Saturday, 21 September 2019

पञ्च महायज्ञ कैसे करें ?

पञ्च महायज्ञ कैसे करें ?


स्वाध्याये नार्चयेतर्षीन्हो मैर्देवान्यथाविधि । पितृ श्राद्धैश्च नृनन्नैर्भूतानि बलिकर्मणा ।। – मनुस्मृति
अर्थ : स्वाध्याय तथा पूजासे  ऋषियोंका सत्कार, शास्त्र अनुसार यज्ञ कर देवताओंकी पूजा, श्राद्धसे पितरोंकी पूजा, अन्न देकर अतिथियोंकी  और बलिकर्मसे सम्पूर्ण भूतोंकी पूजा (संतुष्टि) करनी चाहिए ।
भावार्थ : गृहस्थ जीवन अर्थात कौटुम्बिक जीवन सुखी रहे, इस हेतु हमारे धर्मशास्त्रोंमें पञ्च महायज्ञकी पद्धति बताई गयी है ! यह पञ्च धार्मिक क्रिया, जो  देव, ऋषि, पितर, भूत (जड एवं चेतन) और अतिथिको कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु पञ्चयज्ञ कर्म है, जिनके बिना गृहस्थ जीवन सुखी नहीं हो सकता है ।
वर्तमान कालमें गृहस्थ जीवनमें अनेक कष्ट होनेके पीछे मूल कारण यही हैं । आजका गृहस्थ भोगवादी एवं कृतघ्न हो गया है । मैकालेकी शिक्षण पद्धतिसे उपजे जन्म हिन्दू निमित्त मात्र हिन्दू रह गए है, उसके लिए मात्र स्वार्थ सिद्धि एवं भोग लिप्साका महत्व रह गया है; परिणामस्वरूप उसकी अगली पीढी, धर्मसे विमुख समाज और पितर तीनोंने मिलकर उसका जीवन नरक बना दिया है । सन्तोंका तिरस्कार करना, जीवित माता –पिता एवं अग्रजकी अवमानना करना, उनके प्रति कृतघ्नताका भाव रखना, मृत पितरोंके सूक्ष्म अस्तित्वको नहीं मानना, अतिथिके आनेपर भृकुटी तन जाना और जड एवं चेतन जगतके  प्रति अपने उत्तरदायितत्वको न माननेके कारण आज गृहस्थ आश्रम टूटनेकी सीमा रेखापर पहुंच चुका है।

* कलिकालमें खरे सन्तोंके प्रति सम्मानकी भावना रखना, वैदिक संस्कृतिका प्रसार करना, उस कार्यमें यथाशक्ति योगदान देना, धर्मकार्य करनेवालोंका सम्मान करना, ऋषियोंद्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त एवं शास्त्रोंका अध्ययन एवं अध्यापन करना, धर्माचरण करते हुए समाजके समक्ष आदर्श रख वैदिक परंपराका संरक्षण करना, इससे ऋषि ऋण चुकता करना कहते हैं।

* देवताका नामजप करना एवं करवाना, देवालयोंकी (मंदिरोंकी) रक्षा करना, उनका धर्मशिक्षण स्थलके रूपमें पोषण करना, देवताओंकी विडम्बना रोकना, देवताके सगुण स्वरूपके प्रति निष्ठा रख उनका पञ्चोपचार या षोडशोपचार पूजन या यज्ञ कर, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना इत्यादिसे देव ऋण चुकाया जा सकता है ।

* जीवित पितरके प्रति आदर भाव रख, उनकी सेवा करना एवं मृत्यु उपरान्त उनकी श्राद्ध इत्यादि धार्मिक विधि शास्त्रोक्त पद्धति अनुसार करते हुए नियमित दो घण्टे ‘श्रीगुरुदेव दत्त’का जप करना, इन सबसे पितृ ऋण चुकता होता है ।
  * अतिथिका यथोचित एवं यथाशक्ति निष्काम भावसे प्रेमपूर्वक सेवा करना, इससे अतिथि ऋण चुकता होता है ।

* पञ्च महाभूत एवं प्राणी जगतका विचार कर उनका पोषण करना, समाजके लोग साधना एवं धर्माचरण करें इस हेतु साधनाका महत्व समाजके मनपर प्रतिबिम्बित करने हेतु यथाशक्ति योगदान देनेसे भूत ऋण चुकाया जा सकता है । – पंडित उमादत शर्मा। 

Sunday, 14 July 2019

21जून ग्रहण का आपके लिए प्रभाव


 

 नाहन में आंशिक / खण्डग्रास सूर्य ग्रहण
ग्रहण प्रारम्भ काल - 10:23 ए एम 
परमग्रास - 00:03 पी एम 
ग्रहण की अवधि - 01:49 पी। एम 
खण्डग्रास की अवधि - 03 घण्टे 25 मिनट 42 सेकण्ड्स     
अधिकतम परिधि - 0.98
सूतक  प्रारम्भ - 9:54 पी एम ,  20 जून
सूतक  समाप्त - 1:49 पी एम 
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूक्त प्रारम्भ - 05:19 खोज परिणाम के लि एम बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूक्त समाप्त 

21 जून, 2020 का सूर्य ग्रहण

26 जून, 2020 का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इसकी परिधि 0.99 होगी। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि चन्द्रमा की छाया सूर्य का केवल 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वल्याकार आकृति बनाये हुए। यह सूर्य ग्रहण की अधिकतम अवधि के समय ० मिनट और ३ की सेकंडंड की होगी।    

यह सूर्य ग्रहण भारत , नेपाल , पाकिस्तान , सऊदी अरब , यूएई , एथोपिया और कोंगों में दिखाई देता है।         

देहरादून , सिरसा और टिहरी कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ पर वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देता है।    

नई दिल्ली , चंडीगढ़ , मुम्बई , कोलकाता , हैदराबाद , बंगलौर , लखनऊ , चेन्नई , शिमला , रियाद , अबू धाबी , कराची , बैंकाक तथा काठमांडू आदि कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।               

   ग्रहण काल ​​में क्या करें?*

 जब ग्रहण प्रारंभ हो तो स्नान जप मध्यकाल में होम देव पूजा और ग्रहण का मोक्ष समीप होने पर दान और पूर्ण मोक्ष होने पर स्नान करना चाहिए।

स्पर्शे स्नानं जपं कुर्यान्मध्ये होमो सुराचर्नम्।
मुच्येँ सद दानं विमुक्तौ स्नानमचरेत् ।।


  सूर्य ग्रहण काल ​​में भगवान सूर्य की पूजा आदित्य हृदय स्त्रोत सूर्य अष्टक स्त्रोत आदि सूर्यस्त स्तोत्रौ का पाठ करना चाहिए। पका हुआ अन्न, कटी हुई सब्जी, ग्रहण काल ​​में दूषित हो जाते हैं उन्हें नहीं रखना चाहिए, लेकिन तेल घी दूध दही लस्सी मक्खन पनीर अचार चटनी रब्बा आदि में तिल या कुछ आचरण रखने देने से ग्रहण काल ​​में दूषित नहीं होते हैं। सूखे खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करना की आवश्यकता नहीं ध्यान रहे गिरने सूरज को नंगी आँखों से कद स्थल नहीं देखा वेल्डिंग वाले काले कांच में से देख सकते हैं ग्रहण के समय तक ग्रहण की समाप्ति पर गर्म पानी से स्नान करने निषिद्ध है रोगी गर्भवती स्त्रियों के बालकों के लिए। निश्चित नहीं है कि अवधि में सोना है। खाना-पीना तेल मदन मित्र पुरुषोत्तम निषिद्ध है नाखून भी नहीं काटना चाहिए।

* ग्रहण काल ​​में क्या परहेज रखें *

* ग्रहणकाल में प्रकृति में कई तरह की अशुद्धियों और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए ऐसे कई कार्य हैं, जिन्हें करने के दौरान नहीं किया जाता है।

* ग्रहणकाल में सोना नहीं चाहिए। वृद्ध, रोगी, बच्चे और गर्भवती स्त्रियों की जरूरत के अनुसार सो सकते हैं।वैसे यह ग्रहण मध्यरात्रि से लेकर तड़के के बीच होगा इसलिए धरती के अधिकांश देशों के लोग नींद में होते हैं।

* ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।

* ग्रहणकाल में यात्रा नहीं करना चाहिए, दुर्घटनाएं होने की आशंका बनी रहती है।

* ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।

* ग्रहण को खुले आंखों से न देखें।

* ग्रहणकाल के दौरान महामृत्युंजय मत्र का जाप करना चाहिए।

* गर्भवती महिलाएं क्या करें *

ग्रहण का सबसे अधिक असर गर्भवती स्त्रियों पर होता है। ग्रहण काल ​​के दौरान गर्भवती स्त्रियाँ घर से बाहर न निकलें। बाहर निकलना जरूरी हो तो इश पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर नहीं होगा। ग्रहण काल ​​के दौरान यदि भोजन जरूरी हो तो सिर्फ भोजन की उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करें जिसमें सूतक लगने से पहले तुलसी पत्र या कुशा डला हो। गर्भवती स्त्रियाँ ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ता है। सुई से सिलाई भी न करें। माना जाता है कि इससे बच्चे के कोई अंग जुड़ सकते हैं। ग्रहण काल ​​के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहो।


मेष राशि-धन लाभ वृष-धन हानि मिथुन राशि- वालों को दुर्घटना चोट में भय  कर्क- धन हानि सिंह- लाभ उन्नति कन्या- रोग कष्ट भय तुला- चिन्ता  संतान कष्ट वृश्चिक- शत्रु भय साधारण लाभ धनु- स्त्री पति कष्ट मकर- रोग गुप्त चिंताख कुंभ- खर्च अधिक कार्य विलंब मीन -कार्य सिद्धि।


Thursday, 12 July 2018

ग्रहण विचार

“चंद्र ग्रहण*
27-28 जुलाई 2018 आषाढ़ पूर्णिमा ( *गुरु पूर्णिमा*) के दिन खग्रास यानी पूर्ण चंद्रग्रहण होने जा रहा है। यह ग्रहण कई मायनों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह पूर्ण चंद्रग्रहण सदी का सबसे लंबा और बड़ा चंद्रग्रहण है। इसकी पूर्ण अवधि 3 घंटा 55 मिनट होगी। यह ग्रहण भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों में देखा जा सकेगा। इस चंद्रग्रहण को ब्लड मून कहा जा रहा है क्योंकि ग्रहण के दौरान एक अवस्था में पहुंचकर चंद्रमा का रंग रक्त की तरह लाल दिखाई देने लगेगा।  यह एक खगोलीय घटना है जिसमें चंद्रमा धरती के अत्यंत करीब दिखाई देता है।

 *खग्रास चंद्रग्रहण*
यह खग्रास चंद्रग्रहण उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र तथा मकर राशि में लग रहा है। इसलिए जिन लोगों का जन्म उत्तराषाढ़ा-श्रवण नक्षत्र और जन्म राशि मकर या लग्न मकर है उनके लिए ग्रहण अशुभ रहेगा। मेष, सिंह, वृश्चिक व मीन राशि वालों के लिए यह ग्रहण श्रेष्ठ, वृषभ, कर्क, कन्या और धनु राशि के लिए ग्रहण मध्यम फलदायी तथा मिथुन, तुला, मकर व कुंभ राशि वालों के लिए अशुभ रहेगा।

 *ग्रहण कब से कब तक*
ग्रहण 27 जुलाई की मध्यरात्रि से प्रारंभ होकर 28 जुलाई को तड़के समाप्त होगा।
 *स्पर्श* : रात्रि 11 बजकर 54 मिनट
 *सम्मिलन* : रात्रि 1 बजे
 *मध्य* : रात्रि 1 बजकर 52 मिनट
 *उन्मीलन* : रात्रि 2 बजकर 44 मिनट
 *मोक्ष* : रात्रि 3 बजकर 49 मिनट
 *ग्रहण का कुल पर्व काल* : 3 घंटा 55 मिनट

 *सूतक कब प्रारंभ होगा*
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस खग्रास चंद्रग्रहण का सूतक आषाढ़ पूर्णिमा शुक्रवार दिनांक 27 जुलाई को ग्रहण प्रारंभ होने के तीन प्रहर यानी 9 घंटे पहले लग जाएगा। यानी 27 जुलाई को दोपहर 2 बजकर 54 मिनट पर लग जाएगा। सूतक लगने के बाद कुछ भी खाना-पीना वर्जित रहता है। रोगी, वृद्ध, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां सूतक के दौरान खाना-पीना कर सकती हैं। सूतक प्रारंभ होने से पहले पके हुए भोजन, पीने के पानी, दूध, दही आदि में तुलसी पत्र या कुशा डाल दें। इससे सूतक का प्रभाव इन चीजों पर नहीं होता।

  *ग्रहण काल में क्या सावधानियां रखें*
*ग्रहणकाल में प्रकृति में कई तरह की अशुद्ध और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें ग्रहण काल के दौरान नहीं किया जाता है।

*ग्रहणकाल में सोना नहीं चाहिए। वृद्ध, रोगी, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां जरूरत के अनुसार सो सकती हैं। वैसे यह ग्रहण मध्यरात्रि से लेकर तड़के के बीच होगा इसलिए धरती के अधिकांश देशों के लोग निद्रा में होते हैं।

*ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।

*ग्रहणकाल में यात्रा नहीं करना चाहिए, दुर्घटनाएं होने की आशंका रहती है।

*ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।

*ग्रहण को खुली आंखों से न देखें।

*ग्रहणकाल के दौरान महामृत्युंजय मत्र का जाप करते रहना चाहिए।

 *गर्भवती स्त्रियां क्या करें*
ग्रहण का सबसे अधिक असर गर्भवती स्त्रियों पर होता है। ग्रहण काल के दौरान गर्भवती स्त्रियां घर से बाहर न निकलें। बाहर निकलना जरूरी हो तो गर्भ पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर नहीं होगा। ग्रहण काल के दौरान यदि खाना जरूरी हो तो सिर्फ खानपान की उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करें जिनमें सूतक लगने से पहले तुलसी पत्र या कुशा डला हो। गर्भवती स्त्रियां ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ता है। सुई से सिलाई भी न करें। माना जाता है इससे बच्चे के कोई अंग जुड़ सकते हैं। ग्रहण काल के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करती रहें।

Sunday, 8 July 2018

23 जुलाई 2018 को हरिशयनी एकादशी


हरिशयनी एकादशी 23 जुलाई 2018 
हरिशयनी एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी पर्यंत धर्म परायण एवं तपस्वी लोग चातुर्मास व्रत आदि नियमों का पालन करते हुए 4 मास तक नित्य शतमान आदि विष्णु सहस्त्र पाठ सहित भगवान विष्णु की उपासना करते हैं भोजनोपरांत ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए यदि यदि भगवान क्षण भर भी कभी सोते नहीं परंतु प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान योगनिद्रा को त्याग कर प्रत्येक प्रकार की क्रिया में प्रवृत्त हो जाते हैं और प्राणी मात्र का पालन पोषण और संरक्षण करते हैं

प्रबोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व कब

  बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को  12 नवंबर 2024 मंगलवार को  भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...