Wednesday, 17 November 2021
कहां कहां दिखेगा खंण्ड ग्रास चन्द्र ग्रहण 19 नवंबर 2021 के बारे में जाने
Tuesday, 2 November 2021
दीपावली का पर्व कैसे और कब मनाए?
02 नवंबर 2021शुभ संवत् 2078मंगलवार को धनत्रयोदशी को नवीन बर्तन का क्रय सांय काल में लक्ष्मी नारायण का पूजन करने के बाद अनाज वस्त्र खुशियों एवं उनके निमित्त दीपदान करें इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।
3 नवंबर 2021मास 18गते कार्तिक नरक चतुर्दशी के दिन बिजली , अग्नि, उल्का आदि से मृतकों की शांन्ति के लिए चार मुख वाले दीपक को प्रज्वलित करके तथा शक्ति दान करे। सांय काल को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल,तिल और कुश लेकर तर्पण करें।इस दिन की अर्धरात्रि के समय घृत पूर्ण दीपक जलाकर श्री नुमान जयन्ति मनाई जाती है।
उन्हें मोदक के लिए फल आदि अर्पण करें एवं सुंदरकांड आदि हनुमान स्तोत्र का पाठ करें 4 नवंबर गुरुवार को कार्तिक मास अमावस्या दीपावली को प्रदा प्रदोष काल में दीपदान करके अपने गृह के पूजा स्थान में मंत्र पूर्वक दीप प्रज्वलित करके श्री महालक्ष्मी की यथा विधि पूजा करनी चाहिए।
ब्रह्म पुराण अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को अर्धरात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सद ग्रंथों के घर में जहां-तहां वितरण करती हैं इसलिए अपने घर को सब प्रकार से स्वच्छ शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली तथा दीप मालिका मनाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होते हैं तथा वहां स्थाई रूप से निवास करती है कि अमावस्या प्रदोष काल एवं आज रात्रि व्यापिनी हो तो विशेष विशेष शुभ होती है।
दीपावली दिन के कृत्य इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कृतियों से निवृत हो मित्र गण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिए संभव हो तो दूध दही और खेत से पितरों का पावन याद करना चाहिए यदि यह संभव हो तो दिनभर उपवास कर गोधूलि बेला में अथवा दृश्य सिंह वृश्चिक और स्थिर लग्न में श्री गणेश कलश षोडश मातृका ग्रह पूजन पूर्वक भगवती लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए इसके अंदर महाकाली का दावा के रूप में मां सरस्वती का कलम वही आदि के रूप में कुबेर का तुला के रूप में सभी जी पूजन करें ना चाहिए इसी समय दी पूजन कर यमराज तथा मित्र गणों के निमित्त सत्संग क्लब दीप दान करना चाहिए तदुपरांत यथो लब्ध निशीथ आदि शिव मूर्तियों में मंत्र जप यंत्र सिद्धि आदि अनुष्ठान संपादित करने चाहिए दीपावली वास्तव में पांच पर्वों का मौसम माना जाता है जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनत्रयोदशी कार्तिक शुक्ल द्वितीया भैया दूज 6नवंबर2021 कार्तिक21गते तक रहती है दीपावली के पर्व पर धन की प्रभुत प्राप्ति के लिए धनदा की अधिष्ठात्री भगवती लक्ष्मी का समारोह पूर्वक आभार षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है आगे दिए निर्देश शुभ कार्यों में किसी स्वच्छ एवं पवित्र स्थान पर आटा हल्दी अक्षत पुष्प आदि से अष्टदल कमल बनाकर श्री लक्ष्मी का आवाहन स्थापना करके देवों की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
लक्ष्मी पूजा वीरवार, नवम्बर 4, 2021 पर19गते कार्तिक
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 05:25 पी एम से 07:19 पी एम
अवधि - 01 घण्टा 55 मिनट्स
प्रदोष काल - 05: 32पी एम से 08:12 पी एम
वृषभ काल - 06:11 पी एम से 08:05 पी एम
इसमें श्री गणेश लक्ष्मी पूजन प्रारंभ कर लेना चाहिए दीपदान महालक्ष्मी पूजन कुबेर बहीखाता पूूूूजन करके घर एवं मंदिरों में दीपजलाने चाहिए। आश्रितों को भोजन मिष्ठान आदि बांटना चाहिए।
निशिता काल मुहूर्त
08 :12मि0 पी एम से 22:51पी एव निशीथ काल में 8:52से पहले पूजन हो जाना चाहिए।
इस समय श्री सूक्त कनकधारा स्त्रोत लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करना चाहिए
महानिशिथा काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त -
10:51 पी एम से 11:32 पी एम, नवम्बर 4
सिंह लग्न - 12: पी एम से 03:03 ए एम, नवम्बर 5
श्री महा लक्ष्मी पूजन
श्री महालक्ष्मी पूजन दीपदान आदि के लिए प्रदोष काल से आधी रात तक रहने वाली अमावस श्रेष्ठ होती है यदि अर्धरात्रि काल में अमावस तिथि का अभाव हो तो प्रदोष काल में ही दीप प्रज्वलन, महालक्ष्मी पूजन, गणेश एवं कुबेर आदि पूजन कृत्य करने का विधान है। प्रस्तुत बर्ष में कार्तिक अमावस्या 4 नवम्बर वीरवार सन 2021 ईस्वी को प्रदोष व्यापनी तथा रात्रि निशीथव्यापनी होने से दीपावली पर्व इसी दिन होगा दीपावली स्वाती नक्षत्र तथा तुला के चंद्रमा कालीन होगा। सायं सूर्यास्त प्रदोष काल प्रारंभ के बाद मेष वृष लग्न एवं स्वाति नक्षत्र विद्यमान होने से यह समय अवधि श्री गणेश, महालक्ष्मी पूजन और कृतियों के आरंभ के लिए विशेष रूप से प्रशस्त रहेगी। वहीं खातों एवं नवीन शुभ कार्यों के लिए भी यह मुहर्त अत्यंत शुभ होगा। बुधवार की दीपावली व्यापारियों ,क्रय विक्रय करने वालों के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। लक्ष्मी पूजन दीप दान आदि के लिए प्रदोष काल की विशेषता प्रशस्त माना गया है ।
कार्तिके प्रदोषे तु विशेषण अमावस्या निशावर्धके। तस्यां सम्पूज्येत् देवी भोग मोक्ष प्रदायनी।। दीपावली के दिन गृह में प्रदोष काल से महालक्ष्मी पूजन प्रारंभ करके अर्धरात्रि तक जप अनुष्ठान आदि का विशेष महत्व में होता है । प्रदोष काल से कुछ समय पूर्व स्नान आदि उपरांत धर्म स्थल पर मंत्र पूर्वक दीपदान करके अपने निवास स्थान पर श्री गणेश सहित महालक्ष्मी कुबेर पूजा आदि करके अल्पाहार करना चाहिए। तदुपरांत निशिथा आदि मुहूर्तों में मंत्र जप यंत्र सिद्धि आदि अनुष्ठान संपादित करने चाहिए।
दीपावली वास्तव में पांच पर्वों का महत्व माना जाता है। जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनतेरस से लेकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया भाई दूज तक रहती है। दीपावली के पर्व पर धन की प्राप्ति के लिए धन की अधिष्ठात्री धनदा भगवती लक्ष्मी की समारोह पूर्वक आवाहन षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है ।आगे दिए गए निर्दिष्ट शुभ कालो में किसी स्वस्थ एवं पवित्र स्थान पर आटा, हल्दी, अक्षत, पुष्प आदि से अष्टदल कमल बनाकर महालक्ष्मी का आवाहन स्थापना करनी चाहिए देवों का विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। आवाहन मंत्र है -
कां सोस्मितां हिरणयप्रकारामाद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्। पूजा मंत्र है ॐ गं गणपतये नमः । लक्ष्म्यै नम:।नमस्ते सर्व देवानां वरदासि हरे: प्रिया। या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा में भूयात्वदर्चनात।। से श्री लक्ष्मी की ' एरावतसमारुढो म बज्रहस्तो महाबल:।शत यज्ञाधिपो देवस्तस्मा इंद्राय नमः ।
इस मंत्र से इनकी कुबेर की निम्नलिखित मंत्र से पूजा करें कुबेराय नमः, धनदाय नमस्तुभ्यं निधि पद्माधिपाय च। भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादि सम्पद: । पूजन सामग्री में विभिन्न प्रकार की मिठाई फल ,पुष्प ,अक्षत, धूप, दीप आदि सुगंधित वस्तु में सम्मिलित करनी चाहिए। दीपावली पूजन में प्रदोष निश्चित एवं महा निशित काल के अतिरिक्त चौघड़िया मुहूर्त भी पूजन बहीखाता, पूजन ,कुबेर पूजा ,जप आदि अनुष्ठान की दृष्टि से विशेष प्रशस्त एवं शुभ माने जाते है।
शुक्ल प्रतिपदा 5 नवम्बर को श्री कृष्ण, भगवान की प्रसन्नता के लिए अन्नकूट पर्व मनाया जाता है तथा श्री कृष्ण व गोओ की पूजा की जाती है। 6नवम्बर को में भाई बहन के परस्पर स्नेह का प्रतीक भातृ दूज का पर्व मनाया जाएगा इसमें शिव पार्वती विवाह पूजन उपरांत बहन अपने भाई की मंगल कामना हेतु उसे रोली वा केसर का तिलक लगाती है भाई बहन अपनी बहन को श्रद्धा अनुसार उपहार देता है अक्षय नवमी 12 नवंबर को क्या हुआ पूजा पाठ दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है इसी प्रकार हरि प्रबोधिनी एकादशी 15 नवंबर को भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है।
Monday, 1 November 2021
धनत्रयोदशी कब और कैसे मनाए?
Monday, 18 October 2021
अमृत तुल्य खीर खाने से मिलती है क्लिष्ट रोगों से शांति (शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर रविवार को) इस दिन यह उपाय करने से
अक्टूबर 9 अक्तुवर 2022 रविवार को 23 गते आश्विन मास को
शरद पूर्णिमा जिसे कोजागरी या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिंदू पंचांग के मुताबिक शरद पूर्णिमा को कहा जाता है शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है। वह अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस रात्री चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान और उर्जावान होता है।
मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है अमृत बरसता है इस दिन इस दिन रविवार 9अक्टूबर की रविवार को रात्रि को मेवा ,बादाम, किशमिश ,सहित खीर की छिटकती, चांदनी में रात भर सुरक्षित रखकर दूसरे दिन प्रातः भगवान विष्णु को भोग लगाकर सब परिवार सहित समय ग्रहण करने से अनेक प्रकार के मानसिक शारीरिक और लोगों की शांति होती है माताएं अपने संतान की मंगल कामना के लिए देवताओं का पूजन करती है।
इस बात का ज्ञान बहुत कम लोगो को होता है अतः अपने मित्रों तथा सम्बन्धियो को शयर करे। हमारा ध्यय हैं कि अधिक से अधिक लोग स्वस्थ एवं निरोग रहे।
*शरद पूर्णिमा*
🌏 वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।
🌏 शरद पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है।
🌓 एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है।
🌎 केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।
🌏 आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।
🌓 चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- *चंद्रमा मनसो जात:।* वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है।
🌏 ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।
🌏 शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है।
🌓 लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।
🌏 शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं।
🌏 कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी।
🌓 गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
🌏 ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं।
🌏 शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।
- शरद पूर्णिमा के अतिरिक्त प्रत्येक महा की पूर्णमासी को खीर के चमत्कारिक फायदें !!
शरद पूर्णिमा के अतिरिक्त प्रत्येक माह में पड़ने वाली पूर्णिमा के अलावा, प्रत्येक माह की पूर्णिमा की रात लक्ष्मी जी के स्वागत में चन्द्रमा भी अपनी रौशनी में कोई कमी नहीं रखता। इस दिन के बाद से सर्दियों का आगमन शुरू हो जाता है, इस दिन मंदिरों में जो खीर बनती है, उसका बड़ा महत्त्व है। खीर बनने के बाद भोग लगने तक खुले आसमान में रखने से वो एक दवा का रूप ले लेती है, चंद्र दर्शन और पॉजिटिव एनर्जी के बाद खीर एक दवा होती है, जो श्वसन जैसी बिमारियों में काम ली जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी का आगमन होता है, इस दिन खीर खाने से एवं चंद्र देवता और भगवती लक्ष्मी को भोग लगाने से जीवन में धन- धान्य की कोई कमी नहीं रहती प्रत्येक माह ऐसा करने से धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती जाती है।
अन्य दिनों के अलावा प्रत्येक पूर्णमासी को अपने गुरु और आराध्य देव के मंदिर जाएँ, वहां अपनी श्रद्धा अनुसार दूध या मेवे आदि लेकर जाएँ और खीर बनने में योगदान करें, रात्रि में जब खीर का भगवान को भोग लगाया जाए, तब तक भजन संध्या में आनंद उठाएं। खीर की प्रसादी को अपने परिवार में सभी सदस्यों को बांटे। सुबह रोजाना का कार्य से निवृत होकर खाना खाने से पहले खीर खाएं इस खीर से पेट और श्वसन सम्बंधित बीमारियां दूर होती है।
घर पर भी बना सकते हैं।
मंदिर में खीर प्रसादी के तौर पर मिलती है, जिसकी मात्रा कम होती है, ऐसे में आप अपने घर पर भी बना सकते हैं। खीर बनाने के बाद उसे सूती कपडे से ढककर छत पर रख दें। यहाँ चन्द्रमा की किरणे खीर पर पड़ती रहें। कपड़ा सिर्फ मक्खी मच्छर के लिए हो, सिर्फ नाम का। इस खीर को रात्रि में और सुबह जल्दी खाने से बहुत लाभ होता है।
– शरद पूर्णिमा की खीर दिल के मरीज़ों और फेफड़े के मरीज़ों के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. इसे खाने से श्वांस संबंधी बीमारी भी दूर होती हैं. – स्किन रोग से परेशान लोगों को शरद पूर्णिमा की खीर खाने से काफी फायदे मिलते हैं. मान्यता है कि, अगर किसी भी व्यक्ति को चर्म रोग हो तो, वो इस दिन खुले आसमान में रखी हुई खीर खाएं !
यह भी एक दवा जो शरद पूर्णिमा पर विशेष तैयार की जाती है।
100 ग्राम काली मिर्च
400 ग्राम देशी घी
400 ग्राम बुरा तीनो को मिलाकर रात्रि में छत के ऊपर रख देवें। चन्द्रमा की किरणों के द्वारा उनमें पॉजिटिव एनर्जी समा जाती है। इस मिश्रण को परिवार के सदस्यों के साथ खाना चाहिए। मात्रा के तौर पर आप एक चम्मच ही लें, जो सुबह खाली पेट खाएं, इससे आँखों की रौशनी में बढ़ोतरी होती है, बुखार और पित्त के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है ।
Monday, 20 September 2021
श्राद्ध कब और क्यों मनाने चाहिए
- श्राद्ध कब हैं ?
पूजा-पाठ में रुचि रखने वाले सभी श्रद्धालु जानना चाहते हैं कि आखिर श्राद्ध कब हैं. इस साल श्राद्ध 20सितंबर से शुरू होंगे और 6अक्तुवर को समाप्त होंगे। इसके अगले दिन नवरात्रि का पावन पर्व 7 अक्टूबर से शुरू होगा और 14 अक्टूबर को समाप्त होगा.

- क्यों करें श्राद्ध
"मैंने अपने आध्यात्मिक शोध में पाया है कि जिनके घर अत्यधिक पितृदोष होता है, उनके अतृप्त पितर, कई बार गर्भस्थ पुरुष-भ्रूणकी योनि, जन्मके दो या तीन माह पूर्वमें परिवर्तित कर देते हैं एवं ऐसे पुत्रियोंको जन्मसे ही अत्यधिक अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है; क्योंकि उनपर गर्भकालमें ही आघात हो चुका होता है । वैसे तो यह तथ्य स्थूल दृष्टिसे अवैज्ञानिक लगता है, आपको बता दूं, मैं भी आधुनिक विज्ञानकी छात्र रहा हूं और अपने इस अध्यात्मिक शोधके निष्कर्षको प्रमाणित करने हेतु मैंने कुछ गर्भस्थ माताओंपर सूक्ष्म स्तरके प्रयोग भी और उन सभी प्रयोगोंमें इस तथ्यकी बार-बार पुष्टि हुई जब यह बात कुछ ऐसे लोगोंको बताई जिनकी पुत्री वास्तविकतामें पुत्र ही था (थी); किन्तु जन्मसे कुछ माह पूर्व उनके कुपित अतृप्त पितरोंने गर्भस्थ शिशुकी लिंग परिवर्तित कर दिया तो उन्होंने मुझसे कहा कि उन्हें भी कुछ अध्यात्मविदोंने कहा था कि उनकी कुण्डलीमें पुत्र योग है एवं उनकी पत्नीके गर्भवती थीं, तब उनके सर्व लक्षण पुत्र होनेके ही थे; परन्तु उन्हें पुत्र, नहीं मात्र पुत्रियां हुईं ! इससे, सोलह संस्कारोंमें पुरुष भ्रूणके संरक्षण हेतु संस्कार कर्मोंको विशेष महत्त्व क्यों दिया गया है, यह ज्ञात हुआ । वहीं मैंने यह किसी भी स्त्री भ्रूणके साथ होता हुआ नहीं पाया है, अर्थात् अतृप्त पूर्वज मात्र पुरुष लिंगका ही परिवर्तन करते हैं, पुत्रीका नहीं ! यह सब अध्यात्मिक शोध सूक्ष्म अतिन्द्रियोंके माध्यमसे मैंने किए हैं । आजका आधुनिक विज्ञान भी कहता है कि पुरुषोंमें x और y दो प्रकारके लिंग-गुणसूत्र (सेक्स-क्रोमोसाम्स) होते हैं, वहीं स्त्रियोंमें एक ही प्रकारका मात्र x लिंग-गुणसूत्र होते हैं । वस्तुत: y गुणसूत्रके अध्ययनसे किसी भी पुरुषके पितृवंश समूहका पता लगाया जा सकता है । इस प्रकार हमारे शास्त्रोंमें क्यों कहा गया है कि अतृप्त पितर कुलका नाश करते हैं, यह भी ज्ञात हुआ । अर्थात पुत्रके न होनेसे अध्यात्मिक हानि हो न हो; किन्तु लौकिक अर्थोंमें उस कुलका एक गुणसूत्र सदैवके लिए समाप्त हो जाता है और हमारे वैदिक मनीषी, हमारी दैवी संस्कृतिके संरक्षक, गुणसूत्रोंके, रक्षणका महत्त्व जानते थे; अतः पुत्र भ्रूणकी रक्षा एवं पुत्रके शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक रूपसे स्वस्थ जन्म लेने हेतु जन्मपूर्व कुछ संस्कार कर्म, सोलह संस्कार अन्तर्गत अवश्य करवाए जाते थे । वैसे आपको यह स्पष्ट करुं कि मैं गर्भपात और कन्या भ्रूण-हत्याकी प्रखर विरोधक हूं और न ही मैं मात्र पुत्रियोंको जन्म देनवाली माताओंको किसी भी दृष्टिसे हीन मानती हूं एवं न ही यह कहना चाहती हूं कि आपको पुत्र अवश्य होने चाहिए ! मैं तो मात्र यह बताना चाहता हूं कि हमारी वैदिक ऋषि कितने उच्च कोटि के शोधकर्ता ओर वैज्ञानिक थे।"
आधुनिक युग में श्राद्ध का नाम आते ही अक्सर इसे अंधविश्वास की संज्ञा दे दी जाती है. प्रश्न किया जाता है कि क्या श्राद्ध की अवधि में ब्राह्मणों को खिलाया गया भोजन पितरों को मिल जाता है? मन में ऐसे प्रश्न उठना स्वाभाविक है. एकल परिवारों के इस युग में कई बच्चों को अपने दादा-दादी या नाना-नानी के नाम तक नहीं मालूम होते हैं. ऐसे में परदादा या परनाना के नाम पूछने का तो कोई मतलब ही नहीं है. अगर आप चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों तक परिवार का नाम बना रहे तो श्राद्ध के महत्व को समझना बहुत जरूरी है. सदियों से चली आ रही भारत की इस व्यावहारिक एवं सुंदर परंपरा का निर्वहन अवश्य करें. श्राद्ध कर्म का एक समुचित उद्देश्य है, जिसे धार्मिक कृत्य से जोड़ दिया गया है. दरअसल, श्राद्ध आने वाली संतति को अपने पूर्वजों से परिचित करवाते हैं. इन 15 दिनों के दौरान उन दिवंगत आत्माओं का स्मरण किया जाता है, जिनके कारण पारिवारिक वृक्ष खड़ा है. इस दौरान उनकी कुर्बानियों व योगदान को याद किया जाता है. इस अवधि में अपने बच्चों को परिवार के दिवंगत पूर्वजों के आदर्श व कार्यकलापों के बारे में बताएं ताकि वे कुटुंब की स्वस्थ परंपराओं का निर्वहन कर सकें.
- धार्मिक मान्यताएं
- श्राद्ध विधि
- श्राद्ध में कौओं का महत्त्व
- कैसे करें श्राद्ध?
पितृ पक्ष में किसको अधिकार है श्राद्ध करने का और क्या है 16 तिथियों का महत्व?
।
Thursday, 26 August 2021
जन्माष्टमी का व्रत कब और कैसे बनाएं
Thursday, 12 August 2021
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व
नागपंचमी (श्रावण पंचमी) 13 अगस्त विशेष
〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व पर प्रमुख नाग मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और भक्त नागदेवता के दर्शन व पूजा करते हैं। सिर्फ मंदिरों में ही नहीं बल्कि घर-घर में इस दिन नागदेवता की पूजा करने का विधान है।
ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन श्रद्धा व भक्ति से नागदेवता का पूजन करता है उसे व उसके परिवार को कभी भी सर्प भय नहीं होता। इस बार यह पर्व 13 अगस्त, शुक्रवार को है। इस दिन नागदेवता की पूजा किस प्रकार करें, इसकी विधि इस प्रकार है।
पूजन विधि
〰️〰️〰️〰️
नागपंचमी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले भगवान शंकर का ध्यान करें नागों की पूजा शिव के अंश के रूप में और शिव के आभूषण के रूप में ही की जाती है। क्योंकि नागों का कोई अपना अस्तित्व नहीं है। अगर वो शिव के गले में नहीं होते तो उनका क्या होता। इसलिए पहले भगवान शिव का पूजन करेंगे। शिव का अभिषेक करें, उन्हें बेलपत्र और जल चढ़ाएं।
इसके बाद शिवजी के गले में विराजमान नागों की पूजा करे। नागों को हल्दी, रोली, चावल और फूल अर्पित करें। इसके बाद चने, खील बताशे और जरा सा कच्चा दूध प्रतिकात्मक रूप से अर्पित करेंगे।
घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाएं और इसकी पूजा करें।
घर के मुख्य द्वार पर सर्प की आकृति बनाने से जहां आर्थिक लाभ होता है, वहीं घर पर आने वाली विपत्तियां भी टल जाती हैं।
इसके बाद 'ऊं कुरु कुल्ले फट् स्वाहा' का जाप करते हुए घर में जल छिड़कें। अगर आप नागपंचमी के दिन आप सामान्य रूप से भी इस मंत्र का उच्चारण करते हैं तो आपको नागों का तो आर्शीवाद मिलेगा ही साथ ही आपको भगवान शंकर का भी आशीष मिलेगा बिना शिव जी की पूजा के कभी भी नागों की पूजा ना करें। क्योंकि शिव की पूजा करके नागों की पूजा करेंगे तो वो कभी अनियंत्रित नहीं होंगे नागों की स्वतंत्र पूजा ना करें, उनकी पूजा शिव जी के आभूषण के रूप में ही करें।
नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) के सामने यह मंत्र बोलें।
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
इसके बाद पूजा व उपवास का संकल्प लें। नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा को दूध से स्नान करवाएं। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, फूल, धूप, दीप से पूजा करें व सफेद मिठाई का भोग लगाएं। यह प्रार्थना करें।
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिन:।
ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
प्रार्थना के बाद नाग गायत्री मंत्र का जाप करें-
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
इसके बाद सर्प सूक्त का पाठ करें
ब्रह्मलोकुषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
नागदेवता की आरती करें और प्रसाद बांट दें। इस प्रकार पूजा करने से नागदेवता प्रसन्न होते हैं और हर मनोकामना पूरी करते हैं।
नागपंचमी
〰️〰️〰️
महाभारत आदि ग्रंथों में नागों की उत्पत्ति के बारे में बताया गया है। इनमें शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि प्रमुख हैं। नागपंचमी के अवसर पर हम आपको ग्रंथों में वर्णित प्रमुख नागों के बारे में बता रहे हैं।
तक्षक नाग
〰️〰️〰️
धर्म ग्रंथों के अनुसार, तक्षक पातालवासी आठ नागों में से एक है। तक्षक के संदर्भ में महाभारत में वर्णन मिलता है। उसके अनुसार, श्रृंगी ऋषि के शाप के कारण तक्षक ने राजा परीक्षित को डसा था, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी थी। तक्षक से बदला लेने के उद्देश्य से राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने सर्प यज्ञ किया था। इस यज्ञ में अनेक सर्प आ-आकर गिरने लगे। यह देखकर तक्षक देवराज इंद्र की शरण में गया।
जैसे ही ऋत्विजों (यज्ञ करने वाले ब्राह्मण) ने तक्षक का नाम लेकर यज्ञ में आहुति डाली, तक्षक देवलोक से यज्ञ कुंड में गिरने लगा। तभी आस्तिक ऋषि ने अपने मंत्रों से उन्हें आकाश में ही स्थिर कर दिया। उसी समय आस्तिक मुनि के कहने पर जनमेजय ने सर्प यज्ञ रोक दिया और तक्षक के प्राण बच गए।
कर्कोटक नाग
〰️〰️〰️〰️
कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए।
ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की। शिव ने प्रसन्न होकर कहा- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके बाद कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रवेश कर गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।
कालिया नाग
〰️〰️〰️〰️
श्रीमद्भागवत के अनुसार, कालिया नाग यमुना नदी में अपनी पत्नियों के साथ निवास करता था। उसके जहर से यमुना नदी का पानी भी जहरीला हो गया था। श्रीकृष्ण ने जब यह देखा तो वे लीलावश यमुना नदी में कूद गए। यहां कालिया नाग व भगवान श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में श्रीकृष्ण ने कालिया नाग को पराजित कर दिया। तब कालिया नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से कालिया नाग को छोडऩे के लिए प्रार्थना की। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम सब यमुना नदी को छोड़कर कहीं और निवास करो। श्रीकृष्ण के कहने पर कालिया नाग परिवार सहित यमुना नदी छोड़कर कहीं और चला गया।
इनके अलावा कंबल, शंखपाल, पद्म व महापद्म आदि नाग भी धर्म ग्रंथों में पूज्यनीय बताए गए हैं।
नागपंचमी पर नागों की पूजा कर आध्यात्मिक शक्ति और धन मिलता है। लेकिन पूजा के दौरान कुछ बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी है।
हिंदू परंपरा में नागों की पूजा क्यों की जाती है और ज्योतिष में नाग पंचमी का क्या महत्व है।
अगर कुंडली में राहु-केतु की स्थिति ठीक ना हो तो इस दिन विशेष पूजा का लाभ पाया जा सकता है।
जिनकी कुंडली में विषकन्या या अश्वगंधा योग हो, ऐसे लोगों को भी इस दिन पूजा-उपासना करनी चाहिए. जिनको सांप के सपने आते हों या सर्प से डर लगता हो तो ऐसे लोगों को इस दिन नागों की पूजा विशेष रूप से करना चाहिए।
भूलकर भी ये ना करें
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
1. जो लोग भी नागों की कृपा पाना चाहते हैं उन्हें नागपंचमी के दिन ना तो भूमि खोदनी चाहिए और ना ही साग काटना चाहिए.।
2. उपवास करने वाला मनुष्य सांयकाल को भूमि की खुदाई कभी न करे।
3. नागपंचमी के दिन धरती पर हल न चलाएं।
4. देश के कई भागों में तो इस दिन सुई धागे से किसी तरह की सिलाई आदि भी नहीं की जाती।
5. न ही आग पर तवा और लोहे की कड़ाही आदि में भोजन पकाया जाता है।
6. किसान लोग अपनी नई फसल का तब तक प्रयोग नहीं करते जब तक वह नए अनाज से बाबे को रोट न चढ़ाएं।
राहु-केतु से परेशान हों तो क्या करें
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
एक बड़ी सी रस्सी में सात गांठें लगाकर प्रतिकात्मक रूप से उसे सर्प बना लें इसे एक आसन पर स्थापित करें। अब इस पर कच्चा दूध, बताशा और फूल अर्पित करें। साथ ही गुग्गल की धूप भी जलाएं.
इसके पहले राहु के मंत्र 'ऊं रां राहवे नम:' का जाप करना है और फिर केतु के मंत्र 'ऊं कें केतवे नम:' का जाप करें।
जितनी बार राहु का मंत्र जपेंगे उतनी ही बार केतु का मंत्र भी जपना है।
मंत्र का जाप करने के बाद भगवान शिव का स्मरण करते हुए एक-एक करके रस्सी की गांठ खोलते जाएं. फिर रस्सी को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें. राहु और केतु से संबंधित जीवन में कोई समस्या है तो वह समस्या दूर हो जाएगी।
सांप से डर लगता है या सपने आते हैं।
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
अगर आपको सर्प से डर लगता है या सांप के सपने आते हैं तो चांदी के दो सर्प बनवाएं साथ में एक स्वास्तिक भी बनवाएं। अगर चांदी का नहीं बनवा सकते तो जस्ते का बनवा लीजिए।
अब थाल में रखकर इन दोनों सांपों की पूजा कीजिए और एक दूसरे थाल में स्वास्तिक को रखकर उसकी अलग पूजा कीजिए।
नागों को कच्चा दूध जरा-जरा सा दीजिए और स्वास्तिक पर एक बेलपत्र अर्पित करें. फिर दोनों थाल को सामने रखकर 'ऊं नागेंद्रहाराय नम:' का जाप करें।
इसके बाद नागों को ले जाकर शिवलिंग पर अर्पित करें और स्वास्तिक को गले में धारण करें।
ऐसा करने के बाद आपके सांपों का डर दूर हो जाएगा और सपने में सांप आना बंद हो जाएंगे!
Wednesday, 9 June 2021
पितृ दोष क्या होता है? जाने सरल तरीके से
पितृदोष_के_लक्षण_और_उपाय
बहुत #जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या?
पितृ गण #हमारे_पूर्वज हैं जिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए किया है मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है, पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।
#आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।
वहाँ से आगे ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को भेज कर #स्वर्ग_लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो #परमात्मा में समाहित होती है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
पितृ दोष क्या होता है?
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
हमारे ये ही पूर्वज #सूक्ष्म_व्यापक_शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं ,और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इन्हें कोई प्यार या स्नेह है और ना ही किसी भी अवसर पर ये हमको याद करते हैं,ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को #श्राप दे देती हैं,जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।
पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है .ये बाधा पितरों द्वारा रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं ,आपके आचरण से,किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से ,श्राद्ध आदि कर्म ना करने से #अंत्येष्टि_कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
इसके अलावा मानसिक अवसाद,व्यापार में नुक्सान ,परिश्रम के अनुसार फल न मिलना , विवाह या वैवाहिक जीवन में समस्याएं,कैरिअर में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति ,गोचर ,दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते,कितना भी पूजा पाठ ,देवी ,देवताओं की अर्चना की जाए ,उसका शुभ फल नहीं मिल पाता।
पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है
1.अधोगति वाले पितरों के कारण
2.उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण
#अधो_गति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण,की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं ,परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।
#उर्ध्व_गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।
इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ,उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता। पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले ये जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ?
जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न ,पंचम ,अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है। पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि और #राहू_केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है।
विभिन्न ऋण और पितृ दोष
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
हमारे ऊपर मुख्य रूप से 5 ऋण होते हैं जिनका कर्म न करने(ऋण न चुकाने पर ) हमें निश्चित रूप से श्राप मिलता है ,ये ऋण हैं : मातृ ऋण ,पितृ ऋण ,मनुष्य ऋण ,देव ऋण और ऋषि ऋण।
#मातृ_ऋण👉 माता एवं माता पक्ष के सभी लोग जिनमेंमा,मामी ,नाना ,नानी ,मौसा ,मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं ,क्योंकि माँ का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा माना गया है अतः यदि माता के प्रति कोई गलत शब्द बोलता है ,अथवा माता के पक्ष को कोई कष्ट देता रहता है,तो इसके फलस्वरूप उसको नाना प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। इतना ही नहीं ,इसके बाद भी कलह और कष्टों का दौर भी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही रहता है।
#पितृ_ऋण👉 पिता पक्ष के लोगों जैसे बाबा ,ताऊ ,चाचा, दादा-दादी और इसके पूर्व की तीन पीढ़ी का श्राप हमारे जीवन को प्रभावित करता है पिता हमें आकाश की तरह छत्रछाया देता है,हमारा जिंदगी भर पालन -पोषण करता है ,और अंतिम समय तक हमारे सारे दुखों को खुद झेलता रहता है।
पर आज के के इस भौतिक युग में पिता का सम्मान क्या नयी पीढ़ी कर रही है ?पितृ -भक्ति करना मनुष्य का धर्म है ,इस धर्म का पालन न करने पर उनका श्राप नयी पीढ़ी को झेलना ही पड़ता है ,इसमें घर में आर्थिक अभाव,दरिद्रता ,संतानहीनता ,संतान को विभिन्न प्रकार के कष्ट आना या संतान अपंग रह जाने से जीवन भर कष्ट की प्राप्ति आदि।
#देव_ऋण👉 माता-पिता प्रथम देवता हैं,जिसके कारण भगवान गणेश महान बने |इसके बाद हमारे इष्ट भगवान शंकर जी ,दुर्गा माँ ,भगवान विष्णु आदि आते हैं ,जिनको हमारा कुल मानता आ रहा है ,हमारे पूर्वज भी भी अपने अपने कुल देवताओं को मानते थे , लेकिन नयी पीढ़ी ने बिलकुल छोड़ दिया है इसी कारण भगवान /कुलदेवी /कुलदेवता उन्हें नाना प्रकार के कष्ट /श्राप देकर उन्हें अपनी उपस्थिति का आभास कराते हैं।
#ऋषि_ऋण👉 जिस ऋषि के गोत्र में पैदा हुए ,वंश वृद्धि की ,उन ऋषियों का नाम अपने नाम के साथ जोड़ने में नयी पीढ़ी कतराती है ,उनके ऋषि तर्पण आदि नहीं करती है इस कारण उनके घरों में कोई मांगलिक कार्य नहीं होते हैं,इसलिए उनका श्राप पीडी दर पीढ़ी प्राप्त होता रहता है।
#मनुष्य_ऋण👉 माता -पिता के अतिरिक्त जिन अन्य मनुष्यों ने हमें प्यार दिया ,दुलार दिया ,हमारा ख्याल रखा ,समय समय पर मदद की गाय आदि पशुओं का दूध पिया जिन अनेक मनुष्यों ,पशुओं ,पक्षियों ने हमारी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मदद की ,उनका ऋण भी हमारे ऊपर हो गया।
लेकिन लोग आजकल गरीब ,बेबस ,लाचार लोगों की धन #संपत्ति_हरण करके अपने को ज्यादा गौरवान्वित महसूस करते हैं। इसी कारण देखने में आया है कि ऐसे लोगों का पूरा परिवार जीवन भर नहीं बस पाता है,वंश हीनता संतानों का गलत संगति में पड़ जाना,परिवार के सदस्यों का आपस में सामंजस्य न बन पाना ,परिवार कि सदस्यों का किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहना इत्यादि दोष उस परिवार में उत्पन्न हो जाते हैं।
ऐसे परिवार को पितृ दोष युक्त या शापित परिवार कहा जाता है रामायण में श्रवण कुमार के माता -पिता के श्राप के कारण दशरथ के परिवार को हमेशा कष्ट झेलना पड़ा,ये जग -ज़ाहिर है इसलिए परिवार कि सर्वोन्नती के पितृ दोषों का निवारण करना बहुत आवश्यक है।
पितरों का अतृप्त रहने का क्या कारण है?
〰〰🌸〰〰🌸🌸🌸〰〰🌸〰〰
कर्मों के अनुसार किसी भी आत्मा को गति मिलती है। देह छोड़ गए लोगों में से बहुत से अतृप्त होते हैं। कहते हैं कि अतृप्त आत्मा को सद्गति नहीं मिलती है और वह भटकता रहता है। जानिए अतृप्त रहने के 5 कारण।
1.इच्छाओं का रह जाना : व्यक्ति किसी भी उम्र या अवस्था में मरा हो उसकी इच्छाएं यदि बलवती है तो वह अपनी इच्छाओं को लेकर मृत्यु के बाद भी दुखी ही रहेगा और मुक्त नहीं हो पाएगा। यही अतृप्तता है। यह कोई नहीं समझता है कि इच्छाओं का कोई अंत नहीं। जो व्यक्ति भूखा, प्यासा, संभोगसुख से विरक्त, राग, क्रोध, द्वेष, लोभ, वासना आदि इच्छाएं और भावनाएं लेकर मरा है अवश्य ही वह अतृप्त होकर भटकता रहेगा। सभी को ययाति की कथा पढ़नी चाहिए या गीता का छठा व सातवां अध्याय पढ़ना चाहिए।
2.अकाल मृत्यु : अकाल का अर्थ होता है असमय मर जाना। पूर्ण उम्र जिए बगैर मर जाना। अर्थात जिन्होंने आत्महत्या की है या जो किसी बीमारी या दुर्घटना में मारा गया है। वेदों के अनुसार आत्मघाती मनुष्य मृत्यु के बाद अज्ञान और अंधकार से परिपूर्ण, सूर्य के प्रकाश से हीन, असूर्य नामक लोक को गमन कहते हैं और तब तक अतृत होकर भटकते हैं जब तक की उनके जीवन का चक्र पूर्ण नहीं हो जाता।
3.बुरे लोग : हर कोई अपनी जिंदगी में अनजाने में अपराध या बुरे कर्म करता रहता है। लेकिन वे लोग सचमुच ही बुरे हैं जो जानबुझकर किसी की हत्या करते, बलात्कार करते, हर समय किसी न किसी का अहित करते रहते हैं या किसी भी निर्दोष मनुष्य या प्राणियों को सताते रहते हैं। चोर, डकैत, अपराधी, धूर्त, क्रोधी, नशेड़ी और कामी आदि लोग मरने के बाद बहुत ज्यादा दुख और संकट में रहते हैं।
4.ज्ञान शून्य लोग : धर्म को नहीं जानना ही सबसे बड़ा अधर्म व अतृप्तता का कारण है। जिन्होंने उपनिषद और गीता का अध्ययन अच्छे से नहीं किया वे ज्ञान शून्य और बेहोशी में जीने वाले लोग अतृप्त होकर ही मरते हैं क्योंकि वे अपने मन से आत्मा, ईश्वर या ब्रह्मांड के संबंध में धारणाएं बना लेते हैं। ऐसे लोगों की भी कर्म गति तय करती है कि वे किस तरह का जन्म लेंगे। लेकिन इनमें जो अज्ञानी भक्त हैं वे बचे रहते हैं।
5.गलत धारणा या मान्यता : शास्त्र कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप क्या सोचते, क्या समझते, क्या बोलते और क्या सुनते हैं। फर्क इससे पड़ता है कि आप क्या करते, क्या मानते और क्या धारणा पालते हैं। क्योंकि यह चित्त का हिस्सा बन जाती है जो कि आपकी गति तय करती है। यदि आपने यह पक्का मान रखा है कि मरने के बाद व्यक्ति को चीरनिंद्रा में सोना है तो आपके साथ ऐसा ही होगा। हमारी चित्त की गति प्रारब्ध और वर्तमान के कर्मों पर आधारित होती है।
अंत में ज्ञान की बात : तीन अवस्थाएं हैं- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति। उक्त 3 तरह की अवस्थाओं के अलावा आपने और किसी प्रकार की अवस्था को नहीं जाना है (ध्यान से चौथी अवस्था तुरिया प्राप्त की जाती है)। मरने के बाद आप सुषुप्ति से भी गहरी अवस्था में पहुंच जाएंगे फिर कुछ समय बाद स्वप्न शुरु होंगे और जब तक नया जन्म नहीं मिलता है तब तक स्वप्न चलता रहेगा। लेकिन यदि आप जाग्रत हो गए तो समझ पाएंगे कि आप मर गए। तब समस्याएं प्रारंभ होगी।
जगत 3 स्तरों वाला है- एक स्थूल जगत जिसकी अनुभूति जाग्रत अवस्था में होती है। दूसरा, सूक्ष्म जगत जिसका स्वप्न में अनुभव करते हैं तथा तीसरा, कारण जगत जिसकी अनुभूति सुषुप्ति में होती है।
आत्मा के तीन स्वरुप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब मरने के बाद सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, तब उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। मरने के पहले भी इस शरीर में प्रवेश किया जा सकता है।
मरने के उपरांत नया जन्म मिलने से पूर्व जीवधारी को कुछ समय सूक्ष्म शरीरों में रहना पड़ता है। उनमें से जो अशांत होते हैं, उन्हें प्रेत और जो निर्मल होते हैं उन्हें पितर प्रकृति का निस्पृह उदारचेता, सहज सेवा, सहायता में रुचि लेते हुए देखा गया है।
मरणोपरांत की थकान दूर करने के उपरांत संचित संस्कारों के अनुरूप उन्हें धारण करने के लिए उपयुक्त वातावरण तलाशना पड़ता है, इसके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। वह समय भी सूक्ष्म शरीर में रहते हुए ही व्यतीत करना पड़ता है। ऐसी आत्माएं अपने मित्रों, शत्रुओं, परिवारीजनों एवं परिचितों के मध्य ही अपने अस्तित्व का परिचय देती रहती हैं। प्रेतों की अशांति संबद्ध लोगों को भी हैरान करती हैं।
ऐसे व्यक्तियों की आत्मा को तृप्त करने के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। मान्यता है कि जो लोग अपने स्वजनों और पितरों का श्राद्ध और तर्पण नहीं करते वे उन अतृप्त आत्माओं द्वारा परेशान होते हैं।
दुनिया से जाने के बाद आपके पितरों की कैसी रही होगी गति?
गति बहुत महत्वपूर्ण है। गति होती है ध्वनि कंपन और कर्म से। यह दोनों ही स्थिति चित्त का हिस्सा बन जाती है। कर्म, विचार और भावनाएं भी एक गति ही है, जिससे चित्त की वृत्तियां निर्मित होती है। योग के अनुसार चित्त की वृत्तियों से मुक्ति होकर स्थिर हो जाना ही मोक्ष है। लेकिन यह चित्त को स्थिर करना आम लोगों के बस की बात नहीं। ऐसे में वे जब देह छोड़ते हैं तो किस गति में जाते हैं आओ यह जानते हैं।
मरने के बाद आत्मा की तीन तरह की गतियां होती हैं- 1. उर्ध्व गति, 2. स्थिर गति और 3. अधोगति। इसे ही अगति और गति में विभाजित किया गया है।
1. अगति : अगति में व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता है उसे फिर से जन्म लेना पड़ता है। अगति के चार प्रकार है- 1.क्षिणोदर्क, 2.भूमोदर्क, 3. अगति और 4.दुर्गति।
*क्षिणोदर्क : क्षिणोदर्क अगति में जीव पुन: पुण्यात्मा के रूप में मृत्यु लोक में आता है और संतों सा जीवन जीता है।
*भूमोदर्क : भूमोदर्क में वह सुखी और ऐश्वर्यशाली जीवन पाता है।
*अगति : अगति में नीच या पशु जीवन में चला जाता है।
पितृों के रूष्ट होने के लक्षण
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
पितरों के रुष्ट होने के कुछ असामान्य लक्षण जो मैंने अपने निजी अनुभव के आधार एकत्रित किए है वे क्रमशः इस प्रकार हो सकते है।
खाने में से बाल निकलना
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
अक्सर खाना खाते समय यदि आपके भोजन में से बाल निकलता है तो इसे नजरअंदाज न करें
बहुत बार परिवार के किसी एक ही सदस्य के साथ होता है कि उसके खाने में से #बाल निकलता है, यह बाल कहां से आया इसका कुछ पता नहीं चलता। यहां तक कि वह व्यक्ति यदि रेस्टोरेंट आदि में भी जाए तो वहां पर भी उसके ही खाने में से बाल निकलता है और परिवार के लोग उसे ही दोषी मानते हुए उसका मजाक तक उडाते है।
#बदबू_या_दुर्गंध
〰️〰️〰️〰️
कुछ लोगों की समस्या रहती है कि उनके घर से दुर्गंध आती है, यह भी नहीं पता चलता कि दुर्गंध कहां से आ रही है। कई बार इस दुर्गंध के इतने अभ्यस्त हो जाते है कि उन्हें यह दुर्गंध महसूस भी नहीं होती लेकिन बाहर के लोग उन्हें बताते हैं कि ऐसा हो रहा है अब जबकि परेशानी का स्रोत पता ना चले तो उसका इलाज कैसे संभव है
पूर्वजों का स्वप्न में बार बार आना
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
मेरे एक मित्र ने बताया कि उनका अपने पिता के साथ झगड़ा हो गया है और वह झगड़ा काफी सालों तक चला पिता ने मरते समय अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की परंतु पुत्र मिलने नहीं आया, पिता का स्वर्गवास हो गया हुआ। कुछ समय पश्चात मेरे मित्र मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि उन्होंने अपने पिता को बिना कपड़ों के देखा है ऐसा स्वप्न पहले भी कई बार आ चुका है।
शुभ कार्य में अड़चन
〰️〰️〰️〰️〰️〰️
कभी-कभी ऐसा होता है कि आप कोई #त्यौहार मना रहे हैं या कोई उत्सव आपके घर पर हो रहा है ठीक उसी समय पर कुछ ना कुछ ऐसा घटित हो जाता है कि जिससे रंग में भंग डल जाता है। ऐसी घटना घटित होती है कि खुशी का माहौल बदल जाता है। मेरे कहने का तात्पर्य है कि शुभ अवसर पर कुछ अशुभ घटित होना पितरों की असंतुष्टि का संकेत है।
घर के किसी एक सदस्य का कुंवारा रह जाना
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
बहुत बार आपने अपने आसपास या फिर रिश्तेदारी में देखा होगा या अनुभव किया होगा कि बहुत अच्छा युवक है, कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन फिर भी शादी नहीं हो रही है। एक लंबी उम्र निकल जाने के पश्चात भी शादी नहीं हो पाना कोई अच्छा संकेत नहीं है। यदि घर में पहले ही किसी #कुंवारे_व्यक्ति_की_मृत्यु हो चुकी है तो उपरोक्त स्थिति बनने के आसार बढ़ जाते हैं। इस समस्या के कारण का भी पता नहीं चलता।
मकान या प्रॉपर्टी की खरीद-फरोख्त में दिक्कत आना
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
आपने देखा होगा कि कि एक बहुत अच्छी प्रॉपर्टी, मकान, दुकान या जमीन का एक हिस्सा किन्ही कारणों से बिक नहीं पा रहा यदि कोई खरीदार मिलता भी है तो बात नहीं बनती। यदि कोई खरीदार मिल भी जाता है और सब कुछ हो जाता है तो अंतिम समय पर सौदा कैंसिल हो जाता है। इस तरह की स्थिति यदि लंबे समय से चली आ रही है तो यह मान लेना चाहिए कि इसके पीछे अवश्य ही कोई ऐसी कोई अतृप्त आत्मा है जिसका उस भूमि या जमीन के टुकड़े से कोई संबंध रहा हो।
#संतान_ना_होना
〰️〰️〰️〰️
मेडिकल रिपोर्ट में सब कुछ सामान्य होने के बावजूद संतान सुख से वंचित है हालांकि आपके पूर्वजों का इस से संबंध होना लाजमी नहीं है परंतु ऐसा होना बहुत हद तक संभव है जो भूमि किसी निसंतान व्यक्ति से खरीदी गई हो वह भूमि अपने नए मालिक को संतानहीन बना देती है
उपरोक्त सभी प्रकार की घटनाएं या समस्याएं आप में से बहुत से लोगों ने अनुभव की होंगी इसके निवारण के लिए लोग समय और पैसा नष्ट कर देते हैं परंतु समस्या का समाधान नहीं हो पाता। क्या पता हमारे इस लेख से ऐसे ही किसी पीड़ित व्यक्ति को कुछ प्रेरणा मिले इसलिए निवारण भी स्पष्ट कर रहा हूं।
पितृ-दोष कि शांति के उपाय
〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️
1👉 सामान्य उपायों में षोडश पिंड दान ,सर्प पूजा ब्राह्मण को गौ -दान ,कन्या -दान, कुआं बावड़ी तालाब आदि बनवाना ,मंदिर प्रांगण में पीपल ,बड़(बरगद) आदि देव वृक्ष लगवाना एवं विष्णु मन्त्रों का जाप आदि करना ,प्रेत श्राप को दूर करने के लिए #श्रीमद्द्भागवत का पाठ करना चाहिए।
2👉 भगवान भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर में ही #भगवान_भोलेनाथ का ध्यान कर निम्न मंत्र की एक माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट बाधा आदि शांत होकर शुभत्व की प्राप्ति होती है |मंत्र जाप प्रातः या सायंकाल कभी भी कर सकते हैं :
मंत्र : "ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय च धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।
3👉 अमावस्या को पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल बूरा ,घी एवं एक रोटी #गाय को खिलाने से पितृ दोष शांत होता है।
4👉 पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए #हरिवंश_पुराण का श्रवण करें या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें।
5👉 प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती या सुन्दर काण्ड का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है।
6👉 सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि डाल कर सूर्य देव को अर्घ्य देकर ११ बार "ॐ घृणि सूर्याय नमः " मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है।
7👉 अमावस्या वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
8👉 पितृ पक्ष में #पीपल की परिक्रमा अवश्य करें अगर १०८ परिक्रमा लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा।
विशिष्ट उपाय :
〰️🌼🌼〰️
1👉 किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं।
2👉 यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी #मजबूर_व्यक्ति की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें।
4👉 घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है इसके अलावा पशुओं के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ लगवाने अथवा आवारा कुत्तों को #जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है।
ज्योतिष ज्ञान
📚📖📚📖
पितृ दोष है या नहीं स्वयं जानें
🔸🔸🔹🔸🔸🔸🔹🔸🔸
हिन्दू धर्म में ज्योतिष को वेदों का छठा अंग माना गया है और किसी व्यक्ति की जन्म-कुण्डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्याक्ति पितृ दोष से पीडित है या नहीं क्यों कि यदि व्यक्ति के पितृ असंतुष्ट होते हैं, वे अपने वंशजों की जन्म -कुण्डंली में पितृ दोष से सम्बंधित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।
भारतीय ज्योतिष-शास्त्रं के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-केतु या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्बंध हो, जन्म-कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से हो, तो इस प्रकार की जन्म-कुण्डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। कुंडली के जिस भाव में ये योग होता है, उससे सम्बंधित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं।
उदारहण के लिए यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-केतु का अशुभ योग- प्रथम भाव में हो, तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं क्योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते है और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरे भाव में हो, तो धन व परिवार से संबंधित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं।
तृतीय भाव मे होने पर साहस पराक्रम में कमी भाई बहन से वैमनस्य।
चतुर्थ भाव में हो तो भूमि, मकान, सम्पत्ति, वाहन, माता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं।
पंचम भाव में हो तो उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं।
छठे भाव मे होने पर गुप्त शत्रु बाधा पहुँचाते है कोर्ट कचहरी में पड़ने की संभावना बढ़ती है।
सप्तम भाव में हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्योवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है।
अष्टम भाव मे यह योग बनने से पिता से मतभेद पैतृक संपत्ति की हानि।
नवम भाव में हो, तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्य की हानि करता है।
दशम भाव में हो तो सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
एकादश एवं द्वादश भाव मे होने पर बने बनाए कार्य का नाश आय से खर्च अधिक होने पर आर्थिक उलझने बनती है।
उपरोक्तानुसार किसी भी प्रकार की ग्रह-स्थिति होने पर अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि व मानसिक रोगों से सम्बं धित अनिष्ट फल प्राप्तक होते हैं।
पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है
अधोगति वाले पितरों के कारण और उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण। अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, परिजनों की अतृप्त इच्छाएं, जायदाद के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर, विवाहादि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय, परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं , परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।
उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते , परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति- रिवाजों का निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं। इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है , फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाए,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता।
उपाय👉 ज्ञानी आचार्य द्वारा नारायनबली एवं पितृ गायत्री के सवालाख जप और इनका दशांश हवन कराने से लाभ मिलता है।
अन्य सामान्य उपाय 👉
1. सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये। परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है। एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये।
2. शनिवार के दिन सूर्योदय से पूर्व कच्चा दूध तथा काले तिल नियमित रूप से पीतल के वृक्ष पर चढ़ाएं।
3. सोमवार के दिन आक के 21 फूलों से भगवान शिव जी की पूजा करने से भी पितृ दोष की शान्ति होती है।
4. अपने वंशजों से चांदी लेकर नदी में प्रवाहित करने तथा माता को सम्मान देने से परिजन दोष का समापन होता है।
5. परिवार के प्रत्येक सदस्य से धन एकत्र करके दान में देने तथा घर के निकट स्थित पीपल के पेड़ की श्रद्धापूर्वक देखभाल करने से दोष से छुटकारा मिलता है।
6. पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में विधिवत इमली का बांदा लाकर घर में रखने से पितृ दोष दूर होते हैं।
7. अपने इष्टदेव की नियमित रूप से पूजा-पाठ करने तथा कुत्ते को भोजन कराने से दोष का समापन होता है।
8. हनुमान जी की पूजा करने तथा बंदरों को चने और केले खाने को दें। भ्राता दोष से मुक्ति मिल जाएगी।
9. ब्रह्मा गायत्री का जप अनुष्ठान कराने से पितृ दोष से छुटकारा मिलता है।
10. घर की बड़ी-बूढ़ी स्त्री का नित्य चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें। मातृ दोष दूर हो जाएगा।
11. उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद या उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में ताड़ के वृक्ष की जड़ को घर ले आएं। उसे किसी पवित्र स्थान पर स्थापित करने से पितृ दोष दूर होता है।
12. प्रत्येक मास की अमावस्या को अंधेरा होने पर बबूल के वृक्ष के नीचे भोजन खाने से पितृ दोष नष्ट हो जाता है।
13. गाय को पालकर उसकी सेवा करें। मातृ दोष से मुक्ति मिलेगी।
14. प्रतिदिन देशी फिटकरी से दांत साफ करने से भगिनी दोष समाप्त हो जाता है।
15. किसी धर्मस्थान की सफाई आदि करके वहां पूजन करें प्रभु ऋण से छुटकारा मिल जाएगा।
16. वर्ष में एक बार किसी व्यक्ति को अमावस्या के दिन भोजन कराने, दक्षिणा एवं वस्त्र देने से ब्राह्मïण दोष का निवारण होता है।
17. अमावस्या के दिन घर में बने भोजन का भोग पितरों को लगाने तथा पितरों के नाम से ब्राह्मïण को भोजन कराने से पितृ दोष दूर हो जाते हैं।यदि छोटा बच्चा पितृ हो तो एकादशी या अमावस्या के दिन किसी बच्चे को दूध पिलाएं तथा मावे की बर्फी खिलाएं।श्राद्ध पक्ष में प्रतिदिन पितरों को जल और काले तिल अर्पण करने से पितृ प्रसन्न होते हैं तथा पितृ दोष दूर होता है।
18. सात मंगलवार तथा शनिवार को जावित्री और केसर की धूप घर में देने से रुष्ट पितृ के प्रसन्न होने से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।
19. अपने घर से यज्ञ का अनुष्ठान कराने से स्वऋण दूर होता है।
20. प्रतिदिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर सूर्यदेव को नमस्कार करके यज्ञ करने से पितृ दोष से छुटकारा मिल जाता है।
21. नाक-कान छिदवाने से भागिनी दोष का निवारण होता है।
22. देशी गाय के गोबर का कंडा जलाकर उसमें नित्य काले तिल, जौ, राल, देशी कपूर और घी की धूनी देने से पितृ दोष का समापन हो जाता है।
23. बेटी को स्नेह करने तथा चांदी की नथ पहनाने से भगिनी दोष से मुक्ति मिल जाती है।
24. भिखारी को भोजन और धन आदि से संतुष्ट करें। भ्राता दोष दूर हो जाएगा।
25. पशु-पक्षियों को रोटी आदि खिलाने से सभी प्रकार के दोषों का शमन हो जाता है।
🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸
🙏 पं
ण्डित उमादत
प्रबोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व कब
बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को 12 नवंबर 2024 मंगलवार को भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...

-
भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है , जिनमें रिश्तों की मजबूती और परिवार के महत्व का प्रतीक ...
-
26 तारीक सोमवार ११ गते भाद्रपद को मनाया जाएगा जन्माष्टमी ब्रत है। १० गते भाद्रपद 25 अगस्त रविवार को अष्टमी रात 3:40 से प्रारंभ होकर के द...
-
नवम्बर 2024 शुभ संवत् 2081 कार्तिक १३ गते मंगलवार को धनत्रयोदशी को नवीन बर्तन का क्रय सांय काल में लक्ष्मी नारायण का पूजन करने के ब...