Thursday, 31 March 2022
जाने कैसा रहेगा यह नया बर्ष 2079
इस बार चैत्र नवरात्रि कब से जाने
इस बार 2 अप्रैल 2022 तथा विक्रमी संवत २०७९ को प्रथम नवरात्रा 20 गते चैत्र शनिवार से शुरू होगा जोकि नल नामक संवत्सर से शुरू होगा इस बार 9 नबरात्री पूरी तरह से लिए जाएंगे उसमें पहले दिन शनिवार के दिन घटस्थापना करना चाहिए उसके पश्चात 9 दिन मां भगवती का ध्यान करते हुए पूजन करना चाहिए।
इस बार 2 अप्रैल 2022 तथा 20 गते चैत्र शनिवार से नवरात्रि शुरू हो रहे है। प्रतिपदा को शुभ मुहूर्त में संवत्सर पूजन घट स्थापन ताम्र या मिट्टी के पात्र में जो गेहूं आदि के बीज बोना ओंकार सहित श्री गणेश विष्णु शिव दुर्गा आदि पंचदेव देवों की पूजा अर्चना करनी चाहिए
प्रतिपदा 2अप्रैल 2022 चैत्र नवरात्रि आरंभ हो रहे हैं इस दिन श्री दुर्गा माता के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलित करके श्री दुर्गा पूजन कलश स्थापन प्रमुख देवी देवताओं का आवाहन पूजन आदि के बाद श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ करना चाहिए।2 अप्रैल शनिवार को कलश की स्थापना करनी चाहिए ।
देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: । ।
नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है नौ रातें || नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों -महालक्ष्मी माँ सरस्वती और माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है ||
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी ,चन्द्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता ,कात्यायनी कालरात्रि, महागौरी ,सिद्धिदात्री ॥
।इस दिन स्नान ध्यान आदि के बाद शुद्ध पात्र में रेत मिट्टी डालकर मंगल पूर्वक जो गेहूं सप्तधान्य के बीज वपन करने चाहिए तथा श्री दुर्गा जी की मूर्ति के सम्मुख अखंड दीप प्रज्वलन एवं मंत्र उच्चारण सहित घट स्थापन करना चाहिए फिर षोडशोपचार पूजन सहित श्री दुर्गा पूजन करके संकल्प पूर्वक प्रतिपदा से नवमी तिथि तक देवी के सम्मुख दीप जलाकर श्री दुर्गा सप्तशती का नियमित रूप से पाठ करना चाहिए प्रतिपदा के दिन ॥
अश्वनी नक्षत्र में मंगलवार प्रात: कलश स्थापना करना शुभ रहेगा।
नवरात्री में घट स्थापना-मुहूर्त एवं पूजन विधि
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
शारदीय नवरात्रि का पर्व भारत में हिन्दुओं के द्वारा मनाया जाने वाला प्रमुख पर्व है।
इस वर्ष 2022 में नवरात्रों का आरंभ 2अप्रैल शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगा। दुर्गा पूजा का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है अत: यह नवरात्र घट स्थापना प्रतिपदा तिथि को
2 अप्रैल (शनिवार) के दिन की जाएगी।
नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है।
नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं. दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन,दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या कलाप संपन्न किए जाते हैं।
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है।व्रत का संकल्प लेने के बाद, मिट्टी की वेदी बनाकर ‘जौ बौया’ जाता है। इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है। घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है।
नवरात्रि में माता दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। हर तिथि का एक विशेष महत्व होता है और माता के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। यह समय सिद्धि प्राप्ति के लिए भी उचित माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इन दिनों में माता के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो सकती है।
भक्तगण माता को प्रसन्न करने के लिए सभी अपने-अपने तरीके से प्रयास करते हैं। कोई नौ दिन का उपवास रखता है,
तो कोई चप्पल नहीं पहनता। साथ ही अनेक स्थानों पर गरबों का आयोजन भी किया जाता है।माता की भक्ति में ये दिन कब गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता। दसवें दिन माता की मूर्ति को नदी में विसर्जित किया जाता है और यह प्रार्थना की जाती है कि माता सबके जीवन के दु:खों का अंत करें और सुख-शांति लाएं। यदि देखा जाए तो यह पर्व मन,वाणी व व्यसनों पर काबू करने की सीख देता है।
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
चैत्र नवरात्री 2022संवत 2079 घटस्थापना
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
इस दिन सूर्योदय से प्रात: प्रतिपदा तिथि में कलश स्थापना के लिये उपयुक्त नक्षत्र अश्विनी रहेगा ॥
नवरात्र तिथि
〰️〰️🔸〰️〰️
प्रतिपदा तिथि 👉 घटस्थापना,चन्द्रदर्शन, शैलपुत्री, पूजा 2अप्रैल शनिवार नवरात्रि
द्वितीया तिथि 👉 ब्रह्मचारिणी पूजा 3अपैल रविवार
तृतीया तिथि 👉 चंद्रघंटा 4 सोमवार
चतुर्थी तिथि 👉 कुष्मांडा 5 मंगलवार
पंचमी तिथि 👉 स्कंदमाता 6 बुधवार
षष्ठी तिथि 👉 कात्यायनी, 7अप्रैल वीरवार
सप्तमी तिथि कालरात्रि 8 अप्रैल शुक्रवार
अष्टमी तिथि 👉 महागौरी 9 अप्रैल शनिवार
नवमी तिथि 👉 सिद्धिदात्री 10 रविवार
नवरात्री घट स्थापना एवं पूजन विधि
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
हिन्दू शास्त्रों में किसी भी पूजन से पूर्व, भगवान गणेशजी की आराधना का प्रावधान बताया गया है। माता जी की पूजा में कलश से संबन्धित एक मान्यता है के अनुसार कलश को भगवान श्री गणेश का प्रतिरुप माना गया है। इसलिये सबसे पहले कलश का पूजन किया जाता है। कलश स्थापना करने से पहले पूजा स्थान को गंगा जल से शुद्ध किया जाना चाहिए। पूजा में सभी देवताओं आमंत्रित किया जाता है। कलश में सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी,मुद्रा रखी जाती है। और पांच प्रकार के पत्तों से कलश को सजाया जाता है। इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बौये जाते है। जिन्हें दशमी की तिथि पर काटा जाता है। माता दुर्गा की प्रतिमा पूजा स्थल के मध्य में स्थापित की जाती है।
कलश स्थापना के बाद, गणेश भगवान और माता दुर्गा जी की आरती से, नौ दिनों का व्रत प्रारंभ किया जाता है। कई व्यक्ति पूरे नौ दिन तो यह व्रत नहीं रख पाते हैं किन्तु प्रारंभ में ही यह संकल्प लिया जाता है कि व्रत सभी नौ दिन रखने हैं अथवा नौ में से कुछ ही दिन व्रत रखना है।
घट स्थापना विधि
〰️〰️🔸🔸〰️〰️ 〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️
पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें।
कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति रखें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।
मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु का पूजन करें। नवरात्रि व्रत के आरंभ में स्वस्तिवाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति का पूजन करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।
नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन इस प्रकार करें
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
भक्त प्राय: पूरे नवरात्र उपवास रखते हैं. सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्र और एकरात्रव्रत का विधान भी है. प्रतिपदा से सप्तमी तक उपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है.
अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण (पूर्ण) करते हैं.
नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं. तथा दुर्गा जी के १०८ नामों को मंत्र रूप में उसका अधिकाधिक जप करें।
अब एक दूसरी स्वच्छ थाली में स्वस्तिक बनाकर उस पर पुष्प का आसन लगाकर दुर्गा प्रतिमा या तस्वीर या यंत्र को स्थापित करें।
साधक गण मन्त्र ज्ञान के अभाव में निम्न प्रकार दुर्गा पूजन करे:-
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
स्नानार्थ जलं समर्पयामि
(जल से स्नान कराए)
स्नानान्ते पुनराचमनीयं जल समर्पयामि
(जल चढ़ाए)
दुग्ध स्नानं समर्पयामि
(दुध से स्नान कराए)
दधि स्नानं समर्पयामि
(दही से स्नान कराए)
घृतस्नानं समर्पयामि
(घी से स्नान कराए)
मधुस्नानं समर्पयामि
(शहद से स्नान कराए)
शर्करा स्नानं समर्पयामि
(शक्कर से स्नान कराए)
पंचामृत स्नानं समर्पयामि
(पंचामृत से स्नान कराए)
गन्धोदक स्नानं समर्पयामि
(चन्दन एवं इत्र से सुवासित जल से स्नान करावे)
शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि
(जल से पुन: स्नान कराए)
यज्ञोपवीतं समर्पयामि
(यज्ञोपवीत चढ़ाए)
चन्दनं समर्पयामि
(चंदन चढ़ाए)
कुकंम समर्पयामि
(कुकंम चढ़ाए)
सुन्दूरं समर्पयामि
(सिन्दुर चढ़ाए)
बिल्वपत्रै समर्पयामि
(विल्व पत्र चढ़ाए)
पुष्पमाला समर्पयामि
(पुष्पमाला चढ़ाए)
धूपमाघ्रापयामि
(धूप दिखाए)
दीपं दर्शयामि
(दीपक दिखाए व हाथ धो लें)
नैवेध निवेद्यामि
(नेवैध चढ़ाए(निवेदित) करे)
ऋतु फलानि समर्पयामि
(फल जो इस ऋतु में उपलब्ध हो चढ़ाए)
ताम्बूलं समर्पयामि
(लौंग, इलायची एवं सुपारी युक्त पान चढ़ाए)
दक्षिणा समर्पयामि
(दक्षिणा चढ़ाए)
इसके बाद कर्पूर अथवा रूई की बाती जलाकर आरती करे।
आरती के नियम:- प्रत्येक व्यक्ति जानकारी के अभाव में अपनी मन मर्जी आरती उतारता रहता है। विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि देवताओं के सम्मुख चौदह बार आरती उतारना चाहिए। चार बार चरणो पर से, दो बार नाभि पर से, एकबार मुख पर से तथा सात बार पूरे शरीर पर से।
आरती की बत्तियाँ १, ५, ७ अर्थात विषम संख्या में ही बत्तियाँ बनाकर आरती की जानी चाहिए।
दुर्गा जी की आरती:-
〰️〰️🔸🔸〰️〰️
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥
प्रदक्षिणा
〰️🔸〰️
“यानि कानि च पापानी जन्मान्तर कृतानि च।
तानी सर्वानि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे॥
प्रदक्षिणा समर्पयामि।"
प्रदक्षिणा करें (अगर स्थान न हो तो आसन पर खड़े-खड़े ही स्थान पर घूमे)
क्षमा प्रार्थना
〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️
( पुष्प सर्मपित कर देवी को निम्न मंत्र से प्रणाम करे।)
"नमो दैव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृतयै भद्रायै नियता: प्रणता: स्मताम॥
या देवी सर्व भूतेषु मातृरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥"
ततपश्चात देवी से क्षमा प्रार्थना करे कि जाने अनजाने में कोई गलती या न्यूनता-अधिकता यदि पूजा में हो गई हो तो वे क्षमा करें।
इस पूजन के पश्चात अपने संकल्प मे कहे हुए मनोकामना सिद्धि हेतु निम्न मंत्र का यथाशक्ति श्रद्धा
अनुसार ९ दिन तक जप करें:-
“ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥”
इस मंत्र के बाद दुर्गा सप्तशती के सभी अध्यायो का पाठ ९ दिन मे पूर्ण करें। या यथा सामर्थ प्रतिदिन एक पाठ करे।
महामारी नाश के लिए मंत्र 〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️ 〰️🔸〰️
जयन्ती मड्ंग्ला काली भद्रकाली कपालिनी ।|
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमस्तुते।|
नवरात्री की समाप्ति पर यदि कलश स्थापना की हो तो इसके जल को सारे घर मे छिड़क दें। इस प्रकार पूजा सम्पन्न होती है। यदि कोई व्यक्ति विशेष उपरांकित विधि का पालन करने मे असमर्थ है तो नवरात्रि के दौरान दुर्गा चालीसा का पाठ करें।
पूजन सामग्री
〰️〰️🔸〰️〰️
माँ दुर्गा की सुन्दर प्रतिमा, माता की प्रतिमा स्थापना के लिए चौकी, लाल वस्त्र , कलश/ घाट , नारियल का फल, पांच पल्लव आम का, फूल,अक्षत, मौली, रोली, पूजा के लिए थाली , धुप और दशांग, गंगा का जल, कुमकुम, गुलाल पान,सुपारी, चौकी,दीप, नैवेद्य,कच्चा धागा, दुर्गा सप्तसती किताब ,चुनरी, पैसा, माता दुर्गा की विशेष कृपा हेतु संकल्प तथा षोडशोपचार पूजन करने के बाद, प्रथम प्रतिपदा तिथि को, नैवेद्य के रूप में गाय का घी माता को अर्पित करना चाहिए तथा पुनः वह घी किसी ब्राह्मण को दे देना चाहिए।
〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️🔸〰️〰️
Thursday, 27 January 2022
गजेन्द्र मोक्ष
Monday, 3 January 2022
मकर संक्रांति14या15 को और माघ मास फल जाने
मकर सक्रांति 14 जनवरी 2022 शुक्रवार द्वादशी तिथि इस दिन 2:29 पर वृष लग्न प्रवेश करेगी और इसका पुण्य काल प्रातः 8:05 के बाद पूरे दिन रहेगा ।इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन किया हुआ दान पुण्यदायक होता है। यह माघ का महीना पूरे 12 महीनों में सबसे पुणे दायक महीना होता है इस महीने में अपने सामर्थ्य अनुसार भगवान का भजन पूजन करना चाहिए इस मास में किया हुआ भजन पूजन बहुत ही लाभकारी होता है।इस प्रकार से नंदा नामक यह संवत्सर ब्राह्मण पशुओं शिक्षित वर्ग के लिए लाभकारी रहेगा इस दिन तीर्थों पर स्नान आदि का विशेष महत्व होगा तथा पुण्य की प्राप्ति होगी ।जो तीर्थों में ना जा सके वह घर में श्रद्धा पूर्वक स्नान करें और वही उनका स्मरण करें इसी प्रकार 17 तारीख जनवरी सोमवार 4 गते माघ को पूर्णिमा होगी उस दिन हरिद्वार प्रयाग कुरुक्षेत्र तीर्थों पर या घर में गंगा जल से शुद्ध जल से स्नान करें जप ध्यान करें प्रभु की कृपा सदा बनी रहे।
https://youtu.be/4nLAW2vJ1nM
Wednesday, 22 December 2021
Sunday, 19 December 2021
शास्त्रो द्वारा पूर्वजन्म को कैसे समझा जा सकता है ?
Friday, 3 December 2021
दुर्घटना एवं अकाल मृत्यु के बाद जब आत्मा भटकती है तो उस आत्मा की मुक्ति कैसे होती है?
असमय या अकाल मृत्यु के बाद जब आत्मा भटकती है तो उस आत्मा की मुक्ति कैसे होती है?
Wednesday, 1 December 2021
Wednesday, 17 November 2021
कहां कहां दिखेगा खंण्ड ग्रास चन्द्र ग्रहण 19 नवंबर 2021 के बारे में जाने
Tuesday, 2 November 2021
दीपावली का पर्व कैसे और कब मनाए?
02 नवंबर 2021शुभ संवत् 2078मंगलवार को धनत्रयोदशी को नवीन बर्तन का क्रय सांय काल में लक्ष्मी नारायण का पूजन करने के बाद अनाज वस्त्र खुशियों एवं उनके निमित्त दीपदान करें इससे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।
3 नवंबर 2021मास 18गते कार्तिक नरक चतुर्दशी के दिन बिजली , अग्नि, उल्का आदि से मृतकों की शांन्ति के लिए चार मुख वाले दीपक को प्रज्वलित करके तथा शक्ति दान करे। सांय काल को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल,तिल और कुश लेकर तर्पण करें।इस दिन की अर्धरात्रि के समय घृत पूर्ण दीपक जलाकर श्री नुमान जयन्ति मनाई जाती है।
उन्हें मोदक के लिए फल आदि अर्पण करें एवं सुंदरकांड आदि हनुमान स्तोत्र का पाठ करें 4 नवंबर गुरुवार को कार्तिक मास अमावस्या दीपावली को प्रदा प्रदोष काल में दीपदान करके अपने गृह के पूजा स्थान में मंत्र पूर्वक दीप प्रज्वलित करके श्री महालक्ष्मी की यथा विधि पूजा करनी चाहिए।
ब्रह्म पुराण अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को अर्धरात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सद ग्रंथों के घर में जहां-तहां वितरण करती हैं इसलिए अपने घर को सब प्रकार से स्वच्छ शुद्ध और सुशोभित करके दीपावली तथा दीप मालिका मनाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होते हैं तथा वहां स्थाई रूप से निवास करती है कि अमावस्या प्रदोष काल एवं आज रात्रि व्यापिनी हो तो विशेष विशेष शुभ होती है।
दीपावली दिन के कृत्य इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कृतियों से निवृत हो मित्र गण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिए संभव हो तो दूध दही और खेत से पितरों का पावन याद करना चाहिए यदि यह संभव हो तो दिनभर उपवास कर गोधूलि बेला में अथवा दृश्य सिंह वृश्चिक और स्थिर लग्न में श्री गणेश कलश षोडश मातृका ग्रह पूजन पूर्वक भगवती लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए इसके अंदर महाकाली का दावा के रूप में मां सरस्वती का कलम वही आदि के रूप में कुबेर का तुला के रूप में सभी जी पूजन करें ना चाहिए इसी समय दी पूजन कर यमराज तथा मित्र गणों के निमित्त सत्संग क्लब दीप दान करना चाहिए तदुपरांत यथो लब्ध निशीथ आदि शिव मूर्तियों में मंत्र जप यंत्र सिद्धि आदि अनुष्ठान संपादित करने चाहिए दीपावली वास्तव में पांच पर्वों का मौसम माना जाता है जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनत्रयोदशी कार्तिक शुक्ल द्वितीया भैया दूज 6नवंबर2021 कार्तिक21गते तक रहती है दीपावली के पर्व पर धन की प्रभुत प्राप्ति के लिए धनदा की अधिष्ठात्री भगवती लक्ष्मी का समारोह पूर्वक आभार षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है आगे दिए निर्देश शुभ कार्यों में किसी स्वच्छ एवं पवित्र स्थान पर आटा हल्दी अक्षत पुष्प आदि से अष्टदल कमल बनाकर श्री लक्ष्मी का आवाहन स्थापना करके देवों की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
लक्ष्मी पूजा वीरवार, नवम्बर 4, 2021 पर19गते कार्तिक
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 05:25 पी एम से 07:19 पी एम
अवधि - 01 घण्टा 55 मिनट्स
प्रदोष काल - 05: 32पी एम से 08:12 पी एम
वृषभ काल - 06:11 पी एम से 08:05 पी एम
इसमें श्री गणेश लक्ष्मी पूजन प्रारंभ कर लेना चाहिए दीपदान महालक्ष्मी पूजन कुबेर बहीखाता पूूूूजन करके घर एवं मंदिरों में दीपजलाने चाहिए। आश्रितों को भोजन मिष्ठान आदि बांटना चाहिए।
निशिता काल मुहूर्त
08 :12मि0 पी एम से 22:51पी एव निशीथ काल में 8:52से पहले पूजन हो जाना चाहिए।
इस समय श्री सूक्त कनकधारा स्त्रोत लक्ष्मी स्त्रोत का पाठ करना चाहिए
महानिशिथा काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त -
10:51 पी एम से 11:32 पी एम, नवम्बर 4
सिंह लग्न - 12: पी एम से 03:03 ए एम, नवम्बर 5
श्री महा लक्ष्मी पूजन
श्री महालक्ष्मी पूजन दीपदान आदि के लिए प्रदोष काल से आधी रात तक रहने वाली अमावस श्रेष्ठ होती है यदि अर्धरात्रि काल में अमावस तिथि का अभाव हो तो प्रदोष काल में ही दीप प्रज्वलन, महालक्ष्मी पूजन, गणेश एवं कुबेर आदि पूजन कृत्य करने का विधान है। प्रस्तुत बर्ष में कार्तिक अमावस्या 4 नवम्बर वीरवार सन 2021 ईस्वी को प्रदोष व्यापनी तथा रात्रि निशीथव्यापनी होने से दीपावली पर्व इसी दिन होगा दीपावली स्वाती नक्षत्र तथा तुला के चंद्रमा कालीन होगा। सायं सूर्यास्त प्रदोष काल प्रारंभ के बाद मेष वृष लग्न एवं स्वाति नक्षत्र विद्यमान होने से यह समय अवधि श्री गणेश, महालक्ष्मी पूजन और कृतियों के आरंभ के लिए विशेष रूप से प्रशस्त रहेगी। वहीं खातों एवं नवीन शुभ कार्यों के लिए भी यह मुहर्त अत्यंत शुभ होगा। बुधवार की दीपावली व्यापारियों ,क्रय विक्रय करने वालों के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है। लक्ष्मी पूजन दीप दान आदि के लिए प्रदोष काल की विशेषता प्रशस्त माना गया है ।
कार्तिके प्रदोषे तु विशेषण अमावस्या निशावर्धके। तस्यां सम्पूज्येत् देवी भोग मोक्ष प्रदायनी।। दीपावली के दिन गृह में प्रदोष काल से महालक्ष्मी पूजन प्रारंभ करके अर्धरात्रि तक जप अनुष्ठान आदि का विशेष महत्व में होता है । प्रदोष काल से कुछ समय पूर्व स्नान आदि उपरांत धर्म स्थल पर मंत्र पूर्वक दीपदान करके अपने निवास स्थान पर श्री गणेश सहित महालक्ष्मी कुबेर पूजा आदि करके अल्पाहार करना चाहिए। तदुपरांत निशिथा आदि मुहूर्तों में मंत्र जप यंत्र सिद्धि आदि अनुष्ठान संपादित करने चाहिए।
दीपावली वास्तव में पांच पर्वों का महत्व माना जाता है। जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी धनतेरस से लेकर कार्तिक शुक्ल द्वितीया भाई दूज तक रहती है। दीपावली के पर्व पर धन की प्राप्ति के लिए धन की अधिष्ठात्री धनदा भगवती लक्ष्मी की समारोह पूर्वक आवाहन षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है ।आगे दिए गए निर्दिष्ट शुभ कालो में किसी स्वस्थ एवं पवित्र स्थान पर आटा, हल्दी, अक्षत, पुष्प आदि से अष्टदल कमल बनाकर महालक्ष्मी का आवाहन स्थापना करनी चाहिए देवों का विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए। आवाहन मंत्र है -
कां सोस्मितां हिरणयप्रकारामाद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्। पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्। पूजा मंत्र है ॐ गं गणपतये नमः । लक्ष्म्यै नम:।नमस्ते सर्व देवानां वरदासि हरे: प्रिया। या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा में भूयात्वदर्चनात।। से श्री लक्ष्मी की ' एरावतसमारुढो म बज्रहस्तो महाबल:।शत यज्ञाधिपो देवस्तस्मा इंद्राय नमः ।
इस मंत्र से इनकी कुबेर की निम्नलिखित मंत्र से पूजा करें कुबेराय नमः, धनदाय नमस्तुभ्यं निधि पद्माधिपाय च। भवंतु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादि सम्पद: । पूजन सामग्री में विभिन्न प्रकार की मिठाई फल ,पुष्प ,अक्षत, धूप, दीप आदि सुगंधित वस्तु में सम्मिलित करनी चाहिए। दीपावली पूजन में प्रदोष निश्चित एवं महा निशित काल के अतिरिक्त चौघड़िया मुहूर्त भी पूजन बहीखाता, पूजन ,कुबेर पूजा ,जप आदि अनुष्ठान की दृष्टि से विशेष प्रशस्त एवं शुभ माने जाते है।
शुक्ल प्रतिपदा 5 नवम्बर को श्री कृष्ण, भगवान की प्रसन्नता के लिए अन्नकूट पर्व मनाया जाता है तथा श्री कृष्ण व गोओ की पूजा की जाती है। 6नवम्बर को में भाई बहन के परस्पर स्नेह का प्रतीक भातृ दूज का पर्व मनाया जाएगा इसमें शिव पार्वती विवाह पूजन उपरांत बहन अपने भाई की मंगल कामना हेतु उसे रोली वा केसर का तिलक लगाती है भाई बहन अपनी बहन को श्रद्धा अनुसार उपहार देता है अक्षय नवमी 12 नवंबर को क्या हुआ पूजा पाठ दिया हुआ दान अक्षय हो जाता है इसी प्रकार हरि प्रबोधिनी एकादशी 15 नवंबर को भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है।
Monday, 1 November 2021
धनत्रयोदशी कब और कैसे मनाए?
Monday, 18 October 2021
अमृत तुल्य खीर खाने से मिलती है क्लिष्ट रोगों से शांति (शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर रविवार को) इस दिन यह उपाय करने से
अक्टूबर 9 अक्तुवर 2022 रविवार को 23 गते आश्विन मास को
शरद पूर्णिमा जिसे कोजागरी या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिंदू पंचांग के मुताबिक शरद पूर्णिमा को कहा जाता है शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है। वह अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। इस रात्री चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान और उर्जावान होता है।
मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है अमृत बरसता है इस दिन इस दिन रविवार 9अक्टूबर की रविवार को रात्रि को मेवा ,बादाम, किशमिश ,सहित खीर की छिटकती, चांदनी में रात भर सुरक्षित रखकर दूसरे दिन प्रातः भगवान विष्णु को भोग लगाकर सब परिवार सहित समय ग्रहण करने से अनेक प्रकार के मानसिक शारीरिक और लोगों की शांति होती है माताएं अपने संतान की मंगल कामना के लिए देवताओं का पूजन करती है।
इस बात का ज्ञान बहुत कम लोगो को होता है अतः अपने मित्रों तथा सम्बन्धियो को शयर करे। हमारा ध्यय हैं कि अधिक से अधिक लोग स्वस्थ एवं निरोग रहे।
*शरद पूर्णिमा*
🌏 वर्ष के बारह महीनों में ये पूर्णिमा ऐसी है, जो तन, मन और धन तीनों के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है। इस पूर्णिमा को चंद्रमा की किरणों से अमृत की वर्षा होती है, तो धन की देवी महालक्ष्मी रात को ये देखने के लिए निकलती हैं कि कौन जाग रहा है और वह अपने कर्मनिष्ठ भक्तों को धन-धान्य से भरपूर करती हैं।
🌏 शरद पूर्णिमा का एक नाम *कोजागरी पूर्णिमा* भी है यानी लक्ष्मी जी पूछती हैं- कौन जाग रहा है? अश्विनी महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा अश्विनी नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम अश्विनी पड़ा है।
🌓 एक महीने में चंद्रमा जिन 27 नक्षत्रों में भ्रमण करता है, उनमें ये सबसे पहला है और आश्विन नक्षत्र की पूर्णिमा आरोग्य देती है।
🌎 केवल शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी। चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है।
🌏 आयुर्वेदाचार्य वर्ष भर इस पूर्णिमा की प्रतीक्षा करते हैं। जीवनदायिनी रोगनाशक जड़ी-बूटियों को वह शरद पूर्णिमा की चांदनी में रखते हैं। अमृत से नहाई इन जड़ी-बूटियों से जब दवा बनायी जाती है तो वह रोगी के ऊपर तुंरत असर करती है।
🌓 चंद्रमा को वेदं-पुराणों में मन के समान माना गया है- *चंद्रमा मनसो जात:।* वायु पुराण में चंद्रमा को जल का कारक बताया गया है। प्राचीन ग्रंथों में चंद्रमा को औषधीश यानी औषधियों का स्वामी कहा गया है।
🌏 ब्रह्मपुराण के अनुसार- सोम या चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई और जब औषधी 16 कला संपूर्ण हो तो अनुमान लगाइए उस दिन औषधियों को कितना बल मिलेगा।
🌏 शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में रखी खीर खाने से शरीर के सभी रोग दूर होते हैं। ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन और भाद्रपद मास में शरीर में पित्त का जो संचय हो जाता है, शरद पूर्णिमा की शीतल धवल चांदनी में रखी खीर खाने से पित्त बाहर निकलता है।
🌓 लेकिन इस खीर को एक विशेष विधि से बनाया जाता है। पूरी रात चांद की चांदनी में रखने के बाद सुबह खाली पेट यह खीर खाने से सभी रोग दूर होते हैं, शरीर निरोगी होता है।
🌏 शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहते हैं। स्वयं सोलह कला संपूर्ण भगवान श्रीकृष्ण से भी जुड़ी है यह पूर्णिमा। इस रात को अपनी राधा रानी और अन्य सखियों के साथ श्रीकृष्ण महारास रचाते हैं।
🌏 कहते हैं जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी।
🌓 गुजरात में शरद पूर्णिमा को लोग रास रचाते हैं और गरबा खेलते हैं। मणिपुर में भी श्रीकृष्ण भक्त रास रचाते हैं। पश्चिम बंगाल और ओडिशा में शरद पूर्णिमा की रात को महालक्ष्मी की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस पूर्णिमा को जो महालक्ष्मी का पूजन करते हैं और रात भर जागते हैं, उनकी सभी कामनाओं की पूर्ति होती है।
🌏 ओडिशा में शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से मनाया जाता है। आदिदेव महादेव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इसी पूर्णिमा को हुआ था। गौर वर्ण, आकर्षक, सुंदर कार्तिकेय की पूजा कुंवारी लड़कियां उनके जैसा पति पाने के लिए करती हैं।
🌏 शरद पूर्णिमा ऐसे महीने में आती है, जब वर्षा ऋतु अंतिम समय पर होती है। शरद ऋतु अपने बाल्यकाल में होती है और हेमंत ऋतु आरंभ हो चुकी होती है और इसी पूर्णिमा से कार्तिक स्नान प्रारंभ हो जाता है।
- शरद पूर्णिमा के अतिरिक्त प्रत्येक महा की पूर्णमासी को खीर के चमत्कारिक फायदें !!
शरद पूर्णिमा के अतिरिक्त प्रत्येक माह में पड़ने वाली पूर्णिमा के अलावा, प्रत्येक माह की पूर्णिमा की रात लक्ष्मी जी के स्वागत में चन्द्रमा भी अपनी रौशनी में कोई कमी नहीं रखता। इस दिन के बाद से सर्दियों का आगमन शुरू हो जाता है, इस दिन मंदिरों में जो खीर बनती है, उसका बड़ा महत्त्व है। खीर बनने के बाद भोग लगने तक खुले आसमान में रखने से वो एक दवा का रूप ले लेती है, चंद्र दर्शन और पॉजिटिव एनर्जी के बाद खीर एक दवा होती है, जो श्वसन जैसी बिमारियों में काम ली जाती है। इस दिन माता लक्ष्मी का आगमन होता है, इस दिन खीर खाने से एवं चंद्र देवता और भगवती लक्ष्मी को भोग लगाने से जीवन में धन- धान्य की कोई कमी नहीं रहती प्रत्येक माह ऐसा करने से धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती जाती है।
अन्य दिनों के अलावा प्रत्येक पूर्णमासी को अपने गुरु और आराध्य देव के मंदिर जाएँ, वहां अपनी श्रद्धा अनुसार दूध या मेवे आदि लेकर जाएँ और खीर बनने में योगदान करें, रात्रि में जब खीर का भगवान को भोग लगाया जाए, तब तक भजन संध्या में आनंद उठाएं। खीर की प्रसादी को अपने परिवार में सभी सदस्यों को बांटे। सुबह रोजाना का कार्य से निवृत होकर खाना खाने से पहले खीर खाएं इस खीर से पेट और श्वसन सम्बंधित बीमारियां दूर होती है।
घर पर भी बना सकते हैं।
मंदिर में खीर प्रसादी के तौर पर मिलती है, जिसकी मात्रा कम होती है, ऐसे में आप अपने घर पर भी बना सकते हैं। खीर बनाने के बाद उसे सूती कपडे से ढककर छत पर रख दें। यहाँ चन्द्रमा की किरणे खीर पर पड़ती रहें। कपड़ा सिर्फ मक्खी मच्छर के लिए हो, सिर्फ नाम का। इस खीर को रात्रि में और सुबह जल्दी खाने से बहुत लाभ होता है।
– शरद पूर्णिमा की खीर दिल के मरीज़ों और फेफड़े के मरीज़ों के लिए भी काफी फायदेमंद होती है. इसे खाने से श्वांस संबंधी बीमारी भी दूर होती हैं. – स्किन रोग से परेशान लोगों को शरद पूर्णिमा की खीर खाने से काफी फायदे मिलते हैं. मान्यता है कि, अगर किसी भी व्यक्ति को चर्म रोग हो तो, वो इस दिन खुले आसमान में रखी हुई खीर खाएं !
यह भी एक दवा जो शरद पूर्णिमा पर विशेष तैयार की जाती है।
100 ग्राम काली मिर्च
400 ग्राम देशी घी
400 ग्राम बुरा तीनो को मिलाकर रात्रि में छत के ऊपर रख देवें। चन्द्रमा की किरणों के द्वारा उनमें पॉजिटिव एनर्जी समा जाती है। इस मिश्रण को परिवार के सदस्यों के साथ खाना चाहिए। मात्रा के तौर पर आप एक चम्मच ही लें, जो सुबह खाली पेट खाएं, इससे आँखों की रौशनी में बढ़ोतरी होती है, बुखार और पित्त के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है ।
प्रबोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व कब
बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व 12 नवंबर 2024 मंगलवार को 12 नवंबर 2024 मंगलवार को भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एक...

-
भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष महत्व है , जिनमें रिश्तों की मजबूती और परिवार के महत्व का प्रतीक ...
-
26 तारीक सोमवार ११ गते भाद्रपद को मनाया जाएगा जन्माष्टमी ब्रत है। १० गते भाद्रपद 25 अगस्त रविवार को अष्टमी रात 3:40 से प्रारंभ होकर के द...
-
नवम्बर 2024 शुभ संवत् 2081 कार्तिक १३ गते मंगलवार को धनत्रयोदशी को नवीन बर्तन का क्रय सांय काल में लक्ष्मी नारायण का पूजन करने के ब...