Friday, 28 August 2020

जाने पितृ पक्ष कब से ओर कैसे मनाए पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?

 


       











      

  • श्राद्ध कब हैं ?

पूजा-पाठ में रुचि रखने वाले सभी श्रद्धालु जानना चाहते हैं कि आखिर श्राद्ध कब हैं. इस साल श्राद्ध 2 सितंबर से शुरू होंगे और 17 सितंबर को समाप्त होंगे. इसके अगले दिन 18 सितंबर से अधिक मास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा. नवरात्रि का पावन पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा और 25 अक्टूबर को समाप्त होगा. वहीं, चतुर्मास देवउठनी के दिन 25 नवंबर को समाप्त होंगे.






       


  • क्यों करें श्राद्ध

"मैंने अपने आध्यात्मिक शोध में पाया है कि जिनके घर अत्यधिक पितृदोष होता है, उनके अतृप्त पितर, कई बार गर्भस्थ पुरुष-भ्रूणकी योनि, जन्मके दो या तीन माह पूर्वमें परिवर्तित कर देते हैं एवं ऐसे पुत्रियोंको जन्मसे ही अत्यधिक अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है; क्योंकि उनपर गर्भकालमें ही आघात हो चुका होता है । वैसे तो यह तथ्य स्थूल दृष्टिसे अवैज्ञानिक लगता है, आपको बता दूं, मैं भी आधुनिक विज्ञानकी छात्र रहा हूं और अपने इस अध्यात्मिक शोधके निष्कर्षको प्रमाणित करने हेतु मैंने कुछ गर्भस्थ माताओंपर सूक्ष्म स्तरके प्रयोग भी और उन सभी प्रयोगोंमें इस तथ्यकी बार-बार पुष्टि हुई  जब यह बात कुछ ऐसे लोगोंको बताई जिनकी पुत्री वास्तविकतामें पुत्र ही था (थी); किन्तु जन्मसे कुछ माह पूर्व उनके कुपित अतृप्त पितरोंने गर्भस्थ शिशुकी लिंग परिवर्तित कर दिया तो उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें भी कुछ अध्यात्मविदोंने कहा था कि उनकी कुण्डलीमें पुत्र योग है एवं उनकी पत्नीके गर्भवती थीं, तब उनके सर्व लक्षण पुत्र होनेके ही थे; परन्तु उन्हें पुत्र, नहीं मात्र पुत्रियां हुईं ! इससे, सोलह संस्कारोंमें पुरुष भ्रूणके संरक्षण हेतु संस्कार कर्मोंको विशेष महत्त्व क्यों दिया गया है, यह ज्ञात हुआ । वहीं मैंने यह किसी भी स्त्री भ्रूणके साथ होता हुआ नहीं पाया है, अर्थात् अतृप्त पूर्वज मात्र पुरुष लिंगका ही परिवर्तन करते हैं, पुत्रीका नहीं ! यह सब अध्यात्मिक शोध सूक्ष्म अतिन्द्रियोंके माध्यमसे मैंने किए हैं । आजका आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि पुरुषोंमें x और y दो प्रकारके लिंग-गुणसूत्र (सेक्स-क्रोमोसाम्स) होते हैं, वहीं स्त्रियोंमें एक ही प्रकारका मात्र x लिंग-गुणसूत्र होते हैं । वस्तुत: y गुणसूत्रके अध्ययनसे किसी भी पुरुषके पितृवंश समूहका पता लगाया जा सकता है । इस प्रकार हमारे शास्त्रोंमें क्यों कहा गया है कि अतृप्त पितर कुलका नाश करते हैं, यह भी ज्ञात हुआ । अर्थात पुत्रके न होनेसे अध्यात्मिक हानि हो न हो; किन्तु लौकिक अर्थोंमें उस कुलका एक गुणसूत्र सदैवके लिए समाप्त हो जाता है और हमारे वैदिक मनीषी, हमारी दैवी संस्कृतिके संरक्षक, गुणसूत्रोंके, रक्षणका महत्त्व जानते थे; अतः पुत्र भ्रूणकी रक्षा एवं पुत्रके शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूपसे स्वस्थ जन्म लेने हेतु जन्मपूर्व कुछ संस्कार कर्म, सोलह संस्कार अन्तर्गत अवश्य करवाए जाते थे । वैसे आपको यह स्पष्ट करुं कि मैं गर्भपात और कन्या भ्रूण-हत्याकी प्रखर विरोधक हूं और न ही मैं मात्र पुत्रियोंको जन्म देनवाली माताओंको किसी भी दृष्टिसे हीन मानती हूं एवं न ही यह कहना चाहती हूं कि आपको पुत्र अवश्य होने चाहिए ! मैं तो मात्र यह बताना चाहता हूं कि हमारी वैदिक ऋषि कितने उच्च कोटि के शोधकर्ता ओर वैज्ञानिक थे।"

आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही अक्सर इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती है. प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राद्ध की अवधि में ब्राह्मणों को खिलाया गया भोजन पितरों को मिल जाता है? मन में ऐसे प्रश्न उठना स्वाभाविक है. एकल परिवारों के इस युग में कई बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के नाम तक नहीं मालूम होते हैं. ऐसे में परदादा या परनाना के नाम पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है. अगर आप चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों तक परिवार का नाम बना रहे तो श्राद्ध के महत्व को समझना बहुत जरूरी है. सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वहन अवश्य करें. श्राद्ध कर्म का एक समुचित उद्देश्य है, जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है. दरअसल, श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं. इन 15 दिनों के दौरान उन दिवंगत आत्माओं का स्मरण किया जाता है, जिनके कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है. इस दौरान उनकी कुर्बानियों व योगदान को याद किया जाता है. इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वहन कर सकें.





  • धार्मिक मान्यताएं

हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परंपराएं निभाई जाती रहें. श्राद्धकर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है. मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार, देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए. हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है. पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में पितृ पक्ष श्राद्ध मनाए जाते हैं. मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें. ब्रह्म पुराण के अनुसार, जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दी जाए, वह श्राद्ध कहलाता है. श्राद्ध के माध्यम से पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है. पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है.




      

  • श्राद्ध विधि

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है. साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है. श्राद्ध में तिल और कुश का सर्वाधिक महत्व होता है. श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए. श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.




  • श्राद्ध में कौओं का महत्त्व 



कौए को पितरों का रूप माना जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं. अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता है तो वे रुष्ट हो जाते हैं. इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है.





  • कैसे करें श्राद्ध?

इसे  ब्राहमण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है. आप चाहें तो स्वयं भी कर सकते हैं.
श्राद्ध विधि (shradh vidhi) के लिए ये सामग्री लें - सर्प-सर्पिनी का जोड़ा, चावल, काले तिल, सफेद वस्त्र, 11 सुपारी, दूध, जल तथा माला. फिर पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें. सफेद कपड़े पर सामग्री रखें. 108 बार माला से जाप करें या सुख-शांति,समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहित पितरों से प्रार्थना करें। जल में तिल डालकर 7 बार अंजलि दें. शेष सामग्री को पोटली में बांधकर प्रवाहित कर दें. ब्राह्मणों, निर्धनों, गायों, कुत्तों और पक्षियों को श्रद्धापूर्वक हलवा, खीर व भोजन खिलाएं.

श्राद्ध में 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिए-
1. तर्पण- दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें.
2. पिंडदान- चावल या जौ के पिंडदान करके जरूरतमंदों को भोजन दें.
3. वस्त्रदानः निर्धनों को वस्त्र दें.
4. दक्षिणाः भोजन करवाने के बाद दक्षिणा दें और चरण स्पर्श भी जरूर करें.
5. पूर्वजों के नाम पर शिक्षा दान, रक्त दान, भोजन दान, वृक्षारोपण या चिकित्सा संबंधी दान जैसे सामाजिक कृत्य अवश्य करने चाहिए.
      

  आशिवन  कृष्ण पक्ष  पितृपक्ष  कहलाता है  इस पक्ष में जो व्यक्ति अपने  दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु की तिथि अनुसार तिल,कुशा, पुष्प ,अक्षत ,शुद्ध जल या गंगाजल सहित पिंडदान और तर्पण करता है फल, वस्त्र, दक्षिणा सहित संकल्प पूर्वक दान करता है उसके पितृ संतृप्त होकर जातक को स्वास्थ्य आरोग्य दीर्घायु धन सुख संपदा का आशीर्वाद प्रदान करते हैं  आयु पुत्रान् यश: स्वर्ग- कीर्ति पुषि्टं बलम श्रियम।पशुन सौख्यं धन धान्यं  प्राप्नुयात पितृपूजनात।।  जो व्यक्ति जानबूझकर पित्र श्राद्ध कर्म नहीं करता वह पितरों द्वारा शापित होकर अनेक प्रकार के मानसिक व शारीरिक कष्टों से पीड़ित रहता है पितृ पक्ष पन्द्रह दिन की समयावधि होती है जिसमें हिन्दु जन अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रधांजलि देते हैं।
दक्षिणी भारतीय अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद के चन्द्र मास में पड़ता है औ जातार पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के एक दिन बाद प्रारम्भ होता है।
पितृ पक्ष का अन्तिम दिन सर्वपित्रू अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है।
उत्तरी भारतीय पूर्णीमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन के चन्द्र मास में पड़ता है और भाद्रपद में पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के अगले दिन प्रारम्भ होता है।
यह चन्द्र मास की सिर्फ एक नामावली है जो इसे अलग-अलग करती हैं। उत्तरी और दक्षिणी भारतीय लोग श्राद्ध की विधि समान दिन ही करते हैं
हमारी हिंदू संस्कृति में पुत्र के लिए अपने माता पिता की सेवा एवं उनकी आज्ञा का पालन करना महत्वपूर्ण एवं सर्वश्रेष्ठ धर्म माना गया है भगवती श्रुति का कथन है मातृ देवो भव । पितृ देवो भव । आचार्य देवो भव । माता को देवता मानने वाले बने, पिता को देवता मारने वाले बने, आचार्य को देवता समझो आ। किंतु अंग्रेजी पढ़े लिखे एवं पाश्चात्य सभ्यता में पले हुए हमारे देशवासी इस महत्व को धीरे-धीरे गोन करते जा रहे हैं पदम पुराण के भूमि खंड में तो यहां तक लिखा है जो पाप आत्मा पुत्र किसी अंग से हीन, दिन वृद्ध,दुुखी, महान रोग से पीड़ित माता-पिता को त्याग देता है वह कीड़ों से भरे हुए दारू नर्क में पड़ता है जो पुत्र कटु वचनों के द्वारा माता-पिता की निंदा करता है वह पापी बाघ   की योनि में जन्म लेता है तथा और भी बहुत दु:ख प्राप्त करता है। जो पाप आत्मा पुत्र माता-पिता को प्रणाम नहीं करता वह सहस्त्रर यू गो तक कुंभी पार्क नामक नरक में निवास करता है ।
दूसरी ओर जो  माता पिता की आज्ञा पालन एवं उनकी सेवा करने वालों की सद्गति एवं सुख प्राप्ति करने की सहसत्रो प्रमाण हमारे शास्त्रों में भरे पड़े हैं 





    पिता धर्म: पिता स्वर्ग: पिता ही परमं तप:।
 पितरिं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्व देवता ।।






पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?


हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। उक्त 16 दिनों में हर दिन अलग-अलग लोगों के लिए श्राद्ध होता है। वैसे अक्सर यह होता है कि जिस तिथि तो व्यक्ति की मृत्यु हुई है, श्राद्ध में पड़ने वाली उस तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन इसके अलावा भी यह ध्यान देना चाहिए कि नियम अनुसार किस दिन किसके लिए और कौन सा श्राद्ध करना चाहिए?




किसको करना चाहिए श्राद्ध?
पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को है लेकिन यदि जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यह कोई नहीं हो तो उसकी पत्नी कर सकती है। हालांकि जो कुंआरा मरा हो तो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो, वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है।
16 तिथियों का महत्व क्या है?
श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं, पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वि‍तीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। उक्त किसी भी एक तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है! 
इसके अलावा प्रतिपदा को नाना-नानी का श्राद्ध कर सकते हैं। जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि को श्राद्ध पक्ष में अविधवा नवमी माना गया है। यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को कर सकते हैं। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इस दिन माता एवं परिवार की सभी स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है। इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है।
इसी तरह एकादशी तिथि को संन्यास लेने वाले व्य‍‍‍क्तियों का श्राद्ध करने की परंपरा है, जबकि संन्यासियों के श्राद्ध की ति‍थि द्वादशी (बारहवीं) भी मानी जाती है। श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु अकाल हुई हो या जल में डूबने, शस्त्रों के आघात या विषपान करने से हुई हो, उनका चतुर्दशी की तिथि में श्राद्ध किया जाना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है।

*अतृप्त पितर वंशजोंको हानि करते हैं !*




। 




एज




 




Thursday, 18 June 2020

21जून 2020ग्रहण का आपके लिए प्रभाव


         
 



 नाहन में आंशिक / खण्डग्रास सूर्य ग्रहण
ग्रहण प्रारम्भ काल  21जून रविवार प्रात:- 10:23 ए एम 
परमग्रास - 12:03 पी एम 
ग्रहण की अवधि - 01:49 पी। एम 
खण्डग्रास की अवधि - 03 घण्टे 25 मिनट 42 सेकण्ड्स     
अधिकतम परिधि - 0.98
           
सूतक  प्रारम्भ - 9:54 पी एम ,  20 जून
सूतक  समाप्त - 1:49 पी एम 
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूक्त प्रारम्भ - 05:19 खोज परिणाम के लि एम बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूक्त समाप्त 

21 जून, 2020 का सूर्य ग्रहण

21 जून, 2020 का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इसकी परिधि 0.99 होगी। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि चन्द्रमा की छाया सूर्य का केवल 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वल्याकार आकृति बनाये हुए। यह सूर्य ग्रहण की अधिकतम अवधि के समय ० मिनट और ३ की सेकंडंड की होगी।    

यह सूर्य ग्रहण भारत , नेपाल , पाकिस्तान , सऊदी अरब , यूएई , एथोपिया और कोंगों में दिखाई देता है।        

            

देहरादून , सिरसा और टिहरी कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ पर वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देता है।    

नई दिल्ली , चंडीगढ़ , मुम्बई , कोलकाता , हैदराबाद , बंगलौर , लखनऊ , चेन्नई , शिमला , रियाद , अबू धाबी , कराची , बैंकाक तथा काठमांडू आदि कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।    

                      

Sunday, 3 May 2020

मंत्र सिद्ध प्रदा



अपना कार्य सिद्ध होगा या नहीं इसका पता करने के लिए शास्त्रों में कई विधान है इसमें से एक यह भी है दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं इस मंत्र के 10,000 जब करें और फिर जब कभी जिस किसी कामना की सिद्धि होने या ना होने का ज्ञान करने की कामना हो तो रात्रि के समय शुद्ध आसन पर उत्तर की ओर बैठकर एक हजार जप करें माला को मस्तक के नीचे रखकर वही पर सो जाएं ऐसा करने से नींद ना आने पर सब कामों को सिद्ध करने वाली महाशक्ति सपन में देववाणी संस्कृत के द्वारा कुछ कहे उस कथन को तत्काल ही कागज पर अंकित कर लेना चाहिए और अपने अभीष्ट की सिद्धि सिद्धि को जान लेना चाहिए उत्तर की ओर बैठकर एक हजार जप करें माला को मस्तक के नीचे रखकर वही पर सो जाएं ऐसा करने से निद्रा आने पर सब कामों को सिद्ध करने वाली महाशक्ति सपन में देववाणी संस्कृत के द्वारा कुछ कहे उस कथन को तत्काल ही कागज पर अंकित कर लेना चाहिए और अपने अभीष्ट की सिद्धि सिद्धि को जान लेना चाहिए


महामारी नाश के लिए मंत्र


जयन्ती मड्ंग्ला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री  स्वाहा स्वधा नमस्तुते।।

Monday, 30 March 2020

दारिद्र्य दहन शिवस्तोत्रम्

प्रतिदिन भगवान शंकर का पूजन करके दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ का पाठ करना चाहिए। इससे शिव की कृपा प्राप्ति होकर दारिद्रय का नाश होता है तथा अथाह धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है। इसे पूरे श्रावण मास में सिर्फ पढ़ने से बेशुमार धन संपदा मिलने के योग बनते हैं।

दारिद्रयदहन शिवस्तोत्रम्‌ :

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय
कर्णामृताय शशिशेखरधारणाय।
कर्पूरकांतिधवलाय जटाधराय
दारिद्रयदुःखदहनाय नमः शिवाय ॥1॥
गौरीप्रियाय रजनीशकलाधराय
कालान्तकाय भुजगाधिपकङ्कणाय।
गङ्गाधराय गजराजविमर्दनाय ॥दारिद्रय. ॥2॥
भक्तिप्रियाय भवरोगभयापहाय उग्राय दुर्गभवसागरतारणाय।
ज्योतिर्मयाय गुणनामसुनृत्यकाय ॥ दारिद्रय. ॥3॥
 चर्माम्बराय शवभस्मविलेपनाय भालेक्षणाय मणिकुण्डलमण्डिताय।
 मञ्जीरपादयुगलाय जटाधराय ॥ दारिद्रय. ॥4॥
पञ्चाननाय फणिराजविभूषणाय हेमांशुकाय भुवनत्रयमण्डिताय।
आनंतभूमिवरदाय तमोमयाय ॥दारिद्रय. ॥5॥ 
भानुप्रियाय भवसागरतारणाय कालान्तकाय कमलासनपूजिताय।
 नेत्रत्रयाय शुभलक्षणलक्षिताय ॥दारिद्रय. ॥6॥
रामप्रियाय रघुनाथवरप्रदाय नागप्रियाय नरकार्णवतारणाय।
पुण्येषु पुण्यभरिताय सुरार्चिताय ॥ दारिद्रय. ॥7॥ 
मुक्तेश्वराय फलदाय गणेश्वराय गीतप्रियाय वृषभेश्वरवाहनाय।
मातङग्‌चर्मवसनाय महेश्वराय ॥ दारिद्रय. ॥8॥
वसिष्ठेन कृतं स्तोत्रं सर्वरोगनिवारणम्‌।
सर्वसम्पत्करं शीघ्रं पुत्रपौत्रादिवर्धनम्‌।
त्रिसंध्यं यः पठेन्नित्यं स हि स्वर्गमवाप्नुयात्‌ ॥दारिद्रय. ॥9॥

Tuesday, 24 March 2020

जाने यह बर्ष कैसा रहेगा विक्रमी संवत 2077के बर्ष का फल राजा एवं मंत्री का फल

















इस बार परमादी नामक संवत्सर रहेगा परमादी नामक संवत्सर का प्रयोग किया जाएगा जब भी कोई वर्ष में शुभ कार्य होगा। इस सम्बतसर का प्रयोग होगा। इस वक्त सृष्टि के संम्वत् अनुसार 19558 85121 यह सृष्टि का बर्ष चला हुआ है सृष्टि को इतना समय हो गया है तथा विक्रम संवत 2077 चला हुआ है शक संवत 1942 होगा और कलियुग का समय अभी 5120 वर्ष बीत चुका है तथा कलियुग वर्तमान 5121 बर्ष चल रहा है। जबकि कलियुग की कुल अवधि 432000 बर्ष है।कृष्ण संवत 5256 चला है ।श्री बुद्ध संवत 2643 महावीर जैन संवत 2545 और हिजरी सन 1441 अंग्रेजी का 2020 खालसा का 321 सृष्टि के अनुसार सतयुग का प्रमाण 1728000 बर्ष तथा त्रेता युग 1296 000 बर्ष द्वापर युग प्रमाण 864000 बर्ष कलयुग का प्रमाण 432000 वर्ष का होता है।

परमादी नामक संवत्सर का फल
परमादी नामक संवत्सर 47वां संम्वतसर है। यह शुक्ल प्रतिपदा अर्थात 25 मार्च 2020 ईस्वी अनुसार 12 गते चेत्र बुधवार से प्रारंभ होगा प्रमादी नाम नया संवत्सर 2077 विक्रम संवत के अनुसार अमावस की समाप्ति 24 मार्च 11 गते चेत्र मंगलवार को दोपहर 2:58 पर कर्क लग्न में प्रवेश करेगा परंतु शास्त्र नियम अनुसार विक्रमी संवत 2077 चेत्र बसंत नवरात्रों का प्रारंभ 25 मार्च बुधवार 12 प्रविष्टे चैत्र रेवती नक्षत्र में होगा वर्ष का राजा बुध तथा मंत्री चंद्र होगा परमादी नामक संवत्सर का फल शास्त्रों में इस प्रकार से वर्णित है प्रमाद नामक संवत्सर में सभी प्रकार के धान्य, फसलों का अनाज का उत्पादन होगा सब रस गुड़ चीनी आदि पदार्थों के मूल्यों में वृद्धि होगी आषाढ़ माह में वर्षा कम रहने की संभावना तथा भाद्रपद में अधिक वर्षा होने की संभावना रहेगी।धान्य पदार्थ के मूल्यों में वृद्धि तथा उपद्रव राजनीतिक एवं जातीय हिंसा और जनमानस में भय का वातावरण उपस्थित होगा परमादी संवत्सर में राजा अमैत्री भाववाले हो जाएंगे सरकार की ओर से कठोर एवं अप्रिय निर्णय लिए जाएंगे यद्यपि देश हित के लिए यह कठोर एवं कनिष्ठ नियम एवं कानूनों से सामान्य प्रजा में दुविधा भविष्य एवं आक्रोश की भावना रहेगी इसके अतिरिक्त आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि और प्रजा अकरांत रहेगी।





रोहिणी का बास वर्षा उतरा भाद्रपद  नक्षत्र होने से होने से धन-धान्य दुख दादी पर पदार्थों के मूल्यों में विशेष अधिक तेजी होगी तथा संवत्सर का वाहन सियार होने से आह आकार पृथ्वी पर आकर मत जाता है व्यापक दुर्भिक्ष अथवा स्थानों पर भयानक सूखा अकाल एवं महामारी उत्पन्न हो जाने की स्थिति पैदा होगी थोड़े थोड़े समय में देशों में टकराव की संभावना रहेगी

इस वर्ष का राजा बुध होने से पृथ्वी पर वर्षा अच्छी घर घर में मांगलिक कार्य तथा दान दया धर्म के प्रति बड़े स्वास्थ्य संबंधी चेतना जागृत रहेगी और विशेश्वर व्यापारी शिल्पी तथा वैद्य अर्थात डॉक्टर लोग विशेष लाभान्वित होंगे आयुर्वेदिक योग चिकित्सा प्रणाली का प्रचार प्रसार होगा बर्ष में छल कपट करने वाले लोगों का बोलबाला प्रभाव होगा
संवत का मंत्री चंद्र होने से  वर्ष में धन-धान्य ेश्वरी साधनों का प्रसार होगा देश में वर्षा अधिक तथा गेहूं, धान, सरसों, मक्की, चने की पैदावार अच्छी ,शक्कर ,चीनी, दूध सफेद वस्तुओं का उत्पादन अच्छा तथा चावल चीनी वस्त्र दूध में अन्य श्वेत वस्तुओं का विस्तार लाभप्रद रहेगा। विक्रमी संवत 2077 में शनि की दृष्टि का फल थोड़ा अशुभ रहेगा भारत के उत्तर पूर्वी प्रदेशों में करीब बाढ समुद्री तूफान भूस्खलन महामारी भूकंप यान दुर्घटना अग्निकांड सड़क दुर्घटनाएं आदि प्राकृतिक प्रकोप से भारी कृषि धन धन हानि होने की संभावना होगी कर्क तुला एवं मीन राशि वाले उत्तरी राज्यों में आकाल जन्य परिस्थितियां बनेगी इसका फल अशुभ ही रहेगा || 
                                       

Monday, 9 March 2020

होली कब और कैसे मनाए




9 मार्च को होलिका दहन करने के पश्चात  अगले दिन तारीख 10 मार्च मंगलवार 2020 माघ के 28गते को होली पर्व बड़ी श्रद्धा एवं उत्साह से मनाया जाएगा 10 मार्च को होली पर्व  पंजाब हरियाणा हिमाचल प्रदेश प्रदेश में मनाया जाता है मथुरा वृंदावन होली पर्व बड़ी श्रद्धा से मनाया जाएगा 10 मार्च को  श्री आनंदपुर पांवटा साहिब  सिरमौर हिमाचल प्रदेश में 10 मार्च को होली मेला पर्व मनाया जाएगा।

Sunday, 15 December 2019

26 दिसंबर भारत में दृश्य कंकण सूर्य ग्रहण का विचार एवं इसके प्रभाव





2019 सूर्य ग्रहण का दिन और समय Nahan, हिमाचल प्रदेश, इण्डिय

2019 सूर्य ग्रहण

Nahan, इण्डिया

सूर्य ग्रहण

26वाँ

दिसम्बर 2019

Thursday / गुरूवार

सूर्य ग्रहण का स्थानीय समय

Saturday, 2 November 2019

जानें अक्षय नवमीं तथा इससे मिलने वाला अक्षय फल





           



 

अक्षय नवमीं को किया हुआ पूजा पाठ और दिया हुआ दान का पुण्य अक्षय हो जाता है आंवला नवमी का त्यौहार भारत के कई क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। आंवला नवमी को अक्षय नवमी भी कहा जाता है और ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग कर वृंदावन की गलियों छोड़कर मथुरा चले गये थे। इसके साथ ही माना जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिये आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है।


कब मनाया जाता है आंवला नवमी का त्यौहार

आंवला नवमी का त्यौहार दीपावली के बाद मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को यह त्यौहार मनाया जाता है। साल 2019 में आंवला नवमी या अक्षय नवमी का त्यौहार 5 नवंबर को मनाया जायेगा। आंवला नवमी के दिन पूजा मुहूर्त सुबह 06:45 से 11:54 मिनट तक है।

आंवला नवमी व्रत एवं पूजा विधि

  • इस दिन सुबह उठकर स्नान ध्यान करना चाहिये।
  • स्वच्छ मन से आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुंह करके बैठना चाहिये।
  • इसके बाद धूप-दीप इत्यादि जलाना चाहिये।
  • आंवले के वृक्ष की जड़ों को दूध से सींचना चाहिये और उसके बाद तने पर सूत का धागा लपेटना चाहिये।
  • इसके बाद वृक्ष की पूजा करनी चाहिये।
  • सारे दिन भर व्रत रखने के बाद, आंवले के वृक्ष की सात परिक्रमाएं करने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिये।   

आंवला नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा

आंवला नवमी से जुड़ी कथा के अनुसार एक व्यापारी अपनी पत्नी के साथ काशी नगर में रहता था। बहुत साल गुजर जाने के बाद भी व्यापारी के कोई संतान न हुई, जिसके कारण उसकी पत्नी बहुत परेशान रहने लगी। संतान की प्राप्ति के लिये उसने कई प्रयास किये लेकिन वह सफल नहीं हुई। एक दिन किसी बाबा ने व्यापारी की पत्नी को बताया कि भैरव बाबा के मंदिर में किसी बच्चे की बलि देने से उसे संतान की प्राप्ति हो सकती है। पत्नी ने यह बात जब अपने पति को बताई तो वह बहुत क्रोधित हुआ और पत्नी से कहा कि इस बारे में सोचे भी न। हालांकि पत्नी ने अपने पति से छुपकर एक बच्चे की बलि दे दी। इसके बाद व्यापारी की पत्नी के शरीर पर कई रोग हो गये। व्यापारी यह देखकर बहुत चिंतित हो गया। एक दिन पत्नी ने अपने पति को बता दिया कि उसने एक बच्चे की बलि दी है जिसके बाद पति को बहुत क्रोध आया और उसने अपने पत्नी को बहुत बुरा भला कहा। कुछ समय बाद जब पति का गुस्सा शांत हुआ तो उसने पत्नी को गंगा में स्नान करने की सलाह दी।



व्यापारी की पत्नी रोजाना गंगा जी की पूजा औऱ गंगा 
स्नान करने लगी। उसकी श्रद्धा को देखकर एक दिन माता गंगा ने एक बुढ़िया का रुप धारण करके उसे बताया कि वो वृंदावन जाकर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को व्रत रखे और आंवले की पूजा करे तो उसके सारे रोग दूर हो जाएंगे। व्यापारी की पत्नी ने ऐसा ही किया और विधि-विधान से पूजा कि जिसके बाद उसके शरीर के सारे रोग दूर हो गये औऱ उसे संतान की प्राप्ति भी हुई। उस समय से ही महिलाएं संतान प्राप्ति और आरोग्य के लिये आंवला नवमी का व्रत रखती    हैं। 

Saturday, 21 September 2019

पञ्च महायज्ञ कैसे करें ?

पञ्च महायज्ञ कैसे करें ?


स्वाध्याये नार्चयेतर्षीन्हो मैर्देवान्यथाविधि । पितृ श्राद्धैश्च नृनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा ।। – मनुस्मृति
अर्थ : स्वाध्याय तथा पूजासे  ऋषियोंका सत्कार, शास्त्र अनुसार यज्ञ कर देवताओंकी पूजा, श्राद्धसे पितरोंकी पूजा, अन्न देकर अतिथियोंकी  और बलिकर्मसे सम्पूर्ण भूतोंकी पूजा (संतुष्टि) करनी चाहिए ।
भावार्थ : गृहस्थ जीवन अर्थात कौटुम्बिक जीवन सुखी रहे, इस हेतु हमारे धर्मशास्त्रोंमें पञ्च महायज्ञकी पद्धति बताई गयी है ! यह पञ्च धार्मिक क्रिया, जो  देव, ऋषि, पितर, भूत (जड एवं चेतन) और अतिथिको कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु पञ्चयज्ञ कर्म है, जिनके बिना गृहस्थ जीवन सुखी नहीं हो सकता है ।
वर्तमान कालमें गृहस्थ जीवनमें अनेक कष्ट होनेके पीछे मूल कारण यही हैं । आजका गृहस्थ भोगवादी एवं कृतघ्न हो गया है । मैकालेकी शिक्षण पद्धतिसे उपजे जन्म हिन्दू निमित्त मात्र हिन्दू रह गए है, उसके लिए मात्र स्वार्थ सिद्धि एवं भोग लिप्साका महत्व रह गया है; परिणामस्वरूप उसकी अगली पीढी, धर्मसे विमुख समाज और पितर तीनोंने मिलकर उसका जीवन नरक बना दिया है । सन्तोंका तिरस्कार करना, जीवित माता –पिता एवं अग्रजकी अवमानना करना, उनके प्रति कृतघ्नताका भाव रखना, मृत पितरोंके सूक्ष्म अस्तित्वको नहीं मानना, अतिथिके आनेपर भृकुटी तन जाना और जड एवं चेतन जगतके  प्रति अपने उत्तरदायितत्वको न माननेके कारण आज गृहस्थ आश्रम टूटनेकी सीमा रेखापर पहुंच चुका है।

* कलिकालमें खरे सन्तोंके प्रति सम्मानकी भावना रखना, वैदिक संस्कृतिका प्रसार करना, उस कार्यमें यथाशक्ति योगदान देना, धर्मकार्य करनेवालोंका सम्मान करना, ऋषियोंद्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त एवं शास्त्रोंका अध्ययन एवं अध्यापन करना, धर्माचरण करते हुए समाजके समक्ष आदर्श रख वैदिक परंपराका संरक्षण करना, इससे ऋषि ऋण चुकता करना कहते हैं।

* देवताका नामजप करना एवं करवाना, देवालयोंकी (मंदिरोंकी) रक्षा करना, उनका धर्मशिक्षण स्थलके रूपमें पोषण करना, देवताओंकी विडम्बना रोकना, देवताके सगुण स्वरूपके प्रति निष्ठा रख उनका पञ्चोपचार या षोडशोपचार पूजन या यज्ञ कर, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना इत्यादिसे देव ऋण चुकाया जा सकता है ।

* जीवित पितरके प्रति आदर भाव रख, उनकी सेवा करना एवं मृत्यु उपरान्त उनकी श्राद्ध इत्यादि धार्मिक विधि शास्त्रोक्त पद्धति अनुसार करते हुए नियमित दो घण्टे ‘श्रीगुरुदेव दत्त’का जप करना, इन सबसे पितृ ऋण चुकता होता है ।
  * अतिथिका यथोचित एवं यथाशक्ति निष्काम भावसे प्रेमपूर्वक सेवा करना, इससे अतिथि ऋण चुकता होता है ।

* पञ्च महाभूत एवं प्राणी जगतका विचार कर उनका पोषण करना, समाजके लोग साधना एवं धर्माचरण करें इस हेतु साधनाका महत्व समाजके मनपर प्रतिबिम्बित करने हेतु यथाशक्ति योगदान देनेसे भूत ऋण चुकाया जा सकता है । – पंडित उमादत शर्मा। 

प्रबोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व कब

  बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को  12 नवंबर 2024 मंगलवार को  भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...