अपना मास का फल जानने के लिए अपने नाम का पहला अक्षर देखें
अपना नाम का पहला अक्षर देखें और इस मास का फल देखें।
भारत में अदृश्य दिखाई ना देने वाले ग्रहण!
भारत (हिमाचल प्रदेश) दिखाई ना देने की वजह से यहां पर ग्रहण का सूतक अथवा परहेज मान्य नहीं होगा।
खंडग्रास सूर्यग्रहण 30 अप्रैल रात्री 1 मई 2022 प्रातः ईस्वी शनिवार रात्रि रविवार प्रातः यह खंडग्रास सूर्यग्रहण अमावस शनिवार की रात्रि भारतीय समय अनुसार रात्री 12:16 से 4:00 बजे प्रातः तक 30 अप्रैल की रात्रि और 1 मई की सुबह घटित होगा यह सूर्य ग्रहण केवल सुदूर उत्तरी अटलांटिक का दक्षिणी अमेरिका में दक्षिणी पश्चिमी देशों जैसे अर्जेटीना, चिल्ली, उत्तर पश्चिमी पराग्वे, मध्य दक्षिणी पूर्वी सुदूर दक्षिण पूर्व दक्षिणी प्रांत तथा दक्षिणी अटलांटिक महासागर में दिखाई देगा। भारतीय समय अनुसार इसका काल इस प्रकार से है ग्रहण प्रारंभ रात्रि 12:16 ग्रहण का मध्य ग्रास रात्रि 2:11 समाप्त प्रातः 4:08 तक।
मास | तारिक |
चैत्र | 16अप्रैल 2022 शनिवार |
वैशाख | 16 मई 2022 सोमवार |
ज्यैष्ठ | 14 जून 2022 मंगलवार |
आषाढ़ | 13 जुलाई 2022 बुधवार |
श्रावण | 12अगस्त 2022 शुक्रवार |
भाद्रपद | 10 सितंबर 2022 शनिवार |
आशिवन | 9 अक्तुवर 2022 रविवार |
कार्तिक | 8 नवम्बर 2022 मंगलवार |
मार्गशीर्ष | 8 दिसंबर 2022 गुरु वार |
पौष | 6 जनवरी 2023शुक्रवार |
माघ | 5 फ़रवरी 2023 रविवार |
फाल्गुन | 7 मार्च 2023 मंगलवार |
इस बार 2 अप्रैल 2022 तथा विक्रमी संवत २०७९ को प्रथम नवरात्रा 20 गते चैत्र शनिवार से शुरू होगा जोकि नल नामक संवत्सर से शुरू होगा इस बार 9 नबरात्री पूरी तरह से लिए जाएंगे उसमें पहले दिन शनिवार के दिन घटस्थापना करना चाहिए उसके पश्चात 9 दिन मां भगवती का ध्यान करते हुए पूजन करना चाहिए।
इस बार 2 अप्रैल 2022 तथा 20 गते चैत्र शनिवार से नवरात्रि शुरू हो रहे है। प्रतिपदा को शुभ मुहूर्त में संवत्सर पूजन घट स्थापन ताम्र या मिट्टी के पात्र में जो गेहूं आदि के बीज बोना ओंकार सहित श्री गणेश विष्णु शिव दुर्गा आदि पंचदेव देवों की पूजा अर्चना करनी चाहिए
प्रतिपदा 2अप्रैल 2022 चैत्र नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं इस दिन श्री दुर्गा माता के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलित करके श्री दुर्गा पूजन कलश स्थापन प्रमुख देवी देवताओं का आवाहन पूजन आदि के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करना चाहिए।2 अप्रैल शनिवार को कलश की स्थापना करनी चाहिए ।
देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: । ।
नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है नौ रातें || नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों -महालक्ष्मी माँ सरस्वती और माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है ||
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी ,चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता ,कात्यायनी कालरात्रि, महागौरी ,सिद्धिदात्री ॥
।इस दिन स्नान ध्यान आदि के बाद शुद्ध पात्र में रेत मिट्टी डालकर मंगल पूर्वक जो गेहूं सप्तधान्य के बीज वपन करने चाहिए तथा श्री दुर्गा जी की मूर्ति के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलन एवं मंत्र उच्चारण सहित घट स्थापन करना चाहिए फिर षोडशोपचार पूजन सहित श्री दुर्गा पूजन करके संकल्प पूर्वक प्रतिपदा से नवमी तिथि तक देवी के सम्मुख दीप जलाकर श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए प्रतिपदा के दिन ॥
अश्वनी नक्षत्र में मंगलवार प्रात: कलश स्थापना करना शुभ रहेगा।
नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि
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शारदीय नवरात्रि का पर्व भारत में हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है।
इस वर्ष 2022 में नवरात्रों का आरंभ 2अप्रैल शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगा। दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को
2 अप्रैल (शनिवार) के दिन की जाएगी।
नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है।
नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं. दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन,दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या कलाप संपन्न किए जाते हैं।
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है।व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है।
नवरात्रि में माता दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर तिथि का एक विशेष महत्व होता है और माता के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। यह समय सिद्धि प्राप्ति के लिए भी उचित माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इन दिनों में माता के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
भक्तगण माता को प्रसन्न करने के लिए सभी अपने-अपने तरीके से प्रयास करते हैं। कोई नौ दिन का उपवास रखता है,
तो कोई चप्पल नहीं पहनता। साथ ही अनेक स्थानों पर गरबों का आयोजन भी किया जाता है।माता की भक्ति में ये दिन कब गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता। दसवें दिन माता की मूर्ति को नदी में विसर्जित किया जाता है और यह प्रार्थना की जाती है कि माता सबके जीवन के दु:खों का अंत करें और सुख-शांति लाएं। यदि देखा जाए तो यह पर्व मन,वाणी व व्यसनों पर काबू करने की सीख देता है।
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इस दिन सूर्योदय से प्रात: प्रतिपदा तिथि में कलश स्थापना के लिये उपयुक्त नक्षत्र अश्विनी रहेगा ॥
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प्रतिपदा तिथि 👉 घटस्थापना,चन्द्रदर्शन, शैलपुत्री, पूजा 2अप्रैल शनिवार नवरात्रि
द्वितीया तिथि 👉 ब्रह्मचारिणी पूजा 3अपैल रविवार
तृतीया तिथि 👉 चंद्रघंटा 4 सोमवार
चतुर्थी तिथि 👉 कुष्मांडा 5 मंगलवार
पंचमी तिथि 👉 स्कंदमाता 6 बुधवार
षष्ठी तिथि 👉 कात्यायनी, 7अप्रैल वीरवार
सप्तमी तिथि कालरात्रि 8 अप्रैल शुक्रवार
अष्टमी तिथि 👉 महागौरी 9 अप्रैल शनिवार
नवमी तिथि 👉 सिद्धिदात्री 10 रविवार
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हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।
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पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें।
कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति रखें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।
मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिवाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।
नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन इस प्रकार करें
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भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.
अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.
नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. तथा दुर्गा जी के १०८ नामों को मंत्र रूप में उसका अधिकाधिक जप करें।
अब एक दूसरी स्वच्छ थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर पुष्प का आसन लगाकर दुर्गा प्रतिमा या तस्वीर या यंत्र को स्थापित करें।
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स्नानार्थ जलं समर्पयामि
(जल से स्नान कराए)
स्नानान्ते पुनराचमनीयं जल समर्पयामि
(जल चढ़ाए)
दुग्ध स्नानं समर्पयामि
(दुध से स्नान कराए)
दधि स्नानं समर्पयामि
(दही से स्नान कराए)
घृतस्नानं समर्पयामि
(घी से स्नान कराए)
मधुस्नानं समर्पयामि
(शहद से स्नान कराए)
शर्करा स्नानं समर्पयामि
(शक्कर से स्नान कराए)
पंचामृत स्नानं समर्पयामि
(पंचामृत से स्नान कराए)
गन्धोदक स्नानं समर्पयामि
(चन्दन एवं इत्र से सुवासित जल से स्नान करावे)
शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि
(जल से पुन: स्नान कराए)
यज्ञोपवीतं समर्पयामि
(यज्ञोपवीत चढ़ाए)
चन्दनं समर्पयामि
(चंदन चढ़ाए)
कुकंम समर्पयामि
(कुकंम चढ़ाए)
सुन्दूरं समर्पयामि
(सिन्दुर चढ़ाए)
बिल्वपत्रै समर्पयामि
(विल्व पत्र चढ़ाए)
पुष्पमाला समर्पयामि
(पुष्पमाला चढ़ाए)
धूपमाघ्रापयामि
(धूप दिखाए)
दीपं दर्शयामि
(दीपक दिखाए व हाथ धो लें)
नैवेध निवेद्यामि
(नेवैध चढ़ाए(निवेदित) करे)
ऋतु फलानि समर्पयामि
(फल जो इस ऋतु में उपलब्ध हो चढ़ाए)
ताम्बूलं समर्पयामि
(लौंग, इलायची एवं सुपारी युक्त पान चढ़ाए)
दक्षिणा समर्पयामि
(दक्षिणा चढ़ाए)
इसके बाद कर्पूर अथवा रूई की बाती जलाकर आरती करे।
आरती के नियम:- प्रत्येक व्यक्ति जानकारी के अभाव में अपनी मन मर्जी आरती उतारता रहता है। विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणो पर से, दो बार नाभि पर से, एकबार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से।
आरती की बत्तियाँ १, ५, ७ अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियाँ बनाकर आरती की जानी चाहिए।
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जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
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“यानि कानि च पापानी जन्मान्तर कृतानि च।
तानी सर्वानि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
प्रदक्षिणा समर्पयामि।"
प्रदक्षिणा करें (अगर स्थान न हो तो आसन पर खड़े-खड़े ही स्थान पर घूमे)
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( पुष्प सर्मपित कर देवी को निम्न मंत्र से प्रणाम करे।)
"नमो दैव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृतयै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम॥
या देवी सर्व भूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥"
ततपश्चात देवी से क्षमा प्रार्थना करे कि जाने अनजाने में कोई गलती या न्यूनता-अधिकता यदि पूजा में हो गई हो तो वे क्षमा करें।
इस पूजन के पश्चात अपने संकल्प मे कहे हुए मनोकामना सिद्धि हेतु निम्न मंत्र का यथाशक्ति श्रद्धा
अनुसार ९ दिन तक जप करें:-
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥”
इस मंत्र के बाद दुर्गा सप्तशती के सभी अध्यायो का पाठ ९ दिन मे पूर्ण करें। या यथा सामर्थ प्रतिदिन एक पाठ करे।
जयन्ती मड्ंग्ला काली भद्रकाली कपालिनी ।|
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमस्तुते।|
नवरात्री की समाप्ति पर यदि कलश स्थापना की हो तो इसके जल को सारे घर मे छिड़क दें। इस प्रकार पूजा सम्पन्न होती है। यदि कोई व्यक्ति विशेष उपरांकित विधि का पालन करने मे असमर्थ है तो नवरात्रि के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
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माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
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मकर सक्रांति 14 जनवरी 2022 शुक्रवार द्वादशी तिथि इस दिन 2:29 पर वृष लग्न प्रवेश करेगी और इसका पुण्य काल प्रातः 8:05 के बाद पूरे दिन रहेगा ।इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन किया हुआ दान पुण्यदायक होता है। यह माघ का महीना पूरे 12 महीनों में सबसे पुणे दायक महीना होता है इस महीने में अपने सामर्थ्य अनुसार भगवान का भजन पूजन करना चाहिए इस मास में किया हुआ भजन पूजन बहुत ही लाभकारी होता है।इस प्रकार से नंदा नामक यह संवत्सर ब्राह्मण पशुओं शिक्षित वर्ग के लिए लाभकारी रहेगा इस दिन तीर्थों पर स्नान आदि का विशेष महत्व होगा तथा पुण्य की प्राप्ति होगी ।जो तीर्थों में ना जा सके वह घर में श्रद्धा पूर्वक स्नान करें और वही उनका स्मरण करें इसी प्रकार 17 तारीख जनवरी सोमवार 4 गते माघ को पूर्णिमा होगी उस दिन हरिद्वार प्रयाग कुरुक्षेत्र तीर्थों पर या घर में गंगा जल से शुद्ध जल से स्नान करें जप ध्यान करें प्रभु की कृपा सदा बनी रहे।
https://youtu.be/4nLAW2vJ1nM
बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को 12 नवंबर 2024 मंगलवार को भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...