Saturday, 12 December 2020









साल 2020 का आखिरी और दूसरा सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर को लगेगा। जानें इसकी समय अवधि...

सूर्य ग्रहण- 14 दिसंबर
सूर्य ग्रहण की शुरुआत  -  शाम को 7 बजकर 3 मिनट से
सूर्य ग्रहण की समाप्ति- 14 दिसंबर की मध्यरात्रि 12 बजकर 23 मिनट (15 दिसंबर)
सूर्य ग्रहण की कुल अवधि- 5 घंटा

जून में लगा था इस साल का पहला सूर्य ग्रहण
साल 2020 में चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण दोनों लगे जिनकी कुल मिलाकर संख्या 6 है। जिसमें से 4 चार चंद्र ग्रहण और 2 सूर्य ग्रहण हैं। पहला सूर्य ग्रहण 21 जून, 2020 को लगा था और दूसरा चंद्र ग्रहण 14 दिसंबर, 2020 को लगने वाला है।
 जानें कहां कहां दिखाई देगा सूर्य ग्रहण

सूर्य ग्रहण भारत के अलावा सऊदी अरब, कतर, सुमात्रा, मलेशिया, ओमान, सिंगापुर, नॉर्थन मरिना आईलैंड, श्रीलंका और बोर्नियो में दिखाई देगा। 

सूर्य ग्रहण के दौरान करें ये काम 
भारत में ये सूर्य ग्रहण दिखेगा इसलिए सूतक काल भी मान्य होगा। 

  • सूर्य ग्रहण के सूतक काल की शुरुआत से लेकर सूर्य ग्रहण की समाप्ति तक भगवान का ध्यान करना चाहिए।
  • भगवान के मंत्रों का जाप करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य ग्रहण के दौरान नकारात्मकता बढ़ जाती है जिससे बचने के लिए भगवान का ध्यान करना अच्छा होता है। 
  • सूर्य ग्रहण के दौरान पके हुए खाने या फिर खाने-पीने की किसी भी चीज में तुलसी के पत्ते डाल देने चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पके खाने में तुलसी के पत्ते डाल देने से खाना अशुद्ध होने से बच जाता है। 
  • घर में गंगाजल का छिड़काव करें।
  • सूर्य ग्रहण के बाद पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे डालकर स्नान करें।
  • सूर्य ग्रहण के बाद दान-पुण्य करना चाहिए। 

सूर्य ग्रहण के दौरान न करें ये काम

  • भगवान की मूर्तियों को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
  • बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए।
  • सूर्य ग्रहण के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। यानि कि शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए।
  • सूर्य ग्रहण के वक्त भोजन नहीं करना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति को इस समय भोजन और पानी का सेवन नहीं करना चाहिए। इस समय वो लोग भोजन और पानी का सेवन कर सकते हैं जिनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है या जिनकी तबीयत खराब है। इसके अलावा बच्चे और बुर्जुर्ग व्यक्ति भी भोजन और पानी का सेवन कर सकते हैं।

गर्भवती महिलाएं  ग्रहण के समय बरतें ये सावधानियां

  • गर्भवती महिलाओं को इस दौरान अपना खास ख्याल रखना चाहिए। उन्हें किसी भी तरह का काम नहीं करना चाहिए।
  • सुई में धागा नहीं डालना चाहिये।
  •  कुछ काटना, छीलना नहीं चाहिये।
  •  कुछ छौंकना या बघारना नहीं चाहिये।
  • धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के समय प्रेग्नेंट महिलाओं को बाहर नहीं निकलना चाहिए। 

Thursday, 12 November 2020

दीपावली का पर्व कब और कैसे मनाए

 


13 नवंबर 2020 को धनत्रयोदशी को नवीन बर्तन का क्रय सांय काल में लक्ष्मी नारायण का पूजन करने के बाद अनाज वस्त्र खुशियों एवं उनके निमित्त दीपदान करें इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता

लक्ष्मी पूजा शनिवार, नवम्बर 14, 2020 पर

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 05:25 पी एम से 07:19 पी एम


अवधि - 01 घण्टा 55 मिनट्स


प्रदोष काल - 05:24 पी एम से 08:05 पी एम

वृषभ काल - 05:25 पी एम से 07:19 पी 


इसमें श्री गणेश लक्ष्मी पूजन प्रारंभ कर लेना चाहिए इसी काल में आश्रितों को भेज मिष्ठान आदि बांटना चाहिए

निशिता काल मुहूर्त

08 :08मि0 पी एम से 22:51पी एव  निशीथ काल में सुबह की चौघड़िया 8:48 10:30 तक तथा अमृत की चौघड़िया 10 :30 से रात्रि 12:12 इस समय


इस समय श्री सूक्त कनकधारा स्त्रोत लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करना चाहिए


महानिशिथा काल मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 

11:56 पी एम से 12:32 ए एम, नवम्बर 15

अवधि - 00 घण्टे 36 मिनट्स


निशिता काल - 11:39 पी एम से 12:32 ए एम, नवम्बर 15

सिंह लग्न - 11:56 पी एम से 02:15 ए एम, नवम्बर 15

अमावस्या तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 14, 2020 को 02:17 पी एम बजे

अमावस्या तिथि समाप्त - नवम्बर 15, 2020 को 10:36 ए एम बजे

श्री महा लक्ष्मी पूजन

श्री महालक्ष्मी पूजन दीपदान आदि के लिए प्रदोष काल से आधी रात तक रहने वाली अमावस श्रेष्ठ होती है यदि अर्धरात्रि काल में अमावस तिथि का अभाव हो तो प्रदोष काल में ही दीप प्रज्वलन, महालक्ष्मी पूजन, गणेश एवं कुबेर आदि पूजन कृत्य करने का विधान है। प्रस्तुत बर्ष में कार्तिक अमावस्या 14   नवम्बर शनिवार  सन 2020 ईस्वी को प्रदोष व्यापनी तथा रात्रि  निशीथव्यापनी होने से दीपावली पर्व इसी दिन होगा दीपावली स्वाती  नक्षत्र तथा तुला के चंद्रमा कालीन होगा। सायं सूर्यास्त प्रदोष काल प्रारंभ के बाद मेष वृष लग्न एवं स्वाति नक्षत्र विद्यमान होने से यह समय अवधि श्री गणेश, महालक्ष्मी पूजन और कृतियों के आरंभ के लिए विशेष रूप से प्रशस्त रहेगी। वहीं खातों एवं नवीन शुभ कार्यों के लिए भी यह मुहर्त अत्यंत शुभ होगा। बुधवार की दीपावली व्यापारियों ,क्रय विक्रय करने वालों के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। लक्ष्मी पूजन दीप दान आदि के लिए प्रदोष काल की विशेषता प्रशस्त माना गया है ।
कार्तिके प्रदोषे तु विशेषण अमावस्या निशावर्धके। तस्यां सम्पूज्येत् देवी भोग मोक्ष प्रदायनी।। दीपावली के दिन गृह में प्रदोष काल से महालक्ष्मी पूजन प्रारंभ करके अर्धरात्रि तक जप अनुष्ठान आदि का विशेष महत्व में होता है । प्रदोष काल से कुछ समय पूर्व स्नान आदि उपरांत धर्म स्थल पर मंत्र पूर्वक दीपदान करके अपने निवास स्थान पर श्री गणेश सहित महालक्ष्मी कुबेर पूजा आदि करके अल्पाहार करना चाहिए। तदुपरांत निशिथा आदि मुहूर्तों में मंत्र जप यंत्र सिद्धि आदि अनुष्ठान संपादित करने चाहिए।
दीपावली वास्तव में पांच पर्वों का महत्व माना जाता है। जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनतेरस से लेकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया भाई दूज तक रहती है। दीपावली के पर्व पर धन की प्राप्ति के लिए धन की अधिष्ठात्री धनदा भगवती लक्ष्मी की समारोह पूर्वक आवाहन षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है ।आगे दिए गए निर्दिष्ट शुभ कालो में किसी स्वस्थ एवं पवित्र स्थान पर आटा, हल्दी, अक्षत, पुष्प आदि से अष्टदल कमल बनाकर महालक्ष्मी का आवाहन स्थापना करनी चाहिए देवों का विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। आवाहन मंत्र है -
कां सोस्मितां हिरणयप्रकारामाद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्। पूजा मंत्र है ॐ गं गणपतये नमः । लक्ष्म्यै नम:।नमस्ते सर्व देवानां वरदासि हरे: प्रिया। या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा में भूयात्वदर्चनात।। से श्री लक्ष्मी की ' एरावतसमारुढो म बज्रहस्तो महाबल:।शत यज्ञाधिपो देवस्तस्मा इंद्राय नमः ।
इस मंत्र से इनकी कुबेर की निम्नलिखित मंत्र से पूजा करें कुबेराय नमः, धनदाय नमस्तुभ्यं निधि पद्माधिपाय च। भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादि सम्पद: । पूजन सामग्री में विभिन्न प्रकार की मिठाई फल ,पुष्प ,अक्षत, धूप, दीप आदि सुगंधित वस्तु में सम्मिलित करनी चाहिए। दीपावली पूजन में प्रदोष निश्चित एवं महा निशित काल के अतिरिक्त चौघड़िया मुहूर्त भी पूजन बहीखाता, पूजन ,कुबेर पूजा ,जप आदि अनुष्ठान की दृष्टि से विशेष प्रशस्त एवं शुभ माने जाते है।

शुक्ल प्रतिपदा 15 नवम्बर को श्री कृष्ण, भगवान की प्रसन्नता के लिए अन्नकूट पर्व मनाया जाता है तथा श्री कृष्ण व गोओ की पूजा की जाती है। 16 नवम्बर  को  में भाई बहन के परस्पर स्नेह का प्रतीक भातृ दूज का पर्व मनाया जाएगा इसमें शिव पार्वती विवाह पूजन उपरांत बहन अपने भाई की मंगल कामना हेतु उसे रोली वा केसर का तिलक लगाती है भाई बहन अपनी बहन को श्रद्धा अनुसार उपहार देता है अक्षय नवमी 23 नवंबर को क्या हुआ पूजा पाठ दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है इसी प्रकार हरि प्रबोधिनी एकादशी 25 नवंबर को भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है।


Saturday, 10 October 2020

नवरात्रों के व्रत कब से शुरू और कब खत्म क्या है नवरात्रि का महत्व



 प्रतिपदा 17 अक्टूबर से शरद नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं इस दिन श्री दुर्गा माता के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलित करके श्री दुर्गा पूजन कलश स्थापन प्रमुख देवी देवताओं का आवाहन पूजन आदि के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ किया जाता है प्रतिपदा 17 अक्टूबर शनिवार को 7:25 प्रातः कलश की स्थापना करनी चाहिए इस  बार सप्तमी और अष्टमी इकट्ठे आ रही है क्योंकि सप्तमी शुक्रवार के दिन सुबह सूर्योदय से कुछ 46 पल तक ही रहेगी और अष्टमी तुरंत बाद लग जाएगी तथा शनिवार को कम होने की वजह से यह शुक्रवार को ही व्रत के लिए मानी जाएगी इसलिए सप्तमी और अष्टमी का व्रत इकट्ठा होगा।

देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: । ।

नवरात्रि  एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है नौ  रातें || नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों -महालक्ष्मी माँ सरस्वती और माँ दुर्गा के नौ  स्वरूपों की पूजा की जाती है ||
            शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी ,चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता ,कात्यायनी  कालरात्रि, महागौरी ,सिद्धिदात्री ॥

 इस दिन स्नान ध्यान आदि के बाद शुद्ध पात्र में रेत मिट्टी डालकर मंगल पूर्वक जो गेहूं सप्तधान्य के बीज वपन करने चाहिए तथा श्री दुर्गा जी की मूर्ति के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलन एवं मंत्र उच्चारण सहित घट स्थापन करना चाहिए फिर षोडशोपचार पूजन सहित श्री दुर्गा पूजन करके संकल्प पूर्वक प्रतिपदा से नवमी तिथि तक देवी के सम्मुख दीप जलाकर श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए प्रतिपदा के दिन  ॥       

Sunday, 20 September 2020

जानिए क्या होता है पुरुषोत्तम मास अधिमास क्या फल है इसका

 


                          श्रावण अधिक मास का फल
विक्रम संवत् 2080 के प्रथम श्रावण शुक्ल प्रतिपदा दादा अनुसार 18 जुलाई मंगलवार से श्रावण अधिक मास प्रारंभ होकर 16 अगस्त बुधवार तक व्याप्त रहेगा प्रथम श्रावण शुक्ल पक्ष और द्वितीय श्रावण कृष्ण पक्ष दोनों पक्षों के अंतराल मध्य अवधि में सक्रांति का अभाव होने से श्रावण मास अधिक मास अर्थात पुरुषोत्तम मास माना जाएगा शास्त्रों में श्रावण अधिक मास का फल इस प्रकार से हैं 

‘दुर्भिक्षं श्रावणे युग्मे पृथ्वी नाशा प्रजाक्षयः।

अर्थात जिस वर्ष में दो श्रावण हो अर्थात स्वर्ण अधिमास हो उस भाषण पृथ्वी पर बहूत अधिक दुर्भिक्ष इस अग्निकांड युद्ध यान आदि दुर्घटनाओं प्राकृतिक प्रकोप से धन एवं जन हानि की आशंका रहे । उपद्रव अग्निकांड बाढ़ युद्ध भूकंप आदि से जन धन संपदा की हानि संभावना होगी।

अधिक मास में त्याज्य कर्म अथवा कार्य
 इस अवधि में विवाह मुंडन गृहारंभ गृहप्रवेश देव प्रतिष्ठा काम में व्रत और अनुष्ठान नवीन आभूषण बनवाना नई गाड़ी खरीदना आदि अन्य काम में शुभ कार्यों का आरंभ करना वर्जित माना जाता है जो कार्य पहले से ही आरंभ है वह निरंतर चलते रहेंगे परंतु किसी रोग आदि कष्ट निवृत्ति के लिए किए जाने वाले जप और अनुष्ठान वर्षफल जन्मदिन पूजन संतान के जन्म समय के गर्भाधान पुंसवन सीमांत जैसे संस्कार किए जा सकते हैं अधिक मास में  देव प्रतिष्ठा मुंडन नव गृह प्रवेश की यज्ञोपवित  धारण न कुआँ तलाब बावडी आदि खनन भूमि स्वर्ण तुला गाय आदि का दान  उपनयन संस्कार  संपादन निषेध माना गया है। 


परंतु किसी रोग और आधी कष्ट आदि में किए जाने वाले जब अनुष्ठान  जन्मदिन संतान के जन्म संबंधी कृते गर्भाधान पुंसवन संस्कार सीमन्तोन्नयन संस्कार तथा पहले से आरंभ किए की निर्माण कार्य किए जा सकते हैं

 

श्रावण अधिक मास में  नियमोका  पालना करते हुए विशेषकर एकादशी पूर्णिमा आदि पर्व तिथियों पर भगवान लक्ष्मीनारायण के मंदिर में भगवान विष्णु की विधिवत पूजा अर्चना  दान आदि पुरुषोत्तम महात्मय का पाठ करना श्री सूक्त के मंत्र कूर्माय नमः सहस्रशीषाय नमः   आदि मंत्र पढ़ते हुई गंध युक्त पुष्प चढाने से मनुष्य श्री लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है आधीमास शुरू होने से प्रातः स्नानादि नित्यक्रम निवृत्तहोकर के एक भूख या नक्त पर रखकर के विष्णु रूप हज़ारों किरण वाले सूर्यनारायण का मंत्रों सहित रक्त पुष्प द्वारा पूजन कर आदित्यसस्त्रोत तथा पुरुषोत्तम मास महातम का पाठ करना चाहिए । कास्य पात्र में  फल गुड मिष्ठान वस्त्रों  का दक्षिणा सहित दान करना लाभप्रद रहता है । 


अधिक मास में व्रत नियमों की पालना करते हुए भगवान विष्णु का विधिपूर्वक  अर्चन व्रत स्नान आदि तथा पुरुषोत्तम महत्तम में का पाठ करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है अधिमास शुरू होने पर प्रात: स्नान नित्य कर्म से निवृत्त होकर के भगवान भास्कर की मंत्रों सहित पुष्पों से पूजा करनी चाहिए और सूर्य स्त्रोत आदित्य हृदय पुरुषोत्तम मास का पाठ करना कांसे के पात्र में अक्षत  पुष्प आदि से ध्यान करना लाभकारी होता है 

 भविष्य पुराण अनुसार पुरुषोत्तम मास में ईश्वर के निमित्त जो व्रत उपवास स्नान दान पूजा किए जाते हैं उसका फल अक्षय हो जाता है व्रत के समय अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं पुराणों में अधिक मास में पूजन व्रत दान संबंधी भिन्न प्रकार का विधान बताए गए हैं प्रातः कॉल उठकर के स्नान संध्या आदि अपने अपने अधिकार के अनुसार नित्य कर्म करके भगवान का स्मरण करना चाहिए और कुछ उत्तम मास के नियम ग्रहण करने चाहिए श्रीमद् श्रीमद् श्रीमद् भागवत पुराण का पाठ करना लाभप्रद रहता है एक लाख तुसी पत्र से शालीग्राम भगवान का पूजन करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है 

गोवर्धनधरं बंदे गोपालं गोपरूपिणंम्।

 गोकुलोत्सवमीशानं गोविंदम् गोपीका प्रियम ।।

इस मंत्र का 1 महीने तक भक्ति पूर्वक जाप करने से उत्तम भगवान लाभ देते हैं प्राचीन काल में श्री कोण्डलीय् ऋषि ने यह मंत्र बताया था मंत्र जपते समय नवीन में एक शाम देव मुरलीधर प्रभारी श्री राधिका जी के सहीत भगवान का ध्यान करना चाहिए ।।

  उत्तम मास आरंभ होने पर प्रातः स्नानादि नित्य कर्म से निवृत्त होकर के एक वक्त भोजन करके विष्णु स्वरुप भगवान भास्कर का लाल पुष्पों से पूजन करना चाहिए इसके अतिरिक्त से अधिक मास में प्रतिदिन उसमें का पाठ निश्चित समय में श्रद्धा पूर्वक करना चाहिए विष्णु स्त्रोत विष्णु सहस्त्रनाम श्री सूक्त पाठ करना चाहिए अधिक मास की समाप्ति पर भगवान के३३ नामों का जाप करना चाहिए।

Friday, 28 August 2020

जाने पितृ पक्ष कब से ओर कैसे मनाए पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?

 


       











      

  • श्राद्ध कब हैं ?

पूजा-पाठ में रुचि रखने वाले सभी श्रद्धालु जानना चाहते हैं कि आखिर श्राद्ध कब हैं. इस साल श्राद्ध 2 सितंबर से शुरू होंगे और 17 सितंबर को समाप्त होंगे. इसके अगले दिन 18 सितंबर से अधिक मास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा. नवरात्रि का पावन पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा और 25 अक्टूबर को समाप्त होगा. वहीं, चतुर्मास देवउठनी के दिन 25 नवंबर को समाप्त होंगे.






       


  • क्यों करें श्राद्ध

"मैंने अपने आध्यात्मिक शोध में पाया है कि जिनके घर अत्यधिक पितृदोष होता है, उनके अतृप्त पितर, कई बार गर्भस्थ पुरुष-भ्रूणकी योनि, जन्मके दो या तीन माह पूर्वमें परिवर्तित कर देते हैं एवं ऐसे पुत्रियोंको जन्मसे ही अत्यधिक अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है; क्योंकि उनपर गर्भकालमें ही आघात हो चुका होता है । वैसे तो यह तथ्य स्थूल दृष्टिसे अवैज्ञानिक लगता है, आपको बता दूं, मैं भी आधुनिक विज्ञानकी छात्र रहा हूं और अपने इस अध्यात्मिक शोधके निष्कर्षको प्रमाणित करने हेतु मैंने कुछ गर्भस्थ माताओंपर सूक्ष्म स्तरके प्रयोग भी और उन सभी प्रयोगोंमें इस तथ्यकी बार-बार पुष्टि हुई  जब यह बात कुछ ऐसे लोगोंको बताई जिनकी पुत्री वास्तविकतामें पुत्र ही था (थी); किन्तु जन्मसे कुछ माह पूर्व उनके कुपित अतृप्त पितरोंने गर्भस्थ शिशुकी लिंग परिवर्तित कर दिया तो उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें भी कुछ अध्यात्मविदोंने कहा था कि उनकी कुण्डलीमें पुत्र योग है एवं उनकी पत्नीके गर्भवती थीं, तब उनके सर्व लक्षण पुत्र होनेके ही थे; परन्तु उन्हें पुत्र, नहीं मात्र पुत्रियां हुईं ! इससे, सोलह संस्कारोंमें पुरुष भ्रूणके संरक्षण हेतु संस्कार कर्मोंको विशेष महत्त्व क्यों दिया गया है, यह ज्ञात हुआ । वहीं मैंने यह किसी भी स्त्री भ्रूणके साथ होता हुआ नहीं पाया है, अर्थात् अतृप्त पूर्वज मात्र पुरुष लिंगका ही परिवर्तन करते हैं, पुत्रीका नहीं ! यह सब अध्यात्मिक शोध सूक्ष्म अतिन्द्रियोंके माध्यमसे मैंने किए हैं । आजका आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि पुरुषोंमें x और y दो प्रकारके लिंग-गुणसूत्र (सेक्स-क्रोमोसाम्स) होते हैं, वहीं स्त्रियोंमें एक ही प्रकारका मात्र x लिंग-गुणसूत्र होते हैं । वस्तुत: y गुणसूत्रके अध्ययनसे किसी भी पुरुषके पितृवंश समूहका पता लगाया जा सकता है । इस प्रकार हमारे शास्त्रोंमें क्यों कहा गया है कि अतृप्त पितर कुलका नाश करते हैं, यह भी ज्ञात हुआ । अर्थात पुत्रके न होनेसे अध्यात्मिक हानि हो न हो; किन्तु लौकिक अर्थोंमें उस कुलका एक गुणसूत्र सदैवके लिए समाप्त हो जाता है और हमारे वैदिक मनीषी, हमारी दैवी संस्कृतिके संरक्षक, गुणसूत्रोंके, रक्षणका महत्त्व जानते थे; अतः पुत्र भ्रूणकी रक्षा एवं पुत्रके शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूपसे स्वस्थ जन्म लेने हेतु जन्मपूर्व कुछ संस्कार कर्म, सोलह संस्कार अन्तर्गत अवश्य करवाए जाते थे । वैसे आपको यह स्पष्ट करुं कि मैं गर्भपात और कन्या भ्रूण-हत्याकी प्रखर विरोधक हूं और न ही मैं मात्र पुत्रियोंको जन्म देनवाली माताओंको किसी भी दृष्टिसे हीन मानती हूं एवं न ही यह कहना चाहती हूं कि आपको पुत्र अवश्य होने चाहिए ! मैं तो मात्र यह बताना चाहता हूं कि हमारी वैदिक ऋषि कितने उच्च कोटि के शोधकर्ता ओर वैज्ञानिक थे।"

आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही अक्सर इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती है. प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राद्ध की अवधि में ब्राह्मणों को खिलाया गया भोजन पितरों को मिल जाता है? मन में ऐसे प्रश्न उठना स्वाभाविक है. एकल परिवारों के इस युग में कई बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के नाम तक नहीं मालूम होते हैं. ऐसे में परदादा या परनाना के नाम पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है. अगर आप चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों तक परिवार का नाम बना रहे तो श्राद्ध के महत्व को समझना बहुत जरूरी है. सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वहन अवश्य करें. श्राद्ध कर्म का एक समुचित उद्देश्य है, जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है. दरअसल, श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं. इन 15 दिनों के दौरान उन दिवंगत आत्माओं का स्मरण किया जाता है, जिनके कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है. इस दौरान उनकी कुर्बानियों व योगदान को याद किया जाता है. इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वहन कर सकें.





  • धार्मिक मान्यताएं

हमारे समाज में हर सामाजिक व वैज्ञानिक अनुष्ठान को धर्म से जोड़ दिया गया था ताकि परंपराएं निभाई जाती रहें. श्राद्धकर्म उसी श्रृंखला का एक भाग है जिसके सामाजिक या पारिवारिक औचित्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता है. हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरूरी माना जाता है. मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए तो उसे इस लोक से मुक्ति नहीं मिलती है. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार, देवताओं को प्रसन्न करने से पहले मनुष्य को अपने पितरों यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए. हिन्दू ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है. पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक के काल में पितृ पक्ष श्राद्ध मनाए जाते हैं. मान्यता है कि इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते हैं ताकि वे अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें. ब्रह्म पुराण के अनुसार, जो भी वस्तु उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दी जाए, वह श्राद्ध कहलाता है. श्राद्ध के माध्यम से पितरों की तृप्ति के लिए भोजन पहुंचाया जाता है. पिण्ड रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा होता है.




      

  • श्राद्ध विधि

श्राद्ध में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्व दिया जाता है. साथ ही पुराणों में इस बात का भी जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणों को है. श्राद्ध में तिल और कुश का सर्वाधिक महत्व होता है. श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए. श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.




  • श्राद्ध में कौओं का महत्त्व 



कौए को पितरों का रूप माना जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितर कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं. अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता है तो वे रुष्ट हो जाते हैं. इस कारण श्राद्ध का प्रथम अंश कौओं को दिया जाता है.





  • कैसे करें श्राद्ध?

इसे  ब्राहमण या किसी सुयोग्य कर्मकांडी द्वारा करवाया जा सकता है. आप चाहें तो स्वयं भी कर सकते हैं.
श्राद्ध विधि (shradh vidhi) के लिए ये सामग्री लें - सर्प-सर्पिनी का जोड़ा, चावल, काले तिल, सफेद वस्त्र, 11 सुपारी, दूध, जल तथा माला. फिर पूर्व या दक्षिण की ओर मुंह करके बैठें. सफेद कपड़े पर सामग्री रखें. 108 बार माला से जाप करें या सुख-शांति,समद्धि प्रदान करने तथा संकट दूर करने की क्षमा याचना सहित पितरों से प्रार्थना करें। जल में तिल डालकर 7 बार अंजलि दें. शेष सामग्री को पोटली में बांधकर प्रवाहित कर दें. ब्राह्मणों, निर्धनों, गायों, कुत्तों और पक्षियों को श्रद्धापूर्वक हलवा, खीर व भोजन खिलाएं.

श्राद्ध में 5 मुख्य कर्म अवश्य करने चाहिए-
1. तर्पण- दूध, तिल, कुशा, पुष्प, सुगंधित जल पित्तरों को नित्य अर्पित करें.
2. पिंडदान- चावल या जौ के पिंडदान करके जरूरतमंदों को भोजन दें.
3. वस्त्रदानः निर्धनों को वस्त्र दें.
4. दक्षिणाः भोजन करवाने के बाद दक्षिणा दें और चरण स्पर्श भी जरूर करें.
5. पूर्वजों के नाम पर शिक्षा दान, रक्त दान, भोजन दान, वृक्षारोपण या चिकित्सा संबंधी दान जैसे सामाजिक कृत्य अवश्य करने चाहिए.
      

  आशिवन  कृष्ण पक्ष  पितृपक्ष  कहलाता है  इस पक्ष में जो व्यक्ति अपने  दिवंगत पूर्वजों की मृत्यु की तिथि अनुसार तिल,कुशा, पुष्प ,अक्षत ,शुद्ध जल या गंगाजल सहित पिंडदान और तर्पण करता है फल, वस्त्र, दक्षिणा सहित संकल्प पूर्वक दान करता है उसके पितृ संतृप्त होकर जातक को स्वास्थ्य आरोग्य दीर्घायु धन सुख संपदा का आशीर्वाद प्रदान करते हैं  आयु पुत्रान् यश: स्वर्ग- कीर्ति पुषि्टं बलम श्रियम।पशुन सौख्यं धन धान्यं  प्राप्नुयात पितृपूजनात।।  जो व्यक्ति जानबूझकर पित्र श्राद्ध कर्म नहीं करता वह पितरों द्वारा शापित होकर अनेक प्रकार के मानसिक व शारीरिक कष्टों से पीड़ित रहता है पितृ पक्ष पन्द्रह दिन की समयावधि होती है जिसमें हिन्दु जन अपने पूर्वजों को भोजन अर्पण कर उन्हें श्रधांजलि देते हैं।
दक्षिणी भारतीय अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष भाद्रपद के चन्द्र मास में पड़ता है औ जातार पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के एक दिन बाद प्रारम्भ होता है।
पितृ पक्ष का अन्तिम दिन सर्वपित्रू अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से जाना जाता है। पितृ पक्ष में महालय अमावस्या सबसे मुख्य दिन होता है।
उत्तरी भारतीय पूर्णीमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पितृ पक्ष अश्विन के चन्द्र मास में पड़ता है और भाद्रपद में पूर्ण चन्द्रमा के दिन या पूर्ण चन्द्रमा के अगले दिन प्रारम्भ होता है।
यह चन्द्र मास की सिर्फ एक नामावली है जो इसे अलग-अलग करती हैं। उत्तरी और दक्षिणी भारतीय लोग श्राद्ध की विधि समान दिन ही करते हैं
हमारी हिंदू संस्कृति में पुत्र के लिए अपने माता पिता की सेवा एवं उनकी आज्ञा का पालन करना महत्वपूर्ण एवं सर्वश्रेष्ठ धर्म माना गया है भगवती श्रुति का कथन है मातृ देवो भव । पितृ देवो भव । आचार्य देवो भव । माता को देवता मानने वाले बने, पिता को देवता मारने वाले बने, आचार्य को देवता समझो आ। किंतु अंग्रेजी पढ़े लिखे एवं पाश्चात्य सभ्यता में पले हुए हमारे देशवासी इस महत्व को धीरे-धीरे गोन करते जा रहे हैं पदम पुराण के भूमि खंड में तो यहां तक लिखा है जो पाप आत्मा पुत्र किसी अंग से हीन, दिन वृद्ध,दुुखी, महान रोग से पीड़ित माता-पिता को त्याग देता है वह कीड़ों से भरे हुए दारू नर्क में पड़ता है जो पुत्र कटु वचनों के द्वारा माता-पिता की निंदा करता है वह पापी बाघ   की योनि में जन्म लेता है तथा और भी बहुत दु:ख प्राप्त करता है। जो पाप आत्मा पुत्र माता-पिता को प्रणाम नहीं करता वह सहस्त्रर यू गो तक कुंभी पार्क नामक नरक में निवास करता है ।
दूसरी ओर जो  माता पिता की आज्ञा पालन एवं उनकी सेवा करने वालों की सद्गति एवं सुख प्राप्ति करने की सहसत्रो प्रमाण हमारे शास्त्रों में भरे पड़े हैं 





    पिता धर्म: पिता स्वर्ग: पिता ही परमं तप:।
 पितरिं प्रीतिमापन्ने प्रियन्ते सर्व देवता ।।






पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?


हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्राद्ध पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावस्या तक कुल 16 दिनों तक चलता है। उक्त 16 दिनों में हर दिन अलग-अलग लोगों के लिए श्राद्ध होता है। वैसे अक्सर यह होता है कि जिस तिथि तो व्यक्ति की मृत्यु हुई है, श्राद्ध में पड़ने वाली उस तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है, लेकिन इसके अलावा भी यह ध्यान देना चाहिए कि नियम अनुसार किस दिन किसके लिए और कौन सा श्राद्ध करना चाहिए?




किसको करना चाहिए श्राद्ध?
पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को है लेकिन यदि जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यह कोई नहीं हो तो उसकी पत्नी कर सकती है। हालांकि जो कुंआरा मरा हो तो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं और जिसके सगे भाई न हो, उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र (नाती) को और परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो, वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है।
16 तिथियों का महत्व क्या है?
श्राद्ध की 16 तिथियां होती हैं, पूर्णिमा, प्रतिपदा, द्वि‍तीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या। उक्त किसी भी एक तिथि में व्यक्ति की मृत्यु होती है चाहे वह कृष्ण पक्ष की तिथि हो या शुक्ल पक्ष की। श्राद्ध में जब यह तिथि आती है तो जिस तिथि में व्यक्ति की मृत्यु हुई है उस तिथि में उसका श्राद्ध करने का विधान है! 
इसके अलावा प्रतिपदा को नाना-नानी का श्राद्ध कर सकते हैं। जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई है उनके लिए पंचमी तिथि का श्राद्ध किया जाता है। सौभाग्यवती स्त्री की मृत्यु पर नियम है कि उनका श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए, क्योंकि इस तिथि को श्राद्ध पक्ष में अविधवा नवमी माना गया है। यदि माता की मृत्यु हो गई हो तो उनका श्राद्ध भी नवमी तिथि को कर सकते हैं। जिन महिलाओं की मृत्यु की तिथि मालूम न हो, उनका भी श्राद्ध नवमी को किया जाता है। इस दिन माता एवं परिवार की सभी स्त्रियों का श्राद्ध किया जाता है। इसे मातृ नवमी श्राद्ध भी कहा जाता है।
इसी तरह एकादशी तिथि को संन्यास लेने वाले व्य‍‍‍क्तियों का श्राद्ध करने की परंपरा है, जबकि संन्यासियों के श्राद्ध की ति‍थि द्वादशी (बारहवीं) भी मानी जाती है। श्राद्ध महालय के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को बच्चों का श्राद्ध किया जाता है। जिनकी मृत्यु अकाल हुई हो या जल में डूबने, शस्त्रों के आघात या विषपान करने से हुई हो, उनका चतुर्दशी की तिथि में श्राद्ध किया जाना चाहिए। सर्वपितृ अमावस्या पर ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। इसे पितृविसर्जनी अमावस्या, महालय समापन आदि नामों से जाना जाता है।

*अतृप्त पितर वंशजोंको हानि करते हैं !*




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Thursday, 18 June 2020

21जून 2020ग्रहण का आपके लिए प्रभाव


         
 



 नाहन में आंशिक / खण्डग्रास सूर्य ग्रहण
ग्रहण प्रारम्भ काल  21जून रविवार प्रात:- 10:23 ए एम 
परमग्रास - 12:03 पी एम 
ग्रहण की अवधि - 01:49 पी। एम 
खण्डग्रास की अवधि - 03 घण्टे 25 मिनट 42 सेकण्ड्स     
अधिकतम परिधि - 0.98
           
सूतक  प्रारम्भ - 9:54 पी एम ,  20 जून
सूतक  समाप्त - 1:49 पी एम 
बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूक्त प्रारम्भ - 05:19 खोज परिणाम के लि एम बच्चों, बृद्धों और अस्वस्थ लोगों के लिए सूक्त समाप्त 

21 जून, 2020 का सूर्य ग्रहण

21 जून, 2020 का ग्रहण वलयाकार सूर्य ग्रहण होगा। इसकी परिधि 0.99 होगी। यह पूर्ण सूर्यग्रहण नहीं होगा क्योंकि चन्द्रमा की छाया सूर्य का केवल 99% भाग ही ढकेगी। आकाशमण्डल में चन्द्रमा की छाया सूर्य के केन्द्र के साथ मिलकर सूर्य के चारों ओर एक वल्याकार आकृति बनाये हुए। यह सूर्य ग्रहण की अधिकतम अवधि के समय ० मिनट और ३ की सेकंडंड की होगी।    

यह सूर्य ग्रहण भारत , नेपाल , पाकिस्तान , सऊदी अरब , यूएई , एथोपिया और कोंगों में दिखाई देता है।        

            

देहरादून , सिरसा और टिहरी कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ पर वलयाकार सूर्यग्रहण दिखाई देता है।    

नई दिल्ली , चंडीगढ़ , मुम्बई , कोलकाता , हैदराबाद , बंगलौर , लखनऊ , चेन्नई , शिमला , रियाद , अबू धाबी , कराची , बैंकाक तथा काठमांडू आदि कुछ प्रसिद्ध शहर हैं जहाँ से आंशिक सूर्य ग्रहण दिखाई देगा।    

                      

प्रबोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व कब

  बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को  12 नवंबर 2024 मंगलवार को  भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...