Sunday, 10 April 2022

इस इस बर्ष 2022 कब होगे पूर्णिमा के ब्रत

 







जाने इस इस बर्ष 2022 कब पूर्णिमा के ब्रत


मास

तारिक

चैत्र

16अप्रैल 2022 शनिवार

वैशाख

16 मई 2022 सोमवार

ज्यैष्ठ

14 जून 2022 मंगलवार

आषाढ़

13 जुलाई 2022 बुधवार

श्रावण

12अगस्त 2022 शुक्रवार

भाद्रपद

10 सितंबर 2022 शनिवार

आशिवन

9 अक्तुवर 2022 रविवार

कार्तिक

8 नवम्बर 2022 मंगलवार

मार्गशीर्ष

8 दिसंबर 2022 गुरु वार

पौष

6 जनवरी 2023शुक्रवार

माघ

5 फ़रवरी 2023 रविवार

फाल्गुन

7 मार्च 2023 मंगलवार


Sunday, 3 April 2022

जाने अपने नाम राशि के मुताबिक कैसा रहेगा यअप्रैल मास।

जाने आपके नाम राशि के मुताबिक यह मास कैसा रहेगा
अपना नाम का पहला अक्षर देखें और इस मास का फल देखें।

मेष राशि चू चे चो ला ली लू ले लो अ 

तारीख 6 तक मंगल उच्च होने से आय के साधनों में सुधार होगा कार्य क्षेत्र में कुछ परिवर्तन और मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी पारिवारिक जीवन में वातावरण सुखद रहेगा विशिष्ट योजनाओं को क्रियान्वित कर सकते हैं।

वृष राशि ई उ ए ओ वा वि वू वे वो 

मासा आरंभ में कुछ पारिवारिक परेशानियां रहे परंतु तारीख 12 से राहु का संचार हट जाने से स्थिति या कुछ अनुकूल होगी शुक्र दशम अस्त मंगल गुरु युक्त होने से पुरुषार्थ से आय के साधन बनते रहेंगे परंतु क्रोध अधिक होने से परिवार में कलह क्लेश तनाव व उसने अधिक रहेगी।

मिथुन राशि का की कू घ ड छ के को ह

तारीख 8 से बुध लाभ स्थान में राहु युक्त होने से कार्य व्यवसाय संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन में अभी विलंब होगा संतान/विद्या में कैरियर संबंधी चिंता रहेगी विदेश संबंधी कार्यों में कुछ प्रगति परंतु भी जनों के पश्चात ही सफलता मिलेगी ।

कर्क राशि ही हू हे हो डा डी डू डे डो

तारीख 7 से मंगल अष्ट मस्त तथा गुरु शनि की दृष्टि या रहने से मिश्रित फल घटित होंगे धन का अपव्यय किसी उच्चाधिकारी से विरोध अकारण ही परिवार में तनाव रहे यात्रा की योजना किसी बिगड़े हुए कार्य के बन जाने से खुशी का माहौल बनेगा व्यवसाय के क्षेत्र में संघर्षपूर्ण हालात का सामना रहे।

सिंह राशि मा मी मू मे टा टी टू टे

मंगल शुक्र तथा गुरु की तारीख 12 तक सप्तम दृष्टि होने से तथा 13 तारीख तक सूर्य अष्टम अस्त होने से स्वास्थ्य नरम खेरू परेशानियों के कारण तनाव की स्थिति रहेगी पिता एवं स्वयं का स्वास्थ्य खराब शत्रुओं से सतर्क रहें तारीख 14के बाद उच्च प्रतिष्ठित लोगों से संपर्क एवं भाग्य वृद्धि के योग बनेंगे।

कन्या राशि टो पा पी पू ष ण ठ पे पो 

तारीख 8 से 23 तक राष्ट्रीय स्वामी बुध अष्टमी तथा तारीख 13 से वर्षा अंत तक गुरु की दृष्टि रहने से स्वास्थ्य में विकार बनते कार्य में विघ्न तथा धन हानि के संकेत अत्यधिक कठिनाई से निर्वाह योग्य धन के साधन प्राप्त होंगे बुध भागेश होने से स्थिति में धीरे-धीरे सुधार होगा 24 तारीख के बाद।

तुला राशि रा री रू रे रो ता ती तू ते 

शुक्र पंचम अस्त्र शेती होने से विद्या में सफलता सोची ही योजनाओं में कामयाबी स्त्री अथवा संतान सुख तथा सवारी आदि सुखों को प्रदान करेगा तारीख 12 से केतु का संसार इस राशि पर होने से प्रत्येक कार्य रुकावट एवं विघ्नों के बाद होगा संतान संबंधी विद्या संबंधी चिंता वृथा भागदौड़ भी रहे।

वृश्चिक राशि तो ना नी नू नै नो या ती यू 

मंगल चतुर्थ संयुक्त होगा जिसे व्यर्थ की भागदौड़ बेचैनी मानसिक तनाव व चिंता रहे परंतु 13 से गुरु की विशेष नवम दृष्टि रहने से धर्म-कर्म में रुझान रहेगा तारीख 12 से केतु का संसार भी हट जाने से व्यवसाय में उन्नति एवं किसी विशिष्ट व्यक्ति के सहयोग से कोई बिगड़ा कार्य बन सकता है।

धनु राशि ये यो भा भी भू ध फ ढ भे

अत्यधिक परिश्रम के पश्चात ही निर्भर योग्य आय के साधन बनेंगे धार्मिक कार्यों की ओर रुचि जागृत होगी परंतु मानसिक तनाव व क्रोध की भावना अधिक रहे अधिकांश समय मनोरंजन भोग विलास या यात्रा आदि में व्यतीत होगा।

मकर राशि भो जा जी खी खू खे खो गा गी 

तारीख 13 तक कितने सूर्य शनि की दृष्टि होने से किसी निकट रस्त से मतभेद एवं व्यवसाय के क्षेत्र में साझेदारी में विभिन्न परेशानियों का सामना रहेगा अपने भी पराए जैसा व्यवहार करेंगे तारीख 14 से अष्ट में सूर्य उच्च स्थिति में आने से रायू होने से स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें।

कुंभ राशि गू गे गो सा सी सू से सो दा

इस राशि पर मंगल शुभ का संचार होने से व्यवसाय एवं गृह संबंधी उलझने बढ़ेगी आए कम खर्च अधिक होंगे दुर्घटना में चोट आदि लगने का भय रहेगा शनि द्वादश तो रहने से बनते कार्यों में विघ्न बाधाएं स्वास्थ्य में खराबी एवं तनाव की स्थिति रहे बेटा भागदौड़ भी रहेगी

मीन राशि दि दु थ झ ‌‌ञ दे दो चा ची

पूर्वार्ध भाग में सूर्य संसार करने से निश्चित फल प्राप्त होंगे बनते कार्यों में अड़चनें पैदा होगी 13 से गुरु इसी स्वराशि में संचार करने से कुछ प्रतिष्ठित लोगों में संपर्क स्थापित होंगे कार्य व्यवसाय में परिवर्तन व विस्तार संबंधी योजना बनेगी।

Thursday, 31 March 2022

जाने कैसा रहेगा यह नया बर्ष 2079






इस बार नल नामक संवत्सर रहेगा।जब भी कोई बर्ष में शुभ कार्य होगा नल नामक संवत्सर का प्रयोग किया जाएगा इस सम्बतसर का प्रयोग होगा। इस वक्त सृष्टि के संम्वत् अनुसार 19558 85123 (१९५५९९५१२३) यह सृष्टि का बर्ष चला हुआ है सृष्टि को इतना समय हो गया है तथा विक्रम संवत 2079 चला हुआ है शक संवत 1944 (१९४४)होगा और कलियुग का समय अभी 5122(५१२२) वर्ष बीत चुका है तथा कलियुग वर्तमान 5123 (५१२३) बर्ष चल रहा है। जबकि कलियुग की कुल अवधि 432000 (४३२०००) बर्ष है।कृष्ण संवत 5258(५२५८) चला है ।श्री बुद्ध संवत 2645 (२६४५)महावीर जैन संवत 2547(२५४७) और हिजरी सन 1443 (१४४३)अंग्रेजी का 2022(२०२२) खालसा का 323(३२३) सृष्टि के अनुसार सतयुग का प्रमाण 1728000(१७२८०००) बर्ष तथा त्रेता युग 1296 000 (१२९६०००)बर्ष द्वापर युग प्रमाण 864000(८६४०००) बर्ष कलयुग का प्रमाण 432000 (४३२०००)वर्ष का होता है।

नल नामक नव संवत्सर का फल 

2 अप्रैल 2022 तथा 20 गते चैत्र को पहले ही नल नामक संवत्सर प्रारंभ हो चुका होगा नया संवत का प्रवेश 1 अप्रैल 2022 ईस्वी शुक्रवार को दोपहर 11:54 पर रेवती नक्षत्र में होगा मिथुन लग्न में प्रवेश करेगा परंतु शास्त्र अनुसार नव संवत्सर तथा राजा अधिकार निर्णय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के बार आदि अनुसार ही किया जाता है इसलिए नल नामक संवत्सर संवत 2079 नवरात्रों का प्रारंभ 2 अप्रैल शुक्रवार 11.54 पर रेवती नक्षत्र में होगा नवरात्रि अर्थात 2 अप्रैल शनिवार से जब पाठ पूजन दान व्रत एक धार्मिक अनुष्ठान कर्मों के लिए संकल्प आदि का प्रयोग कार्यों में नल नामक संवत्सर तथा का प्रयोग होगा इस वर्ष राजा शनि मंत्री गुरु होगा। नल नामक संवत्सर में देश में दुर्भिक्ष यानी अकाल जन्य परिस्थितियां बनेगी फलस्वरूप आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों में विशेष वृद्धि होगी केंद्रीय एवं राज्य सरकारों की दोषपूर्ण नीतियों के कारण परिस्थितियां अधिक खराब चिंताजनक बन सकती है। बच्चों में विशेष प्रकार के रोग फैलने का भय रहेगा।
 नल नामक संवत्सर से वर्ष में अग्निकांड अग्नि से संबंधित दुर्घटनाएं होने का भय अधिक रहेगा तथा वृष्टि मध्यम रहे अनाज के मूल्यों में वृद्धि होगी राजाओं में क्षुब्द्धता के कारण युद्ध जैसी स्थिति निरंतर बनी रहेगी । डकैती लूट मार आदि दुर्घटना में वृद्धि से जनसामान्य में भय उपस्थित रहेगा।

रोहिणी का वास (बर्षा)
रोहिणी का बास इस बार मैं सक्रांति का प्रवेश पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र कालीन हुआ है अतः रोहिणी का बास समुंदर पर होने से वर्ष में वर्षा अधिक होगी! परन्तु उपयोगी कम होगी गेहूं धान आदि सभी प्रकार की पैदावार भी अच्छी होगी कुछ जगह पर बाढ़ आदि का प्रकोप भी रहेगा परंतु देश के अन्य भाग में धन मक्का और चावल फल फूलों की पैदावार अच्छी होगी समुंदर में पास होने के कारण और माली के घर में रहने से उठ धान्य चावल फूल पैदावार अच्छी होगी पर्वतीय क्षेत्र आदि के फूलों से उत्पादन अच्छा होगा परंतु इसके बावजूद कृषि उत्पाद जो है घी तेल दैनिक वस्तुएं दाले दूध सोना चांदी आदि के भाव तेज हो जाएंगे।
 इस प्रकार राजा का वाहन भैंसा होने से धन संपदा की हानि और वर्ष में विषम वर्षा होगी । अर्थात असमान बर्षा होगी। उचित वर्षा नहीं होगी या अत्याधिक वर्षा होगी और उपयोगी वर्षा की कमी ही रहेगी।
राजा शनि का फल-
राजा शनि का फल इस बार राजा शनि होने से वर्ष में उपद्रव युद्ध दंगों मारकाट के लिए अनेक देशों में अनुकूल वातावरण बनेगा कहीं भूमंडल पर विरोधी देशों के मध्य टकराव युद्ध जन्य स्थितयां बनेगी दुर्भिक्ष अकाल की स्थिति बनेगी जनहानि किसी प्रकार से विशेष अथवा देश लोग में दुर्भिक्ष रोग आदि से प्राकृतिक प्रकोप का सामना करना पड़ेगा राजा शनि होने से कठोर विचित्र नियमों का सरकारी तंत्र संसाधनों के ऊपर लागू करेगी । जौ मक्का धन चना तेज हो जाएंगे और अधिकांश लोग वाद-विवाद मुकदमे का निर्णय लेते रहेंगे।

मंत्री गुरु का फल
 संवत्सर में गुरु मंत्री होने से अनाज गेहूं चावल धान की पर्याप्त मात्रा में लाभकारी रहेंगे सरकार लोक कल्याण लोक अनुभव से बहू योजनाएं क्रियान्वित होगी और मक्का हल्दी   व्यापार में लाभ।
फसल शुक्र का फल
धान्येश शुक्र का फल धन स्वामी शुक्र होने से जैसे जौ मक्का गन्ना गेहूं उत्पादन कम होगा प्राकृतिक प्रकोप असाममयिक वर्षा के कारण समय पूर्व ही खराब हो जाएंगी फल स्वरुप सर्व प्रकार का अनाज उड़द चने आदि दाले काली मिर्च से छोटी इलाइची लोंग हल्दी आदि गरम मसाले उपयोगी वस्तुएं सब्जी हरा चारा खिलाने और पशु चारा तेज भाव हो जाएंगे उपयोगी वर्षा की कमी रहे गाय भैंस और आयोग से दूध कम प्राप्त होगा पड़ता दूध घी और गोरस महंगे हो जाएंगे
मेघ का स्वामी बुध
वर्षा का स्वामी बुध होने से इस इस बार जल पर्याप्त वर्षा तो होगी पर उपयोगी नहीं होगी गेहूं जो दाने पशु चारा घास आदि की यथेष्ट पैदावार होगी तथा दूध गुड़ आदि रस आदि उपलब्ध की पर्याप्त मात्रा में रहेगी ब्राह्मण लोग पाठ का कीर्तन यज्ञ आदि धार्मिक कृत्य करने में विशेष रूचि रखेंगे और विशिष्ट वर्ग के लोग अनेक प्रकार के सूख से संपन्न होंगे।

फल का स्वामी मंगल का फल
 इस बार फल का स्वामी मंगल होने से फल फूल वनस्पतियों औषधियों की पैदावार कम होगी लोगों में अनेक प्रकार के कृष्ण लोगों से कष्ट भय हो राष्ट्र अध्यक्षों में परस्पर संघर्ष टकराव तनाव युद्ध की स्थिति बने।



इस बार चैत्र नवरात्रि कब से जाने

  




इस बार 2 अप्रैल 2022 तथा विक्रमी संवत २०७९ को प्रथम नवरात्रा 20 गते चैत्र शनिवार से शुरू होगा जोकि नल नामक संवत्सर से शुरू होगा इस बार 9 नबरात्री  पूरी तरह से लिए जाएंगे उसमें पहले दिन शनिवार के दिन घटस्थापना करना चाहिए उसके पश्चात 9 दिन मां भगवती का ध्यान करते हुए पूजन करना चाहिए। 


 इस बार 2 अप्रैल 2022 तथा 20 गते चैत्र शनिवार से नवरात्रि शुरू हो रहे है। प्रतिपदा को शुभ मुहूर्त में संवत्सर पूजन घट स्थापन ताम्र या मिट्टी के पात्र में जो गेहूं आदि के बीज बोना ओंकार सहित श्री गणेश विष्णु शिव दुर्गा आदि पंचदेव देवों की पूजा अर्चना करनी चाहिए


 प्रतिपदा 2अप्रैल 2022 चैत्र  नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं इस दिन श्री दुर्गा माता के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलित करके श्री दुर्गा पूजन कलश स्थापन प्रमुख देवी देवताओं का आवाहन पूजन आदि के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करना चाहिए।2 अप्रैल शनिवार को  कलश की स्थापना करनी चाहिए ।


                                    देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता । 

                                    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: । ।

नवरात्रि  एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है नौ  रातें || नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों -महालक्ष्मी माँ सरस्वती और माँ दुर्गा के नौ  स्वरूपों की पूजा की जाती है ||

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी ,चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता ,कात्यायनी  कालरात्रि, महागौरी ,सिद्धिदात्री ॥


 ।इस दिन स्नान ध्यान आदि के बाद शुद्ध पात्र में रेत मिट्टी डालकर मंगल पूर्वक जो गेहूं सप्तधान्य के बीज वपन करने चाहिए तथा श्री दुर्गा जी की मूर्ति के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलन एवं मंत्र उच्चारण सहित घट स्थापन करना चाहिए फिर षोडशोपचार पूजन सहित श्री दुर्गा पूजन करके संकल्प पूर्वक प्रतिपदा से नवमी तिथि तक देवी के सम्मुख दीप जलाकर श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए प्रतिपदा के दिन  ॥       

 अश्वनी नक्षत्र में मंगलवार प्रात: कलश स्थापना करना शुभ रहेगा। 



 नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि

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शारदीय नवरात्रि का पर्व भारत में हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है।


इस वर्ष 2022 में  नवरात्रों का आरंभ 2अप्रैल शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगा। दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को

2 अप्रैल  (शनिवार) के दिन की जाएगी।


नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है।


नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं. दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन,दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या कलाप संपन्न किए जाते हैं।


चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है।व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है।


नवरात्रि में माता दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर तिथि का एक विशेष महत्व होता है और माता के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। यह समय सिद्धि प्राप्ति के लिए भी उचित माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इन दिनों में माता के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो सकती है। 


भक्तगण माता को प्रसन्न करने के लिए सभी अपने-अपने तरीके से प्रयास करते हैं। कोई नौ दिन का उपवास रखता है,

तो कोई चप्पल नहीं पहनता। साथ ही अनेक स्थानों पर गरबों का आयोजन भी किया जाता है।माता की भक्ति में ये दिन कब गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता। दसवें दिन माता की मूर्ति को नदी में विसर्जित किया जाता है और यह प्रार्थना की जाती है कि माता सबके जीवन के दु:खों का अंत करें और सुख-शांति लाएं। यदि देखा जाए तो यह पर्व मन,वाणी व व्यसनों पर काबू करने की सीख देता है।

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 चैत्र नवरात्री 2022संवत 2079 घटस्थापना 

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इस दिन सूर्योदय से प्रात: प्रतिपदा तिथि में  कलश स्थापना के लिये उपयुक्त नक्षत्र अश्विनी  रहेगा ॥


नवरात्र तिथि

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प्रतिपदा तिथि   👉 घटस्थापना,चन्द्रदर्शन, शैलपुत्री, पूजा   2अप्रैल  शनिवार नवरात्रि    

द्वितीया   तिथि   👉  ब्रह्मचारिणी पूजा 3अपैल रविवार 

तृतीया तिथि      👉 चंद्रघंटा     4 सोमवार

चतुर्थी तिथि      👉 कुष्मांडा     5 मंगलवार

पंचमी तिथि       👉 स्कंदमाता    6 बुधवार

षष्ठी तिथि 👉 कात्यायनी, 7अप्रैल  वीरवार

सप्तमी तिथि     कालरात्रि 8 अप्रैल शुक्रवार

अष्टमी तिथि     👉 महागौरी     9 अप्रैल शनिवार

नवमी तिथि       👉 सिद्धिदात्री  10 रविवार



नवरात्री घट स्थापना एवं पूजन विधि

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हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।

कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।


 घट स्थापना विधि

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पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें।

कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति रखें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।


मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिवाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।



नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन इस प्रकार करें

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भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.

अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.

नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. तथा दुर्गा जी के १०८ नामों को मंत्र रूप में उसका अधिकाधिक जप करें।

अब एक दूसरी स्वच्छ थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर पुष्प का आसन लगाकर दुर्गा प्रतिमा या तस्वीर या यंत्र को स्थापित करें। 



 साधक गण मन्त्र ज्ञान के अभाव में निम्न प्रकार दुर्गा पूजन करे:-

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स्नानार्थ जलं समर्पयामि 

(जल से स्नान कराए)


स्नानान्ते पुनराचमनीयं जल समर्पयामि

(जल चढ़ाए)


दुग्ध स्नानं समर्पयामि 

(दुध से स्नान कराए)


दधि स्नानं समर्पयामि 

(दही से स्नान कराए)


घृतस्नानं समर्पयामि

(घी से स्नान कराए)


मधुस्नानं समर्पयामि 

(शहद से स्नान कराए)


शर्करा स्नानं समर्पयामि

(शक्कर से स्नान कराए)


पंचामृत स्नानं समर्पयामि 

(पंचामृत से स्नान कराए)


गन्धोदक स्नानं समर्पयामि 

(चन्दन एवं इत्र से सुवासित जल से स्नान करावे)


शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि

(जल से पुन: स्नान कराए)


यज्ञोपवीतं समर्पयामि

(यज्ञोपवीत चढ़ाए)


चन्दनं समर्पयामि 

(चंदन चढ़ाए)


कुकंम समर्पयामि 

(कुकंम चढ़ाए)


सुन्दूरं समर्पयामि 

(सिन्दुर चढ़ाए)


बिल्वपत्रै समर्पयामि 

(विल्व पत्र चढ़ाए)


पुष्पमाला समर्पयामि 

(पुष्पमाला चढ़ाए)


धूपमाघ्रापयामि 

(धूप दिखाए)


दीपं दर्शयामि 

(दीपक दिखाए व हाथ धो लें)


नैवेध निवेद्यामि 

(नेवैध चढ़ाए(निवेदित) करे)


ऋतु फलानि समर्पयामि 

(फल जो इस ऋतु में उपलब्ध हो चढ़ाए)


ताम्बूलं समर्पयामि 

(लौंग, इलायची एवं सुपारी युक्त पान चढ़ाए)


दक्षिणा समर्पयामि

(दक्षिणा चढ़ाए)


इसके बाद कर्पूर अथवा रूई की बाती जलाकर आरती करे।


आरती के नियम:- प्रत्येक व्यक्ति जानकारी के अभाव में अपनी मन मर्जी आरती उतारता रहता है। विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणो पर से, दो बार नाभि पर से, एकबार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से।

आरती की बत्तियाँ १, ५, ७ अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियाँ बनाकर आरती की जानी चाहिए।



दुर्गा जी की आरती:-

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जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।

तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥


मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।

उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥


कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।

रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥


केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।

सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥


कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।

कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥


शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥


चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।

बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥


भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।

मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥


कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।

श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥


श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।

कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥



प्रदक्षिणा

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“यानि कानि च पापानी जन्मान्तर कृतानि च।

तानी सर्वानि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥

प्रदक्षिणा समर्पयामि।"


प्रदक्षिणा करें (अगर स्थान न हो तो आसन पर खड़े-खड़े ही स्थान पर घूमे)


 क्षमा प्रार्थना                    

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                                                  ( पुष्प सर्मपित कर देवी को निम्न मंत्र से प्रणाम करे।)

"नमो दैव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।

नम: प्रकृतयै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम॥

या देवी सर्व भूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥"


ततपश्चात देवी से क्षमा प्रार्थना करे कि जाने अनजाने में कोई गलती या न्यूनता-अधिकता यदि पूजा में हो गई हो तो वे क्षमा करें।




                    इस पूजन के पश्चात अपने संकल्प मे कहे हुए मनोकामना सिद्धि हेतु निम्न मंत्र का यथाशक्ति श्रद्धा

अनुसार ९ दिन तक जप करें:-

“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥”


इस मंत्र के बाद दुर्गा सप्तशती के सभी अध्यायो का पाठ ९ दिन मे पूर्ण करें। या यथा सामर्थ प्रतिदिन एक पाठ करे।


 महामारी नाश के लिए मंत्र                                                           〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️  〰️🔸〰️  〰️🔸〰️    〰️🔸〰️


जयन्ती मड्ंग्ला काली भद्रकाली कपालिनी ।| 

दुर्गा क्षमा शिवा धात्री  स्वाहा स्वधा नमस्तुते।| 


नवरात्री की समाप्ति पर यदि कलश स्थापना की हो तो इसके जल को सारे घर मे छिड़क दें। इस प्रकार पूजा सम्पन्न होती है। यदि कोई व्यक्ति विशेष उपरांकित विधि का पालन करने मे असमर्थ है तो नवरात्रि के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करें।



पूजन सामग्री

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माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।

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Thursday, 27 January 2022

गजेन्द्र मोक्ष

     🌼श्री गजेन्द्र मोक्ष महात्म्य एवं स्तोत्र🌼
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क्षीरसागर में स्थित त्रिकूट पर्वत पर लोहे, चांदी और सोने की तीन विशाल चोटियां थीं। उनके बीच विशाल जंगल में गजेंद्र हाथी अपनी असंख्य पत्नियों के साथ रहता था। एक बार गजेंद्र अपनी पत्नियों के साथ प्यास बुझाने के लिए एक तालाब पर पहुंचा। प्यास बुझाने के बाद गजेंद्र की जल-क्रीड़ा करने की इच्छा हुई। वह पत्नियों के साथ तालाब में क्रीडा करने लगा। दुर्भाग्यवश उसी समय एक अत्यंत विशालकाय ग्राह(मगरमच्छ) वहां पहुंचा। उसने गजेंद्र के दाएं पैर को अपने दाढ़ों में जकड़कर तालाब के भीतर खींचना शुरू किया।। गजेंद्र पीड़ा से चिंघाड़ने लगा। उसकी पत्नियां तालाब के किनारे अपने पति के दुख पर आंसू बहाने लगी। गजेंद्र अपने पूरे बल के साथ ग्राह से युद्ध कर रहा थ परंतु वह ग्राह की पकड़ से मुक्त नहीं हो पा रहा था। गजेंद्र अपने दाँतों से मगरमच्छ पर वार करता तो ग्राह उसके शरीर को अपने नाखूनों से खरोंच लेता और खून की धारा निकल आती। ग्राह और हाथी के बीच बहुत समय तक युद्ध हुआ। पानी के अंदर ग्राह की शक्ति ज़्यादा होती है। ग्राह गजेंद्र का खून चूसकर बलवान होता गया जबकि गजेंद्र के शरीर पर मात्र कंकाल शेष था। गजेंद्र दुखी होकर सोचने लगा - मैं अपनी प्यास बुझाने यहां आया था। प्यास बुझाकर मुझे चले जाना चाहिए था। मैं क्यों इस तालाब में उतर पड़ा? मुझे कौन बचायेगा? उसे अपनी मृत्यु दिख रही थी फिर भी मन के किसी कोने में यह विश्वास था कि उसने इतना लंबा संघर्ष किया है, उसकी जान बच सकती है। उसे ईश्वर का स्मरण हुआ तो नारायण की स्तुति कर उन्हें पुकारने लगा - सारा संसार जिनमें समाया हुआ है, जिनके प्रभाव से संसार का अस्तित्व है, जो इसमें व्याप्त होकर इसके रूपों में प्रकट होते हैं, मैं उन्हीं नारायण की शरण लेता हूं. हे नारायण मुझ शरणागत की रक्षा करिए। विविधि लीलाओं के कारण देवों, ऋषियों के लिए अगम्य अगोचर बने जिन श्रीहरि की महिमा वर्णन से परे हैं। मैं उस दयालु नारायण से प्राण रक्षा की गुहार लगाता हूं। नारायण के स्मरण से गजेंद्र की पीड़ा कुछ कम हुई। प्रभु के शरणागत को कष्ट देने वाले ग्राह के जबड़ों में भयंकर दर्द शुरू हुआ फिर भी वह क्रोध में जोर से उसके पैर चबाने लगा। छटपटाते गजेंद्र ने स्मरण किया - मुझ जैसे घमण्डी जब तक संकट में नहीं फंसते, तब तक आपको याद नहीं करते। यदि दुख न हो तो हमें आपकी ज़रूरत का बोध नहीं होता। आप जब तक प्रत्यक्ष दिखाई नहीं देते, तब तक प्राणी आपका अस्तित्व तक नहीं मानता लेकिन कष्ट में आपकी शरण में पहुंच जाता है। जीवों की पीड़ा को हरने वाले देव आप सृष्टि के मूलभूत कारण है। गजेंद्र ने श्रीहरि की स्तुति जारी रखी - मेरी प्राण शक्ति जवाब दे चुकी हैं, आंसू सूख गए हैं, मैं ऊंचे स्वर में पुकार भी नहीं सकता, आप चाहें तो मेरी रक्षा करें या मेरे हाल पर छोड़ दें। सब आपकी दया पर निर्भर है। आपके ध्यान के सिवा दूसरा कोई मार्ग नहीं। मुझे बचाने वाला भी आपके सिवाय कोई नहीं है। यदि मृत्यु भी हुई तो आपका स्मरण करते मरूंगा। पीड़ा से तड़पता गजेंद्र सूंड उठाकर आसमान की ओर देखने लगा। मगरमच्छ को लगा कि उसकी शक्ति जवाब देती जा रही है। उसका मुंह खुलता जा रहा है। भक्त की करूणाभरी पुकार सुनकर नारायण आ पहुंचे। गजेंद्र ने उस अवस्था में भी तालाब का कमलपुष्प और जल प्रभु के चरणों में अर्पण किया। प्रभु भक्त की रक्षा को कूद पड़े। उन्होंने ग्राह के जबड़े से गजेंद्र का पैर निकाला और चक्र से ग्राह का मुख चीर दिया। ग्राह तुरंत एक गंधर्व में बदल गया। दरअसल वह ग्राह हुहू नामक एक गंधर्व था। एक बार देवल ऋषि पानी में खड़े होकर तपस्या कर रहे थे। गंधर्व को शरारत सूझी। उसने ग्राह रूप धरा और जल में कौतुक करते हुए ऋषि के पैर पकड़ लिए। क्रोधित ऋषि ने उसे शाप दिया कि तुम मगरमच्छ की तरह इस पानी में पड़े रहो किंतु नारायण के प्रभाव से वह शापमुक्त होकर अपने लोक को चला गया‌। श्रीहरि के दर्शन से गजेंद्र भी अपनी खोई हुई ताक़त और पूर्व जन्म का ज्ञान भी प्राप्त कर सका। गजेंद्र पिछले जन्म में इंद्रद्युम्न नामक एक विष्णुभक्त राजा थे‌ श्रीविष्णु के ध्यान में डूबे राजा ने एक बार ऋषि अगस्त्य के आगमन का ख़्याल न किया। राजा ने युवावस्था में ही गृहस्थ आश्रम को त्यागकर वानप्रस्थ ले लिया। राजा ब्रह्मा द्वारा प्रतिपादित आश्रम व्यवस्था को भंग कर रहा था, ऋषि इससे भी क्षुब्ध थे। उन्होंने शाप दिया - तुम किसी व्यवस्था को नहीं मानते इसलिए अगले जन्म में मत्त हाथी बनोगे। राजा ने शाप स्वीकार करते हुए ऋषि से अनुरोध किया कि मैं अगले जन्म में भी नारायण भक्त रहूं। अगस्त्य उसकी नारायण भक्ति से प्रसन्न हुए और तथास्तु कहा। श्रीहरि की कृपा से गजेंद्र शापमुक्त हुआ। नारायण ने उसे अपना सेवक पार्षद बना लिया। गजेंद्र ने पीड़ा में छटपटाते हुए नारायण की स्तुति में जो श्लोक कहे थे उसे गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र कहा जाता है। कर्ज से मुक्ति पाने के लिए गजेन्द्र-मोक्ष स्तोत्र का सूर्योदय से पूर्व प्रतिदिन पाठ करना चाहिए। यह ऐसा अमोघ उपाय है जिससे बड़ा से बड़ा कर्ज भी श‍ीघ्र उतर जाता है।

गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत्र हिंदी अनुवाद सहित 
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श्रीमद्भागवतान्तर्गत गजेन्द्र कृत भगवान का स्तवन -

श्री शुक उवाच – श्री शुकदेव जी ने कहा

एवं व्यवसितो बुद्ध्या समाधाय मनो हृदि। 
जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम ॥१॥

बुद्धि के द्वारा पिछले अध्याय में वर्णित रीति से निश्चय करके तथा मन को हृदय देश में स्थिर करके वह गजराज अपने पूर्व जन्म में सीखकर कण्ठस्थ किये हुए सर्वश्रेष्ठ एवं बार बार दोहराने योग्य निम्नलिखित स्तोत्र का मन ही मन पाठ करने लगा ॥

गजेन्द्र उवाच गजराज ने (मन ही मन) कहा –
 ऊं नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम ।
 पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि ॥२॥

जिनके प्रवेश करने पर (जिनकी चेतना को पाकर) ये जड शरीर और मन आदि भी चेतन बन जाते हैं (चेतन की भांति व्यवहार करने लगते हैं), ‘ओम’ शब्द के द्वारा लक्षित तथा सम्पूर्ण शरीर में प्रकृति एवं पुरुष रूप से प्रविष्ट हुए उन सर्व समर्थ परमेश्वर को हम मन ही मन नमन करते हैं ॥

यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयं ।
 योस्मात्परस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम ॥३॥

जिनके सहारे यह विश्व टिका है, जिनसे यह निकला है , जिन्होने इसकी रचना की है और जो स्वयं ही इसके रूप में प्रकट हैं – फिर भी जो इस दृश्य जगत से एवं इसकी कारणभूता प्रकृति से सर्वथा परे (विलक्षण ) एवं श्रेष्ठ हैं – उन अपने आप – बिना किसी कारण के – बने हुए भगवान की मैं शरण लेता हूं ॥

यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं क्कचिद्विभातं क्क च तत्तिरोहितम । अविद्धदृक साक्ष्युभयं तदीक्षते स आत्ममूलोवतु मां परात्परः ॥४॥

अपने संकल्प शक्ति के द्वार अपने ही स्वरूप में रचे हुए और इसीलिये सृष्टिकाल में प्रकट और प्रलयकाल में उसी प्रकार अप्रकट रहने वाले इस शास्त्र प्रसिद्ध कार्य कारण रूप जगत को जो अकुण्ठित दृष्टि होने के कारण साक्षी रूप से देखते रहते हैं उनसे लिप्त नही होते, वे चक्षु आदि प्रकाशकों के भी परम प्रकाशक प्रभु मेरी रक्षा करें ॥

कालेन पंचत्वमितेषु कृत्स्नशो लोकेषु पालेषु च सर्व हेतुषु । तमस्तदाsssसीद गहनं गभीरं यस्तस्य पारेsभिविराजते विभुः ॥५॥

समय के प्रवाह से सम्पूर्ण लोकों के एवं ब्रह्मादि लोकपालों के पंचभूत मे प्रवेश कर जाने पर तथा पंचभूतों से लेकर महत्वपर्यंत सम्पूर्ण कारणों के उनकी परमकरुणारूप प्रकृति में लीन हो जाने पर उस समय दुर्ज्ञेय तथा अपार अंधकाररूप प्रकृति ही बच रही थी। उस अंधकार के परे अपने परम धाम में जो सर्वव्यापक भगवान सब ओर प्रकाशित रहते हैं वे प्रभु मेरी रक्षा करें ॥

न यस्य देवा ऋषयः पदं विदु- र्जन्तुः पुनः कोsर्हति गन्तुमीरितुम ।
यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु ॥६॥

भिन्न भिन्न रूपों में नाट्य करने वाले अभिनेता के वास्तविक स्वरूप को जिस प्रकार साधारण दर्शक नही जान पाते , उसी प्रकार सत्त्व प्रधान देवता तथा ऋषि भी जिनके स्वरूप को नही जानते , फिर दूसरा साधारण जीव तो कौन जान अथवा वर्णन कर सकता है – वे दुर्गम चरित्र वाले प्रभु मेरी रक्षा करें ।

दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलम विमुक्त संगा मुनयः सुसाधवः ।
चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने भूतत्मभूता सुहृदः स मे गतिः ॥७॥

आसक्ति से सर्वदा छूटे हुए , सम्पूर्ण प्राणियों में आत्मबुद्धि रखने वाले , सबके अकारण हितू एवं अतिशय साधु स्वभाव मुनिगण जिनके परम मंगलमय स्वरूप का साक्षात्कार करने की इच्छा से वन में रह कर अखण्ड ब्रह्मचार्य आदि अलौकिक व्रतों का पालन करते हैं , वे प्रभु ही मेरी गति हैं ।

न विद्यते यस्य न जन्म कर्म वा न नाम रूपे गुणदोष एव वा । तथापि लोकाप्ययाम्भवाय यः स्वमायया तान्युलाकमृच्छति ॥८॥

जिनका हमारी तरह कर्मवश ना तो जन्म होता है और न जिनके द्वारा अहंकार प्रेरित कर्म ही होते हैं, जिनके निर्गुण स्वरूप का न तो कोई नाम है न रूप ही, फिर भी समयानुसार जगत की सृष्टि एवं प्रलय (संहार) के लिये स्वेच्छा से जन्म आदि को स्वीकार करते हैं ।।

तस्मै नमः परेशाय ब्राह्मणेsनन्तशक्तये । 
अरूपायोरुरूपाय नम आश्चर्य कर्मणे ॥९॥

उन अन्नतशक्ति संपन्न परं ब्रह्म परमेश्वर को नमस्कार है । उन प्राकृत आकाररहित एवं अनेको आकारवाले अद्भुतकर्मा भगवान को बारंबार नमस्कार है

नम आत्म प्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने । 
नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि ॥१०॥

स्वयं प्रकाश एवं सबके साक्षी परमात्मा को नमस्कार है । उन प्रभु को जो नम, वाणी एवं चित्तवृत्तियों से भी सर्वथा परे हैं, बार बार नमस्कार है ॥

सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता ।
 नमः केवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥११॥

विवेकी पुरुष के द्वारा सत्त्वगुणविशिष्ट निवृत्तिधर्म के आचरण से प्राप्त होने योग्य, मोक्ष सुख की अनुभूति रूप प्रभु को नमस्कार है ॥

नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुण धर्मिणे ।
 निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च ॥१२॥

सत्त्वगुण को स्वीकार करके शान्त , रजोगुण को स्वीकर करके घोर एवं तमोगुण को स्वीकार करके मूढ से प्रतीत होने वाले, भेद रहित, अतएव सदा समभाव से स्थित ज्ञानघन प्रभु को नमस्कार है ॥

क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे । 
पुरुषायात्ममूलय मूलप्रकृतये नमः ॥१३॥

शरीर इन्द्रीय आदि के समुदाय रूप सम्पूर्ण पिण्डों के ज्ञाता, सबके स्वामी एवं साक्षी रूप आपको नमस्कार है । सबके अन्तर्यामी , प्रकृति के भी परम कारण, किन्तु स्वयं कारण रहित प्रभु को नमस्कार है ॥

सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे ।
 असताच्छाययोक्ताय सदाभासय ते नमः ॥१४॥

सम्पूर्ण इन्द्रियों एवं उनके विषयों के ज्ञाता, समस्त प्रतीतियों के कारण रूप, सम्पूर्ण जड-प्रपंच एवं सबकी मूलभूता अविद्या के द्वारा सूचित होने वाले तथा सम्पूर्ण विषयों में अविद्यारूप से भासने वाले आपको नमस्कार है ॥

नमो नमस्ते खिल कारणाय निष्कारणायद्भुत कारणाय । सर्वागमान्मायमहार्णवाय नमोपवर्गाय परायणाय ॥१५॥

सबके कारण किंतु स्वयं कारण रहित तथा कारण होने पर भी परिणाम रहित होने के कारण, अन्य कारणों से विलक्षण कारण आपको बारम्बार नमस्कार है । सम्पूर्ण वेदों एवं शास्त्रों के परम तात्पर्य , मोक्षरूप एवं श्रेष्ठ पुरुषों की परम गति भगवान को नमस्कार है ॥

गुणारणिच्छन्न चिदूष्मपाय तत्क्षोभविस्फूर्जित मान्साय । नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागम- स्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि ॥१६॥

जो त्रिगुणरूप काष्ठों में छिपे हुए ज्ञानरूप अग्नि हैं, उक्त गुणों में हलचल होने पर जिनके मन में सृष्टि रचने की बाह्य वृत्ति जागृत हो उठती है तथा आत्म तत्त्व की भावना के द्वारा विधि निषेध रूप शास्त्र से ऊपर उठे हुए ज्ञानी महात्माओं में जो स्वयं प्रकाशित हो रहे हैं उन प्रभु को मैं नमस्कार करता हूँ ॥

मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोsलयाय । स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीत- प्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते ॥१७॥

मुझ जैसे शरणागत पशुतुल्य (अविद्याग्रस्त) जीवों की अविद्यारूप फाँसी को सदा के लिये पूर्णरूप से काट देने वाले अत्याधिक दयालू एवं दया करने में कभी आलस्य ना करने वाले नित्यमुक्त प्रभु को नमस्कार है । अपने अंश से संपूर्ण जीवों के मन में अन्तर्यामी रूप से प्रकट रहने वाले सर्व नियन्ता अनन्त परमात्मा आप को नमस्कार है ॥

आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तै- र्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय । मुक्तात्मभिः स्वहृदये परिभाविताय ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय ॥१८॥

शरीर, पुत्र, मित्र, घर, संपंत्ती एवं कुटुंबियों में आसक्त लोगों के द्वारा कठिनता से प्राप्त होने वाले तथा मुक्त पुरुषों के द्वारा अपने हृदय में निरन्तर चिन्तित ज्ञानस्वरूप , सर्वसमर्थ भगवान को नमस्कार है ॥

यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति। किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं करोतु मेदभ्रदयो विमोक्षणम ॥१९॥

जिन्हे धर्म, अभिलाषित भोग, धन तथा मोक्ष की कामना से भजने वाले लोग अपनी मनचाही गति पा लेते हैं अपितु जो उन्हे अन्य प्रकार के अयाचित भोग एवं अविनाशी पार्षद शरीर भी देते हैं वे अतिशय दयालु प्रभु मुझे इस विपत्ती से सदा के लिये उबार लें ॥

एकान्तिनो यस्य न कंचनार्थ वांछन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः । 
अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलं गायन्त आनन्न्द समुद्रमग्नाः ॥२०॥

जिनके अनन्य भक्त -जो वस्तुतः एकमात्र उन भगवान के ही शरण है-धर्म , अर्थ आदि किसी भी पदार्थ को नही चाह्ते, अपितु उन्ही के परम मंगलमय एवं अत्यन्त विलक्षण चरित्रों का गान करते हुए आनन्द के समुद्र में गोते लगाते रहते हैं ॥

तमक्षरं ब्रह्म परं परेश- मव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम। 
अतीन्द्रियं सूक्षममिवातिदूर- मनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे ॥२१॥

उन अविनाशी, सर्वव्यापक, सर्वश्रेष्ठ, ब्रह्मादि के भी नियामक, अभक्तों के लिये प्रकट होने पर भी भक्तियोग द्वारा प्राप्त करने योग्य, अत्यन्त निकट होने पर भी माया के आवरण के कारण अत्यन्त दूर प्रतीत होने वाले , इन्द्रियों के द्वारा अगम्य तथा अत्यन्त दुर्विज्ञेय, अन्तरहित किंतु सबके आदिकारण एवं सब ओर से परिपूर्ण उन भगवान की मैं स्तुति करता हूँ ॥

यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः । 
नामरूपविभेदेन फल्ग्व्या च कलया कृताः ॥२२॥

ब्रह्मादि समस्त देवता, चारों वेद तथा संपूर्ण चराचर जीव नाम और आकृति भेद से जिनके अत्यन्त क्षुद्र अंश के द्वारा रचे गये हैं ॥

यथार्चिषोग्नेः सवितुर्गभस्तयो निर्यान्ति संयान्त्यसकृत स्वरोचिषः । तथा यतोयं गुणसंप्रवाहो बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः ॥२३॥

जिस प्रकार प्रज्ज्वलित अग्नि से लपटें तथा सूर्य से किरणें बार बार निकलती है और पुनः अपने कारण मे लीन हो जाती है उसी प्रकार बुद्धि, मन, इन्द्रियाँ और नाना योनियों के शरीर – यह गुणमय प्रपंच जिन स्वयंप्रकाश परमात्मा से प्रकट होता है और पुनः उन्ही में लीन हो जात है ॥

स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंग न स्त्री न षण्डो न पुमान न जन्तुः । नायं गुणः कर्म न सन्न चासन निषेधशेषो जयतादशेषः ॥२४॥

वे भगवान न तो देवता हैं न असुर, न मनुष्य हैं न तिर्यक (मनुष्य से नीची – पशु , पक्षी आदि किसी) योनि के प्राणी है । न वे स्त्री हैं न पुरुष और नपुंसक ही हैं । न वे ऐसे कोई जीव हैं, जिनका इन तीनों ही श्रेणियों में समावेश हो सके । न वे गुण हैं न कर्म, न कार्य हैं न तो कारण ही । सबका निषेध हो जाने पर जो कुछ बच रहता है, वही उनका स्वरूप है और वे ही सब कुछ है । ऐसे भगवान मेरे उद्धार के लिये आविर्भूत हों ॥

जिजीविषे नाहमिहामुया कि- मन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या । 
इच्छामि कालेन न यस्य विप्लव- स्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम ॥२५॥

मैं इस ग्राह के चंगुल से छूट कर जीवित नही रहना चाहता; क्योंकि भीतर और बाहर – सब ओर से अज्ञान से ढके हुए इस हाथी के शरीर से मुझे क्या लेना है । मैं तो आत्मा के प्रकाश को ढक देने वाले उस अज्ञान की निवृत्ति चाहता हूँ, जिसका कालक्रम से अपने आप नाश नही होता , अपितु भगवान की दया से अथवा ज्ञान के उदय से होता है ॥

सोsहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम ।
 विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोस्मि परं पदम ॥२६॥

इस प्रकार मोक्ष का अभिलाषी मैं विश्व के रचियता, स्वयं विश्व के रूप में प्रकट तथा विश्व से सर्वथा परे, विश्व को खिलौना बनाकर खेलने वाले, विश्व में आत्मरूप से व्याप्त , अजन्मा, सर्वव्यापक एवं प्राप्त्य वस्तुओं में सर्वश्रेष्ठ श्री भगवान को केवल प्रणाम ही करता हूं, उनकी शरण में हूँ ।।

योगरन्धित कर्माणो हृदि योगविभाविते । 
योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोsस्म्यहम ॥२७॥

जिन्होने भगवद्भक्ति रूप योग के द्वारा कर्मों को जला डाला है, वे योगी लोग उसी योग के द्वारा शुद्ध किये हुए अपने हृदय में जिन्हे प्रकट हुआ देखते हैं उन योगेश्वर भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ ॥

नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग- शक्तित्रयायाखिलधीगुणाय।
 प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने ॥२८॥

जिनकी त्रिगुणात्मक (सत्त्व-रज-तमरूप ) शक्तियों का रागरूप वेग असह्य है, जो सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयरूप में प्रतीत हो रहे हैं, तथापि जिनकी इन्द्रियाँ विषयों में ही रची पची रहती हैं-ऐसे लोगों को जिनका मार्ग भी मिलना असंभव है, उन शरणागतरक्षक एवं अपारशक्तिशाली आपको बार बार नमस्कार है ॥

नायं वेद स्वमात्मानं यच्छ्क्त्याहंधिया हतम ।
 तं दुरत्ययमाहात्म्यं भगवन्तमितोsस्म्यहम ॥२९॥

जिनकी अविद्या नामक शक्ति के कार्यरूप अहंकार से ढंके हुए अपने स्वरूप को यह जीव जान नही पाता, उन अपार महिमा वाले भगवान की मैं शरण आया हूँ ॥

श्री शुकदेव उवाच – श्री शुकदेवजी ने कहा –

एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं ब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः । नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात तत्राखिलामर्मयो हरिराविरासीत ॥३०॥

जिसने पूर्वोक्त प्रकार से भगवान के भेदरहित निराकार स्वरूप का वर्णन किया था , उस गजराज के समीप जब ब्रह्मा आदि कोई भी देवता नही आये, जो भिन्न भिन्न प्रकार के विशिष्ट विग्रहों को ही अपना स्वरूप मानते हैं, तब सक्षात श्री हरि- जो सबके आत्मा होने के कारण सर्वदेवस्वरूप हैं-वहाँ प्रकट हो गये ॥

तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासः स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भि : । 
छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमान – श्चक्रायुधोsभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः ॥३१॥

उपर्युक्त गजराज को उस प्रकार दुःखी देख कर तथा उसके द्वारा पढी हुई स्तुति को सुन कर सुदर्शनचक्रधारी जगदाधार भगवान इच्छानुरूप वेग वाले गरुड जी की पीठ पर सवार होकर स्तवन करते हुए देवताओं के साथ तत्काल उस स्थान अपर पहुँच गये जहाँ वह हाथी था ।

सोsन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो दृष्ट्वा गरुत्मति हरि ख उपात्तचक्रम । उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छा – न्नारायण्खिलगुरो भगवान नम्स्ते ॥३२॥

सरोवर के भीतर महाबली ग्राह के द्वारा पकडे जाकर दुःखी हुए उस हाथी ने आकाश में गरुड की पीठ पर सवार चक्र उठाये हुए भगवान श्री हरि को देखकर अपनी सूँड को -जिसमें उसने (पूजा के लिये) कमल का एक फूल ले रक्खा था-ऊपर उठाया और बडी ही कठिनाई से “सर्वपूज्य भगवान नारायण आपको प्रणाम है” यह वाक्य कहा ॥

तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार । ग्राहाद विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं सम्पश्यतां हरिरमूमुचदुस्त्रियाणाम ॥३३॥

उसे पीडित देख कर अजन्मा श्री हरि एकाएक गरुड को छोडकर नीचे झील पर उतर आये । वे दया से प्रेरित हो ग्राहसहित उस गजराज को तत्काल झील से बाहर निकाल लाये और देवताओं के देखते देखते चक्र से मुँह चीर कर उसके चंगुल से हाथी को उबार दिया।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌺🌺🌺🌺🚩 जय श्री राधेकृष्णा 🙏🌺🌺🌺🌺🚩

Monday, 3 January 2022

मकर संक्रांति14या15 को और माघ मास फल जाने

 



मकर सक्रांति 14 जनवरी 2022 शुक्रवार द्वादशी तिथि इस दिन 2:29 पर वृष लग्न प्रवेश करेगी और इसका पुण्य काल प्रातः 8:05 के बाद पूरे दिन रहेगा ।इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन किया हुआ दान पुण्यदायक होता है। यह माघ का महीना पूरे 12 महीनों में सबसे पुणे दायक महीना होता है इस महीने में अपने सामर्थ्य अनुसार भगवान का भजन पूजन करना चाहिए इस मास में किया हुआ भजन पूजन बहुत ही लाभकारी होता है।इस प्रकार से नंदा नामक यह संवत्सर ब्राह्मण पशुओं शिक्षित वर्ग के लिए लाभकारी रहेगा इस दिन तीर्थों पर स्नान आदि का विशेष महत्व  होगा तथा पुण्य की प्राप्ति होगी ।जो तीर्थों में ना जा सके वह घर में श्रद्धा पूर्वक स्नान करें और वही उनका स्मरण करें इसी प्रकार 17 तारीख  जनवरी सोमवार  4 गते माघ को  पूर्णिमा होगी  उस दिन हरिद्वार प्रयाग कुरुक्षेत्र तीर्थों पर या  घर में गंगा जल से शुद्ध जल से स्नान करें जप ध्यान करें प्रभु की कृपा सदा बनी रहे।

https://youtu.be/4nLAW2vJ1nM

Sunday, 19 December 2021

शास्त्रो द्वारा पूर्वजन्म को कैसे समझा जा सकता है ?





(1) प्रश्न :- पुनर्जन्म किसको कहते हैं ?

उत्तर :- जब जीवात्मा एक शरीर का त्याग करके किसी दूसरे शरीर में जाती है तो इस बार बार जन्म लेने की क्रिया को पुनर्जन्म कहते हैं



(2) प्रश्न :- पुनर्जन्म क्यों होता है ?

उत्तर :- जब एक जन्म के अच्छे बुरे कर्मों के फल अधुरे रह जाते हैं तो उनको भोगने के लिए दूसरे जन्म आवश्यक हैं ।

(3) प्रश्न :- अच्छे बुरे कर्मों का फल एक ही जन्म में क्यों नहीं मिल जाता ? एक में ही सब निपट जाये तो कितना अच्छा हो ?

उत्तर :- नहीं जब एक जन्म में कर्मों का फल शेष रह जाए तो उसे भोगने के लिए दूसरे जन्म अपेक्षित होते हैं ।

(4) प्रश्न :- पुनर्जन्म को कैसे समझा जा सकता है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म को समझने के लिए जीवन और मृत्यु को समझना आवश्यक है । और जीवन मृत्यु को समझने के लिए शरीर को समझना आवश्यक है ।

(5) प्रश्न :- शरीर के बारे में समझाएँ ?

उत्तर :- हमारे शरीर को निर्माण प्रकृति से हुआ है ।
जिसमें मूल प्रकृति ( सत्व रजस और तमस ) से प्रथम बुद्धि तत्व का निर्माण हुआ है ।
बुद्धि से अहंकार ( बुद्धि का आभामण्डल ) ।
अहंकार से पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ( चक्षु, जिह्वा, नासिका, त्वचा, श्रोत्र ), मन ।
पांच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) ।

शरीर की रचना को दो भागों में बाँटा जाता है ( सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर ) ।

(6) प्रश्न :- सूक्ष्म शरीर किसको बोलते हैं ?

उत्तर :- सूक्ष्म शरीर में बुद्धि, अहंकार, मन, ज्ञानेन्द्रियाँ । ये सूक्ष्म शरीर आत्मा को सृष्टि के आरम्भ में जो मिलता है वही एक ही सूक्ष्म शरीर सृष्टि के अंत तक उस आत्मा के साथ पूरे एक सृष्टि काल ( ४३२००००००० वर्ष ) तक चलता है । और यदि बीच में ही किसी जन्म में कहीं आत्मा का मोक्ष हो जाए तो ये सूक्ष्म शरीर भी प्रकृति में वहीं लीन हो जायेगा ।

(7) प्रश्न :- स्थूल शरीर किसको कहते हैं ?

उत्तर :- पंच कर्मेन्द्रियाँ ( हस्त, पाद, उपस्थ, पायु, वाक् ) , ये समस्त पंचभौतिक बाहरी शरीर ।

(8) प्रश्न :- जन्म क्या होता है ?

उत्तर :- जीवात्मा का अपने करणों ( सूक्ष्म शरीर ) के साथ किसी पंचभौतिक शरीर में आ जाना ही जन्म कहलाता है

(9) प्रश्न :- मृत्यु क्या होती है ?

उत्तर :- जब जीवात्मा का अपने पंचभौतिक स्थूल शरीर से वियोग हो जाता है, तो उसे ही मृत्यु कहा जाता है । परन्तु मृत्यु केवल सथूल शरीर की होती है , सूक्ष्म शरीर की नहीं । सूक्ष्म शरीर भी छूट गया तो वह मोक्ष कहलाएगा मृत्यु नहीं । मृत्यु केवल शरीर बदलने की प्रक्रिया है, जैसे मनुष्य कपड़े बदलता है । वैसे ही आत्मा शरीर भी बदलता है ।

(10) प्रश्न :- मृत्यु होती ही क्यों है ?

उत्तर :- जैसे किसी एक वस्तु का निरन्तर प्रयोग करते रहने से उस वस्तु का सामर्थ्य घट जाता है, और उस वस्तु को बदलना आवश्यक हो जाता है, ठीक वैसे ही एक शरीर का सामर्थ्य भी घट जाता है और इन्द्रियाँ निर्बल हो जाती हैं । जिस कारण उस शरीर को बदलने की प्रक्रिया का नाम ही मृत्यु है ।

(11) प्रश्न :- मृत्यु न होती तो क्या होता ?

उत्तर :- तो बहुत अव्यवस्था होती । पृथ्वी की जनसंख्या बहुत बढ़ जाती । और यहाँ पैर धरने का भी स्थान न होता ।

(12) प्रश्न :- क्या मृत्यु होना बुरी बात है ?

उत्तर :- नहीं, मृत्यु होना कोई बुरी बात नहीं ये तो एक प्रक्रिया है शरीर परिवर्तन की ।

(13) प्रश्न :- यदि मृत्यु होना बुरी बात नहीं है तो लोग इससे इतना डरते क्यों हैं ?

उत्तर :- क्योंकि उनको मृत्यु के वैज्ञानिक स्वरूप की जानकारी नहीं है । वे अज्ञानी हैं । वे समझते हैं कि मृत्यु के समय बहुत कष्ट होता है । उन्होंने वेद, उपनिषद, या दर्शन को कभी पढ़ा नहीं वे ही अंधकार में पड़ते हैं और मृत्यु से पहले कई बार मरते हैं ।

(14) प्रश्न :- तो मृत्यु के समय कैसा लगता है ? थोड़ा सा तो बतायें ?

उत्तर :- जब आप बिस्तर में लेटे लेटे नींद में जाने लगते हैं तो आपको कैसा लगता है ?? ठीक वैसा ही मृत्यु की अवस्था में जाने में लगता है उसके बाद कुछ अनुभव नहीं होता । जब आपकी मृत्यु किसी हादसे से होती है तो उस समय आमको मूर्छा आने लगती है, आप ज्ञान शून्य होने लगते हैं जिससे की आपको कोई पीड़ा न हो । तो यही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है कि मृत्यु के समय मनुष्य ज्ञान शून्य होने लगता है और सुषुुप्तावस्था में जाने लगता है ।

(15) प्रश्न :- मृत्यु के डर को दूर करने के लिए क्या करें ?

उत्तर :- जब आप वैदिक आर्ष ग्रन्थ ( उपनिषद, दर्शन आदि ) का गम्भीरता से अध्ययन करके जीवन,मृत्यु, शरीर, आदि के विज्ञान को जानेंगे तो आपके अन्दर का, मृत्यु के प्रति भय मिटता चला जायेगा और दूसरा ये की योग मार्ग पर चलें तो स्वंय ही आपका अज्ञान कमतर होता जायेगा और मृत्यु भय दूर हो जायेगा । आप निडर हो जायेंगे । जैसे हमारे बलिदानियों की गाथायें आपने सुनी होंगी जो राष्ट्र की रक्षा के लिये बलिदान हो गये । तो आपको क्या लगता है कि क्या वो ऐसे ही एक दिन में बलिदान देने को तैय्यार हो गये थे ? नहीं उन्होने भी योगदर्शन, गीता, साँख्य, उपनिषद, वेद आदि पढ़कर ही निर्भयता को प्राप्त किया था । योग मार्ग को जीया था, अज्ञानता का नाश किया था । 

महाभारत के युद्ध में भी जब अर्जुन भीष्म, द्रोणादिकों की मृत्यु के भय से युद्ध की मंशा को त्याग बैठा था तो योगेश्वर कृष्ण ने भी तो अर्जुन को इसी सांख्य, योग, निष्काम कर्मों के सिद्धान्त के माध्यम से जीवन मृत्यु का ही तो रहस्य समझाया था और यह बताया कि शरीर तो मरणधर्मा है ही तो उसी शरीर विज्ञान को जानकर ही अर्जुन भयमुक्त हुआ । तो इसी कारण तो वेदादि ग्रन्थों का स्वाध्याय करने वाल मनुष्य ही राष्ट्र के लिए अपना शीश कटा सकता है, वह मृत्यु से भयभीत नहीं होता , प्रसन्नता पूर्वक मृत्यु को आलिंगन करता है ।

(16) प्रश्न :- किन किन कारणों से पुनर्जन्म होता है ?

उत्तर :- आत्मा का स्वभाव है कर्म करना, किसी भी क्षण आत्मा कर्म किए बिना रह ही नहीं सकता । वे कर्म अच्छे करे या फिर बुरे, ये उसपर निर्भर है, पर कर्म करेगा अवश्य । तो ये कर्मों के कारण ही आत्मा का पुनर्जन्म होता है । पुनर्जन्म के लिए आत्मा सर्वथा ईश्वराधीन है ।

(17) प्रश्न :- पुनर्जन्म कब कब नहीं होता ?

उत्तर :- जब आत्मा का मोक्ष हो जाता है तब पुनर्जन्म नहीं होता है ।

(18) प्रश्न :- मोक्ष होने पर पुनर्जन्म क्यों नहीं होता ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष होने पर स्थूल शरीर तो पंचतत्वों में लीन हो ही जाता है, पर सूक्ष्म शरीर जो आत्मा के सबसे निकट होता है, वह भी अपने मूल कारण प्रकृति में लीन हो जाता है ।

(19) प्रश्न :- मोक्ष के बाद क्या कभी भी आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता ?

उत्तर :- मोक्ष की अवधि तक आत्मा का पुनर्जन्म नहीं होता । उसके बाद होता है ।

(20) प्रश्न :- लेकिन मोक्ष तो सदा के लिए होता है, तो फिर मोक्ष की एक निश्चित अवधि कैसे हो सकती है ?

उत्तर :- सीमित कर्मों का कभी असीमित फल नहीं होता । यौगिक दिव्य कर्मों का फल हमें ईश्वरीय आनन्द के रूप में मिलता है, और जब ये मोक्ष की अवधि समाप्त होती है तो दुबारा से ये आत्मा शरीर धारण करती है ।

(21) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि कब तक होती है ?

उत्तर :- मोक्ष का समय ३१ नील १० खरब ४० अरब वर्ष है, जब तक आत्मा मुक्त अवस्था में रहती है ।

(22) प्रश्न :- मोक्ष की अवस्था में स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ रहता है या नहीं ?

उत्तर :- नहीं मोक्ष की अवस्था में आत्मा पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाता रहता है और ईश्वर के आनन्द में रहता है, बिलकुल ठीक वैसे ही जैसे कि मछली पूरे समुद्र में रहती है । और जीव को किसी भी शरीर की आवश्यक्ता ही नहीं होती।

(23) प्रश्न :- मोक्ष के बाद आत्मा को शरीर कैसे प्राप्त होता है ?

उत्तर :- सबसे पहला तो आत्मा को कल्प के आरम्भ ( सृष्टि आरम्भ ) में सूक्ष्म शरीर मिलता है फिर ईश्वरीय मार्ग और औषधियों की सहायता से प्रथम रूप में अमैथुनी जीव शरीर मिलता है, वो शरीर सर्वश्रेष्ठ मनुष्य या विद्वान का होता है जो कि मोक्ष रूपी पुण्य को भोगने के बाद आत्मा को मिला है । जैसे इस वाली सृष्टि के आरम्भ में चारों ऋषि विद्वान ( वायु , आदित्य, अग्नि , अंगिरा ) को मिला जिनको वेद के ज्ञान से ईश्वर ने अलंकारित किया । क्योंकि ये ही वो पुण्य आत्मायें थीं जो मोक्ष की अवधि पूरी करके आई थीं ।

(24) प्रश्न :- मोक्ष की अवधि पूरी करके आत्मा को मनुष्य शरीर ही मिलता है या जानवर का ?

उत्तर :- मनुष्य शरीर ही मिलता है ।

(25) प्रश्न :- क्यों केवल मनुष्य का ही शरीर क्यों मिलता है ? जानवर का क्यों नहीं ?

उत्तर :- क्योंकि मोक्ष को भोगने के बाद पुण्य कर्मों को तो भोग लिया , और इस मोक्ष की अवधि में पाप कोई किया ही नहीं तो फिर जानवर बनना सम्भव ही नहीं , तो रहा केवल मनुष्य जन्म जो कि कर्म शून्य आत्मा को मिल जाता है ।

(26) प्रश्न :- मोक्ष होने से पुनर्जन्म क्यों बन्द हो जाता है ?

उत्तर :- क्योंकि योगाभ्यास आदि साधनों से जितने भी पूर्व कर्म होते हैं ( अच्छे या बुरे ) वे सब कट जाते हैं । तो ये कर्म ही तो पुनर्जन्म का कारण हैं, कर्म ही न रहे तो पुनर्जन्म क्यों होगा ??

(27) प्रश्न :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय क्या है ?

उत्तर :- पुनर्जन्म से छूटने का उपाय है योग मार्ग से मुक्ति या मोक्ष का प्राप्त करना ।

(28) प्रश्न :- पुनर्जन्म में शरीर किस आधार पर मिलता है ?

उत्तर :- जिस प्रकार के कर्म आपने एक जन्म में किए हैं उन कर्मों के आधार पर ही आपको पुनर्जन्म में शरीर मिलेगा ।

(29) प्रश्न :- कर्म कितने प्रकार के होते हैं ?

उत्तर :- मुख्य रूप से कर्मों को तीन भागों में बाँटा गया है :- सात्विक कर्म , राजसिक कर्म , तामसिक कर्म ।

(१) सात्विक कर्म :- सत्यभाषण, विद्याध्ययन, परोपकार, दान, दया, सेवा आदि ।

(२) राजसिक कर्म :- मिथ्याभाषण, क्रीडा, स्वाद लोलुपता, स्त्रीआकर्षण, चलचित्र आदि ।

(३) तामसिक कर्म :- चोरी, जारी, जूआ, ठग्गी, लूट मार, अधिकार हनन आदि ।

और जो कर्म इन तीनों से बाहर हैं वे दिव्य कर्म कलाते हैं, जो कि ऋषियों और योगियों द्वारा किए जाते हैं । इसी कारण उनको हम तीनों गुणों से परे मानते हैं । जो कि ईश्वर के निकट होते हैं और दिव्य कर्म ही करते हैं ।

(30) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से मनुष्य योनि प्राप्त होती है ?

उत्तर :- सात्विक और राजसिक कर्मों के मिलेजुले प्रभाव से मानव देह मिलती है , यदि सात्विक कर्म बहुत कम है और राजसिक अधिक तो मानव शरीर तो प्राप्त होगा परन्तु किसी नीच कुल में , यदि सात्विक गुणों का अनुपात बढ़ता जाएगा तो मानव कुल उच्च ही होता जायेगा । जिसने अत्यधिक सात्विक कर्म किए होंगे वो विद्वान मनुष्य के घर ही जन्म लेगा ।

(31) प्रश्न :- किस प्रकार के कर्म करने से आत्मा जीव जन्तुओं के शरीर को प्राप्त होता है ?

उत्तर :- तामसिक और राजसिक कर्मों के फलरूप जानवर शरीर आत्मा को मिलता है । जितना तामसिक कर्म अधिक किए होंगे उतनी ही नीच योनि उस आत्मा को प्राप्त होती चली जाती है । जैसे लड़ाई स्वभाव वाले , माँस खाने वाले को कुत्ता, गीदड़, सिंह, सियार आदि का शरीर मिल सकता है , और घोर तामसिक कर्म किए हुए को साँप, नेवला, बिच्छू, कीड़ा, काकरोच, छिपकली आदि । तो ऐसे ही कर्मों से नीच शरीर मिलते हैं और ये जानवरों के शरीर आत्मा की भोग योनियाँ हैं ।

(32) प्रश्न :- तो क्या हमें यह पता लग सकता है कि हम पिछले जन्म में क्या थे ? या आगे क्या होंगे ?

उत्तर :- नहीं कभी नहीं, सामान्य मनुष्य को यह पता नहीं लग सकता । क्योंकि यह केवल ईश्वर का ही अधिकार है कि हमें हमारे कर्मों के आधार पर शरीर दे । वही सब जानता है ।

(33) प्रश्न :- तो फिर यह किसको पता चल सकता है ?

उत्तर :- केवल एक सिद्ध योगी ही यह जान सकता है , योगाभ्यास से उसकी बुद्धि । अत्यन्त तीव्र हो चुकी होती है कि वह ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के महत्वपूर्ण रहस्य़ अपनी योगज शक्ति से जान सकता है । उस योगी को बाह्य इन्द्रियों से ज्ञान प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहती है
वह अन्तः मन और बुद्धि से सब जान लेता है । उसके सामने भूत और भविष्य दोनों सामने आ खड़े होते हैं ।

(34) प्रश्न :- यह बतायें की योगी यह सब कैसे जान लेता है ?

उत्तर :- अभी यह लेख पुनर्जन्म पर है, यहीं से प्रश्न उत्तर का ये क्रम चला देंगे तो लेख का बहुत ही विस्तार हो जायेगा । इसीलिये हम अगले लेख में यह विषय विस्तार से समझायेंगे कि योगी कैसे अपनी विकसित शक्तियों से सब कुछ जान लेता है ? और वे शक्तियाँ कौन सी हैं ? कैसे प्राप्त होती हैं ? इसके लिए अगले लेख की प्रतीक्षा करें...

(35) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म के कोई प्रमाण हैं ?

उत्तर :- हाँ हैं, जब किसी छोटे बच्चे को देखो तो वह अपनी माता के स्तन से सीधा ही दूध पीने लगता है जो कि उसको बिना सिखाए आ जाता है क्योंकि ये उसका अनुभव पिछले जन्म में दूध पीने का रहा है, वर्ना बिना किसी कारण के ऐसा हो नहीं सकता । दूसरा यह कि कभी आप उसको कमरे में अकेला लेटा दो तो वो कभी कभी हँसता भी है , ये सब पुराने शरीर की बातों को याद करके वो हँसता है पर जैसे जैसे वो बड़ा होने लगता है तो धीरे धीरे सब भूल जाता है...!

(36) प्रश्न :- क्या इस पुनर्जन्म को सिद्ध करने के लिए कोई उदाहरण हैं...?

उत्तर :- हाँ, जैसे अनेकों समाचार पत्रों में, या TV में भी आप सुनते हैं कि एक छोटा सा बालक अपने पिछले जन्म की घटनाओं को याद रखे हुए है, और सारी बातें बताता है जहाँ जिस गाँव में वो पैदा हुआ, जहाँ उसका घर था, जहाँ पर वो मरा था । और इस जन्म में वह अपने उस गाँव में कभी गया तक नहीं था लेकिन फिर भी अपने उस गाँव की सारी बातें याद रखे हुए है , किसी ने उसको कुछ बताया नहीं, सिखाया नहीं, दूर दूर तक उसका उस गाँव से इस जन्म में कोई नाता नहीं है । फिर भी उसकी गुप्त बुद्धि जो कि सूक्ष्म शरीर का भाग है वह घटनाएँ संजोए हुए है जाग्रत हो गई और बालक पुराने जन्म की बातें बताने लग पड़ा...!

(37) प्रश्न :- लेकिन ये सब मनघड़ंत बातें हैं, हम विज्ञान के युग में इसको नहीं मान सकते क्योंकि वैज्ञानिक रूप से ये बातें बेकार सिद्ध होती हैं, क्या कोई तार्किक और वैज्ञानिक आधार है इन बातों को सिद्ध करने का ?

उत्तर :- आपको किसने कहा कि हम विज्ञान के विरुद्ध इस पुनर्जन्म के सिद्धान्त का दावा करेंगे । ये वैज्ञानिक रूप से सत्य है , और आपको ये हम अभी सिद्ध करके दिखाते हैं..!

(38) प्रश्न :- तो सिद्ध कीजीए ?

उत्तर :- जैसा कि आपको पहले बताया गया है कि मृत्यु केवल स्थूल शरीर की होती है, पर सूक्ष्म शरीर आत्मा के साथ वैसे ही आगे चलता है , तो हर जन्म के कर्मों के संस्कार उस बुद्धि में समाहित होते रहते हैं । और कभी किसी जन्म में वो कर्म अपनी वैसी ही परिस्थिती पाने के बाद जाग्रत हो जाते हैं 

इसे उदहारण से समझें :- एक बार एक छोटा सा ६ वर्ष का बालक था, यह घटना हरियाणा के सिरसा के एक गाँव की है । जिसमें उसके माता पिता उसे एक स्कूल में घुमाने लेकर गये जिसमें उसका दाखिला करवाना था और वो बच्चा केवल हरियाणवी या हिन्दी भाषा ही जानता था कोई तीसरी भाषा वो समझ तक नहीं सकता था । 

लेकिन हुआ कुछ यूँ था कि उसे स्कूल की Chemistry Lab में ले जाया गया और वहाँ जाते ही उस बच्चे का मूँह लाल हो गया !! चेहरे के हावभाव बदल गये !!

और उसने एकदम फर्राटेदार French भाषा बोलनी शुरू कर दी !! उसके माता पिता बहुत डर गये और घबरा गये , तुरंत ही बच्चे को अस्पताल ले जाया गया । जहाँ पर उसकी बातें सुनकर डाकटर ने एक दुभाषिये का प्रबन्ध किया । 

जो कि French और हिन्दी जानता था , तो उस दुभाषिए ने सारा वृतान्त उस बालक से पूछा तो उस बालक ने बताया कि " मेरा नाम Simon Glaskey है और मैं French Chemist हूँ । मेरी मौत मेरी प्रयोगशाला में एक हादसे के कारण ( Lab. ) में हुई थी । "

तो यहाँ देखने की बात यह है कि इस जन्म में उसे पुरानी घटना के अनुकूल मिलती जुलती परिस्थिति से अपना वह सब याद आया जो कि उसकी गुप्त बुद्धि में दबा हुआ था । यानि की वही पुराने जन्म में उसके साथ जो प्रयोगशाला में हुआ, वैसी ही प्रयोगशाला उस दूसरे जन्म में देखने पर उसे सब याद आया । तो ऐसे ही बहुत सी उदहारणों से आप पुनर्जन्म को वैज्ञानिक रूप से सिद्ध कर सकते हो...!

(39) प्रश्न :- तो ये घटनाएँ भारत में ही क्यों होती हैं ? पूरा विश्व इसको मान्यता क्यों नहीं देता ?

उत्तर :- ये घटनायें पूरे विश्व भर में होती रहती हैं और विश्व इसको मान्यता इसलिए नहीं देता क्योंकि उनको वेदानुसार यौगिक दृष्टि से शरीर का कुछ भी ज्ञान नहीं है । वे केवल माँस और हड्डियों के समूह को ही शरीर समझते हैं , और उनके लिए आत्मा नाम की कोई वस्तु नहीं है । तो ऐसे में उनको न जीवन का ज्ञान है, न मृत्यु का ज्ञान है, न आत्मा का ज्ञान है, न कर्मों का ज्ञान है, न ईश्वरीय व्यवस्था का ज्ञान है । और अगर कोई पुनर्जन्म की कोई घटना उनके सामने आती भी है तो वो इसे मानसिक रोग जानकर उसको Multiple Personality Syndrome का नाम देकर अपना पीछा छुड़ा लेते हैं और उसके कथनानुसार जाँच नहीं करवाते हैं...!

(40) प्रश्न :- क्या पुनर्जन्म केवल पृथिवी पर ही होता है या किसी और ग्रह पर भी ?

उत्तर :- ये पुनर्जन्म पूरे ब्रह्माण्ड में यत्र तत्र होता है, कितने असंख्य सौरमण्डल हैं, कितनी ही पृथीवियाँ हैं । तो एक पृथीवी के जीव मरकर ब्रह्माण्ड में किसी दूसरी पृथीवी के उपर किसी न किसी शरीर में भी जन्म ले सकते हैं । ये ईश्वरीय व्यवस्था के अधीन है...

 परन्तु यह बड़ा ही अजीब लगता है कि मान लो कोई हाथी मरकर मच्छर बनता है तो इतने बड़े हाथी की आत्मा मच्छर के शरीर में कैसे घुसेगी..?

यही तो भ्रम है आपका कि आत्मा जो है वो पूरे शरीर में नहीं फैली होती । वो तो हृदय के पास छोटे अणुरूप में होती है । सब जीवों की आत्मा एक सी है । चाहे वो व्हेल मछली हो, चाहे वो एक चींटी हो।

Friday, 3 December 2021

दुर्घटना एवं अकाल मृत्यु के बाद जब आत्मा भटकती है तो उस आत्मा की मुक्ति कैसे होती है?

असमय या अकाल मृत्यु के बाद जब आत्मा भटकती है तो उस आत्मा की मुक्ति कैसे होती है?


जीवन की निर्धारित अवधि पूरी होने से पहले नियत विधान से हटकर हुयी असमय हुयी मृत्यु के बाद जीवात्मा की अवस्था बड़ी पीड़ादायक हो जाती है। जीवात्मा मृत्यु के समय अपनी सबसे प्रबल वासना के साथ साथ मृत्यु की पीड़ा को साथ लिए हुए एक नया वासना शरीर पाता है जिसे प्रेत कहते हैं। यह शरीर इंसानो को न दिखने के साथ प्रबल प्राणमय होता है। इस कारण ये प्रेत बहुत कुछ करने में समर्थ होते हैं लेकिन इनके बंधन बहुत होते हैं इसलिए इनका मानव जीवन में हस्तक्षेप बहुत कम हो पाता है। इनका अपना स्वयं का एक जीवन चक्र होता है।मान लीजिये की अकाल मृत्यु के समय जीवात्मा की मानव जीवन में ४० वर्ष की अवधि शेष थी। इस स्थिति में उसके प्रेत को इसकी दुगुनी से १० गुनी अवधि तक प्रेत विश्व में रहना पड़ सकता है। यह प्रेत लोक कहीं और नहीं वरन हमारे ही इर्द गिर्द किसी और आयाम में होता है। इस अवधि में प्रेतात्मा की भी आयु बढ़ती है और वह एक समय अपनी प्रेत जीवन अवधि काट कर उस योनि से मुक्त होगा।उदहारण स्वरुप यदि किसी बालक की असमय मृत्यु हुयी है तो वह भी प्रेत योनि में धीरे-धीरे युवावस्था प्राप्त करके वृद्धावस्था प्राप्त करेगा। लेकिन यह अवधि हमारे मानावे जीवन से अत्यधिक धीमी और बहुत पीड़ादायक होगी। इस प्रकार कई प्रेत १०० -२०० साल से ४०० -५०० या हज़ार वर्षों तक भी जीवित रह सकते हैं।इनके जीवन का अवधि आदि के साथ साथ इनकी शक्तियों आदि में भी बढ़ोतरी होती है और उसमें भी यह विभिन्न श्रेणियों जैसे अघोरी, श्मशान काली आदि की स्थिति प्राप्त करते हैं। परन्तु इनका जीवन कभी सुखमय नहीं होता। जरा सोचिए यदि रोज मृत्यु के समय के कष्ट का अनुभव झेलना पड़े तो यह किस प्रकार से सुखद होगा। अतः यह एक प्रकार से नर्क ही है। इस अवस्था में प्रेतात्माएं हमेशा मुक्ति की कामना करती रहती हैं।अपनी अवस्था से निरंतर दुखी ये प्रेत मानव जीवन में उनके विचारों को प्रभावित करते हैं और अक्सर जहाँ बुरे कर्म होते हैं वहां ये सूक्ष्म रूप से प्रभावी रहते हैं। व्यक्ति को पता नहीं चलेगा पर अचानक उसके में में बुरे कर्म करने की प्रेरणा आएगी। हालाँकि केवल प्रेतात्मा इसकी दोषी नहीं है उस व्यक्ति के कुसंस्कार और बुरी इच्छाएं ही मुख्य कारण होती हैं। प्रेतात्मा केवल एक कैटेलिस्ट की तरह इसे कई गुना बढ़ा देते हैं। यही नहीं ये प्रेतात्माएं बड़ी-बड़ी दुर्घटनाएं आदि भी कराने में बहुत बड़ा कारण होते हैं। एक बार मानव जीवन से नाता टूटने के बाद इनकी मानवीय संवेदनाएं बहुत क्षीण हो जाती हैं।दूसरा इनके प्रेत विश्व में केवल मानव प्रेत ही नहीं वरन कई और शक्तिशाली इतर योनियों का भी वास होता है जो कभी मानव जन्म लेती ही नहीं डाकिनी, शाकिनी, छलावा आदि। यह सब इन अकाल मृत्यु से ग्रस्त कमजोर प्रेतों को बंधक बनाकर इनकी बहुत दुर्गति करते हैं। जो आपने धरती पर देखा नहीं होगा ये उन अवस्थाओं से भी गुजरते हैं। प्रेत अवस्था में ये धरती के गुरुत्वाकर्षण के बाहर नहीं जा सकती और साधारणतः अपने नियत क्षेत्र के आस पास ही रहती हैं।तिस पर यदि किसी तांत्रिक आदि ने इन्हे सिद्ध कर लिया तो उन्हें उसकी कैद में रहना पड़ सकत है। कभी कभी इन्हे सिद्ध करने में इनके मानव शरीर के बचे अवशेषों जैसे खोपड़ी या हड्डी आदि का प्रयोग होता है। इस दशा में तांत्रिक पहले इनका भरपूर प्रयोग करेगा और अपने मरने के बाद अपने शिष्य परंपरा में खोपड़ी आदि अपने शिष्यों को दे जायेगा। फिर प्रेतात्मा की गुलामी वर्षो या कई पीढ़ियों तक नहीं छूटती। एक के बाद एक कई सौ साल भी जा सकते हैं इनकी गुलामी में। हालाँकि तांत्रिक आदि भी अच्छी अवस्था को नहीं प्राप्त होते। गीता में कहा गया है की जो जिसको भजता है वह उसी को प्राप्त होता है । अब जब जीवन पर्यन्त तांत्रिक ने प्रेतों से काम लिया तो वही भी अधिकतर उन्ही की गति को प्राप्त होता है।       

**प्रेत अवस्था से मुक्ति :*** 


असमय अकाल मृत्यु होने पर जीवात्मा की सद्गति के लिए सनातन धर्म में कई सारे विधान बताये गए हैं। इनमें से नारायण बलि यज्ञ किया जाता है।

* श्राद्ध आदि कर्म भी पूरे सही विधि विधान से करने चाहिए। इनसे प्रेत यमलोक अथवा पितर लोक पहुँच जाता है और विधि के नियमानुसार अपने अगले जन्म की तैयारी करता है।

* कभी-कभी किसी इच्छावश भी प्रेत बंधा रहता है और उस इच्छा के पूर्ण होने पर भी उसकी आगे गति हो जाती है।

* गया श्राद्ध भी बहुत शक्तिशाली विधान है और आपके पितर -प्रेतों को कष्ट से छुड़ाकर बहुत सुख पहुँचाता है।* 

इसके आलावा प्रेत के निमित्त श्रीमद्भगवद का पाठ शिव पुराण का पाठ त्वरित मुक्ति प्रदान करता ह।

* गीता के सातवें , आठवें अध्याय का पाठ भी भूत प्रेत को उनकी वस्तुस्थिति का ज्ञान देता है उन्हे मुक्ति के लिए प्रेरित करता है।

* एकादशी आदि व्रतों के फल का प्रेतात्म के निमित्त दान भी उन्हें मुक्त कर सकता है।

* इसके अलावा सिद्धों का आशीर्वाद भी इन जीवात्माओं को मुक्त कर सकत हैं। परन्तु आज कल कलियुग में ऐसे तपस्वी समाज में नहीं रहते। ठग अधिक हैं इसलिए उनसे बचें और शास्त्रोक्त विधानों पर अमल करें।यदि यह विधान आप करेंगे तो अकाल मृत्युग्रस्त जीवात्मा की शीघ्र मुक्ति होगी अन्यथा उसे अपना कष्टदायक नर्क सामान लम्बा प्रेत जीवन जीते हुए अगली योनियों में उसके बाद ही गमन होगा। बाद वाली स्थिति में उसकी बुद्धि दूषित रहने की सम्भावना अधिक है। विधि क्रिया आदि करने पर उनकी स्वभाव में कुछ सात्त्विकता का समावेश भी अवश्य होगा।

Wednesday, 17 November 2021

कहां कहां दिखेगा खंण्ड ग्रास चन्द्र ग्रहण 19 नवंबर 2021 के बारे में जाने

खंडग्रास चंद्रग्रहण 19 नवंबर 2021 ईस्वी कार्तिक पूर्णिमा शुक्रवार यह ग्रहण 19 नवंबर 2021 ईस्वी शुक्रवार कार्तिक पूर्णिमा  4गते मार्गशीर्ष को सांय काल चंद्रोदय के समय भारत के सुदूर पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश तथा आसाम राज्य के सुदूर केवल पूर्वी क्षेत्रों में ही स्वरूप ग्रास ग्रस्त होते के रूप में बहुत ही कम समय के लिए दिखाई देगा शेष भारत में यह ग्रहण बिल्कुल दिखाई नहीं देगा जिन सुदूर पूर्वी नगरों में यह ग्रहण दिखाई देगा वहां चंद्रमा ग्रस्त ही उदय होगा तथा उदय के समय कुछ ही मिनटों के बाद ग्रहण समाप्त हो जाएगा अतः इसका परहेज इन्हीं क्षेत्रों में रहेगा।

ग्रहण का सूतक - भारत के दो पूर्वी राज्य अरुणाचल आसाम  राज्यों  के पूर्वी भागों में दिखाई देगा। केवल वही इस ग्रहण का सूतक विचार होगा अन्य जगह नहीं।

 भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण अधिकतर यूरोप एशिया पाकिस्तान अफगानिस्तान ईरान उत्तर-पश्चिमी भारत को छोड़कर ऑस्ट्रेलिया उत्तर पश्चिमी अफ्रीका उत्तरी तथा दक्षिणी अमेरिका (कनैडा) सहित मैं खंडाग्रस रूप में दृश्य होगा भारतीय समय अनुसार चंद्र ग्रहण का स्पर्श और मोक्ष इस प्रकार से है ग्रहण प्रारंभ 12:48 ग्रहण मध्य 14 बचकर 33 मिनट ग्रहण समाप्त 16:17 भारत के इन प्रदेशों में ही ग्रहण का ग्रास बहुत ही कम होगा यह 2% से अधिक नहीं होगा अब अपितु इतने  अल्प ग्रास को नंगी आंखों से देख पाना संभव नहीं होता । इन नगरों में  चंद्रोदय के बाद अधिक से अधिक 8 मिनट तक के लिए यह ग्रस्तोदय चंन्द्र ग्रहण दूरबीन द्वारा दृश्य होगा । जैसे कि पिछले ग्रहण में भी लिखा गया है कि इतने अल्प ग्रास वाले ग्रहण को शास्त्र कारों ने अलक्ष्य पूर्ण लिखा है। तथा इस प्रकार के ग्रहण की चर्चा करना व्यर्थ है क्योंकि भारत के इन क्षेत्रों में भी पूर्वी राज्य में ग्रासमान अत्यंत अल्प होगा अतः इन नगरों में भी इस ग्रहण का कोई महात्म्य नहीं होगा फिर भी पाठकों के लाभार्थ ज़हां ये अल्पकालिक ग्रस्तोदय चंद्रग्रहण दिखाई देगा वहां नगरों में अलग-अलग कोष्ठक आगे दिए गए हैं

Tuesday, 2 November 2021

दीपावली का पर्व कैसे और कब मनाए?

 


02 नवंबर 2021शुभ संवत् 2078मंगलवार  को धनत्रयोदशी को नवीन बर्तन का क्रय सांय काल में लक्ष्मी नारायण का पूजन करने के बाद अनाज वस्त्र खुशियों एवं उनके निमित्त दीपदान करें इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।

3 नवंबर 2021मास 18गते कार्तिक नरक चतुर्दशी के दिन बिजली , अग्नि, उल्का आदि से मृतकों की शांन्ति के लिए चार मुख वाले दीपक को प्रज्वलित करके तथा शक्ति दान करे। सांय काल को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल,तिल और कुश लेकर तर्पण करें।इस दिन की अर्धरात्रि के समय घृत पूर्ण दीपक जलाकर श्री नुमान जयन्ति मनाई जाती है।

उन्हें मोदक के लिए फल आदि अर्पण करें एवं सुंदरकांड आदि हनुमान स्तोत्र का पाठ करें 4 नवंबर गुरुवार को कार्तिक मास अमावस्या दीपावली को प्रदा प्रदोष काल में  दीपदान करके अपने गृह के पूजा स्थान में मंत्र पूर्वक दीप प्रज्वलित करके श्री महालक्ष्मी की यथा विधि पूजा करनी चाहिए।

ब्रह्म पुराण अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को अर्धरात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सद ग्रंथों के घर में जहां-तहां वितरण करती हैं इसलिए अपने घर को सब प्रकार से स्वच्छ शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली तथा दीप मालिका मनाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होते हैं तथा वहां स्थाई रूप से निवास करती है कि अमावस्या प्रदोष काल एवं आज रात्रि व्यापिनी हो तो विशेष विशेष शुभ होती है।

दीपावली दिन के कृत्य इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कृतियों से निवृत हो मित्र गण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिए संभव हो तो दूध दही और खेत से पितरों का पावन याद करना चाहिए यदि यह संभव हो तो दिनभर उपवास कर गोधूलि बेला में अथवा दृश्य सिंह वृश्चिक और स्थिर लग्न में श्री गणेश कलश षोडश मातृका ग्रह पूजन पूर्वक भगवती लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए इसके अंदर महाकाली का दावा के रूप में मां सरस्वती का कलम वही आदि के रूप में कुबेर का तुला के रूप में सभी जी पूजन करें ना चाहिए इसी समय दी पूजन कर यमराज तथा मित्र गणों के निमित्त सत्संग क्लब दीप दान करना चाहिए तदुपरांत यथो लब्ध निशीथ आदि शिव मूर्तियों में मंत्र जप यंत्र सिद्धि आदि अनुष्ठान संपादित करने चाहिए दीपावली वास्तव में पांच पर्वों का मौसम माना जाता है जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनत्रयोदशी कार्तिक शुक्ल द्वितीया भैया दूज 6नवंबर2021 कार्तिक21गते तक रहती है दीपावली के पर्व पर धन की प्रभुत प्राप्ति के लिए धनदा की अधिष्ठात्री भगवती लक्ष्मी का समारोह पूर्वक आभार षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है आगे दिए निर्देश शुभ कार्यों में किसी स्वच्छ एवं पवित्र स्थान पर आटा हल्दी अक्षत पुष्प आदि से अष्टदल कमल बनाकर श्री लक्ष्मी का आवाहन स्थापना करके देवों की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

लक्ष्मी पूजा वीरवार, नवम्बर 4, 2021 पर19गते कार्तिक

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 05:25 पी एम से 07:19 पी एम


अवधि - 01 घण्टा 55 मिनट्स


प्रदोष काल - 05: 32पी एम से 08:12 पी एम

वृषभ काल - 06:11 पी एम से 08:05 पी एम


इसमें श्री गणेश लक्ष्मी पूजन प्रारंभ कर लेना चाहिए दीपदान महालक्ष्मी पूजन कुबेर  बहीखाता पूूूूजन करके घर एवं मंदिरों में दीपजलाने चाहिए। आश्रितों को  भोजन  मिष्ठान आदि बांटना चाहिए।

निशिता काल मुहूर्त

08 :12मि0 पी एम से 22:51पी एव  निशीथ काल में 8:52से पहले पूजन हो जाना चाहिए। 


इस समय श्री सूक्त कनकधारा स्त्रोत लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करना चाहिए


महानिशिथा काल मुहूर्त

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 

10:51 पी एम से 11:32 पी एम, नवम्बर 4



सिंह लग्न - 12: पी एम से 03:03 ए एम, नवम्बर 5


श्री महा लक्ष्मी पूजन

श्री महालक्ष्मी पूजन दीपदान आदि के लिए प्रदोष काल से आधी रात तक रहने वाली अमावस श्रेष्ठ होती है यदि अर्धरात्रि काल में अमावस तिथि का अभाव हो तो प्रदोष काल में ही दीप प्रज्वलन, महालक्ष्मी पूजन, गणेश एवं कुबेर आदि पूजन कृत्य करने का विधान है। प्रस्तुत बर्ष में कार्तिक अमावस्या 4   नवम्बर वीरवार  सन 2021 ईस्वी को प्रदोष व्यापनी तथा रात्रि  निशीथव्यापनी होने से दीपावली पर्व इसी दिन होगा दीपावली स्वाती  नक्षत्र तथा तुला के चंद्रमा कालीन होगा। सायं सूर्यास्त प्रदोष काल प्रारंभ के बाद मेष वृष लग्न एवं स्वाति नक्षत्र विद्यमान होने से यह समय अवधि श्री गणेश, महालक्ष्मी पूजन और कृतियों के आरंभ के लिए विशेष रूप से प्रशस्त रहेगी। वहीं खातों एवं नवीन शुभ कार्यों के लिए भी यह मुहर्त अत्यंत शुभ होगा। बुधवार की दीपावली व्यापारियों ,क्रय विक्रय करने वालों के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। लक्ष्मी पूजन दीप दान आदि के लिए प्रदोष काल की विशेषता प्रशस्त माना गया है ।
कार्तिके प्रदोषे तु विशेषण अमावस्या निशावर्धके। तस्यां सम्पूज्येत् देवी भोग मोक्ष प्रदायनी।। दीपावली के दिन गृह में प्रदोष काल से महालक्ष्मी पूजन प्रारंभ करके अर्धरात्रि तक जप अनुष्ठान आदि का विशेष महत्व में होता है । प्रदोष काल से कुछ समय पूर्व स्नान आदि उपरांत धर्म स्थल पर मंत्र पूर्वक दीपदान करके अपने निवास स्थान पर श्री गणेश सहित महालक्ष्मी कुबेर पूजा आदि करके अल्पाहार करना चाहिए। तदुपरांत निशिथा आदि मुहूर्तों में मंत्र जप यंत्र सिद्धि आदि अनुष्ठान संपादित करने चाहिए।
दीपावली वास्तव में पांच पर्वों का महत्व माना जाता है। जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनतेरस से लेकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया भाई दूज तक रहती है। दीपावली के पर्व पर धन की प्राप्ति के लिए धन की अधिष्ठात्री धनदा भगवती लक्ष्मी की समारोह पूर्वक आवाहन षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है ।आगे दिए गए निर्दिष्ट शुभ कालो में किसी स्वस्थ एवं पवित्र स्थान पर आटा, हल्दी, अक्षत, पुष्प आदि से अष्टदल कमल बनाकर महालक्ष्मी का आवाहन स्थापना करनी चाहिए देवों का विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। आवाहन मंत्र है -
कां सोस्मितां हिरणयप्रकारामाद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्। पूजा मंत्र है ॐ गं गणपतये नमः । लक्ष्म्यै नम:।नमस्ते सर्व देवानां वरदासि हरे: प्रिया। या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा में भूयात्वदर्चनात।। से श्री लक्ष्मी की ' एरावतसमारुढो म बज्रहस्तो महाबल:।शत यज्ञाधिपो देवस्तस्मा इंद्राय नमः ।
इस मंत्र से इनकी कुबेर की निम्नलिखित मंत्र से पूजा करें कुबेराय नमः, धनदाय नमस्तुभ्यं निधि पद्माधिपाय च। भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादि सम्पद: । पूजन सामग्री में विभिन्न प्रकार की मिठाई फल ,पुष्प ,अक्षत, धूप, दीप आदि सुगंधित वस्तु में सम्मिलित करनी चाहिए। दीपावली पूजन में प्रदोष निश्चित एवं महा निशित काल के अतिरिक्त चौघड़िया मुहूर्त भी पूजन बहीखाता, पूजन ,कुबेर पूजा ,जप आदि अनुष्ठान की दृष्टि से विशेष प्रशस्त एवं शुभ माने जाते है।

शुक्ल प्रतिपदा 5 नवम्बर को श्री कृष्ण, भगवान की प्रसन्नता के लिए अन्नकूट पर्व मनाया जाता है तथा श्री कृष्ण व गोओ की पूजा की जाती है। 6नवम्बर  को  में भाई बहन के परस्पर स्नेह का प्रतीक भातृ दूज का पर्व मनाया जाएगा इसमें शिव पार्वती विवाह पूजन उपरांत बहन अपने भाई की मंगल कामना हेतु उसे रोली वा केसर का तिलक लगाती है भाई बहन अपनी बहन को श्रद्धा अनुसार उपहार देता है अक्षय नवमी 12 नवंबर को क्या हुआ पूजा पाठ दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है इसी प्रकार हरि प्रबोधिनी एकादशी 15 नवंबर को भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है।


Monday, 1 November 2021

धनत्रयोदशी कब और कैसे मनाए?

02 नवंबर 2021शुभ संवत् 2078 मंगलवार 17गते कार्तिक  को धनत्रयोदशी का पर्व है। इस दिन को नवीन बर्तन का क्रय करना चाहिए  सांय काल में लक्ष्मी नारायण का पूजन करने के बाद अनाज वस्त्र खुशियों एवं उनके निमित्त दीपदान करें इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता
यथाशक्ति तांबे, पीतल, चांदी के गृह-उपयोगी नवीन बर्तन व आभूषण क्रय करते हैं।

 प्रचलित कथा के अनुसार कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। उन्होंने देवताओं को अमृतपान कराकर अमर कर दिया था। 
अतः वर्तमान संदर्भ में भी आयु और स्वास्थ्य की कामना से धनतेरस पर भगवान धन्वंतरि का पूजन किया जाता है। इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन भी किया जाता है। 
 
कई श्रद्धालु इस दिन उपवास रहकर यमराज की कथा का श्रवण भी करते हैं। आज से ही तीन दिन तक चलने वाला गो-त्रिरात्र व्रत भी शुरू होता है। 
 * इस दिन धन्वंतरि जी का पूजन करें। 
 
* नवीन झाडू एवं सूपड़ा खरीदकर उनका पूजन करें।
 * हल जुती मिट्टी को दूध में भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर तीन बार अपने शरीर पर फेरें।
 
 * कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, बावड़ी, कुआं, मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाएं। 
 
*  कुबेर पूजन करें। शुभ मुहूर्त में अपने व्यावसायिक प्रतिष्ठान में नई गादी बिछाएं अथवा पुरानी गादी को ही साफ कर पुनः स्थापित करें। पश्चात नवीन वस्त्र बिछाएं।
 
* सायंकाल पश्चात तेरह दीपक प्रज्वलित कर तिजोरी में कुबेर का पूजन करें।
 
* निम्न ध्यान मंत्र बोलकर भगवान कुबेर पर फूल चढ़ाएं -
 
श्रेष्ठ विमान पर विराजमान, गरुड़मणि के समान आभावाले, दोनों हाथों में गदा एवं वर धारण करने वाले, सिर पर श्रेष्ठ मुकुट से अलंकृत तुंदिल शरीर वाले, भगवान शिव के प्रिय मित्र निधीश्वर कुबेर का मैं ध्यान करता हूं।
 
इसके पश्चात निम्न मंत्र द्वारा चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें -
 
'यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन-धान्य अधिपतये 
धन-धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।' 
 
इसके पश्चात कपूर से आरती उतारकर मंत्र पुष्पांजलि अर्पित करें।
 
*  यम के निमित्त दीपदान करें। 
 
 * तेरस के सायंकाल किसी पात्र में तिल के तेल से युक्त दीपक प्रज्वलित करें।
 
 * पश्चात गंध, पुष्प, अक्षत से पूजन कर दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके यम से निम्न प्रार्थना करें-
 
'मृत्युना दंडपाशाभ्याम्‌ कालेन श्यामया सह। 
त्रयोदश्यां दीपदानात्‌ सूर्यजः प्रयतां मम

प्रबोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व कब

  बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को  12 नवंबर 2024 मंगलवार को  भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...