर्थात 2 अप्रैल शनिवार से जब पाठ पूजन दान व्रत एक धार्मिक अनुष्ठान कर्मों के लिए संकल्प आदि का प्रयोग कार्यों में नल नामक संवत्सर तथा का प्रयोग होगा इस वर्ष राजा शनि मंत्री गुरु होगा। नल नामक संवत्सर में देश में दुर्भिक्ष यानी अकाल जन्य परिस्थितियां बनेगी फलस्वरूप आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में विशेष वृद्धि होगी केंद्रीय एवं राज्य सरकारों की दोषपूर्ण नीतियों के कारण परिस्थितियां अधिक खराब चिंताजनक बन सकती है। बच्चों में विशेष प्रकार के रोग फैलने का भय रहेगा।
 नल नामक संवत्सर से वर्ष में अग्निकांड अग्नि से संबंधित दुर्घटनाएं होने का भय अधिक रहेगा तथा वृष्टि मध्यम रहे अनाज के मूल्यों में वृद्धि होगी राजाओं में क्षुब्द्धता के कारण युद्ध जैसी स्थिति निरंतर बनी रहेगी । डकैती लूट मार आदि दुर्घटना में वृद्धि से जनसामान्य में भय उपस्थित रहेगा।

रोहिणी का वास (बर्षा)
रोहिणी का बास इस बार मैं सक्रांति का प्रवेश पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कालीन हुआ है अतः रोहिणी का बास समुंदर पर होने से वर्ष में वर्षा अधिक होगी! परन्तु उपयोगी कम होगी गेहूं धान आदि सभी प्रकार की पैदावार भी अच्छी होगी कुछ जगह पर बाढ़ आदि का प्रकोप भी रहेगा परंतु देश के अन्य भाग में धन मक्का और चावल फल फूलों की पैदावार अच्छी होगी समुंदर में पास होने के कारण और माली के घर में रहने से उठ धान्य चावल फूल पैदावार अच्छी होगी पर्वतीय क्षेत्र आदि के फूलों से उत्पादन अच्छा होगा परंतु इसके बावजूद कृषि उत्पाद जो है घी तेल दैनिक वस्तुएं दाले दूध सोना चांदी आदि के भाव तेज हो जाएंगे।
 इस प्रकार राजा का वाहन भैंसा होने से धन संपदा की हानि और वर्ष में विषम वर्षा होगी । अर्थात असमान बर्षा होगी। उचित वर्षा नहीं होगी या अत्याधिक वर्षा होगी और उपयोगी वर्षा की कमी ही रहेगी।
राजा शनि का फल-
राजा शनि का फल इस बार राजा शनि होने से वर्ष में उपद्रव युद्ध दंगों मारकाट के लिए अनेक देशों में अनुकूल वातावरण बनेगा कहीं भूमंडल पर विरोधी देशों के मध्य टकराव युद्ध जन्य स्थितयां बनेगी दुर्भिक्ष अकाल की स्थिति बनेगी जनहानि किसी प्रकार से विशेष अथवा देश लोग में दुर्भिक्ष रोग आदि से प्राकृतिक प्रकोप का सामना करना पड़ेगा राजा शनि होने से कठोर विचित्र नियमों का सरकारी तंत्र संसाधनों के ऊपर लागू करेगी । जौ मक्का धन चना तेज हो जाएंगे और अधिकांश लोग वाद-विवाद मुकदमे का निर्णय लेते रहेंगे।

मंत्री गुरु का फल
 संवत्सर में गुरु मंत्री होने से अनाज गेहूं चावल धान की पर्याप्त मात्रा में लाभकारी रहेंगे सरकार लोक कल्याण लोक अनुभव से बहू योजनाएं क्रियान्वित होगी और मक्का हल्दी   व्यापार में लाभ।
फसल शुक्र का फल
धान्येश शुक्र का फल धन स्वामी शुक्र होने से जैसे जौ मक्का गन्ना गेहूं उत्पादन कम होगा प्राकृतिक प्रकोप असाममयिक वर्षा के कारण समय पूर्व ही खराब हो जाएंगी फल स्वरुप सर्व प्रकार का अनाज उड़द चने आदि दाले काली मिर्च से छोटी इलाइची लोंग हल्दी आदि गरम मसाले उपयोगी वस्तुएं सब्जी हरा चारा खिलाने और पशु चारा तेज भाव हो जाएंगे उपयोगी वर्षा की कमी रहे गाय भैंस और आयोग से दूध कम प्राप्त होगा पड़ता दूध घी और गोरस महंगे हो जाएंगे
मेघ का स्वामी बुध
वर्षा का स्वामी बुध होने से इस इस बार जल पर्याप्त वर्षा तो होगी पर उपयोगी नहीं होगी गेहूं जो दाने पशु चारा घास आदि की यथेष्ट पैदावार होगी तथा दूध गुड़ आदि रस आदि उपलब्ध की पर्याप्त मात्रा में रहेगी ब्राह्मण लोग पाठ का कीर्तन यज्ञ आदि धार्मिक कृत्य करने में विशेष रूचि रखेंगे और विशिष्ट वर्ग के लोग अनेक प्रकार के सूख से संपन्न होंगे।

फल का स्वामी मंगल का फल
 इस बार फल का स्वामी मंगल होने से फल फूल वनस्पतियों औषधियों की पैदावार कम होगी लोगों में अनेक प्रकार के कृष्ण लोगों से कष्ट भय हो राष्ट्र अध्यक्षों में परस्पर संघर्ष टकराव तनाव युद्ध की स्थिति बने।



इस बार चैत्र नवरात्रि कब से जाने

  




इस बार 2 अप्रैल 2022 तथा विक्रमी संवत २०७९ को प्रथम नवरात्रा 20 गते चैत्र शनिवार से शुरू होगा जोकि नल नामक संवत्सर से शुरू होगा इस बार 9 नबरात्री  पूरी तरह से लिए जाएंगे उसमें पहले दिन शनिवार के दिन घटस्थापना करना चाहिए उसके पश्चात 9 दिन मां भगवती का ध्यान करते हुए पूजन करना चाहिए। 


 इस बार 2 अप्रैल 2022 तथा 20 गते चैत्र शनिवार से नवरात्रि शुरू हो रहे है। प्रतिपदा को शुभ मुहूर्त में संवत्सर पूजन घट स्थापन ताम्र या मिट्टी के पात्र में जो गेहूं आदि के बीज बोना ओंकार सहित श्री गणेश विष्णु शिव दुर्गा आदि पंचदेव देवों की पूजा अर्चना करनी चाहिए


 प्रतिपदा 2अप्रैल 2022 चैत्र  नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं इस दिन श्री दुर्गा माता के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलित करके श्री दुर्गा पूजन कलश स्थापन प्रमुख देवी देवताओं का आवाहन पूजन आदि के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करना चाहिए।2 अप्रैल शनिवार को  कलश की स्थापना करनी चाहिए ।


                                    देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । 

                                    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: । ।

नवरात्रि  एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है नौ  रातें || नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों -महालक्ष्मी माँ सरस्वती और माँ दुर्गा के नौ  स्वरूपों की पूजा की जाती है ||

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी ,चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता ,कात्यायनी  कालरात्रि, महागौरी ,सिद्धिदात्री ॥


 ।इस दिन स्नान ध्यान आदि के बाद शुद्ध पात्र में रेत मिट्टी डालकर मंगल पूर्वक जो गेहूं सप्तधान्य के बीज वपन करने चाहिए तथा श्री दुर्गा जी की मूर्ति के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलन एवं मंत्र उच्चारण सहित घट स्थापन करना चाहिए फिर षोडशोपचार पूजन सहित श्री दुर्गा पूजन करके संकल्प पूर्वक प्रतिपदा से नवमी तिथि तक देवी के सम्मुख दीप जलाकर श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए प्रतिपदा के दिन  ॥       

 अश्वनी नक्षत्र में मंगलवार प्रात: कलश स्थापना करना शुभ रहेगा। 



 नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि

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शारदीय नवरात्रि का पर्व भारत में हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है।


इस वर्ष 2022 में  नवरात्रों का आरंभ 2अप्रैल शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगा। दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को

2 अप्रैल  (शनिवार) के दिन की जाएगी।


नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है।


नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं. दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन,दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या कलाप संपन्न किए जाते हैं।


चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है।व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है।


नवरात्रि में माता दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर तिथि का एक विशेष महत्व होता है और माता के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। यह समय सिद्धि प्राप्ति के लिए भी उचित माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इन दिनों में माता के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो सकती है। 


भक्तगण माता को प्रसन्न करने के लिए सभी अपने-अपने तरीके से प्रयास करते हैं। कोई नौ दिन का उपवास रखता है,

तो कोई चप्पल नहीं पहनता। साथ ही अनेक स्थानों पर गरबों का आयोजन भी किया जाता है।माता की भक्ति में ये दिन कब गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता। दसवें दिन माता की मूर्ति को नदी में विसर्जित किया जाता है और यह प्रार्थना की जाती है कि माता सबके जीवन के दु:खों का अंत करें और सुख-शांति लाएं। यदि देखा जाए तो यह पर्व मन,वाणी व व्यसनों पर काबू करने की सीख देता है।

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 चैत्र नवरात्री 2022संवत 2079 घटस्थापना 

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इस दिन सूर्योदय से प्रात: प्रतिपदा तिथि में  कलश स्थापना के लिये उपयुक्त नक्षत्र अश्विनी  रहेगा ॥


नवरात्र तिथि

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प्रतिपदा तिथि   👉 घटस्थापना,चन्द्रदर्शन, शैलपुत्री, पूजा   2अप्रैल  शनिवार नवरात्रि    

द्वितीया   तिथि   👉  ब्रह्मचारिणी पूजा 3अपैल रविवार 

तृतीया तिथि      👉 चंद्रघंटा     4 सोमवार

चतुर्थी तिथि      👉 कुष्मांडा     5 मंगलवार

पंचमी तिथि       👉 स्कंदमाता    6 बुधवार

षष्ठी तिथि 👉 कात्यायनी, 7अप्रैल  वीरवार

सप्तमी तिथि     कालरात्रि 8 अप्रैल शुक्रवार

अष्टमी तिथि     👉 महागौरी     9 अप्रैल शनिवार

नवमी तिथि       👉 सिद्धिदात्री  10 रविवार



नवरात्री घट स्थापना एवं पूजन विधि

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हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।

कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।


 घट स्थापना विधि

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पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें।

कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति रखें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।


मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिवाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।



नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन इस प्रकार करें

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भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.

अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.

नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. तथा दुर्गा जी के १०८ नामों को मंत्र रूप में उसका अधिकाधिक जप करें।

अब एक दूसरी स्वच्छ थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर पुष्प का आसन लगाकर दुर्गा प्रतिमा या तस्वीर या यंत्र को स्थापित करें। 



 साधक गण मन्त्र ज्ञान के अभाव में निम्न प्रकार दुर्गा पूजन करे:-

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स्नानार्थ जलं समर्पयामि 

(जल से स्नान कराए)


स्नानान्ते पुनराचमनीयं जल समर्पयामि

(जल चढ़ाए)


दुग्ध स्नानं समर्पयामि 

(दुध से स्नान कराए)


दधि स्नानं समर्पयामि 

(दही से स्नान कराए)


घृतस्नानं समर्पयामि

(घी से स्नान कराए)


मधुस्नानं समर्पयामि 

(शहद से स्नान कराए)


शर्करा स्नानं समर्पयामि

(शक्कर से स्नान कराए)


पंचामृत स्नानं समर्पयामि 

(पंचामृत से स्नान कराए)


गन्धोदक स्नानं समर्पयामि 

(चन्दन एवं इत्र से सुवासित जल से स्नान करावे)


शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि

(जल से पुन: स्नान कराए)


यज्ञोपवीतं समर्पयामि

(यज्ञोपवीत चढ़ाए)


चन्दनं समर्पयामि 

(चंदन चढ़ाए)


कुकंम समर्पयामि 

(कुकंम चढ़ाए)


सुन्दूरं समर्पयामि 

(सिन्दुर चढ़ाए)


बिल्वपत्रै समर्पयामि 

(विल्व पत्र चढ़ाए)


पुष्पमाला समर्पयामि 

(पुष्पमाला चढ़ाए)


धूपमाघ्रापयामि 

(धूप दिखाए)


दीपं दर्शयामि 

(दीपक दिखाए व हाथ धो लें)


नैवेध निवेद्यामि 

(नेवैध चढ़ाए(निवेदित) करे)


ऋतु फलानि समर्पयामि 

(फल जो इस ऋतु में उपलब्ध हो चढ़ाए)


ताम्बूलं समर्पयामि 

(लौंग, इलायची एवं सुपारी युक्त पान चढ़ाए)


दक्षिणा समर्पयामि

(दक्षिणा चढ़ाए)


इसके बाद कर्पूर अथवा रूई की बाती जलाकर आरती करे।


आरती के नियम:- प्रत्येक व्यक्ति जानकारी के अभाव में अपनी मन मर्जी आरती उतारता रहता है। विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणो पर से, दो बार नाभि पर से, एकबार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से।

आरती की बत्तियाँ १, ५, ७ अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियाँ बनाकर आरती की जानी चाहिए।



दुर्गा जी की आरती:-

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जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।

तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥


मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।

उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥


कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥


केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।

सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥


कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।

कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥


शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥


चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।

बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥


भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।

मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥


कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।

श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥


श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।

कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥



प्रदक्षिणा

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“यानि कानि च पापानी जन्मान्तर कृतानि च।

तानी सर्वानि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥

प्रदक्षिणा समर्पयामि।"


प्रदक्षिणा करें (अगर स्थान न हो तो आसन पर खड़े-खड़े ही स्थान पर घूमे)


 क्षमा प्रार्थना                    

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                                                  ( पुष्प सर्मपित कर देवी को निम्न मंत्र से प्रणाम करे।)

"नमो दैव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।

नम: प्रकृतयै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम॥

या देवी सर्व भूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥"


ततपश्चात देवी से क्षमा प्रार्थना करे कि जाने अनजाने में कोई गलती या न्यूनता-अधिकता यदि पूजा में हो गई हो तो वे क्षमा करें।




                    इस पूजन के पश्चात अपने संकल्प मे कहे हुए मनोकामना सिद्धि हेतु निम्न मंत्र का यथाशक्ति श्रद्धा

अनुसार ९ दिन तक जप करें:-

“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥”


इस मंत्र के बाद दुर्गा सप्तशती के सभी अध्यायो का पाठ ९ दिन मे पूर्ण करें। या यथा सामर्थ प्रतिदिन एक पाठ करे।


 महामारी नाश के लिए मंत्र                                                           〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️  〰️🔸〰️  〰️🔸〰️    〰️🔸〰️


जयन्ती मड्ंग्ला काली भद्रकाली कपालिनी ।| 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री  स्वाहा स्वधा नमस्तुते।| 


नवरात्री की समाप्ति पर यदि कलश स्थापना की हो तो इसके जल को सारे घर मे छिड़क दें। इस प्रकार पूजा सम्पन्न होती है। यदि कोई व्यक्ति विशेष उपरांकित विधि का पालन करने मे असमर्थ है तो नवरात्रि के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करें।



पूजन सामग्री

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माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

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