प्रतिपदा 17 अक्टूबर से शरद नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं इस दिन श्री दुर्गा माता के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलित करके श्री दुर्गा पूजन कलश स्थापन प्रमुख देवी देवताओं का आवाहन पूजन आदि के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ किया जाता है प्रतिपदा 17 अक्टूबर शनिवार को 7:25 प्रातः कलश की स्थापना करनी चाहिए इस बार सप्तमी और अष्टमी इकट्ठे आ रही है क्योंकि सप्तमी शुक्रवार के दिन सुबह सूर्योदय से कुछ 46 पल तक ही रहेगी और अष्टमी तुरंत बाद लग जाएगी तथा शनिवार को कम होने की वजह से यह शुक्रवार को ही व्रत के लिए मानी जाएगी इसलिए सप्तमी और अष्टमी का व्रत इकट्ठा होगा।
Saturday, 10 October 2020
नवरात्रों के व्रत कब से शुरू और कब खत्म क्या है नवरात्रि का महत्व
Sunday, 20 September 2020
जानिए क्या होता है पुरुषोत्तम मास अधिमास क्या फल है इसका
परंतु किसी रोग और आधी कष्ट आदि में किए जाने वाले जब अनुष्ठान जन्मदिन संतान के जन्म संबंधी कृते गर्भाधानप पुंसवन संस्कार सीमन्तोन्नयन संस्कार तथा पहले से आरंभ किए की निर्माण कार्य किए जा सकते हैं
श्रावण अधिक मास में नियमोका पालना करते हुए विशेषकर एकादशी पूर्णिमा आदि पर्व तिथियों पर भगवान लक्ष्मीनारायण के मंदिर में भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना दान आदि पुरुषोत्तम महात्मय का पाठ करना श्री सूक्त के मंत्र कूर्माय नमः सहस्रशीषाय नमः आदि मंत्र पढ़ते हुई गंध युक्त पुष्प चढाने से मनुष्य श्री लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है आधीमास शुरू होने से प्रातः स्नानादि नित्यक्रम निवृत्तहोकर के एक भूख या नक्त पर रखकर के विष्णु रूप हज़ारों किरण वाले सूर्यनारायण का मंत्रों सहित रक्त पुष्प द्वारा पूजन कर आदित्यसस्त्रोत तथा पुरुषोत्तम मास महातम का पाठ करना चाहिए । कास्य पात्र में फल गुड मिष्ठान वस्त्रों का दक्षिणा सहित दान करना लाभप्रद रहता है ।
अधिक मास में व्रत नियमों की पालना करते हुए भगवान विष्णु का विधिपूर्वक अर्चन व्रत स्नान आदि तथा पुरुषोत्तम महत्तम में का पाठ करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है अधिमास शुरू होने पर प्रात: स्नान नित्य कर्म से निवृत्त होकर के भगवान भास्कर की मंत्रों सहित पुष्पों से पूजा करनी चाहिए और सूर्य स्त्रोत आदित्य हृदय पुरुषोत्तम मास का पाठ करना कांसे के पात्र में अक्षत पुष्प आदि से ध्यान करना लाभकारी होता है
भविष्य पुराण अनुसार पुरुषोत्तम मास में ईश्वर के निमित्त जो व्रत उपवास स्नान दान पूजा किए जाते हैं उसका फल अक्षय हो जाता है व्रत के समय अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं पुराणों में अधिक मास में पूजन व्रत दान संबंधी भिन्न प्रकार का विधान बताए गए हैं प्रातः कॉल उठकर के स्नान संध्या आदि अपने अपने अधिकार के अनुसार नित्य कर्म करके भगवान का स्मरण करना चाहिए और कुछ उत्तम मास के नियम ग्रहण करने चाहिए श्रीमद् श्रीमद् श्रीमद् भागवत पुराण का पाठ करना लाभप्रद रहता है एक लाख तुसी पत्र से शालीग्राम भगवान का पूजन करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है
गोवर्धनधरं बंदे गोपालं गोपरूपिणंम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविंदम् गोपीका प्रियम ।।
इस मंत्र का 1 महीने तक भक्ति पूर्वक जाप करने से उत्तम भगवान लाभ देते हैं प्राचीन काल में श्री कोण्डलीय् ऋषि ने यह मंत्र बताया था मंत्र जपते समय नवीन में एक शाम देव मुरलीधर प्रभारी श्री राधिका जी के सहीत भगवान का ध्यान करना चाहिए ।।
उत्तम मास आरंभ होने पर प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर के एक वक्त भोजन करके विष्णु स्वरुप भगवान भास्कर का लाल पुष्पों से पूजन करना चाहिए इसके अतिरिक्त से अधिक मास में प्रतिदिन उसमें का पाठ निश्चित समय में श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए विष्णु स्त्रोत विष्णु सहस्त्रनाम श्री सूक्त पाठ करना चाहिए अधिक मास की समाप्ति पर भगवान के३३ नामों का जाप करना चाहिए।
Friday, 28 August 2020
जाने पितृ पक्ष कब से ओर कैसे मनाए पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?
- श्राद्ध कब हैं ?
पूजा-पाठ में रुचि रखने वाले सभी श्रद्धालु जानना चाहते हैं कि आखिर श्राद्ध कब हैं. इस साल श्राद्ध 2 सितंबर से शुरू होंगे और 17 सितंबर को समाप्त होंगे. इसके अगले दिन 18 सितंबर से अधिक मास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा. नवरात्रि का पावन पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा और 25 अक्टूबर को समाप्त होगा. वहीं, चतुर्मास देवउठनी के दिन 25 नवंबर को समाप्त होंगे.

- क्यों करें श्राद्ध
"मैंने अपने आध्यात्मिक शोध में पाया है कि जिनके घर अत्यधिक पितृदोष होता है, उनके अतृप्त पितर, कई बार गर्भस्थ पुरुष-भ्रूणकी योनि, जन्मके दो या तीन माह पूर्वमें परिवर्तित कर देते हैं एवं ऐसे पुत्रियोंको जन्मसे ही अत्यधिक अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है; क्योंकि उनपर गर्भकालमें ही आघात हो चुका होता है । वैसे तो यह तथ्य स्थूल दृष्टिसे अवैज्ञानिक लगता है, आपको बता दूं, मैं भी आधुनिक विज्ञानकी छात्र रहा हूं और अपने इस अध्यात्मिक शोधके निष्कर्षको प्रमाणित करने हेतु मैंने कुछ गर्भस्थ माताओंपर सूक्ष्म स्तरके प्रयोग भी और उन सभी प्रयोगोंमें इस तथ्यकी बार-बार पुष्टि हुई जब यह बात कुछ ऐसे लोगोंको बताई जिनकी पुत्री वास्तविकतामें पुत्र ही था (थी); किन्तु जन्मसे कुछ माह पूर्व उनके कुपित अतृप्त पितरोंने गर्भस्थ शिशुकी लिंग परिवर्तित कर दिया तो उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें भी कुछ अध्यात्मविदोंने कहा था कि उनकी कुण्डलीमें पुत्र योग है एवं उनकी पत्नीके गर्भवती थीं, तब उनके सर्व लक्षण पुत्र होनेके ही थे; परन्तु उन्हें पुत्र, नहीं मात्र पुत्रियां हुईं ! इससे, सोलह संस्कारोंमें पुरुष भ्रूणके संरक्षण हेतु संस्कार कर्मोंको विशेष महत्त्व क्यों दिया गया है, यह ज्ञात हुआ । वहीं मैंने यह किसी भी स्त्री भ्रूणके साथ होता हुआ नहीं पाया है, अर्थात् अतृप्त पूर्वज मात्र पुरुष लिंगका ही परिवर्तन करते हैं, पुत्रीका नहीं ! यह सब अध्यात्मिक शोध सूक्ष्म अतिन्द्रियोंके माध्यमसे मैंने किए हैं । आजका आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि पुरुषोंमें x और y दो प्रकारके लिंग-गुणसूत्र (सेक्स-क्रोमोसाम्स) होते हैं, वहीं स्त्रियोंमें एक ही प्रकारका मात्र x लिंग-गुणसूत्र होते हैं । वस्तुत: y गुणसूत्रके अध्ययनसे किसी भी पुरुषके पितृवंश समूहका पता लगाया जा सकता है । इस प्रकार हमारे शास्त्रोंमें क्यों कहा गया है कि अतृप्त पितर कुलका नाश करते हैं, यह भी ज्ञात हुआ । अर्थात पुत्रके न होनेसे अध्यात्मिक हानि हो न हो; किन्तु लौकिक अर्थोंमें उस कुलका एक गुणसूत्र सदैवके लिए समाप्त हो जाता है और हमारे वैदिक मनीषी, हमारी दैवी संस्कृतिके संरक्षक, गुणसूत्रोंके, रक्षणका महत्त्व जानते थे; अतः पुत्र भ्रूणकी रक्षा एवं पुत्रके शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूपसे स्वस्थ जन्म लेने हेतु जन्मपूर्व कुछ संस्कार कर्म, सोलह संस्कार अन्तर्गत अवश्य करवाए जाते थे । वैसे आपको यह स्पष्ट करुं कि मैं गर्भपात और कन्या भ्रूण-हत्याकी प्रखर विरोधक हूं और न ही मैं मात्र पुत्रियोंको जन्म देनवाली माताओंको किसी भी दृष्टिसे हीन मानती हूं एवं न ही यह कहना चाहती हूं कि आपको पुत्र अवश्य होने चाहिए ! मैं तो मात्र यह बताना चाहता हूं कि हमारी वैदिक ऋषि कितने उच्च कोटि के शोधकर्ता ओर वैज्ञानिक थे।"
आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही अक्सर इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती है. प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राद्ध की अवधि में ब्राह्मणों को खिलाया गया भोजन पितरों को मिल जाता है? मन में ऐसे प्रश्न उठना स्वाभाविक है. एकल परिवारों के इस युग में कई बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के नाम तक नहीं मालूम होते हैं. ऐसे में परदादा या परनाना के नाम पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है. अगर आप चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों तक परिवार का नाम बना रहे तो श्राद्ध के महत्व को समझना बहुत जरूरी है. सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वहन अवश्य करें. श्राद्ध कर्म का एक समुचित उद्देश्य है, जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है. दरअसल, श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं. इन 15 दिनों के दौरान उन दिवंगत आत्माओं का स्मरण किया जाता है, जिनके कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है. इस दौरान उनकी कुर्बानियों व योगदान को याद किया जाता है. इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वहन कर सकें.
- धार्मिक मान्यताएं
- श्राद्ध विधि
- श्राद्ध में कौओं का महत्त्व
- कैसे करें श्राद्ध?
पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?
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Thursday, 18 June 2020
21जून 2020ग्रहण का आपके लिए प्रभाव
परमग्रास - 12:03 पी एम
21 जून, 2020 का सूर्य ग्रहण
21 जून, 2020 का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इसकी परिधि 0.99 होगी। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि चन्द्रमा की छाया सूर्य का केवल 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वल्याकार आकृति बनाये हुए। यह सूर्य ग्रहण की अधिकतम अवधि के समय ० मिनट और ३ की सेकंडंड की होगी।
यह सूर्य ग्रहण भारत , नेपाल , पाकिस्तान , सऊदी अरब , यूएई , एथोपिया और कोंगों में दिखाई देता है।
देहरादून , सिरसा और टिहरी कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ पर वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देता है।
नई दिल्ली , चंडीगढ़ , मुम्बई , कोलकाता , हैदराबाद , बंगलौर , लखनऊ , चेन्नई , शिमला , रियाद , अबू धाबी , कराची , बैंकाक तथा काठमांडू आदि कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।
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बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को 12 नवंबर 2024 मंगलवार को भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...

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नवम्बर 2024 शुभ संवत् 2081 कार्तिक १३ गते मंगलवार को धनत्रयोदशी को नवीन बर्तन का क्रय सांय काल में लक्ष्मी नारायण का पूजन करने के ब...