व्रत एवं त्यौहार

मंत्र विज्ञान
सन 2023 सम्वत २०८०  में पूर्णिमा के व्रत कब होंगे 


कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कब रखें कैसे करें पूजन।

 


17तारीक बुधवार को भाद्रपद संक्रान्ति है।


2गते भाद्रपद 18 अगस्त गुरुवार को अष्टमी रात 9:22 से प्रारंभ होकर के दूसरे दिन शुक्रवार 19 तारीख रात को 11:00बजे समाप्त हो जाएगी। अतः यह व्रत शुक्रवार 19 तारीख का माना जाएगा तथा गुगा नवमी का पर्व 20 अगस्त शनिवार को मनाया जाएगा।

इसलिए वीरवार 18 तारिक 2गते भाद्रपद 9बजकर 22 से पूर्व अष्टमी लगने से पहले।भोजन कर लेना चाहिए। तथा 18तारिक शुक्रवार पुरे दिन का ब्रत रखना चाहिए।शनि बार उदय कालीन नवमी तिथि में उद्यापन करना चाहिए।

18 तारिक को गुरुवार2गते भाद्रपद लड्डु गोपाल वालरूप झुला झुलना  दान,कीर्तन करें।

19तारिक शुक्रवार 3गते भाद्रपद विक्रम संवत 2079 को जनमष्टमी ब्रत। रात्रि में श्री कृष्ण स्त्रोत पाठ ध्यान कीर्तन करके ।इन पुण्य अवसरों का लाभ उठाएं।




 दिनांक 18 अगस्त वीरवार 2गते भाद्रपद को सप्तमी तिथि रात को 9:22तक उसके बाद अष्टमी तिथि प्रारम्भ  होगी तथा अगले दिन शुक्रवार 19तारिक रात 11बजे समाप्त हो जाएगी।  19 अगस्त 3गते भाद्रपद को प्रात: प्रारंभ होने वाले व्रत के सूर्य भगवान को जल देकर व्रत का संकल्प करें  । भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा वृंदावन में बच्चों की परंपरा अनुसार जन्म उत्सव सूर्योदय काली एवं नवमीविद्धा अष्टमी में मनाने की परंपरा है जो कि इस बार इसी प्रकार से आ रही है अर्थात 19 अगस्त का व्रत रखने के पश्चात अष्टमी तिथि शुक्रवार रात 11:00 बजे समाप्त हो जाएगी इसके पश्चात चंद्रमा को अर्घ्य आदि देकर के 20 अगस्त 3गते भाद्रपद  को व्रत का पारायण(खोलना) चाहिए । 
कैसे खोलें व्रत - व्रत परायण अर्थात खोलने के लिए। प्रातः सूर्य को जल चढ़ाएं। संध्या वंदन आदि करें।पूजा में जोत जलाए।श्री कृष्ण भगवान का पूजन करें। आरती करें।
क्षमा प्रार्थना मांगे 

आवाहनं न जानामि न जानामि विसजृनम।
पूजाचैव न जानामि क्षमयताम परमेश्वर:।।


20अगस्त शनिवार को गुग्गा नवमी का पर्व बड़े हर्षौउल्लास से मनाया जाएगा ।
श्रीमद् भागवत के तिथि के हिसाब से श्री कृष्ण कृष्ण जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी  तिथि, रोहिणी नक्षत्र, शुक्रवार  को  अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र के अनुसार तिथि होगी ।

मासी भाद्रपदे अष्टमअष्टम्यां कृष्ण कृष्ण अर्धरात्रअर्धरात्रके, 
वृष राशि की स्थिति चंद्रे नक्षत्र रोहिणी।। (भविष्य पुराण उत्तर) 


कृष्ण जन्माष्टमी निशीथ व्यापिनी गृह्या।
पूर्व दिन और निशीथ योगे पूर्वा।।(धर्मसिंधु) 

रात में  किर्तन आदि करे ‌‌ ‌‌ ऊँ नमोः भगवते वासुदेवाय नम: ' का जाप करे।
क्योंकि जिस मनुष्य को श्री कृष्ण अष्टमी के उपवास पूजन आदि का सौभाग्य मिलता है उसके कोटी जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह जन्म बंधन से युक्त मुक्त होकर दिव्य वैकुंठ आदि भगवत धाम में निवास करता ह






जाने इस इस बर्ष 2022 कब पूर्णिमा के ब्रत


मास

तारिक

चैत्र

16अप्रैल 2022 शनिवार

वैशाख

16 मई 2022 सोमवार

ज्यैष्ठ

14 जून 2022 मंगलवार

आषाढ़

13 जुलाई 2022 बुधवार

श्रावण

12अगस्त 2022 शुक्रवार

भाद्रपद

10 सितंबर 2022 शनिवार

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9 अक्तुवर 2022 रविवार

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8 दिसंबर 2022 गुरु वार

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5 फ़रवरी 2023 रविवार

फाल्गुन

7 मार्च 2023 मंगलवार










  


                 श्राद्ध

प्रश्न-श्राद्ध करने से क्या लाभ?
उत्तर - मनुष्य मात्र के लिए शास्त्रों में देव ऋण ,ऋषि ऋण और पितृ ऋण - यह तीन ऋण बताए गए हैं। इनमें श्राद्ध के द्वारा पितृ ऋण उतारा जाता है। विष्णु पुराण(३/१५/५१) में कहा गया है कि ' श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ गण समस्त कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं। ' इसके अतिरिक्त श्राद्ध कर्ता  से विश्वेदेवगढ़,पितृ गण,मातामह तथा कुटुंबीजन - सभी संतुष्ट रहते हैं ।
बिष्णुपुराण में (३/१५/५४) पितृपक्ष आशिवन कृष्ण पक्ष में तो पितृ गण स्वयं श्राद्ध ग्रहण करने आते हैं तथा साथ मिलने पर प्रसन्न होते हैं और ना मिलने पर निराश हो शाप देकर लौट जाते हैं। विष्णु पुराण में पितृ गण कहते हैं - हमारे कुल में क्या कोई ऐसा बुद्धि0मान धन्य पुरुष उत्पन्न होगा ,जो धन के लोग को त्यागकर हमारे लिए पिंडदान करेगा।
प्रशन- श्राद्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर - श्रद्धा से किया गया कार्य जो पितरों के निमित्त किया जाता है श्राद्ध कहलाता है।
प्रशन- कई लोग कहते हैं। कि श्राद्ध कर्म असत्य हैं और इसे ब्राह्मणों ने अपने लेने खाने के लिए बनाया है इस विषय पर आपका क्या विचार है?
उत्तर - श्राद्ध कर्म पूर्ण रूपेण आवश्यक कर्म है। और शास्त्र सम्मत है। हाँ, वर्तमान काल में लोगों में ऐसी रीति ही चल पड़ी है कि जिस बात को वह समझ जायं- वह तो उनके लिए सत्य है ; परंतु जो भी से उनकी समझ के बाहर हो,उसे वे गलत कहने लगते हैं ।
कलीकाल के लोग प्रायः स्वार्थी हैं। उन्हें दूसरों का सुखी होना सुहाता नहीं। स्वयं तो मित्रों के बड़े-बड़े भोज निमंत्रण स्वीकार करते हैं, मित्रों को अपने घर भोजन के लिए निमंत्रित करते हैं रात दिन निरर्थक व्यय में आनंद मनाते हैं ।परंतु श्राद्ध कर्म में एक ब्राह्मण को भोजन कराने में भार अनुभव करते हैं जिन माता पिता की जीवन भर सेवा करके कर के भी ऋण नहीं चुकाया जा सकता उनके पीछे भी उनके लिए श्राद्ध कर्म करते रहना आवश्यक है।
 प्रश्न- पितरों को श्राद्ध कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर - यदि हम चिट्ठी पर नाम पता लिखकर लेटर बॉक्स में डाल दे तो वह अभीष्ट पुरुष को, वह जहां भी है,अवश्य मिल जाएगी । इसी प्रकार जिनका नाम उच्चारण किया गया है,उन पितरों को वे जिस योनि में भी हो श्राद्ध प्राप्त हो जाता है ।जिस प्रकार सभी पत्र पहले बड़े डाकघर में एकत्रित होते हैं और फिर उनका अलग-अलग विभाग होकर उन्हें अभीष्ट स्थानों में पहुंचाया जाता है, उसी प्रकार अर्पित पदार्थ का सूक्ष्म अंश सूर्य - रश्मियों ओं के द्वारा सूर्य लोक में पहुंचता है और वहां से बंटवारा होता है तथा अभीष्ट पितरों को प्राप्त होता है पितृपक्ष में विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा आवाहन किए जाने पर पितृ गण स्वयं शरीर में सूक्ष्म रूप से स्थित हो जाते हैं उनका स्थुल अंश ब्राह्मण खाता है और सूक्ष्म अंश को पितर ग्रहण करते हैं।
प्रश्न- यदि पितृ पशु योनि में हो तो उन्हें उसी योनि के योग्य आहार हमारे द्वारा कैसे प्राप्त होता है ?
उत्तर- विदेश में हम जितने रुपए भेजे उतने ही रूपों का डालर आदि( देश के अनुसार विभिन्न सिक्के) होकर अभीष्ट व्यक्ति को प्राप्त हो जाते हैं उसी प्रकार श्रद्धा पूर्वक अर्पित अन पितृ गण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही हो कर उन्हें मिलता है।
प्रश्न - यदि पितृ परमधाम में हो जहां  आनंद ही आनंद है वहां तो उन्हें किसी वस्तु की भी आवश्यकता नहीं है फिर उनके लिए किया गया श्राद्ध कर्म व्यर्थ चला जाएगा।
उत्तर - नहीं जैसे हम दूसरे शहर में अभीष्ट व्यक्ति को कुछ रुपए भेजते हैं परंतु रुपए वहां पहुंचने पर पता चले की अभिव्यक्ति तो मर चुका है तब वे रुपए हमारे ही नाम हो कर हमें ही मिल जाएंगे ऐसे ही परम परम श्रद्धा वासी पितरों के निमित्त किया गया श्राद्ध पुण्य रूप में हमें ही मिल जाएगा अतः हमारा लाभ तो सब प्रकार से ही होगा ।ओम शांति शांति शांति शांति। 

कौन सी श्राद्ध की तिथि कब होंगी? 
                
                 
                     नवरात्रि
   प्रतिपदा 10 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रों का शुभारंभ होगा इस दिन स्नान ध्यान आदि के बाद शुद्ध पात्र में रेत मिट्टी डालकर मंगल पूर्वक जो गेहूं सप्तधान्य के बीज वपन करने चाहिए तथा श्री दुर्गा जी की मूर्ति के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलन एवं मंत्र उच्चारण सहित घट स्थापन करना चाहिए फिर षोडशोपचार पूजन सहित श्री दुर्गा पूजन करके संकल्प पूर्वक प्रतिपदा से नवमी तिथि तक देवी के सम्मुख दीप जलाकर श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र तथा वैधानिक  अशुभ योग होने से शास्त्रानुसार दोपहर 11:58 के बाद अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करना शुभ रहेगा

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