Tuesday, 17 September 2024

जाने आज लगेगा चन्द्र ग्रहण कंहा दिखेगा

 


 


 भारत में अदृश्य  दिखाई  देने वाला यह ग्रहण 


 यह चन्द्रग्रहण जब प्रारम्भ होगा तब तक भारत में चन्द्र अस्त हो चुका होगा । इसलिए भारत में दिखाई  नहीं देगा अतः इस ग्रहण का सूतक काल नहीं माना जाएगा।न कोई परहेज़ ही भारत में माना जाएगा ।


वर्ष 2024 का खग्रास चन्द्रग्रहण: भारत में दृश्यता और सूतक काल की जानकारी


वर्ष 2024 का पहला खग्रास चन्द्रग्रहण 18 सितम्बर, बुधवार को लगने जा रहा है। यह चन्द्रग्रहण विशेष रूप से पूर्णिमा के दिन होगा, और यह खग्रास (पूर्ण) चन्द्रग्रहण शाम 7:43 से लेकर 8:46 मिनट तक रहेगा। भारतीय समयानुसार, चन्द्रग्रहण का यह समय बेहद खास है, लेकिन इस बार एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि भारत में चन्द्र अस्त होने के कारण यह चन्द्रग्रहण दिखाई नहीं देगा।


ौचन्द्रग्रहण की प्रमुख जानकारी:


तारीख: 18 सितम्बर, 2024 (बुधवार)

समय: शाम 7:43 से 8:46 बजे तक (भारतीय समयानुसार)

प्रकार: खग्रास चन्द्रग्रहण (पूर्ण)

दृश्यता: भारत में चन्द्र अस्त होने के कारण यह ग्रहण दिखाई नहीं देगा।


सूतक काल और धार्मिक परहेज़:


वर्ष 2024 का  चन्द्रग्रहण 18 सितम्बर बुधवार को लगने जा रहा है। खग्रास चन्द्रग्रहण 18 सितम्बर बुधवार 3 गते आशिवन ये खग्रास चन्द्रग्रहण पूर्णिमा बुधवार को शाम 7:43 से  8:46 मिनट भारतीय समय के अनुसार दिखाई देगा 


सूतक काल चन्द्रग्रहण के प्रारंभ से पहले लगने वाला वह काल होता है जिसे ज्योतिष और धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन चूंकि यह ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा, इसलिए इस बार सूतक काल भी नहीं माना जाएगा। अर्थात, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस चन्द्रग्रहण का कोई विशेष प्रभाव या परहेज़ भारत में नहीं लागू होगा।


ौअन्य देशों में दृश्यता:


यह चन्द्रग्रहण उन क्षेत्रों में दिखाई देगा जहां चन्द्रमा अस्त नहीं हुआ होगा। इसलिए जो लोग अन्य देशों में रहते हैं, वे इस खगोलीय घटना का साक्षात अनुभव कर सकते हैं।


निष्कर्ष:


हालांकि यह खग्रास चन्द्रग्रहण 2024 की महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है, लेकिन भारत में इसे देखा नहीं जा सकेगा। इस कारण भारतीय धार्मिक परंपराओं में भी इसका कोई विशेष महत्त्व नहीं रहेगा और सूतक काल भी मान्य नहीं होगा।


इस प्रकार, भारत के लोग इस चन्द्रग्रहण के प्रभाव से पूर्णत: मुक्त रहेंगे और सामान्य दिनचर्या का पालन कर सकते हैं।


 



Sunday, 15 September 2024

जाने कब से श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष


जाने कब से श्राद्ध पक्ष या पितृ पक्ष


 

ॐ देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नमः स्वाहायै स्वाधायै नित्यमेव नमो नमः।।




जो व्यक्ति पितृ दोष से मुक्ति चाहता है उसे मार्कण्डेय पुराण महात्मा रुचि द्वारा विरचीत पितृ स्तोत्रम्  इस पितृ स्तोत्र का रोज पाठ करना चाहिये । • श्राद्धपक्ष , अमावस्या , पूर्णिमा या पितरों की पुण्य तिथि पर ब्राह्मण भोजन या संध्या के समय तेल का दीपक जलाकर पितृ स्तोत्र का पाठ करने से पितृदोष की शांति एवं सभी प्रकार की बाधायें दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती है । 
  
• रुचिरुवाच . 
अर्चिता नाम मूर्तानां पितॄणां दीप्त तेजसाम् ।
 नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्य चक्षुषाम् ॥ ॥ १ ॥

 इन्द्रादीनां च नेतारो दक्ष - मारीच - योस्तथा । 
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥ ॥ २ ॥

मन्वादीनां च नेतारः सूर्या - चन्द - मसोस्तथा । 
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृ - नप्यु - दधावपि ॥ ॥ ३ ॥

 नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा । 
द्यावा - पृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ ॥ ४ ॥

देवर्षीणां जनितॄंश्च सर्वलोक - नमस्कृतान् । 
अक्षय्यस्य सदा दातॄन् नमस्येहं कृताञ्जलिः ॥ ॥ ५ll

प्रजापते : कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।
 योगे - श्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ ॥ ६ ॥

नमो गणेभ्य : सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु । 
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥ ॥ ७ ll

सोमाधारान् पितृ - गणान् योगमूर्ति - धरांस्तथा । 
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥ ॥ ८ ॥

अग्रिरूपांस् - तथैवान्यान् नमस्यामि पितॄनहम् । 
अग्रीषोम - मयं विश्वं यत एतदशेषतः ॥ ॥ ९ ॥

ये तु तेजसि ये चैते सोम - सूर्याग्रि मूर्तय : । 
जगत् - स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्म - स्वरूपिणः ॥ ॥१० ॥

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतामनसः । 
नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ॥ ।।११ ।।
 मा.पु. ९ ४ / ३ / १३
मार्कण्डेय पुराण महात्मा रुचि द्वारा विरचीत पितृ स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥




स्तोत्रका को पढने का माहात्म्य पितर बोले- ' जो मनुष्य इस स्तोत्रसे भक्तिपूर्वक हमारी स्तुति करेगा , उसके ऊपर सन्तुष्ट होकर हमलोग उसे मनोवांछित भोग तथा उत्तम आत्मज्ञान प्रदान करेंगे । जो नीरोग शरीर , धन और पुत्र - पौत्र आदिकी इच्छा करता हो , वह सदा इस स्तोत्रसे हमलोगोंकी स्तुति करे यह स्तोत्र हमलोगोंकी प्रसन्नता बढ़ानेवाला है । जो श्राद्धमें भोजन करनेवाले श्रेष्ठ ब्राह्मणोंके सामने खड़े होकर भक्तिपूर्वक इस स्तोत्रका पाठ करेगा , उसके यहाँ स्तोत्र श्रवणके प्रेमसे हम निश्चय ही उपस्थित होंगे और हमारे लिये किया हुआ श्राद्ध भी निःसन्देह अक्षय होगा । चाहे श्रोत्रिय ब्राह्मणसे रहित श्राद्ध हो , चाहे वह किसी दोषसे दूषित हो गया हो अथवा अन्यायोपार्जित धनसे किया गया हो अथवा श्राद्धके लिये अयोग्य दूषित सामग्रियोंसे उसका अनुष्ठान हुआ हो , अनुचित समय या अयोग्य देशमें हुआ हो या उसमें विधिका उल्लंघन किया गया हो अथवा लोगोंने बिना श्रद्धाके या दिखावेके लिये किया हो , तो भी वह श्राद्ध इस स्तोत्रके पाठसे हमारी तृप्ति करनेमें समर्थ होता है । हमें सुख देनेवाला यह स्तोत्र जहाँ श्राद्धमें पढ़ा जाता है , वहाँ हमलोगोंको बारह वर्षोंतक बनी रहनेवाली तृति प्राप्त होती है ..... जिस घर में यह स्तोत्र सदा लिखकर रखा जाता है , वहाँ श्राद्ध करनेपर हमारी निश्चय ही उपस्थिति होती है । अतः श्राद्धमें भोजन करनेवाले ब्राह्मणोंके सामने यह स्तोत्र अवश्य सुनाना चाहिये ; क्योंकि यह हमारी पुष्टि करनेवाला है । ' ( मार्कण्डेयपुराण ,




       

  • श्राद्ध कब हैं ?

पूजा-पाठ में रुचि रखने वाले सभी श्रद्धालु जानना चाहते हैं कि आखिर श्राद्ध कब हैं. इस साल श्राद्ध 17 सितंबर से शुरू होंगे और 2 अक्तुवर को समाप्त  होंगे। इसके अगले दिन  नवरात्रि का पावन पर्व 3 अक्तुवर  से शुरू होगा और 12 अक्टूबर को समाप्त होगा.






       


श्राद्ध कितने प्रकार के  होते हैं?


 बहुत से हिंदुओं को इसकी जानकारी ही नहीं है सभी हिंदुओं को इसकी जानकारी होनी चाहिए

  यम स्मृति आदि में पांच प्रकार के  श्राद्ध का वर्णन मिलता है

 इन पांचो प्रकार के श्राद्ध में पितरों का पूजन किया जाता है।

 चलिए जानते हैं वह श्राद्ध कौन-कौन से हैं?


1)  नित्य श्राद्ध-:  इसमें पितरों के निमित्त रोज जल दिया जाता है।

2) नैमित्तिक  श्राद्ध -: एकोद्दिष्ट श्राद्ध को नैमित्तिक श्राद्ध कहते हैं।

3) काम्य श्राद्ध-:  विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए जब पितरों का पूजन किया जाता है और श्राद्ध किया जाता है उसे काम्य श्राद्ध कहते है।

4) नांदी श्राद्ध-:  यह श्रद्धा संतान के जन्म तथा विवाह आदि में किया जाता है।

5) पार्वण श्राद्ध -: यह श्राद्ध पितृपक्ष में, हर माह की अमावस्या को, तथा पर्वादि तिथियो पर किया जाता है।


  • क्यों करें श्राद्ध

"मैंने अपने आध्यात्मिक शोध में पाया है कि जिनके घर अत्यधिक पितृदोष होता है, उनके अतृप्त पितर, कई बार गर्भस्थ पुरुष-भ्रूणकी योनि, जन्मके दो या तीन माह पूर्वमें परिवर्तित कर देते हैं एवं ऐसे पुत्रियोंको जन्मसे ही अत्यधिक अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है; क्योंकि उनपर गर्भकालमें ही आघात हो चुका होता है । वैसे तो यह तथ्य स्थूल दृष्टिसे अवैज्ञानिक लगता है, आपको बता दूं, मैं भी आधुनिक विज्ञानकी छात्र रहा हूं और अपने इस अध्यात्मिक शोधके निष्कर्षको प्रमाणित करने हेतु मैंने कुछ गर्भस्थ माताओंपर सूक्ष्म स्तरके प्रयोग भी और उन सभी प्रयोगोंमें इस तथ्यकी बार-बार पुष्टि हुई  जब यह बात कुछ ऐसे लोगोंको बताई जिनकी पुत्री वास्तविकतामें पुत्र ही था (थी); किन्तु जन्मसे कुछ माह पूर्व उनके कुपित अतृप्त पितरोंने गर्भस्थ शिशुकी लिंग परिवर्तित कर दिया तो उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें भी कुछ अध्यात्मविदोंने कहा था कि उनकी कुण्डलीमें पुत्र योग है एवं उनकी पत्नीके गर्भवती थीं, तब उनके सर्व लक्षण पुत्र होनेके ही थे; परन्तु उन्हें पुत्र, नहीं मात्र पुत्रियां हुईं ! इससे, सोलह संस्कारोंमें पुरुष भ्रूणके संरक्षण हेतु संस्कार कर्मोंको विशेष महत्त्व क्यों दिया गया है, यह ज्ञात हुआ । वहीं मैंने यह किसी भी स्त्री भ्रूणके साथ होता हुआ नहीं पाया है, अर्थात् अतृप्त पूर्वज मात्र पुरुष लिंगका ही परिवर्तन करते हैं, पुत्रीका नहीं ! यह सब अध्यात्मिक शोध सूक्ष्म अतिन्द्रियोंके माध्यमसे मैंने किए हैं । आजका आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि पुरुषोंमें x और y दो प्रकारके लिंग-गुणसूत्र (सेक्स-क्रोमोसाम्स) होते हैं, वहीं स्त्रियोंमें एक ही प्रकारका मात्र x लिंग-गुणसूत्र होते हैं । वस्तुत: y गुणसूत्रके अध्ययनसे किसी भी पुरुषके पितृवंश समूहका पता लगाया जा सकता है । इस प्रकार हमारे शास्त्रोंमें क्यों कहा गया है कि अतृप्त पितर कुलका नाश करते हैं, यह भी ज्ञात हुआ । अर्थात पुत्रके न होनेसे अध्यात्मिक हानि हो न हो; किन्तु लौकिक अर्थोंमें उस कुलका एक गुणसूत्र सदैवके लिए समाप्त हो जाता है और हमारे वैदिक मनीषी, हमारी दैवी संस्कृतिके संरक्षक, गुणसूत्रोंके, रक्षणका महत्त्व जानते थे; अतः पुत्र भ्रूणकी रक्षा एवं पुत्रके शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूपसे स्वस्थ जन्म लेने हेतु जन्मपूर्व कुछ संस्कार कर्म, सोलह संस्कार अन्तर्गत अवश्य करवाए जाते थे । वैसे आपको यह स्पष्ट करुं कि मैं गर्भपात और कन्या भ्रूण-हत्याकी प्रखर विरोधक हूं और न ही मैं मात्र पुत्रियोंको जन्म देनवाली माताओंको किसी भी दृष्टिसे हीन मानता हूं एवं न ही यह कहना चाहता हूं कि आपको पुत्र अवश्य होने चाहिए ! मैं तो मात्र यह बताना चाहता हूं कि हमारी वैदिक ऋषि कितने उच्च कोटि के शोधकर्ता ओर वैज्ञानिक थे।"

आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही अक्सर इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती है. प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राद्ध की अवधि में ब्राह्मणों को खिलाया गया भोजन पितरों को मिल जाता है? मन में ऐसे प्रश्न उठना स्वाभाविक है. एकल परिवारों के इस युग में कई बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के नाम तक नहीं मालूम होते हैं. ऐसे में परदादा या परनाना के नाम पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है. अगर आप चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों तक परिवार का नाम बना रहे तो श्राद्ध के महत्व को समझना बहुत जरूरी है. सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वहन अवश्य करें. श्राद्ध कर्म का एक समुचित उद्देश्य है, जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है. दरअसल, श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं. इन 15 दिनों के दौरान उन दिवंगत आत्माओं का स्मरण किया जाता है, जिनके कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है. इस दौरान उनकी कुर्बानियों व योगदान को याद किया जाता है. इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वहन कर सकें.





  • धार्मिक मान्यताएं

हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परंपराएं निभाई जाती रहें. श्राद्धकर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है. मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार, देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए. हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है. पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में पितृ पक्ष श्राद्ध मनाए जाते हैं. मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें. ब्रह्म पुराण के अनुसार, जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दी जाए, वह श्राद्ध कहलाता है. श्राद्ध के माध्यम से पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है. पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है.




      

  • श्राद्ध विधि

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है. साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है. श्राद्ध में तिल और कुश का सर्वाधिक महत्व होता है. श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए. श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.




  • श्राद्ध में कौओं का महत्त्व 



कौए को पितरों का रूप माना जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं. अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता है तो वे रुष्ट हो जाते हैं. इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है.





  • कैसे करें श्राद्ध?

इसे  ब्राहमण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है. आप चाहें तो स्वयं भी कर सकते हैं.
श्राद्ध विधि (shradh vidhi) के लिए ये सामग्री लें - सर्प-सर्पिनी का जोड़ा, चावल, काले तिल, सफेद वस्त्र, 11 सुपारी, दूध, जल तथा माला. फिर पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें. सफेद कपड़े पर सामग्री रखें. 108 बार माला से जाप करें या सुख-शांति,समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहित पितरों से प्रार्थना करें। जल में तिल डालकर 7 बार अंजलि दें. शेष सामग्री को पोटली में बांधकर प्रवाहित कर दें. ब्राह्मणों, निर्धनों, गायों, कुत्तों और पक्षियों को श्रद्धापूर्वक हलवा, खीर व भोजन खिलाएं.

श्राद्ध में 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिए-
1. तर्पण- दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें.
2. पिंडदान- चावल या जौ के पिंडदान करके जरूरतमंदों को भोजन दें.
3. वस्त्रदानः निर्धनों को वस्त्र दें.
4. दक्षिणाः भोजन करवाने के बाद दक्षिणा दें और चरण स्पर्श भी जरूर करें.
5. पूर्वजों के नाम पर शिक्षा दान, रक्त दान, भोजन दान, वृक्षारोपण या चिकित्सा संबंधी दान जैसे सामाजिक कृत्य अवश्य करने चाहिए.
      

  आशिवन  कृष्ण पक्ष  पितृपक्ष  कहलाता है  इस पक्ष में जो व्यक्ति अपने  दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु की तिथि अनुसार तिल,कुशा, पुष्प ,अक्षत ,शुद्ध जल या गंगाजल सहित पिंडदान और तर्पण करता है फल, वस्त्र, दक्षिणा सहित संकल्प पूर्वक दान करता है उसके पितृ संतृप्त होकर जातक को स्वास्थ्य आरोग्य दीर्घायु धन सुख संपदा का आशीर्वाद प्रदान करते हैं  आयु पुत्रान् यश: स्वर्ग- कीर्ति पुषि्टं बलम श्रियम।पशुन सौख्यं धन धान्यं  प्राप्नुयात पितृपूजनात।।  जो व्यक्ति जानबूझकर पित्र श्राद्ध कर्म नहीं करता वह पितरों द्वारा शापित होकर अनेक प्रकार के मानसिक व शारीरिक कष्टों से पीड़ित रहता है पितृ पक्ष पन्द्रह दिन की समयावधि होती है जिसमें हिन्दु जन अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रधांजलि देते हैं।
दक्षिणी भारतीय अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद के चन्द्र मास में पड़ता है औ जातार पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के एक दिन बाद प्रारम्भ होता है।
पितृ पक्ष का अन्तिम दिन सर्वपित्रू अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है।
उत्तरी भारतीय पूर्णीमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन के चन्द्र मास में पड़ता है और भाद्रपद में पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के अगले दिन प्रारम्भ होता है।
यह चन्द्र मास की सिर्फ एक नामावली है जो इसे अलग-अलग करती हैं। उत्तरी और दक्षिणी भारतीय लोग श्राद्ध की विधि समान दिन ही करते हैं
हमारी हिंदू संस्कृति में पुत्र के लिए अपने माता पिता की सेवा एवं उनकी आज्ञा का पालन करना महत्वपूर्ण एवं सर्वश्रेष्ठ धर्म माना गया है भगवती श्रुति का कथन है मातृ देवो भव । पितृ देवो भव । आचार्य देवो भव । माता को देवता मानने वाले बने, पिता को देवता मारने वाले बने, आचार्य को देवता समझो आ। किंतु अंग्रेजी पढ़े लिखे एवं पाश्चात्य सभ्यता में पले हुए हमारे देशवासी इस महत्व को धीरे-धीरे गोन करते जा रहे हैं पदम पुराण के भूमि खंड में तो यहां तक लिखा है जो पाप आत्मा पुत्र किसी अंग से हीन, दिन वृद्ध,दुुखी, महान रोग से पीड़ित माता-पिता को त्याग देता है वह कीड़ों से भरे हुए दारू नर्क में पड़ता है जो पुत्र कटु वचनों के द्वारा माता-पिता की निंदा करता है वह पापी बाघ   की योनि में जन्म लेता है तथा और भी बहुत दु:ख प्राप्त करता है। जो पाप आत्मा पुत्र माता-पिता को प्रणाम नहीं करता वह सहस्त्रर यू गो तक कुंभी पार्क नामक नरक में निवास करता है ।
दूसरी ओर जो  माता पिता की आज्ञा पालन एवं उनकी सेवा करने वालों की सद्गति एवं सुख प्राप्ति करने की सहसत्रो प्रमाण हमारे शास्त्रों में भरे पड़े हैं 





    पिता धर्म: पिता स्वर्ग: पिता ही परमं तप:।
 पितरिं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्व देवता ।।






पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?


हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। उक्त 16 दिनों में हर दिन अलग-अलग लोगों के लिए श्राद्ध होता है। वैसे अक्सर यह होता है कि जिस तिथि तो व्यक्ति की मृत्यु हुई है, श्राद्ध में पड़ने वाली उस तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन इसके अलावा भी यह ध्यान देना चाहिए कि नियम अनुसार किस दिन किसके लिए और कौन सा श्राद्ध करना चाहिए?




किसको करना चाहिए श्राद्ध?
पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को है लेकिन यदि जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यह कोई नहीं हो तो उसकी पत्नी कर सकती है। हालांकि जो कुंआरा मरा हो तो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो, वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है।
16 तिथियों का महत्व क्या है?
श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं, पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वि‍तीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। उक्त किसी भी एक तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है! 
इसके अलावा प्रतिपदा को नाना-नानी का श्राद्ध कर सकते हैं। जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि को श्राद्ध पक्ष में अविधवा नवमी माना गया है। यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को कर सकते हैं। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इस दिन माता एवं परिवार की सभी स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है। इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है।
इसी तरह एकादशी तिथि को संन्यास लेने वाले व्य‍‍‍क्तियों का श्राद्ध करने की परंपरा है, जबकि संन्यासियों के श्राद्ध की ति‍थि द्वादशी (बारहवीं) भी मानी जाती है। श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु अकाल हुई हो या जल में डूबने, शस्त्रों के आघात या विषपान करने से हुई हो, उनका चतुर्दशी की तिथि में श्राद्ध किया जाना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है।

*अतृप्त पितर वंशजोंको हानि करते हैं !*

Thursday, 5 September 2024

जाने अपने नाम राशि के मुताबिक कैसा रहेगा सितंबर मास 2024 मास।

Monthly Horoscope - May 2024

जाने अपने नाम राशि के मुताबिक कैसा रहेगा सितंबर मास 2024 मास

Friday, 23 August 2024

कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कब रखें कैसे करें पूजन।


 


 26 तारीक सोमवार ११ गते भाद्रपद को मनाया जाएगा जन्माष्टमी ब्रत है।


१० गते भाद्रपद 25 अगस्त रविवार को अष्टमी रात 3:40 से प्रारंभ होकर के दूसरे दिन सोमवार 26 तारीख रात को 2:20 बजे समाप्त हो जाएगी। अतः यह व्रत सोमवार 26 तारीख का माना जाएगा तथा गुगा नवमी का पर्व 27 अगस्त मंगलवार को मनाया जाएगा।

इसलिए रविवार 25 तारिक १० गते भाद्रपद  रात को किसी समय भी भोजन कर लेना चाहिए। तथा 26 तारिक सोमवार को पुरे दिन का ब्रत रखना चाहिए।मंगलवार बार उदय कालीन नवमी तिथि में उद्यापन करना चाहिए।


26 तारिक सोमवार ११ गते भाद्रपद विक्रम संवत 2081  को जनमष्टमी ब्रत। रात्रि में श्री कृष्ण स्त्रोत पाठ ध्यान कीर्तन करने से अनेक कायिक व मानसिक दुःखों से निवृत्ति होती है ।इन पुण्य अवसरों का लाभ उठाएं।




 भाद्रपद  को व्रत का पारायण(खोलना) चाहिए । 
कैसे खोलें व्रत - व्रत परायण अर्थात खोलने के लिए। प्रातः सूर्य को जल चढ़ाएं। संध्या वंदन आदि करें।पूजा में जोत जलाए।श्री कृष्ण भगवान का पूजन करें। आरती करें।
क्षमा प्रार्थना मांगे 

आवाहनं न जानामि न जानामि विसजृनम।
पूजाचैव न जानामि क्षमयताम परमेश्वर:।।


27 अगस्त मंगलवार को गुग्गा नवमी का पर्व बड़े हर्षौउल्लास से मनाया जाएगा ।
श्रीमद् भागवत के तिथि के हिसाब से श्री कृष्ण कृष्ण जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी  तिथि, रोहिणी नक्षत्र, शुक्रवार  को  अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र के अनुसार तिथि होगी ।और इस वार क्यों हर्षों बाद यह संजोग बन रहा हैं अष्टमी तिथि तथा रोहिणी नक्षत्र का मेल हो रहा है । 

मासी भाद्रपदे अष्टमअष्टम्यां कृष्ण कृष्ण अर्धरात्रअर्धरात्रके, 
वृष राशि की स्थिति चंद्रे नक्षत्र रोहिणी।। (भविष्य पुराण उत्तर) 


कृष्ण जन्माष्टमी निशीथ व्यापिनी गृह्या।
पूर्व दिन और निशीथ योगे पूर्वा।।(धर्मसिंधु) 

स्मार्त एवं वैष्णव में भेद
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व्रत-उपवास आदि करने वालों को 'वैष्णव' व 'स्मार्त' में भेद का ज्ञान होना अतिआवश्यक है। हम यहां 'वैष्णव' व 'स्मार्त' का भेद स्पष्ट कर रहे हैं।

'वैष्णव'- जिन लोगों ने किसी विशेष संप्रदाय के धर्माचार्य से दीक्षा लेकर कंठी-तुलसी माला, तिलक आदि धारण करते हुए तप्त मुद्रा से शंख-चक्र अंकित करवाए हों, वे सभी 'वैष्णव' के अंतर्गत आते हैं।
 
'स्मार्त'- वे सभी जो वेद-पुराणों के पाठक, आस्तिक, पंच देवों (गणेश, विष्णु,‍ शिव, सूर्य व दुर्गा) के उपासक व गृहस्थ हैं, 'स्मार्त' के अंतर्गत आते हैं।

कई पंडित यह बता देते हैं कि  जो गृहस्थ जीवन  बिताते हैं वे स्मार्त होते हैं और कंठी माला धारण करने वाले साधु-संत वैष्णव  होते हैं जबकि ऐसा नहीं है जो व्यक्ति श्रुति स्मृति में विश्वास रखता है। पंचदेव अर्थात ब्रह्मा , विष्णु , महेश , गणेश , उमा को मानता है , वह स्मार्त हैं 

प्राचीनकाल में अलग-अलग देवता को मानने वाले संप्रदाय अलग-अलग थे। श्री आदिशंकराचार्य द्वारा यह प्रतिपादित किया गया कि सभी देवता ब्रह्मस्वरूप हैं तथा जन साधारण ने उनके द्वारा बतलाए गए मार्ग को अंगीकार कर लिया तथा स्मार्त कहलाये।

जो किसी वैष्णव सम्प्रदाय के गुरु या धर्माचार्य से विधिवत दीक्षा लेता है तथा गुरु से कंठी या तुलसी माला गले में ग्रहण करता है या तप्त मुद्रा से शंख चक्र का निशान गुदवाता है । ऐसे व्यक्ति ही वैष्णव कहे जा सकते है अर्थात वैष्णव को सीधे शब्दों में कहें तो गृहस्थ से दूर रहने वाले लोग।

वैष्णव धर्म या वैष्णव सम्प्रदाय का प्राचीन नाम भागवत धर्म या पांचरात्र मत है। इस सम्प्रदाय के प्रधान उपास्य देव वासुदेव हैं, जिन्हें छ: गुणों ज्ञान, शक्ति, बल, वीर्य, ऐश्वर्य और तेज से सम्पन्न होने के कारण भगवान या ‘भगवत’ कहा गया है और भगवत के उपासक भागवत कहलाते हैं। 

इस सम्प्रदाय की पांचरात्र संज्ञा के सम्बन्ध में अनेक मत व्यक्त किये गये हैं। 

‘महाभारत’के अनुसार चार वेदों और सांख्ययोग के समावेश के कारण यह नारायणीय महापनिषद पांचरात्र कहलाता है।

नारद पांचरात्र के अनुसार इसमें ब्रह्म, मुक्ति, भोग, योग और संसार–पाँच विषयों का ‘रात्र’ अर्थात ज्ञान होने के कारण यह पांचरात्र है।

‘ईश्वरसंहिता’, ‘पाद्मतन्त’, ‘विष्णुसंहिता’ और ‘परमसंहिता’ ने भी इसकी भिन्न-भिन्न प्रकार से व्याख्या की है।

‘शतपथ ब्राह्मण’ के अनुसार सूत्र की पाँच रातों में इस धर्म की व्याख्या की गयी थी, इस कारण इसका नाम पांचरात्र पड़ा। इस धर्म के ‘नारायणीय’, ऐकान्तिक’ और ‘सात्वत’ नाम भी प्रचलित रहे हैं।

प्रायः पंचांगों में एकादशी व्रत , जन्माष्टमी व्रत स्मार्त जनों के लिए पहले दिन और वैष्णव लोगों के लिए दूसरे दिन बताया जाता है । इससे जनसाधारण भ्रम में पड जाते हैं। दशमी तिथि का मान 55 घटी से ज्यादा हो तो वैष्णव जन द्वादशी तिथि को व्रत रखते हैं अन्यथा एकादशी को ही रखते है। इसी तरह स्मार्त जन अर्ध्दरात्री को अष्टमी पड रही हो तो उसी दिन जन्माष्टमी मनाते हैं। जबकी वैष्णवजन उदया तिथी को जन्माष्टमी मनाते हैं एवं व्रत भी उसी दिन रखते हैं।



रात में  किर्तन आदि करे ‌‌ ‌‌ ऊँ नमोः भगवते वासुदेवाय नम: ' का जाप करे।
क्योंकि जिस मनुष्य को श्री कृष्ण अष्टमी के उपवास पूजन आदि का सौभाग्य मिलता है उसके कोटी जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह जन्म बंधन से युक्त मुक्त होकर दिव्य वैकुंठ आदि भगवत धाम में निवास करता है ।

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