Tuesday, 24 March 2020

जाने यह बर्ष कैसा रहेगा विक्रमी संवत 2077के बर्ष का फल राजा एवं मंत्री का फल

















इस बार परमादी नामक संवत्सर रहेगा परमादी नामक संवत्सर का प्रयोग किया जाएगा जब भी कोई वर्ष में शुभ कार्य होगा। इस सम्बतसर का प्रयोग होगा। इस वक्त सृष्टि के संम्वत् अनुसार 19558 85121 यह सृष्टि का बर्ष चला हुआ है सृष्टि को इतना समय हो गया है तथा विक्रम संवत 2077 चला हुआ है शक संवत 1942 होगा और कलियुग का समय अभी 5120 वर्ष बीत चुका है तथा कलियुग वर्तमान 5121 बर्ष चल रहा है। जबकि कलियुग की कुल अवधि 432000 बर्ष है।कृष्ण संवत 5256 चला है ।श्री बुद्ध संवत 2643 महावीर जैन संवत 2545 और हिजरी सन 1441 अंग्रेजी का 2020 खालसा का 321 सृष्टि के अनुसार सतयुग का प्रमाण 1728000 बर्ष तथा त्रेता युग 1296 000 बर्ष द्वापर युग प्रमाण 864000 बर्ष कलयुग का प्रमाण 432000 वर्ष का होता है।

परमादी नामक संवत्सर का फल
परमादी नामक संवत्सर 47वां संम्वतसर है। यह शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 25 मार्च 2020 ईस्वी अनुसार 12 गते चेत्र बुधवार से प्रारंभ होगा प्रमादी नाम नया संवत्सर 2077 विक्रम संवत के अनुसार अमावस की समाप्ति 24 मार्च 11 गते चेत्र मंगलवार को दोपहर 2:58 पर कर्क लग्न में प्रवेश करेगा परंतु शास्त्र नियम अनुसार विक्रमी संवत 2077 चेत्र बसंत नवरात्रों का प्रारंभ 25 मार्च बुधवार 12 प्रविष्टे चैत्र रेवती नक्षत्र में होगा वर्ष का राजा बुध तथा मंत्री चंद्र होगा परमादी नामक संवत्सर का फल शास्त्रों में इस प्रकार से वर्णित है प्रमाद नामक संवत्सर में सभी प्रकार के धान्य, फसलों का अनाज का उत्पादन होगा सब रस गुड़ चीनी आदि पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि होगी आषाढ़ माह में वर्षा कम रहने की संभावना तथा भाद्रपद में अधिक वर्षा होने की संभावना रहेगी।धान्य पदार्थ के मूल्यों में वृद्धि तथा उपद्रव राजनीतिक एवं जातीय हिंसा और जनमानस में भय का वातावरण उपस्थित होगा परमादी संवत्सर में राजा अमैत्री भाववाले हो जाएंगे सरकार की ओर से कठोर एवं अप्रिय निर्णय लिए जाएंगे यद्यपि देश हित के लिए यह कठोर एवं कनिष्ठ नियम एवं कानूनों से सामान्य प्रजा में दुविधा भविष्य एवं आक्रोश की भावना रहेगी इसके अतिरिक्त आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि और प्रजा अकरांत रहेगी।





रोहिणी का बास वर्षा उतरा भाद्रपद  नक्षत्र होने से होने से धन-धान्य दुख दादी पर पदार्थों के मूल्यों में विशेष अधिक तेजी होगी तथा संवत्सर का वाहन सियार होने से आह आकार पृथ्वी पर आकर मत जाता है व्यापक दुर्भिक्ष अथवा स्थानों पर भयानक सूखा अकाल एवं महामारी उत्पन्न हो जाने की स्थिति पैदा होगी थोड़े थोड़े समय में देशों में टकराव की संभावना रहेगी

इस वर्ष का राजा बुध होने से पृथ्वी पर वर्षा अच्छी घर घर में मांगलिक कार्य तथा दान दया धर्म के प्रति बड़े स्वास्थ्य संबंधी चेतना जागृत रहेगी और विशेश्वर व्यापारी शिल्पी तथा वैद्य अर्थात डॉक्टर लोग विशेष लाभान्वित होंगे आयुर्वेदिक योग चिकित्सा प्रणाली का प्रचार प्रसार होगा बर्ष में छल कपट करने वाले लोगों का बोलबाला प्रभाव होगा
संवत का मंत्री चंद्र होने से  वर्ष में धन-धान्य ेश्वरी साधनों का प्रसार होगा देश में वर्षा अधिक तथा गेहूं, धान, सरसों, मक्की, चने की पैदावार अच्छी ,शक्कर ,चीनी, दूध सफेद वस्तुओं का उत्पादन अच्छा तथा चावल चीनी वस्त्र दूध में अन्य श्वेत वस्तुओं का विस्तार लाभप्रद रहेगा। विक्रमी संवत 2077 में शनि की दृष्टि का फल थोड़ा अशुभ रहेगा भारत के उत्तर पूर्वी प्रदेशों में करीब बाढ समुद्री तूफान भूस्खलन महामारी भूकंप यान दुर्घटना अग्निकांड सड़क दुर्घटनाएं आदि प्राकृतिक प्रकोप से भारी कृषि धन धन हानि होने की संभावना होगी कर्क तुला एवं मीन राशि वाले उत्तरी राज्यों में आकाल जन्य परिस्थितियां बनेगी इसका फल अशुभ ही रहेगा || 
                                       

Monday, 9 March 2020

होली कब और कैसे मनाए




9 मार्च को होलिका दहन करने के पश्चात  अगले दिन तारीख 10 मार्च मंगलवार 2020 माघ के 28गते को होली पर्व बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह से मनाया जाएगा 10 मार्च को होली पर्व  पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश प्रदेश में मनाया जाता है मथुरा वृंदावन होली पर्व बड़ी श्रद्धा से मनाया जाएगा 10 मार्च को  श्री आनंदपुर पांवटा साहिब  सिरमौर हिमाचल प्रदेश में 10 मार्च को होली मेला पर्व मनाया जाएगा।

Sunday, 15 December 2019

26 दिसंबर भारत में दृश्य कंकण सूर्य ग्रहण का विचार एवं इसके प्रभाव





2019 सूर्य ग्रहण का दिन और समय Nahan, हिमाचल प्रदेश, इण्डिय

2019 सूर्य ग्रहण

Nahan, इण्डिया

सूर्य ग्रहण

26वाँ

दिसम्बर 2019

Thursday / गुरूवार

सूर्य ग्रहण का स्थानीय समय

Saturday, 2 November 2019

जानें अक्षय नवमीं तथा इससे मिलने वाला अक्षय फल





           



 

अक्षय नवमीं को किया हुआ पूजा पाठ और दिया हुआ दान का पुण्य अक्षय हो जाता है आंवला नवमी का त्यौहार भारत के कई क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग कर वृंदावन की गलियों छोड़कर मथुरा चले गये थे। इसके साथ ही माना जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिये आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है।


कब मनाया जाता है आंवला नवमी का त्यौहार

आंवला नवमी का त्यौहार दीपावली के बाद मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता है। साल 2019 में आंवला नवमी या अक्षय नवमी का त्यौहार 5 नवंबर को मनाया जायेगा। आंवला नवमी के दिन पूजा मुहूर्त सुबह 06:45 से 11:54 मिनट तक है।

आंवला नवमी व्रत एवं पूजा विधि

  • इस दिन सुबह उठकर स्नान ध्यान करना चाहिये।
  • स्वच्छ मन से आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिये।
  • इसके बाद धूप-दीप इत्यादि जलाना चाहिये।
  • आंवले के वृक्ष की जड़ों को दूध से सींचना चाहिये और उसके बाद तने पर सूत का धागा लपेटना चाहिये।
  • इसके बाद वृक्ष की पूजा करनी चाहिये।
  • सारे दिन भर व्रत रखने के बाद, आंवले के वृक्ष की सात परिक्रमाएं करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिये।   

आंवला नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा

आंवला नवमी से जुड़ी कथा के अनुसार एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ काशी नगर में रहता था। बहुत साल गुजर जाने के बाद भी व्यापारी के कोई संतान न हुई, जिसके कारण उसकी पत्नी बहुत परेशान रहने लगी। संतान की प्राप्ति के लिये उसने कई प्रयास किये लेकिन वह सफल नहीं हुई। एक दिन किसी बाबा ने व्यापारी की पत्नी को बताया कि भैरव बाबा के मंदिर में किसी बच्चे की बलि देने से उसे संतान की प्राप्ति हो सकती है। पत्नी ने यह बात जब अपने पति को बताई तो वह बहुत क्रोधित हुआ और पत्नी से कहा कि इस बारे में सोचे भी न। हालांकि पत्नी ने अपने पति से छुपकर एक बच्चे की बलि दे दी। इसके बाद व्यापारी की पत्नी के शरीर पर कई रोग हो गये। व्यापारी यह देखकर बहुत चिंतित हो गया। एक दिन पत्नी ने अपने पति को बता दिया कि उसने एक बच्चे की बलि दी है जिसके बाद पति को बहुत क्रोध आया और उसने अपने पत्नी को बहुत बुरा भला कहा। कुछ समय बाद जब पति का गुस्सा शांत हुआ तो उसने पत्नी को गंगा में स्नान करने की सलाह दी।



व्यापारी की पत्नी रोजाना गंगा जी की पूजा औऱ गंगा 
स्नान करने लगी। उसकी श्रद्धा को देखकर एक दिन माता गंगा ने एक बुढ़िया का रुप धारण करके उसे बताया कि वो वृंदावन जाकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को व्रत रखे और आंवले की पूजा करे तो उसके सारे रोग दूर हो जाएंगे। व्यापारी की पत्नी ने ऐसा ही किया और विधि-विधान से पूजा कि जिसके बाद उसके शरीर के सारे रोग दूर हो गये औऱ उसे संतान की प्राप्ति भी हुई। उस समय से ही महिलाएं संतान प्राप्ति और आरोग्य के लिये आंवला नवमी का व्रत रखती    हैं। 

Saturday, 21 September 2019

पञ्च महायज्ञ कैसे करें ?

पञ्च महायज्ञ कैसे करें ?


स्वाध्याये नार्चयेतर्षीन्हो मैर्देवान्यथाविधि । पितृ श्राद्धैश्च नृनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा ।। – मनुस्मृति
अर्थ : स्वाध्याय तथा पूजासे  ऋषियोंका सत्कार, शास्त्र अनुसार यज्ञ कर देवताओंकी पूजा, श्राद्धसे पितरोंकी पूजा, अन्न देकर अतिथियोंकी  और बलिकर्मसे सम्पूर्ण भूतोंकी पूजा (संतुष्टि) करनी चाहिए ।
भावार्थ : गृहस्थ जीवन अर्थात कौटुम्बिक जीवन सुखी रहे, इस हेतु हमारे धर्मशास्त्रोंमें पञ्च महायज्ञकी पद्धति बताई गयी है ! यह पञ्च धार्मिक क्रिया, जो  देव, ऋषि, पितर, भूत (जड एवं चेतन) और अतिथिको कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु पञ्चयज्ञ कर्म है, जिनके बिना गृहस्थ जीवन सुखी नहीं हो सकता है ।
वर्तमान कालमें गृहस्थ जीवनमें अनेक कष्ट होनेके पीछे मूल कारण यही हैं । आजका गृहस्थ भोगवादी एवं कृतघ्न हो गया है । मैकालेकी शिक्षण पद्धतिसे उपजे जन्म हिन्दू निमित्त मात्र हिन्दू रह गए है, उसके लिए मात्र स्वार्थ सिद्धि एवं भोग लिप्साका महत्व रह गया है; परिणामस्वरूप उसकी अगली पीढी, धर्मसे विमुख समाज और पितर तीनोंने मिलकर उसका जीवन नरक बना दिया है । सन्तोंका तिरस्कार करना, जीवित माता –पिता एवं अग्रजकी अवमानना करना, उनके प्रति कृतघ्नताका भाव रखना, मृत पितरोंके सूक्ष्म अस्तित्वको नहीं मानना, अतिथिके आनेपर भृकुटी तन जाना और जड एवं चेतन जगतके  प्रति अपने उत्तरदायितत्वको न माननेके कारण आज गृहस्थ आश्रम टूटनेकी सीमा रेखापर पहुंच चुका है।

* कलिकालमें खरे सन्तोंके प्रति सम्मानकी भावना रखना, वैदिक संस्कृतिका प्रसार करना, उस कार्यमें यथाशक्ति योगदान देना, धर्मकार्य करनेवालोंका सम्मान करना, ऋषियोंद्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त एवं शास्त्रोंका अध्ययन एवं अध्यापन करना, धर्माचरण करते हुए समाजके समक्ष आदर्श रख वैदिक परंपराका संरक्षण करना, इससे ऋषि ऋण चुकता करना कहते हैं।

* देवताका नामजप करना एवं करवाना, देवालयोंकी (मंदिरोंकी) रक्षा करना, उनका धर्मशिक्षण स्थलके रूपमें पोषण करना, देवताओंकी विडम्बना रोकना, देवताके सगुण स्वरूपके प्रति निष्ठा रख उनका पञ्चोपचार या षोडशोपचार पूजन या यज्ञ कर, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना इत्यादिसे देव ऋण चुकाया जा सकता है ।

* जीवित पितरके प्रति आदर भाव रख, उनकी सेवा करना एवं मृत्यु उपरान्त उनकी श्राद्ध इत्यादि धार्मिक विधि शास्त्रोक्त पद्धति अनुसार करते हुए नियमित दो घण्टे ‘श्रीगुरुदेव दत्त’का जप करना, इन सबसे पितृ ऋण चुकता होता है ।
  * अतिथिका यथोचित एवं यथाशक्ति निष्काम भावसे प्रेमपूर्वक सेवा करना, इससे अतिथि ऋण चुकता होता है ।

* पञ्च महाभूत एवं प्राणी जगतका विचार कर उनका पोषण करना, समाजके लोग साधना एवं धर्माचरण करें इस हेतु साधनाका महत्व समाजके मनपर प्रतिबिम्बित करने हेतु यथाशक्ति योगदान देनेसे भूत ऋण चुकाया जा सकता है । – पंडित उमादत शर्मा। 

Sunday, 14 July 2019

21जून ग्रहण का आपके लिए प्रभाव


 

 नाहन में आंशिक / खण्डग्रास सूर्य ग्रहण
ग्रहण प्रारम्भ काल - 10:23 ए एम 
परमग्रास - 00:03 पी एम 
ग्रहण की अवधि - 01:49 पी। एम 
खण्डग्रास की अवधि - 03 घण्टे 25 मिनट 42 सेकण्ड्स     
अधिकतम परिधि - 0.98
सूतक  प्रारम्भ - 9:54 पी एम ,  20 जून
सूतक  समाप्त - 1:49 पी एम 
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूक्त प्रारम्भ - 05:19 खोज परिणाम के लि एम बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूक्त समाप्त 

21 जून, 2020 का सूर्य ग्रहण

26 जून, 2020 का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इसकी परिधि 0.99 होगी। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि चन्द्रमा की छाया सूर्य का केवल 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वल्याकार आकृति बनाये हुए। यह सूर्य ग्रहण की अधिकतम अवधि के समय ० मिनट और ३ की सेकंडंड की होगी।    

यह सूर्य ग्रहण भारत , नेपाल , पाकिस्तान , सऊदी अरब , यूएई , एथोपिया और कोंगों में दिखाई देता है।         

देहरादून , सिरसा और टिहरी कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ पर वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देता है।    

नई दिल्ली , चंडीगढ़ , मुम्बई , कोलकाता , हैदराबाद , बंगलौर , लखनऊ , चेन्नई , शिमला , रियाद , अबू धाबी , कराची , बैंकाक तथा काठमांडू आदि कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।               

   ग्रहण काल ​​में क्या करें?*

 जब ग्रहण प्रारंभ हो तो स्नान जप मध्यकाल में होम देव पूजा और ग्रहण का मोक्ष समीप होने पर दान और पूर्ण मोक्ष होने पर स्नान करना चाहिए।

स्पर्शे स्नानं जपं कुर्यान्मध्ये होमो सुराचर्नम्।
मुच्येँ सद दानं विमुक्तौ स्नानमचरेत् ।।


  सूर्य ग्रहण काल ​​में भगवान सूर्य की पूजा आदित्य हृदय स्त्रोत सूर्य अष्टक स्त्रोत आदि सूर्यस्त स्तोत्रौ का पाठ करना चाहिए। पका हुआ अन्न, कटी हुई सब्जी, ग्रहण काल ​​में दूषित हो जाते हैं उन्हें नहीं रखना चाहिए, लेकिन तेल घी दूध दही लस्सी मक्खन पनीर अचार चटनी रब्बा आदि में तिल या कुछ आचरण रखने देने से ग्रहण काल ​​में दूषित नहीं होते हैं। सूखे खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करना की आवश्यकता नहीं ध्यान रहे गिरने सूरज को नंगी आँखों से कद स्थल नहीं देखा वेल्डिंग वाले काले कांच में से देख सकते हैं ग्रहण के समय तक ग्रहण की समाप्ति पर गर्म पानी से स्नान करने निषिद्ध है रोगी गर्भवती स्त्रियों के बालकों के लिए। निश्चित नहीं है कि अवधि में सोना है। खाना-पीना तेल मदन मित्र पुरुषोत्तम निषिद्ध है नाखून भी नहीं काटना चाहिए।

* ग्रहण काल ​​में क्या परहेज रखें *

* ग्रहणकाल में प्रकृति में कई तरह की अशुद्धियों और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए ऐसे कई कार्य हैं, जिन्हें करने के दौरान नहीं किया जाता है।

* ग्रहणकाल में सोना नहीं चाहिए। वृद्ध, रोगी, बच्चे और गर्भवती स्त्रियों की जरूरत के अनुसार सो सकते हैं।वैसे यह ग्रहण मध्यरात्रि से लेकर तड़के के बीच होगा इसलिए धरती के अधिकांश देशों के लोग नींद में होते हैं।

* ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।

* ग्रहणकाल में यात्रा नहीं करना चाहिए, दुर्घटनाएं होने की आशंका बनी रहती है।

* ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।

* ग्रहण को खुले आंखों से न देखें।

* ग्रहणकाल के दौरान महामृत्युंजय मत्र का जाप करना चाहिए।

* गर्भवती महिलाएं क्या करें *

ग्रहण का सबसे अधिक असर गर्भवती स्त्रियों पर होता है। ग्रहण काल ​​के दौरान गर्भवती स्त्रियाँ घर से बाहर न निकलें। बाहर निकलना जरूरी हो तो इश पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर नहीं होगा। ग्रहण काल ​​के दौरान यदि भोजन जरूरी हो तो सिर्फ भोजन की उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करें जिसमें सूतक लगने से पहले तुलसी पत्र या कुशा डला हो। गर्भवती स्त्रियाँ ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ता है। सुई से सिलाई भी न करें। माना जाता है कि इससे बच्चे के कोई अंग जुड़ सकते हैं। ग्रहण काल ​​के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहो।


मेष राशि-धन लाभ वृष-धन हानि मिथुन राशि- वालों को दुर्घटना चोट में भय  कर्क- धन हानि सिंह- लाभ उन्नति कन्या- रोग कष्ट भय तुला- चिन्ता  संतान कष्ट वृश्चिक- शत्रु भय साधारण लाभ धनु- स्त्री पति कष्ट मकर- रोग गुप्त चिंताख कुंभ- खर्च अधिक कार्य विलंब मीन -कार्य सिद्धि।


प्रबोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व कब

  बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को  12 नवंबर 2024 मंगलवार को  भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...