Thursday, 15 September 2022

पितृ स्तोत्र का पाठ करने से पितृदोष की शांति एवं सभी प्रकार की बाधायें दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती






 जो व्यक्ति पितृ दोष से मुक्ति चाहता है उसे मार्कण्डेय पुराण महात्मा रुचि द्वारा विरचीत पितृ स्तोत्रम्  इस पितृ स्तोत्र का रोज पाठ करना चाहिये । • श्राद्धपक्ष , अमावस्या , पूर्णिमा या पितरों की पुण्य तिथि पर ब्राह्मण भोजन या संध्या के समय तेल का दीपक जलाकर पितृ स्तोत्र का पाठ करने से पितृदोष की शांति एवं सभी प्रकार की बाधायें दूर होकर उन्नति की प्राप्ति होती है । 

 रुचिरुवाच . 


अर्चिता नाम मूर्तानां पितॄणां दीप्त तेजसाम् ।

 नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्य चक्षुषाम् ॥ ॥ १ ॥

 इन्द्रादीनां च नेतारो दक्ष - मारीच - योस्तथा । 

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान् ॥ ॥ २ ॥

मन्वादीनां च नेतारः सूर्या - चन्द - मसोस्तथा । 

तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृ - नप्यु - दधावपि ॥ ॥ ३ ॥

 नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा । 

द्यावा - पृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ ॥ ४ ॥

देवर्षीणां जनितॄंश्च सर्वलोक - नमस्कृतान् । 

अक्षय्यस्य सदा दातॄन् नमस्येहं कृताञ्जलिः ॥ ॥ ५ll

प्रजापते : कश्पाय सोमाय वरुणाय च ।

 योगे - श्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलिः ॥ ॥ ६ ॥

नमो गणेभ्य : सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु । 

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे ॥ ॥ ७ ll

सोमाधारान् पितृ - गणान् योगमूर्ति - धरांस्तथा । 

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम् ॥ ॥ ८ ॥

अग्रिरूपांस् - तथैवान्यान् नमस्यामि पितॄनहम् । 

अग्रीषोम - मयं विश्वं यत एतदशेषतः ॥ ॥ ९ ॥

ये तु तेजसि ये चैते सोम - सूर्याग्रि मूर्तय : । 

जगत् - स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्म - स्वरूपिणः ॥ ॥१० ॥

तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतामनसः । 

नमो नमो नमस्तेस्तु प्रसीदन्तु स्वधाभुज ॥ ।।११ ।। मा.पु. ९ ४ / ३ / १३।। 

मार्कण्डेय पुराण महात्मा रुचि द्वारा विरचीत पितृ स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥

स्तोत्रका को पढने का माहात्म्य पितर बोले- ' जो मनुष्य इस स्तोत्रसे भक्तिपूर्वक हमारी स्तुति करेगा , उसके ऊपर सन्तुष्ट होकर हमलोग उसे मनोवांछित भोग तथा उत्तम आत्मज्ञान प्रदान करेंगे । जो नीरोग शरीर , धन और पुत्र - पौत्र आदिकी इच्छा करता हो , वह सदा इस स्तोत्रसे हमलोगोंकी स्तुति करे यह स्तोत्र हमलोगोंकी प्रसन्नता बढ़ानेवाला है । जो श्राद्धमें भोजन करनेवाले श्रेष्ठ ब्राह्मणोंके सामने खड़े होकर भक्तिपूर्वक इस स्तोत्रका पाठ करेगा , उसके यहाँ स्तोत्र श्रवणके प्रेमसे हम निश्चय ही उपस्थित होंगे और हमारे लिये किया हुआ श्राद्ध भी निःसन्देह अक्षय होगा । चाहे श्रोत्रिय ब्राह्मणसे रहित श्राद्ध हो , चाहे वह किसी दोषसे दूषित हो गया हो अथवा अन्यायोपार्जित धनसे किया गया हो अथवा श्राद्धके लिये अयोग्य दूषित सामग्रियोंसे उसका अनुष्ठान हुआ हो , अनुचित समय या अयोग्य देशमें हुआ हो या उसमें विधिका उल्लंघन किया गया हो अथवा लोगोंने बिना श्रद्धाके या दिखावेके लिये किया हो , तो भी वह श्राद्ध इस स्तोत्रके पाठसे हमारी तृप्ति करनेमें समर्थ होता है । हमें सुख देनेवाला यह स्तोत्र जहाँ श्राद्धमें पढ़ा जाता है , वहाँ हमलोगोंको बारह वर्षोंतक बनी रहनेवाली तृति प्राप्त होती है ..... जिस घर में यह स्तोत्र सदा लिखकर रखा जाता है , वहाँ श्राद्ध करनेपर हमारी निश्चय ही उपस्थिति होती है । अतः श्राद्धमें भोजन करनेवाले ब्राह्मणोंके सामने यह स्तोत्र अवश्य सुनाना चाहिये ; क्योंकि यह हमारी पुष्टि करनेवाला है । ' ( मार्कण्डेयपुराण ,


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