इस साल रक्षाबंधन कब है? राखी बांधने का सही समय क्या है?
इस बार 9 तारीख, शनिवार को , पूर्णिमा का दिन! रक्षाबंधनबांधने का समय सुबह 7:30 से 9:09 बजे तक अति शुभ रहेगा।
इस साल रक्षाबंधन कब है? राखी बांधने का सही समय क्या है?
इस बार 9 तारीख, शनिवार को , पूर्णिमा का दिन! रक्षाबंधनबांधने का समय सुबह 7:30 से 9:09 बजे तक अति शुभ रहेगा।
जाने कैसा रहेगा आप की नाम राशी के मुताबिक दिसम्बर मास 2025 का भविष्य
1. *मेष राशि* (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ) - ता. 7 से मंगल भाग्य-स्थान में तथा गुरु की पुनः दृष्टि के कारण बिगड़े कार्यों में सुधार तथा स्वास्थ्य में बेहतर होगा। धर्म-कर्म में रुचि तथा शुभ कार्य पर खर्च होगा।
2. *वृष राशि* (ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो) - मासारम्भ में शुक्र स्वगृही दृष्टि से खर्च व कर्ज के बावजूद निर्विघ्न आय के साधन बनते रहेंगे। ता. 20 से शुक्र अष्टमस्थ होने पर परिवार में विवाद, तनाव व _पितृ-दोष_ का भय। स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान दें।
3. *मिथुन राशि* (क, की, कु, घ, ङ, छ, के, को, ह) - विशेष परिश्रम एवं पारिवारिक सहयोग के बावजूद कार्य-सिद्धि में विलम्ब होगा। परन्तु ता. 15 से सूर्य पंचमस्थ होने से विघ्नों के बावजूद कुछ बिगड़े कार्यों में सुधार होगा। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि परन्तु क्रोध अधिक रहे।
4. *कर्क राशि* (हि, हु, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो) - ता. 15 से शुक्र गृहस्थ-भाव में निविघ्न आय व शुभ-लाभ देता रहेगा। ता. 18 से गुरु उच्च स्थिति में होकर उन्नति व विवाह-योग बनाता है।
5. *सिंह राशि* (म, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे) - पूर्वार्द्ध भाग में धन-लाभ व उन्नति के अवसर मिलेंगे परन्तु थकावट, मानसिक तनाव और स्वभाव में क्रोध की भावना अधिक रहेगी। ता. 15 के बाद परिवार में विवादास्पद कार्य कम होंगे परन्तु स्त्री तथा संतान-सम्बन्धी कुछ परेशानियाँ रहेंगी।
6. *कन्या राशि* (टो, पा, पी, पू, ण, ठ, पे, पो) - शनि की ढैया समाप्त करने का प्रयत्न लाभकारी रहेगा। ता. 7 के बाद गुरुदृष्टि होने से बने कार्यों में विघ्न, शत्रु व आर्थिक परेशानियाँ बढ़ेंगी। मन अशान्त एवं असमर्थ रहेगा।
7. *तुला राशि* (रा, री, रू, रे, रो, ता, ति, तु, ते) - आय में वृद्धि के साथ-साथ खर्च भी अपेक्षाकृत रहेगा। माता-पिता तथा धर्म-कर्म में शुभ मंगल कार्य भी सम्भव होंगे। ता. 20 से शुक्र भाग्येश होकर द्वितीय भाव में आकर सङ्कल्प एवं सम्मान बढ़ायेगा।
8. *वृश्चिक राशि* (तो, न, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू) - पूर्वार्द्ध भाग में धन-लाभ व उन्नति के अवसर मिलेंगे परन्तु थकावट, मानसिक तनाव और स्वभाव में क्रोध की भावना अधिक रहेगी। ता. 15 के बाद परिवार में विवादास्पद कार्य कम होंगे परन्तु स्त्री तथा संतान-सम्बन्धी कुछ परेशानियाँ रहेंगी।
9. *धनु राशि* (ये, यो, भा, भी, भू, धा, फ, ढे) - शनि-दृष्टि से व्यय-वृद्धि, स्वास्थ्य-गिरावट व मानसिक दबाव। गुरु का शुभ प्रभाव स्त्री-सुख एवं शुभ समाचार देगा, पर ऋण-दबाव भी बना रहेगा।
10. *मकर राशि* (भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी) - बुध अस्तव्यस्त रहने से स्वास्थ्य का बिगड़ना संभव। गुरु दृष्टि से ऋण या लेन-देनों में धोखे की सम्भावना; धैर्य रखें।
11*कुम्भ राशि* (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सौ, दा) - पूर्वार्द्ध भाग में धन-लाभ व उन्नति के अवसर मिलेंगे परन्तु थकावट, मानसिक तनाव और स्वभाव में क्रोध की भावना अधिक रहेगी। ता. 15 के बाद परिवार में विवादास्पद कार्य कम होंगे परन्तु स्त्री तथा संतान-सम्बन्धी कुछ परेशानियाँ रहेंगी।
12*मीन राशि* (दि, दु, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची) - मासारम्भ में गुरु की दृष्टि से भाग्योदय, धन-लाभ व शुभ समाचार मिलेंगे। ता. 7 से सूर्य के साथ बुध का योग होने से कार्य-व्यवसाय में प्रगति होगी। मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी और पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा।
जाने कैसा रहेगा आप की नाम राशी के मुताबिक नवम्बर मास 2025 का भविष्य
1. *मेष राशि* (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ) - मंगल अस्त-व्यस्त रहने से स्वास्थ्य-कष्ट, घरेलू उलझनें तथा बनते कामों में अड़चन रहेगी। धन का अपव्यय, लाभ में कमी एवं पुत्र-चिन्ताएँ रहेंगी।
2. *वृष राशि* (ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो) - ता. 2 से शुक्र पुनः स्वराशिगत होने पर परिस्थितियों में सुधार के योग। धीरे-धीरे आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन एवं लाभ संभावना। मंगल-दृष्टि से योजनाएँ पूर्ण करने में विलम्ब सम्भव; कार्य _कौशल_ दिखाएँ।
3. *मिथुन राशि* (क, की, कु, घ, ङ, छ, के, को, ह) - मासारम्भ में शुभ ग्रह षष्ठस्थ होने से व्यावसायिक क्षेत्रों में दौड़-धूप अधिक एवं नये सम्पर्क जीवित रहेंगे। जमीन-जायदाद सम्बन्धी समस्याएँ उत्पन्न होंगी। ता. 9 से फिर भाग्येश रहेंगे।
4. *कर्क राशि* (हि, हु, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो) - शनि की ढैया के बावजूद शुक्र अनुकूल; व्यवसाय-नौकरी में स्थिरता व आय बढ़ेगी। स्वास्थ्य सामान्य पर दायित्व अधिक; पारिवारिक समझौता लाभदायक।
5. *सिंह राशि* (म, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे) - सूर्य नीचराशिगत एवं केतु संचार के कारण धन-लाभ साधारण हो, मानसिक तनाव एवं क्रोध अधिक रहे। परिवार में अकारण ही विरोधाभास और तनाव उत्पन्न हो। उत्तरार्द्ध में व्यर्थ यात्रा से परेशानी होगी।
6. *कन्या राशि* (टो, पा, पी, पू, ण, ठ, पे, पो) - परिवार, भूमि-जायदाद सम्बन्धी धर्म-कर्म में रुचि रहेगी। बिगड़े कार्य बनेंगे। निविघ्न आय के साधन बने रहेंगे।
7. *तुला राशि* (रा, री, रू, रे, रो, ता, ति, तु, ते) - ता. 2 से शुक्र स्वराशिगत (तुला) रहने से परिस्थितियाँ कुछ सम्हलेंगी; धन-लाभ के अच्छे अवसर मिलेंगे। सम्पत्ति, भूमि-मकान सम्बन्धी कार्यों में प्रगति के योग।
8. *वृश्चिक राशि* (तो, न, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू) - मासारम्भ में शुभ ग्रह लाभ-स्थान में होने से कार्य-क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सम्पर्क बढ़ेंगे व नई योजनाएँ बनेंगी। पूर्व प्रयासों का लाभ कुछ दिन बाद मिलेगा।
9. *धनु राशि* (ये, यो, भा, भी, भू, धा, फ, ढे) - राशि-स्वामी गुरु की उच्च स्थिति से धन-लाभ व व्यवसाय-उन्नति के योग, परन्तु असन्तोष के कारण प्रतिष्ठा में विघ्न-बाधाएँ; शत्रु प्रबल रहेंगे।
10. *मकर राशि* (भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी) - गुरु की उच्च दृष्टि से विवेक जाग्रत होगा; निर्णय उचित होंगे। शत्रु-पक्ष निरस्त होगा और मानसिक शान्ति मिलेगी। धन-लाभ होगा; परिवार व परिजन से स्नेह तथा सहयोग प्राप्त होगा।
11. *कुम्भ राशि* (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सौ, दा) - मासारम्भ से मंगल की दृष्टि रहने से श्रम अधिक, बनते कार्यों में चिन्ता तथा मानसिक तनाव एवं घरेलू उलझनें रहेंगी। अचानक शुक्र सम्बन्धी शुभ समाचार मिल सकता है।
12. *मीन राशि* (दि, दु, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची) - गुरु-परी तिथि में उपचार बने रहने से आर्थिक जीवन में अनेक प्रगति के साधन बढ़ेंगे और सन्तान-पक्ष में अवसर प्राप्त होगा। स्वास्थ्य-स्थिति भी उपयुक्त रहेगी
यहाँ अक्टूबर के लिए विभिन्न राशियों के फलादेश दिए गए हैं:
जाने कैसा रहेगा आप की नाम राशी के मुताबिक अक्टुबर मास 2025 का भविष्य
1. *मेष राशि* (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ) - नवीन परिस्थितियों के बावजूद धन-लाभ सामान्य रहे, भागदौड़ व परिश्रम अधिक रहेगा। वर्तमान परिस्थितियों में अचानक परिवर्तन आ सकता है। भूमि-वाहनों के क्रय-विक्रय द्वारा उत्पन्न आकस्मिक क्रोध, उत्तेजना एवं व्यर्थ की भागदौड़ लगी रहेगी।
2. *वृष राशि* (ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो) - ता. 9 को शुक्र पंचमस्थ नीचराशिगत होने पर मानसिक तनाव व शिक्षा-सम्बन्धी अड़चनें। कुछ आर्थिक परेशानियाँ व निकट-बन्धुओं से तकरार रहेंगी; पूर्व प्रयासों का लाभ कुछ दिन बाद मिलेगा।
3. *मिथुन राशि* (क, की, कु, घ, ङ, छ, के, को, ह) - ता. 8 से शुभ द्वितीय-भाव में मंगल के साथ संचार करने से निष्ठित प्रभाव होगा। शुभ-ग्रह का ह्रास; आय के साधन बने रहेंगे। सन्तान व उनके करियर-सम्बन्धी चिन्ता रहेगी।
4. *कर्क राशि* (हि, हु, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो) - ता. 17 से गुरु-ग्रह की वृद्धि-दृष्टि से धन-लाभ व शुभ समाचार। परिवार-सुख व शिक्षा-क्षेत्र में प्रगति, पर अनावश्यक खर्च से बचें।
5. *सिंह राशि* (म, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे) - कुछ सोची योजनाओं में आंशिक सफलता मिले, धन-लाभ सामान्य रहे। घर-परिवार में शुभ मंगल कार्य भी होंगे। ता. 17 से वृथा भ्रमण एवं खर्च बढ़ेगा। वाहनादि का ऋण-विक्रय भी होगा।
6. *कन्या राशि* (टो, पा, पी, पू, ण, ठ, पे, पो) - अक्टूबर में कोई विशेष उल्लेख नहीं है।
7. *तुला राशि* (रा, री, रू, रे, रो, ता, ति, तु, ते) - नौकरी में रुकावट तथा व्यवसाय में खर्च बने रहने से स्वास्थ्य-सम्बन्धी परेशानियाँ। ता. 9 को शुक्र इन्द्रासन (तीन) एवं अन्य ग्रहों के योग से धन-लाभ के संकेत, परन्तु मानसिक तनाव रहेगा।
8. *वृश्चिक राशि* (तो, न, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू) - इस माह बुध इस राशि में संचार तथा गुरु की दृष्टि के प्रभाववश धर्म-कर्म में रुचि बढ़ेगी। बिगड़े कार्य बनेंगे। निविघ्न आय के साधन बने रहेंगे। मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, स्वारी और सुख के साधन में वृद्धि होगी।
9. *धनु राशि* (ये, यो, भा, भी, भू, धा, फ, ढे) - ढैया के कारण तनाव, पारिवारिक उलझन व बन्धुओं से मनभेद। आर्थिक उचाटता व उदासीनता रहेगी। ता. 8 के बाद वाहन-सुख, वस्त्र-सुख व स्वास्थ्य में कुछ सुधार।
10. *मकर राशि* (भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी) - आशाओं से सफलता; ऐश्वर्य व मान-सम्मान में वृद्धि होगी। सौन्दर्य व रुचि के काम लाभ देंगे। पर गुरु नीच दृष्टि से आलस्य और आत्मसन्तोष बढ़ाकर हानि भी देगा। खर्च में वृद्धि, चोट-चपेट अथवा मानसिक परेशानी के योग।
11. *कुम्भ राशि* (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सौ, दा) - धन-लाभ सम्भावना बढ़ेगी। स्वास्थ्य सम्बन्धी चिन्ता रहेगी तथा आँखों से मन परेशान होगा। ता. 18 से शुभ ग्रह शनि-स[…] के कारण नये कार्यों की योजना में परिवर्तन का विचार बढ़ेगा।
12. *मीन राशि* (दि, दु, थ, झ, ञ, दे, दो
जाने कैसा रहेगा आप की नाम राशी के मुताबिक सितम्बर मास 2025 का भविष्य
1. *मेष राशि* - (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
सितम्बर— विभिन्न आर्थिक योजनाओं को क्रियान्वित करने के संकेत हैं, परन्तु कुछ भ्रामक धारणाओं के कारण भ्रम एवं स्वग्ति दृष्टि रहने से कुछ किये हुए कार्य की पूर्ति होगी। किन्तु स्वास्थ्य- परेशानियाँ एवं वाहनों के रख-रखाव में धन-व्यय हो सकता है।
2. *वृष राशि* - (ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
सितम्बर—शुक्र तृतीय भाव में होने से *दौड़-धूप व तनाव* अधिक। परिवार में मनभेद व असान्ति; अचानक दूरस्थ यात्रा के योग। ता. 14 से शुक्र चतुर्थ भाव में केतु-युक्त होने पर परिस्थितियाँ बदलेंगी।
3. *मिथुन राशि* - (क, की, कु, घ, ङ, छ, के, को, ह)
सितम्बर—पिता-वर्गीय भाव में उच्चवास रहने से मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। आय-व्यय बढ़ने से कार्य-क्षेत्र व व्यवसाय में सम्बन्ध अधिक होगा। ता. 8 से स्व-राशिगत (कन्या) होने से परिस्थितियों में धीरे-धीरे सुधार होगा।
4. *कर्क राशि* - (हि, हु, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
सितम्बर— ता. 14 तक शुक्र-संचार से व्यवसाय/नौकरी की स्थिति मध्यम। ता. 15 से शुक्र स्वराशिगत होने पर विवाह-योग तथा आय-वृद्धि के संकेत। स्वास्थ्य में सुधार, पर दौड़-धूप अधिक।
5. *सिंह राशि* - (म, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
सितम्बर—सूर्य द्वितीय भाव (कन्या) में होने से कुछ बड़े कार्यों में घुसपैठ तथा आय-साधनों में वृद्धि के योग हैं। किसी नवीन कार्य-क्षेत्र में धन निवेश की योजना बनेगी और आय के साधनों में वृद्धि के साथ-साथ खर्च अधिक होगा।
6. *कन्या राशि* - (टो, पा, पी, पू, ण, ठ, पे, पो)
सितम्बर— बुध लाभ-स्थान में होने से कार्य-क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सम्पर्क बढ़ेंगे व नई योजनाएँ बनेंगी, पर गृह-जीवन में असंत, परन्तु निकट-सम्बन्धी बन्धुओं से तकरार रहेंगी; पूर्व प्रयासों का लाभ कुछ दिन बाद मिलेगा।
7. *तुला राशि* - (रा, री, रू, रे, रो, ता, ति, तु, ते)
सितम्बर—मन अशान्त एवं असन्तुष्ट रहेगा। स्वास्थ्य में विकार, माता-पिता से मनमुटाव तथा नौकरी/व्यवसाय में परिवर्तन का विचार बनेगा। ता. 14 से शुक्र लाभ-स्थान में होने के कारण नये कार्यों में कुछ सुधार एवं धन-लाभ के अवसर दिखेंगे।
8. *वृश्चिक राशि* - (तो, न, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
सितम्बर—राशिस्वामी बुध इस राशि में संचार होने से बने कर्मों में चिन्ता तथा उतार-चढ़ाव अधिक दिखाई देगा । आय-दौड़-धूप अधिक रहने से आर्थिक स्थिति दुविधापूर्ण रहेगी । 13 सितम्बर को 12वें घर के विभिन्न ग्रह-योगों से व्यर्थ खर्च और मान-सम्मान घटे रहेंगे ।
9. *धनु राशि* - (ये, यो, भा, भी, भू, धा, फ, ढे)
सितम्बर—सूर्य-गुरु-शनि की संयुक्त दृष्टि से परिस्थितियाँ *उलट-पुलट* रहेंगी। नौकरी/व्यवसाय में बाधाएँ होते हुए भी धन-लाभ व उन्नति के अवसर मिलेंगे। लम्बी यात्राएँ, धन का अपव्यय, ऋण तथा मानसिक उलझन बनी रहेगी।
10*मकर राशि* - (भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)
सितम्बर—अन्त्य भाव में सूर्य-बुध रहने से पारिवारिक सदस्यों के स्वास्थ्य व परेशानियों का डर रहेगा। व्यवसाय में खर्चीली प्रवृत्तियाँ उभरेंगी तथा पारिवारिक माहौल में तनाव रह सकता है। गुरु की दृष्टि रहने से पति-पत्नी रिश्तों में मधुरता अवश्य बढ़ेगी।
11*कुम्भ राशि* - (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सौ, दा)
सितम्बर— इस राशि पर गुरु शुभ है किन्तु सूर्य का अशुभ फल अधिक रहेगा। उन्नति व धनागम के अवसर मिलेंगे; किन्तु व्यय व तनाव भी बढ़ेगा। वैवाहिक / पारिवारिक सम्बन्ध में सुधार होगा। परिवार में सहयोग व सामंजस्य रहेगा।
12*मीन राशि* - (दि, दु, थ, झ, ञ, दे, दो, चा, ची)
सितम्बर— अल्पधन परिश्रम करने पर भी लाभ के अवसरों का समुचित लाभ नहीं उठा पाऊँ। सन्तान के सम्बन्ध में चिन्ता और घरेलू उलझनों के कारण मन उदासीन रहेगा। ता. 16 के बाद आय कम और खर्च अधिक, पारिवारिक मतभेद एवं कार्य-स्थिति सामान्य हो सकेगी।
जाने कैसा रहेगा आप की नाम राशी के मुताबिक अगस्त मास 2025 का भविष्य
1. *मेष राशि (Aries)* - (चू, चे, चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ)
क्रोध एवं उत्तेजना से कोई बना-हुआ कार्य बिगड़ने के योग हैं। आर्थिक उलझनें पैदा होंगी। संयमशील व्यवहार से गत किये गये प्रयासों में सफलता मिलेगी। स्वास्थ्य-सम्बन्धी एवं वाद-विवाद में परेशानी होगी।
2. *वृष राशि (Taurus)* - (ई, उ, ए, ओ, वा, वी, वू, वे, वो)
व्यर्थ की भागदौड़ एवं निकटवर्तियों से खिन्नता रहेगी। ता. 20 से शुक्र तृतीय भाव में होने से खर्च और बढ़ेगा। व्यवसाय/नौकरी की स्थिति मध्यम।
3. *मिथुन राशि (Gemini)* - (क, की, कु, घ, ङ, छ, के, को, ह)
व्यर्थ की भागदौड़ एवं तनाव अधिक। परिवार में मनभेद व असान्ति; अचानक दूरस्थ यात्रा के योग।
4. *कर्क राशि (Cancer)* - (हि, हु, हे, हो, डा, डी, डू, डे, डो)
शत्रु-बन्धुओं से मनमुटाव, शारीरिक कमजोरी व मानसिक तनाव रह सकता है। विवादों से दूरी बनाएँ; ऋण-शत्रु मामलों में विजय सम्भव।
5. *सिंह राशि (Leo)* - (म, मी, मू, मे, मो, टा, टी, टू, टे)
सूर्य अस्त (कर्क) होने से आर्थिक दबाव तथा विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। स्वास्थ्य, तनाव एवं पारिवारिक उलझनों में वृद्धि होगी।
6. *कन्या राशि (Virgo)* - (टो, पा, पी, पू, ण, ठ, पे, पो)
मंगल इस राशि पर तथा बुध लाभ-स्थान में होने से कार्य-क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सम्पर्क बढ़ेंगे व नई योजनाएँ बनेंगी, पर गृह-जीवन में असंतोष रहेगा। मासान्त में आर्थिक उलझनें, खर्च अधिक एवं मानसिक असन्तुष्टि बनी रहेगी।
7. *तुला राशि (Libra)* - (रा, री, रू, रे, रो, ता, ति, तु, ते)
व्यर्थ की भागदौड़ एवं निकटवर्तियों से खिन्नता रहेगी। ता. 20 को शुक्र राशिस्थ होने से आजीविका में वृद्धि होगी। पर एकत्र कार्य अटकेंगे; शत्रु-बन्धुओं से व्यर्थ का झंझट, दौड़-धूप एवं खर्च अधिक रहेगा।
8. *वृश्चिक राशि (Scorpio)* - (तो, न, नी, नू, ने, नो, या, यी, यू)
परिस्थिति धीरे-धीरे अनुकूलताएँ होंगी। परस्पर और परिजनों से कुछ झंझट का भय रहेगा। अपने कार्य-सम्बन्धी योजनाओं में परिवर्तन करने पर लाभ प्राप्त होगा।
9. *धनु राशि (Sagittarius)* - (ये, यो, भा, भी, भू, धा, फ, ढे)
मानसिकता से ही स्थिति शिथिल रहेगी। ता. 16 से मातापक्ष की दृष्टि तथा स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखें। अनावश्यक खर्च व धन-लाभ में विघ्न की सम्भावना होगी।
10. *मकर राशि (Capricorn)* - (भो, जा, जी, खी, खू, खे, खो, गा, गी)
शनि प्रतिग्रहण होने से अब तक किये गये प्रयत्नों में लाभ व उन्नति के अवसर मिलेंगे। शत्रु-पक्ष सक्रिय रहेगा, धन-व्यय अधिक; फिर भी आर्थिक स्रोत उभरेंगे।
11. *कुम्भ राशि (Aquarius)* - (गू, गे, गो, सा, सी, सू, से, सौ, दा)
मान्यताओं में विशेष सफलता प्राप्त होगी। शनि द्वितीयस्थ होने से धन-लाभ व उन्नति के कुछ अवसर मिलेंगे। नवीन कार्य को आरम्भ देने का प्रयत्न लाभकारी रहेगा।
12. *मीन राशि (Pisces)* - (दि, दु, थ, झ, ञ, दे,
जाने कैसा रहेगा आप की राशी के मुताबिक जुलाई मास 2025 का भविष्य
- मासांत में मंगल पंचम भाव में; मंगल-शनि समसप्तक।
- नये विचार व योजनाएँ, पर असमंजस से लाभ में विलम्ब।
- 28 जुलाई के बाद बिगड़े कार्य सुधरेंगे।
- फिर भी मंगल-शनि दृष्टि से ख़र्च अधिक।
- शुक्र स्वराशिगत रहने से प्रारम्भ किये कार्यों में कुछ सफलता, धन-लाभ व उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे।
- पर शनि-दृष्टि से दुर्घटना या चोट की आशंका; ता. 26 तक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखें।
- शुक्र इस भाव में स्थित होने से मनोरंजन एवं विलासात्मक कार्यों पर धन का खर्च ज़्यादा।
- परिवार में असमंजस रहेगा, परन्तु बने कार्यों में विघ्न-बाधाएँ, स्वास्थ्य कुछ ढुलमुल।
- प्रेम-सम्बन्ध यथावत।
- ता. 18 से शुभ ग्रह अस्त होने से शुक्र-वक्र के कार्यों में परेशानी-योग है।
- परिस्थितियों में कुछ सुधार तथा किसी नवीन कार्य पर खर्च या योजना प्रारम्भ हो सकती है।
- ता. 16 से शत्रु-दृष्टि रहने से खर्च व आर्थिक परेशानियाँ बनेंगी।
- मानसिक तनाव से बचें, स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
- मासारम्भ में ग्रह अनुकूल; कार्य-व्यस्तताएँ रहेंगी।
- प्रतिष्ठित कार्यों में प्रगति से मन उत्साहित रहेगा।
- किन्तु स्वास्थ्य ढीला हो सकता है।
- प्रियजनों से विवाद से बचें, संयम रखें।
- बुध चतुर्थ भाव में होने से नौकरी में पदोन्नति कुछ रुकावटों के बाद सम्भव।
- व्यवसाय में आय कम; किये प्रयत्न सफल होंगे।
- श्रेष्ठ व्यक्तियों से सम्पर्क लाभप्रद।
- मासारम्भ से शुक्र अष्टमस्थ रहने से व्यवसाय में आंशिक लाभ एवं विलासिता हेतु व्यय अधिक।
- मानसिक तनाव, स्वास्थ्य-हानि एवं ऋण-चिन्ता रहेगी।
- घरेलू उलझनें बढ़ेंगी।
- उपाय—ता. 16 से ‘श्रीराम महातन्त्र’ का पाठ करें।
- मंगल अस्त-स्थ होने के कारण लाभ व बिगड़े कामों में सुधार रहेगा।
- पारिवारिक वातावरण में कुछ कटुताएँ कम होंगी, परन्तु लोगों के सहयोग से विशेष उन्नति हुए कार्य पूर्ण होंगे।
- व्यवसाय में उन्नति के अवसर मिलेंगे, परन्तु स्वास्थ्य कटु रहेगा।
- गुरु एवं शनि की दृष्टियाँ होने से शुभ-अशुभ (मिश्रित) प्रभाव रहेंगे।
- पूर्ववर्ती बन्धुओं से धन-लाभ तथा सुख-साधनों में वृद्धि होगी, धर्म-कर्म में रुचि भी रहेगी।
- परन्तु असमंजस और झंझट के कारण गृहस्थ उलझनें व परेशानियाँ होंगी।
- मानसिकता से ही स्थिति शिथिल रहेगी। मृत्यु तुल्य कष्ट की संभावना रहेगी
- ता. 16 से मातापक्ष की दृष्टि तथा स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रखें।
- अनावश्यक खर्च व धन-लाभ में विघ्न की सम्भावना होगी।
- आम बुद्धि के साथ-साथ कई नई सम्भावनाएँ भी बनेंगी।
- निकट सहयोगियों से कपटपूर्ण धोखा मिले।
- शुभ कार्यों में प्रवृत्ति रहेगी, परन्तु क्रोध व उत्तेजना का भय तथा वाद-विवाद-झगड़े के संकेत हैं।
- धन सम्बन्धी विशेष चिन्ता रहेगी; लक्ष्मी-श्रीसूक्त का पाठ लाभदायक।
- गुरु की दृष्टि के कारण धार्मिक एवं शुभ योग, पर खर्च अधिक रहेगा।
- मास के प्रारम्भ में तेजी एवं व्यर्थ की दौड़-धूप अधिक रहेगी।
बोधिनी एकादशी: देव उठनी एकादशी का पावन पर्व
12 नवंबर 2024 मंगलवार को
12 नवंबर 2024 मंगलवार को
भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में एकादशी तिथियों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इनमें से प्रबोधिनी एकादशी, जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। यह पर्व भगवान विष्णु के चार महीनों की योगनिद्रा के बाद जागृत होने का प्रतीक है। प्रबोधिनी एकादशी का धार्मिक महत्व अत्यंत उच्च है, क्योंकि इसे देवताओं के जागने का दिन माना जाता है, और इस दिन से सभी मांगलिक कार्यों का पुनः शुभारंभ होता है।
प्रबोधिनी एकादशी का धार्मिक महत्व
हरिशयनी एकादशी से लेकर प्रबोधिनी एकादशी तक, भगवान विष्णु योगनिद्रा में होते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है, जिसमें विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ आदि मांगलिक कार्यों को निषिद्ध माना जाता है। प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की जागृति होती है, और इसी दिन से सभी शुभ कार्यों का आरंभ हो सकता है।
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की विशेष कृपा पाने का दिन है, और यह व्रत जीवन में शांति, सुख, और समृद्धि लाता है।
प्रबोधिनी एकादशी और रेणुका माता एवं भगवान परशुराम की दिव्य कथा
प्रबोधिनी एकादशी, जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है, भारतीय धार्मिक परंपरा में अत्यंत पवित्र दिन है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाने वाली यह तिथि भगवान विष्णु के चार महीनों की योगनिद्रा समाप्त होने का प्रतीक है। इस दिन को देवताओं के जागने का दिन भी माना जाता है। यह पर्व न केवल भगवान विष्णु की आराधना का अवसर है, बल्कि इसे रेणुका माता और उनके वीर पुत्र भगवान परशुराम से भी जोड़कर देखा जाता है। रेणुका माता और भगवान परशुराम के चरित्र से इस दिन की महत्ता और भी बढ़ जाती है।
प्रबोधिनी एकादशी का महत्व
हरिशयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं। देव उठनी एकादशी के दिन भगवान जागते हैं और सभी मांगलिक कार्यों जैसे विवाह, गृह प्रवेश, और यज्ञ आदि का पुनः शुभारंभ होता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है। भक्तजन उपवास रखते हैं और उनकी कृपा पाने के लिए तुलसी विवाह का आयोजन भी किया जाता है।
रेणुका माता का पावन चरित्र
रेणुका माता, भगवान परशुराम की माता और महर्षि जमदग्नि की पत्नी, अपने धर्म और पतिव्रत के लिए प्राचीन काल से ही पूजनीय रही हैं। उनकी सादगी, तपस्या, और पवित्रता से उनका चरित्र प्रेरणादायक है। माना जाता है कि रेणुका माता का पतिव्रत इतना शक्तिशाली था कि वे अपने तपोबल से सरोवर से पानी सिर्फ बालू के बर्तन में लाया करती थीं। उनके त्याग और बलिदान ने उन्हें देवी का स्थान दिया है।
एक बार उन्हें एक क्षणिक मोह के कारण उनके पति जमदग्नि ने उन्हें त्यागने का आदेश दिया। भगवान परशुराम ने अपने पिता के आदेश पर माता का वध किया, किंतु उनकी पवित्रता और तपस्या को देखते हुए, उन्होंने अपने तपोबल से उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। यह घटना मातृत्व, धर्म, और कर्तव्य के संघर्ष का अद्भुत उदाहरण है। रेणुका माता के इस अनोखे बलिदान और त्याग ने उन्हें पूजनीय बना दिया है।
भगवान परशुराम: एक महान योद्धा और भक्त पुत्र
भगवान परशुराम, जो विष्णु के छठे अवतार माने जाते हैं, अद्वितीय योद्धा, धर्म रक्षक, और आदर्श पुत्र के रूप में विख्यात हैं। उनका जन्म पृथ्वी पर अधर्म का नाश करने और धर्म की पुनर्स्थापना के लिए हुआ था।
भगवान परशुराम का चरित्र दृढ़ता, वीरता और धर्म का अद्वितीय उदाहरण है। वे केवल एक योद्धा ही नहीं, बल्कि ज्ञान के प्रतीक भी माने जाते हैं। उन्हें शस्त्र और शास्त्र दोनों का मर्मज्ञ माना जाता है। उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन करने में भी संकोच नहीं किया और अपनी माता का वध किया, जो उनके कर्तव्यनिष्ठा और निस्वार्थ भक्ति का प्रतीक है।
प्रबोधिनी एकादशी का संबंध भगवान परशुराम और रेणुका माता से
कहा जाता है कि इस दिन भगवान परशुराम अपनी माता से मिलने रेणुका आते हैं जब उन्होंने सारी पृथ्वी जीत ली थी तो वो पृथ्वी उन्होंने अपने गुरु को दान कर दी और गुरू से आज्ञा माँगी की मुझे एक दिन के लिए अपनी माता से मिलने रेणुका आने की अनुमति प्रदान करें। इसी परंपरा को निभाते हुए आज भी वहाँ पर रेणुका का मेला लगता है जो कि हिमाचल प्रदेश सिरमौर ज़िले में स्थित है ।यंहा पर अब भी साक्षात मां रेणुका की तीन किलो मीटर लंम्बी झील है।जो स्त्री की तरहा दिखती है।
प्रबोधिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ भक्तजन भगवान परशुराम और रेणुका माता की भी पूजा करते हैं। इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह दिन धर्म, संयम, और निष्ठा का संदेश देता है, जो रेणुका माता और भगवान परशुराम के जीवन में भी झलकता है
प्रबोधिनी एकादशी का व्रत एवं पूजा विधि
प्रबोधिनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की पूजा और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। व्रत के दिन प्रातःकाल स्नान कर भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष दीप जलाएं और उन्हें पीले पुष्प अर्पित करें। तुलसी के पत्तों के बिना इस पूजा को अधूरा माना जाता है, इसलिए तुलसी दल अर्पण अवश्य करें।
इस दिन नमक रहित भोजन या फलाहार का सेवन करने की परंपरा है। भक्तजन रात्रि में जागरण करते हैं और भजन-कीर्तन का आयोजन करते हैं। अगले दिन द्वादशी के अवसर पर ब्राह्मणों को भोजन करवा कर व्रत का समापन किया जाता है।
व्रत कथा
प्रबोधिनी एकादशी से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, सत्ययुग में एक राजा था, जिसका नाम मान्धाता था। उनके राज्य में अकाल पड़ गया था, जिससे प्रजा को बहुत कष्ट हुआ। राजा ने नारद मुनि से उपाय पूछा। नारद मुनि ने उन्हें प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। राजा ने इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा और विधि-विधान से किया, जिसके फलस्वरूप राज्य में वर्षा हुई और सभी कष्ट दूर हो गए। इस प्रकार, प्रबोधिनी एकादशी के व्रत का महत्व स्पष्ट होता है कि यह व्रत भक्तों के जीवन में सुख और समृद्धि लाने वाला है।
तुलसी विवाह की परंपरा
प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की विशेष परंपरा भी है। इस दिन भगवान विष्णु का विवाह तुलसी जी के साथ किया जाता है। इसे भगवान शालिग्राम और तुलसी माता का विवाह भी कहते हैं। यह परंपरा विशेषकर भारत के कई हिस्सों में धूमधाम से निभाई जाती है। तुलसी विवाह के साथ ही विवाह जैसे मांगलिक कार्यों का शुभारंभ होता है, जो इस दिन का महत्व और भी बढ़ा देता है।
वैज्ञानिक पहलू
प्रबोधिनी एकादशी का एक वैज्ञानिक पहलू भी है। यह समय ऋतु परिवर्तन का होता है, जिसमें सात्विक और हल्का भोजन करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। इस दिन उपवास रखने से शरीर की शुद्धि होती है और प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
इस दिन के अन्य अनुष्ठान
प्रबोधिनी एकादशी के अवसर पर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है। जगह-जगह भगवान विष्णु के भजन-कीर्तन का आयोजन होता है और भक्तजन भगवान की विशेष कृपा पाने के लिए इस दिन व्रत रखते हैं।
निष्कर्ष
प्रबोधिनी एकादशी, देव उठनी एकादशी का यह पावन पर्व हमें भगवान विष्णु की भक्ति और उनके प्रति श्रद्धा में लीन होने का अवसर प्रदान करता है। यह दिन हमें जीवन में पुनः नवीनीकरण और शुभता की ओर प्रेरित करता है। भगवान विष्णु की कृपा से यह दिन हमें शांति, सुख, और समृद्धि प्रदान करने वाला है। प्रबोधिनी एकादशी के व्रत का पालन कर हम अपने जीवन में ईश्वर के प्रति आस्था और भक्ति को दृढ़ कर सकते हैं।
प्रबोधिनी एकादशी हमें जीवन में सत्कर्म, संयम, और भक्ति के मार्ग पर चलने का संदेश देती है।
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