Wednesday, 25 October 2023

सम्पूर्ण भारत में शनिवार को दिखेगा ग्रहण

  

भारत में  दिखाई  देने वाला यह ग्रहण 

 वर्ष 2023 का पहला खंडास चन्द्र ग्रहण 28एवं  अक्तुवर शनिवार 2023 को लगने जा रहा है। खण्डास चन्द्रग्रह  28  अक्तूबर 2023 शनिवार बार 12  गते कार्तिक  खण्डास चन्द्र ग्रहण (पूर्णिमा ) शनिवार को भारतीय समय के अनुसार रात्रि बज कर 05 मिनट से रात्रि 2बजके  24 मिनट तक दिखाई देगा  यह ग्रहण भारत में दिखाई   देगा  इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल 28 अक्तूबर 4बजकर 05 मिनट से प्रारम्भ माना जाएगा।

खंडग्रास सूर्य ग्रहण 




28 अक्टूबर 2023  शनिवार यह खंडग्रास सूर्यग्रहण लगभग संपूर्ण भारत में दिखाई देगा  भारत में ग्रहण का मोक्ष समाप्ति  इस प्रकार  से है । 

अक्टूबर 28  शनिवार १२ गते कार्तिक 
ग्रहण प्रारंभ रात 1 बजकर05 मिनट

मध्य ग्रहण 1 बजकर 44 मिनट

ग्रहण  समाप्ति का समय  शाम - 2 बजकर 44 मिनट


संपूर्ण ग्रहण रहेगा 01घण्टाट 19 मिनट्स 

सूतक प्रारम्भ 28 अक्तुवर रात 25 अक्तूबर 2023 सूर्यास्त से पहले शाम 4 बजकर 05 मिनट से प्रारम्भ हो जाएगा।


पर्व काल- ध्यान रहे क्योंकि लगभग संपूर्ण भारत  को यह ग्रहण ग्रस्त होगा भारत में 28/29अक्तूबर 2023 है कि मध्य रात्रि 01 :05 पर ये चंद्र ग्रहण शुरू होगा इस समय तक संपूर्ण भारत में  चन्द्रमा उदय हो चुका होगा ।भारत के सभी नगरों ग्रामों 28 अक्तूबर को शाम 4 बजे से शाम छह बजे तक चन्द्रोदय   हो जाएगा ।  खण्ड ग्रास चंद्र ग्रहण 28 अक्तुवर  की रात्रि 1:05 प्रारंभ होकर रात्रि 2:24 पर होगा भारत के सभी  नगरो  में इसका प्रारम्भ मध्य  तथा मोक्ष रूप में देखा जा सकेगा । 


ग्रहण  काल और बाद में क्या करें?


 जब ग्रहण प्रारंभ हो तो स्नान जप मध्यकाल में होम देव पूजा और ग्रहण का मोक्ष समीप होने पर दान तथा पूर्ण मोक्ष होने पर स्नान करना चाहिए।

                स्पर्शे स्नानं जपं कुर्यान्मध्ये होमो सुराचर्नम्।मुच्यमाने सदा दानं विमुक्तौ स्नानमाचरेत्।।


  ग्रहण  काल में सूर्य की पूजा करने के लिए सूर्य की शुरुआत में सूर्य अष्टक का पाठ  होना सूर्य स्त्रोत का  पाठ होना चाहिए।

ग्रहण काल में क्या सावधानियां रखें*

 पका हुआ अन्न,कटी हुई सब्जी, ग्रहण काल में दूषित हो जाते हैं उन्हें नहीं रखना चाहिए परंतु तेल घी दूध दही लस्सी मक्खन पनीर अचार चटनी रब्बा आदि में तिल या कुछ कुशा रख देने से ग्रहण काल में दूषित नहीं होते सूखे खाद्य पदार्थों में डालने की आवश्यकता नहीं।

 ध्यान रहे ग्रहण को नंगी आंखों से कदापि नहीं देखे वेल्डिंग वाले काले गिलास में से देख सकते हैं ग्रहण के समय तक ग्रहण की समाप्ति पर गर्म पानी से स्नान करना निषिद्ध है रोगी गर्भवती स्त्रियां बालकों के लिए निश्चित नहीं है काल में सोना खाना-पीना तेल मदन मित्र पुरुषोत्तम निषिद्ध है नाखून भी नहीं काटने चाहिए।

  • *ग्रहणकाल में प्रकृति में कई तरह की अशुद्ध और हानिकारक किरणों का प्रभाव रहता है। इसलिए कई ऐसे कार्य हैं जिन्हें ग्रहण काल के दौरान नहीं किया जाता है।                                      
  • *ग्रहणकाल में सोना नहीं चाहिए। वृद्ध, रोगी, बच्चे और गर्भवती स्त्रियां जरूरत के अनुसार सो सकती हैं। 
  • *ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  • *ग्रहणकाल में यात्रा नहीं करना चाहिए, दुर्घटनाएं होने की आशंका रहती है।
  • *ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।
  • *ग्रहण को खुली आंखों से न देखें।
  • *ग्रहणकाल के दौरान महामृत्युंजय मत्र का जाप करते रहना चाहिए।

 *गर्भवती स्त्रियां क्या करें*

ग्रहण का सबसे अधिक असर गर्भवती स्त्रियों पर होता है। ग्रहण काल के दौरान गर्भवती स्त्रियां घर से बाहर न निकलें। बाहर निकलना जरूरी हो तो गर्भ पर चंदन और तुलसी के पत्तों का लेप कर लें। इससे ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर नहीं होगा। ग्रहण काल के दौरान यदि खाना जरूरी हो तो सिर्फ खानपान की उन्हीं वस्तुओं का उपयोग करें जिनमें सूतक लगने से पहले तुलसी पत्र या कुशा डला हो। गर्भवती स्त्रियां ग्रहण के दौरान चाकू, छुरी, ब्लेड, कैंची जैसी काटने की किसी भी वस्तु का प्रयोग न करें। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे के अंगों पर बुरा असर पड़ता है। सुई से सिलाई भी न करें। माना जाता है इससे बच्चे के कोई अंग जुड़ सकते हैं। 

      ग्रहण काल के दौरान भगवान श्रीकृष्ण के मंत्र ओम नमो भगवते वासुदेवाय या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करती रहें।


यह ग्रहण अश्वनी नक्षत्र तथा मेष राशि  में होगा आते इस राशि नक्षत्र में उत्पन्न लोगों के लिए विशेष अशुभ है अतः इस राशि वालों को ग्रहण ग्रहण दान तथा आदित्य स्त्रोत सूर्य अष्टक स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। सूर्य का जप दान चन्द्र दान करें।

 ग्रहण का राशियों पर असर

  • मेष राशि - दुर्घटना शरीर कष्ट शत्रुता 
  • वृषराशि-  धन हानि 
  •  मिथुन -  धन लाभ हानि चिन्ता 
  • कर्क -रोग कष्ट
  • सिंह- सन्तान संम्बन्धित चिंता 
  •  कन्या-  शत्रु भय खर्च 
  • तूला- स्त्री/ पति परेशानी
  •  वृश्चिक राशि  रोग गुप्त चिन्ता 
  • धनु- खर्च अधिक कार्य बिल्म्ब 
  •  मकर-  कार्य लाभ 
  • कुंभ- धन लाभ 
  •  मीन - धन हानि व्यर्थ यात्रा 


सभी से मेरा विनम्र  अनुरोध रहेगा कि आप सभी इस विषय में अधिक से अधिक लोगों को अवगत कराएं ताकि जनमानस को इसके नुकसान से बचाया जा सके।तथा ग्रहण की खतरनाक किरणों से गर्भावस्था में पल रहे शिशु के लिए अच्छी नहीं होती ताकि गर्भावस्था में शिशु को कोई भी विकार ना आ पाए है तथा शीशु के शरीर में किसी प्रकार की विकृति ना आए हमरा उद्देश्य है कि सभी लोग स्वस्थ और निरोग रहे।

#सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः 

सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।।



Saturday, 14 October 2023

जाने आश्विन नवरात्रे कब से क्या है पूजन विधि

 



प्रतिपदा  15 अक्तुबर २९ गते आश्विन  से शरद नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं इस दिन श्री दुर्गा माता के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलित करके श्री दुर्गा पूजन कलश स्थापन प्रमुख देवी देवताओं का आवाहन पूजन आदि के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ किया जाता है प्रतिपदा 15 अक्तुवर  रविवार   10:25 प्रातः के बाद कलश की स्थापना करनी चाहिए 

देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । 

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: । ।

नवरात्रि  एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है नौ  रातें || नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों -महालक्ष्मी माँ सरस्वती और माँ दुर्गा के नौ  स्वरूपों की पूजा की जाती है ||
            शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी ,चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता ,कात्यायनी  कालरात्रि, महागौरी ,सिद्धिदात्री ॥

 इस दिन स्नान ध्यान आदि के बाद शुद्ध पात्र में रेत मिट्टी डालकर मंगल पूर्वक जो गेहूं सप्तधान्य के बीज वपन करने चाहिए तथा श्री दुर्गा जी की मूर्ति के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलन एवं मंत्र उच्चारण सहित घट स्थापन करना चाहिए फिर षोडशोपचार पूजन सहित श्री दुर्गा पूजन करके संकल्प पूर्वक प्रतिपदा से नवमी तिथि तक देवी के सम्मुख दीप जलाकर श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए प्रतिपदा के दिन  ॥       

Friday, 6 October 2023

जाने कंहा लगेगा अक्तूबर 14 को कंकण सूर्य ग्रहण

 



भारत में अदृश्य  दिखाई  देने वाला यह ग्रहण 

 वर्ष 2023 का पहला कंकण सूर्य ग्रहण 14 अक्तुवर शनिवार 2023 को लगने जा रहा है। कंकण सूर्यग्रहण 14 अक्तूबर 2023 शनिवार बार 28  गते अशोज ये कंकण सूर्यग्रहण अमावस्या शनिवार को भारतीय समय के अनुसार रात्रि 8बज कर 34 मिनट से रात्रि 2बजके  25 मिनट तक दिखाई देगा  यह ग्रहण भारत में दिखाई  नहीं देगा इसलिए इस ग्रहण का सूतक काल नहीं माना जाएगा।न कोई परहेज़ ही भारत में माना जाएगा ।

यह ग्रहण सुदूर दक्षिणी क्षेत्रो को छोडकर लगभग सम्मपूर्ण उतरी अमरीका से लेकर दक्षिणी अमेरिका के देशों तक दिखेगा । 

Thursday, 21 September 2023

भाद्रपद मास में आवे वाली ऋषिपंचमी-व्रत कथा, विधि और महिमा

 भाद्रपद मास में आवे वाली ऋषिपंचमी-व्रत कथाविधि और महिमा


 महादेवजी कहते हैंपार्वती एक समय की बात हैमैंने जगत् स्वामीके भगवान श्रीविष्णु से पूछाभगवान सभी व्रतोंमें उत्तम व्रत कौन हैकौन पुत्र-पौत्रकी वृद्धि करने वाला और सुख-सौभाग्यको देने वाला हो उस समय उन्होंने जो कुछउत्तर दियावह सब मैं पृष्ठ पर हूँ सुनो.


 श्रीविष्णु बोलेमहाबाहु शिव पूर्वकाल में देवशर्मा नामके एक ब्राह्मण रहते थेजो वेदोंके पारगामी विद्वान थे औरसदा स्वाध्यायमें ही लगे रहते थे।  प्रतिदिन अग्निहोत्र करते हुए तथा सदा अध्ययन-अध्यापनयजन-यजन एवंदान-प्रतिग्रहरूप कर्मोंमें प्रवृत्त रहते थे।  सभी वर्णों के लोगों में उनका बड़ा आदमी था।  चे पुत्रपशु औरबन्धु-बांधव - सबसे प्रभावशाली थे।  ब्राह्मणों में श्रेष्ठ देवशर्माकी गृहिणीका नाम भगवान था।  भादोंके शुक्लपक्ष मेंपंचमी तिथि आनेपर तपस्या


 ( व्रत पालन ) इन्द्रियोंको वशें धारण किये पिताका एकोद्दिष्ट श्राद्ध करते थे।  पहली दी रात में सुख और सौभाग्यप्रदान करने वाले ब्राह्मणों को निमंत्रण देते थे और निर्मल प्रभातकाल आते थेदूसरे दूसरे नील बिंदु मांगते थे और उनसभी देशों में अपनी स्त्रीके द्वारा पाक तैयार करने के लिए तैयार किए जाते थे।  वह पाक आठ रसोंसे युक्त एवंपितरोंको संतोष प्रदान करने वाला था।  पाक तैयार होने पर वे पृथक्करण-पृथक ब्राह्मणों को बुलायावा सगा बुलावतेथे।


 एक बार उक्ति समय पर निमन्त्रण पाठ में समस्त वेदपाठी ब्राह्मण डोईमें देवशर्माके घर उपस्थित हुए।  विप्रवरदेवशर्मणे अर्घ्य-पाद्यादि निवेदन करके उनका स्वागत-सत्कार करें।  फिर घरके इन जानेपर सार्वजनिक रूप से बैठने केलिए आसन दिया और विशेष मिष्ठान्नके के साथ उत्तम अन्न उन्हें भोजन करनेके के लिये साथ ही विधि-विधान सेपिंडदानी का अनुष्ठान करने वाला श्राद्ध भी किया।  इसके बाद पिता का चिंतन करते हुए उन्होंने उन ब्राह्मणोंको नानाप्रकार के वस्त्रदक्षिणा और तांबूल से निवेदन किया।  फिर उन युनिवर्सिटी विदा।  वे सभी ब्राह्मण आशीर्वाद देते हुएचले गये।  ईजाद अपने सगोतीबंधु बांधव तथा और भी जो लोग भागीदार थेउन साबुत ब्राह्मण ने विधि खाना दिया।  इस प्रकार श्राद्धका कार्य समाप्त होने पर ब्राह्मण जब कुटीके द्वार पर बैठाउस समय उनकी घरकी कुटिया और बैलदोनों के बीच कुछ बातचीत करने लगे।  देवी बुद्धि ब्राह्मणे उन दोनोकी बातें संतं और समझीं।  फिर मन-ही-मन वे इसप्रकार कहते हैं- 'ये साक्षात् मेरे पिता हैंजो मेरे ही घरके पशु हैं और यह भी साक्षात मेरी माता हैजो दैवयोगसे कुटियाहो गई हैं।  अब मैं दस्तावेज़ों के लिए निश्चित रूप से क्या करूँ?'  इसी विचार में पढ़े-लिखे ब्राह्मणों को रातभर नींदनहीं आई।  वे भगवान विश्वेश्वर का स्मरण करते रहे।  प्रात:कालपर वे ऋषियोंके निकट आये।  वहां वसिष्ठजीनेउनका स्वागत किया गया।


 वसिष्ठजी बोलेब्राह्मणश्रेष्ठ अपना अनेका कारण बताएं।


 ब्राह्मण बोलामुनिवर !  आज मेरा जन्म सफल हुआ तथा मेरी सम्पूर्ण क्रियाएँ आज सफल हो गयीं क्योंकि इससमय मुझे आपका दुर्लभ दर्शन प्राप्त हुआ है।  अब मेरा समाचार सुनिए।  आज मैंने शास्त्रोक्त विधि से श्राद्ध कियाब्राह्मणों को भोजन दिया और समस्त कुटुंबके लोगों को भी भोजन दिया।  प्रत्येक भीजन की आकृति एक कुतिया आईऔर मेरे घर में एक भी बैल नहीं रहता हैवहां उसे पतिरूपसे चित्रित करके इस प्रकार देखा जाता हैजो घटना घटी हैउसे सुनो।  इस घरमें जो 'स्वामिन्!'  आज दूध का पॉश्चर रखा गया थाउसे सपने अपना ज़हरकर ने देखा मेरे मन मेंबोल बड़ी चिंता हुई।  देखेंयह कर दिया।  ये मैंने अपनी आँखों से देखा था।  दूध से जब भोजन तैयार होगाउस समयसब ब्राह्मण


 यहीं पर मर गया।  यो विचारकर में स्वयं उस दूध को पीने लगी।  तीसरी में बहुकी दृष्टि मुझपर पड़ गई।  उसने मुझेबहुत मारा मेरा अंग-भंग हो गया है।  इसी तरह मैं लड़कियाँ खड़ी हुई चल रही है।  'क्या करूँबहुत दुःखी हूँ।'


 कुतियाके दुःख का अनुभव करके भी आपने कहाअब मैं अपने दुःख का कारण बताता हूँसुनो मैं पूर्वजन्म में इसब्राह्मण का साक्षात् पिता था।  आज ईस्टर ब्राह्मणोंको भोजनालय और समृद्ध अन्नका दान किया गया है समुद्र मेरेआगे की ओर चास और जलतक नहीं रखा।  इसी दुःख से मुझे आज बहुत परेशानी हुई है।  उन दोनों के इन चित्रों नेमुझे रातभर नींद में नहीं आने दिया।  मुनिश्रेष्ठ।  मुझे तभी से बड़ी चिंता हो रही है।  मैं वेद का स्वाध्याय करने वाला हूंवैदिक कर्मों के अनुष्ठान में कुशल हूं फिर भी मेरे माता-पिता को महान दुख सहन करना पड़ रहा है।  इसके लिए मैं क्याकरूँ यही विचारविचार आपके पास आया हूं।  आप ही मेरा अभिरुचि दूरदर्शिता।


 ऋषि बोले-ब्राह्मण !  उन दोनों ने पूर्वजन्म में जो कर्म किया हैउसे सुनो-इसके  पिता परम सुंदर कुंडिननगर श्रेष्ठब्राह्मण रह रहे हैं।  एक समय भादोंके महीने में पंचमी तिथि आती थीपिता-पिता के श्राद्ध आदि में लग जाते थेइसलिए उन्हें पंचमौके व्रत का ध्यान नहीं दिया जाता था।  उनके पिता की क्षयाह तिथि थी।  उस दिन विवाह मातारजस्वला हो गई थीतो उसने भी ब्राह्मणों के लिए सारा भोजन स्वयं ही तैयार किया।  रजस्वला स्त्री पहले दिनचांडालीदूसरे दिन ब्रह्मघातिनी और तीसरे दिन धोबिनके समान अपवित्र बताई गई हैचौथे दिन स्नानके बाद उसकीशुद्धि होती है।  टोकरे माताने इस पर विचार नहीं कियामूलतः वही पापसेसेस अपनी ही घरकी कुटिया में पड़ा हुआ है।  तथापि पिता भी इसी कर्म से जुड़े हुए हैं।


 ब्राह्मणने कहाउत्तम व्रतका पालन करनेवाले मुने।  मुझे कोई ऐसा व्रतदानयज्ञ और तीर्थ बताता हैजिसके सेवन सेमेरे माता-पिता की मुक्ति हो जाती है।


*भगवान् पद्मपुराण*


 पुलहश्चैव क्रतुः वसिष्ठमारिचात्रेय अर्घ्यं गृह्नन्तु


 प्राचेतसस्तथा।


 वो नमः॥


 (78.59-60)


 ऋषि बोलेभादोंके शुक्लपक्ष में जो पंचमी आती हैउसका नाम ऋषिपंचमी है।  उस दिन नदीकुएँपोखरे याकेब्राह्मण के घर पर व्यापारी स्नान करे।  फिर अपने घर गोबरसे लीपकर मंडल एक बर्तन उसे तिन्नीके चावल भर दे।  उसपात्र में यज्ञोपवीतसुवर्ण और फल के साथ ही सुख 'ऋषिपंचमीके व्रत में स्थित पुरुषों को हर समय भोजन करके व्रतकरना होता है।  उस दिन ऋषियोंका पूजन करना है।  पूजनेके ब्राह्मणको दक्षिणा और घीके साथ अर्घ्यका मंत्र इसप्रकार हैसमय


 पुलस्त्यः


 'ऋषिगण सदा मेरे व्रतको पूर्ण करनेवाले हूं।  बनाना मिश्रण कलश की स्थापना करे।  कलशके ऊपर वे मेरी दीवालीपूजा स्वीकार करें।  सभी ऋषियों को मेरा नमस्कार।  पुलस्त्यपुलहक्रतुप्राचेतसवसिष्ठमारीच और आत्रेय - येमेरा अर्घ्य ग्रहण करें।  आप और शुभकामनाएँवाले सात ऋषियोंकी स्थापना करें।  सभी ऋषियों को मेरा प्रणाम।'


 इस प्रकार मनोरम धूप-दीप आदिके द्वारा ऋषियोंकी आह्वान करके पूजन करना नक्षत्र।  तिन्नीके चावलका पूजाकरणीय जन्मोत्सव।  इस व्रत के प्रभाव से पितरों की मुक्ति ही नैवेद्य स्थान और उसी का भोजन करे।  बस एक ही बातहै वत्स पूर्वकर्मके परिणामसे या राजके संस्कारदोषसे जो कष्ट होता हैवह इस व्रतका अनुष्ठानके साथपरमभक्तिके मन्त्रोंका उच्चारण करते हुए निःसंदेह से मिल जाता है।


 महादेवजी कहते हैं- 'ऋषिपंचमीव्रत का अनुष्ठान विधिपूर्वक भोजनसामग्रीका दान देना और पितृ-माताकी मुक्ति केलिए प्रार्थना करना।  उस व्रत के प्रभाव से वे दोनों पति-पत्नी पुत्रों को सभी ऋषियों की शुभकामनाएं देते हुए इसदानका उद्देश्य को आशीर्वाद देते हुए मुक्तिमार्ग से चल पड़े।  'ऋषिपंचमी'- नक्षत्र।  फिर विधि अनपेक्षित महात्म्यकथा श्रोता का यह पवित्र व्रत ब्राह्मणके लिए बताया गया हैबोरा ऋषियोंकी प्रदक्षिणा करे और ईसाईपृथक्करण-पृथक जो नरश्रेष्ठ इसका अनुष्ठान करते हैंवे सभी पुण्यके धूप-दीप और नैवेद्य निवेदन करके अर्घ्य प्रदानकरें।  भागी होते हैं।  जो श्रेष्ठ पुरुष इस परम उत्तम ऋषिव्रतका का पालन करते हैंवे इस लोक में प्रचुर भोगों काउपभोग करके अंत में भगवान श्रीविष्णुके सनातन लोक को प्राप्त होते हैं।


 सन्तु नित्यं व्रतसं वास्तुकारिणः।  पूजां गृह्न्नतु मद्दत्तामृषिभ्योऽस्तु नमो नमः   ऋषयः मे


 


 पद्मपुराण उत्तरखंड का 77वाँ अध्याय

प्रबोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व कब

  बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को  12 नवंबर 2024 मंगलवार को  भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...