श्राद्ध
प्रश्न-श्राद्ध करने से क्या लाभ?
उत्तर - मनुष्य मात्र के लिए शास्त्रों में देव ऋण ,ऋषि ऋण और पितृ ऋण - यह तीन ऋण बताए गए हैं। इनमें श्राद्ध के द्वारा पितृ ऋण उतारा जाता है। विष्णु पुराण(३/१५/५१) में कहा गया है कि ' श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ गण समस्त कामनाओं को पूर्ण कर देते हैं। ' इसके अतिरिक्त श्राद्ध कर्ता से विश्वेदेवगढ़,पितृ गण,मातामह तथा कुटुंबीजन - सभी संतुष्ट रहते हैं ।
बिष्णुपुराण में (३/१५/५४) पितृपक्ष आशिवन कृष्ण पक्ष में तो पितृ गण स्वयं श्राद्ध ग्रहण करने आते हैं तथा साथ मिलने पर प्रसन्न होते हैं और ना मिलने पर निराश हो शाप देकर लौट जाते हैं। विष्णु पुराण में पितृ गण कहते हैं - हमारे कुल में क्या कोई ऐसा बुद्धि0मान धन्य पुरुष उत्पन्न होगा ,जो धन के लोग को त्यागकर हमारे लिए पिंडदान करेगा।
प्रशन- श्राद्ध किसे कहते हैं ?
उत्तर - श्रद्धा से किया गया कार्य जो पितरों के निमित्त किया जाता है श्राद्ध कहलाता है।
प्रशन- कई लोग कहते हैं। कि श्राद्ध कर्म असत्य हैं और इसे ब्राह्मणों ने अपने लेने खाने के लिए बनाया है इस विषय पर आपका क्या विचार है?
उत्तर - श्राद्ध कर्म पूर्ण रूपेण आवश्यक कर्म है। और शास्त्र सम्मत है। हाँ, वर्तमान काल में लोगों में ऐसी रीति ही चल पड़ी है कि जिस बात को वह समझ जायं- वह तो उनके लिए सत्य है ; परंतु जो भी से उनकी समझ के बाहर हो,उसे वे गलत कहने लगते हैं ।
कलीकाल के लोग प्रायः स्वार्थी हैं। उन्हें दूसरों का सुखी होना सुहाता नहीं। स्वयं तो मित्रों के बड़े-बड़े भोज निमंत्रण स्वीकार करते हैं, मित्रों को अपने घर भोजन के लिए निमंत्रित करते हैं रात दिन निरर्थक व्यय में आनंद मनाते हैं ।परंतु श्राद्ध कर्म में एक ब्राह्मण को भोजन कराने में भार अनुभव करते हैं जिन माता पिता की जीवन भर सेवा करके कर के भी ऋण नहीं चुकाया जा सकता उनके पीछे भी उनके लिए श्राद्ध कर्म करते रहना आवश्यक है।
प्रश्न- पितरों को श्राद्ध कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर - यदि हम चिट्ठी पर नाम पता लिखकर लेटर बॉक्स में डाल दे तो वह अभीष्ट पुरुष को, वह जहां भी है,अवश्य मिल जाएगी । इसी प्रकार जिनका नाम उच्चारण किया गया है,उन पितरों को वे जिस योनि में भी हो श्राद्ध प्राप्त हो जाता है ।जिस प्रकार सभी पत्र पहले बड़े डाकघर में एकत्रित होते हैं और फिर उनका अलग-अलग विभाग होकर उन्हें अभीष्ट स्थानों में पहुंचाया जाता है, उसी प्रकार अर्पित पदार्थ का सूक्ष्म अंश सूर्य - रश्मियों ओं के द्वारा सूर्य लोक में पहुंचता है और वहां से बंटवारा होता है तथा अभीष्ट पितरों को प्राप्त होता है पितृपक्ष में विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा आवाहन किए जाने पर पितृ गण स्वयं शरीर में सूक्ष्म रूप से स्थित हो जाते हैं उनका स्थुल अंश ब्राह्मण खाता है और सूक्ष्म अंश को पितर ग्रहण करते हैं।
प्रश्न- यदि पितृ पशु योनि में हो तो उन्हें उसी योनि के योग्य आहार हमारे द्वारा कैसे प्राप्त होता है ?
उत्तर- विदेश में हम जितने रुपए भेजे उतने ही रूपों का डालर आदि( देश के अनुसार विभिन्न सिक्के) होकर अभीष्ट व्यक्ति को प्राप्त हो जाते हैं उसी प्रकार श्रद्धा पूर्वक अर्पित अन पितृ गण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही हो कर उन्हें मिलता है।
प्रश्न - यदि पितृ परमधाम में हो जहां आनंद ही आनंद है वहां तो उन्हें किसी वस्तु की भी आवश्यकता नहीं है फिर उनके लिए किया गया श्राद्ध कर्म व्यर्थ चला जाएगा।
उत्तर - नहीं जैसे हम दूसरे शहर में अभीष्ट व्यक्ति को कुछ रुपए भेजते हैं परंतु रुपए वहां पहुंचने पर पता चले की अभिव्यक्ति तो मर चुका है तब वे रुपए हमारे ही नाम हो कर हमें ही मिल जाएंगे ऐसे ही परम परम श्रद्धा वासी पितरों के निमित्त किया गया श्राद्ध पुण्य रूप में हमें ही मिल जाएगा अतः हमारा लाभ तो सब प्रकार से ही होगा ।ओम शांति शांति शांति शांति।
कौन सी श्राद्ध की तिथि कब होंगी?
नवरात्रि
प्रतिपदा 10 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रों का शुभारंभ होगा इस दिन स्नान ध्यान आदि के बाद शुद्ध पात्र में रेत मिट्टी डालकर मंगल पूर्वक जो गेहूं सप्तधान्य के बीज वपन करने चाहिए तथा श्री दुर्गा जी की मूर्ति के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलन एवं मंत्र उच्चारण सहित घट स्थापन करना चाहिए फिर षोडशोपचार पूजन सहित श्री दुर्गा पूजन करके संकल्प पूर्वक प्रतिपदा से नवमी तिथि तक देवी के सम्मुख दीप जलाकर श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र तथा वैधानिक अशुभ योग होने से शास्त्रानुसार दोपहर 11:58 के बाद अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करना शुभ रहेगा